पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' समाज में छाए हुए अनाचार , असंतोष और दुष्प्रवृतियों का एकमात्र कारण है कि जनसाधारण की आत्मचेतना मूर्च्छित हो गई है l चिंतन और चरित्र यदि निम्न स्तर का है तो उसका प्रतिफल भी दुःखद , संकटग्रस्त एवं विनाशकारी होगा l आचार्य श्री लिखते हैं --- ' संसार में बुराई और भलाई सभी कुछ है , पर हम उन्ही तत्वों को आकर्षित और एकत्रित करते हैं जिस प्रकार की हमारी मनोदशा होती है l यदि हम विवेकशील हैं , हमारी रूचि परिमार्जित है तो संसार में जो कुछ श्रेष्ठ है , हम उसे ही पकड़ने का प्रयत्न करेंगे l किन्तु श्रेष्ठता का अनुकरण कठिन होता है l सुगंध की अपेक्षा दुर्गन्ध का विस्तार अधिक होता है l एक नशेड़ी , जुआरी , दुर्व्यसनी , कुकर्मी अनेकों संगी - साथी बना सकने में सहज सफल हो जाता है l ' आचार्य श्री आगे लिखते हैं ---- गीता पढ़कर उतने आत्मज्ञानी नहीं बने जितने कि दूषित साहित्य , अश्लील दृश्य , अभिनय से प्रभावित होकर कामुक अनाचार अपनाने में प्रवृत हुए l कुकुरमुत्तों की फसल और मक्खी - मच्छरों का परिवार भी बड़ी तेजी से बढ़ता है पर हाथी की वंश वृद्धि अत्यंत धीमी गति से होती है l भौतिक प्रगति के साथ चेतना का स्तर ऊँचा हो , यही सच्ची प्रगतिशीलता है l
9 December 2020
WISDOM -----
' दुःख में सुमिरन सब करें , सुख में करे न कोय l जो सुख में सुमिरन करे , दुःख काहे को होय l श्रीमद् भगवद्गीता की शिक्षाएं हमें जीवन जीना सिखाती हैं l गीता में भगवान कहते हैं ---- 'शुभ और अशुभ दोनों ही फल मनुष्य के लिए बाधक हैं l शुभ कर्मों का फल भोगते - भोगते मनुष्य को कर्तापन का अभिमान हो जाता है l जब मनुष्य का समय अच्छा होता है तब हर तरफ उसकी जय - जयकार होती है इस कारण उसका अहंकार और ऐश्वर्य सिर चढ़कर बोलने लगता है l लेकिन जब अशुभ फल पैदा होता है , बुरा वक्त आता है तब हर जगह विपदा ही विपदा नजर आती है , अपमान और षड्यंत्रों की श्रंखला शुरू हो जाती है l इसलिए गीता में भगवान हमें समझाते हैं और कहते हैं --- शुभ के क्षणों में अशुभ के लिए तैयार रहना चाहिए l सुख के क्षणों को योगमय बना लो l सबको साझीदार बना कर पुण्य बांटो l शुभ कर्म करो l शुभ कर्म का मतलब केवल कर्मकांड करना नहीं है l शुभ कर्म अर्थात परमार्थ करना l दूसरों को ऊँचा उठाने के लिए , उनकी पीड़ा दूर करने के लिए कार्य करना l सुख में कभी अहंकार न करे l जब जीवन में दुःख आये तो विचलित न हो क्योंकि परमात्मा सबकी परीक्षा दुःखों के माध्यम से लेता है l दुःख को तप बना ले l