28 February 2019

WISDOM ----- काल सर्वोपरि है ---

  भगवान  श्रीकृष्ण   ने  कुरुक्षेत्र  में   अपने   विराट  और   विश्वरूप  को  दिखलाते  हुए    स्वयं  को  संहारकारी  काल  के  रूप  में  घोषित  किया  है   l  काल  का  प्रवाह  प्रचंड  होता  है   l  इस  संसार  में  हर  व्यक्ति  की  अपनी  भूमिका  होती  है   l  बुद्धिमत्ता  तो  यही  है  काम  पूरा  होते  ही  उससे  विदा  ले  लेनी  चाहिए   l  काम  के  बाद  एक  पल  भी  ठहरना  अच्छा  नहीं  है   l  विवेकानंद  कहते  थे  --- " माँ  का  काम  करने  के  बाद  मैं  यहाँ  एक  क्षण  भी  ठहरना  नहीं  चाहता  l  "  उनका  काम  पूरा  होते  ही  वे  इस धरती  से  विदा  हो  गए  l 
         फ्रांस  की  राज्य  क्रांति  में   नेपोलियन   सहित    चार  प्रमुख  व्यक्तियों  का  योगदान  था   l  नेपोलियन  के  आलावा   अन्य   तीनो  जनसामान्य  के  रूप  में  प्रकट  हुए   और  अपना काम  करके  विदा  हो  गए  l    इतिहास  के  अनुसार  नेपोलियन  ने  अनेक  महान  कार्य  किए    लेकिन   वह   अहंकारी  था   l  इस अहंकार  के  कारण  महान  कार्य  करने  वाले  भी   एक  दिन  नष्ट  हो  जाते  हैं   l   फ्रान्स  की  राज्य  क्रांति काल की अभिव्यक्ति  थी   l    जो  लोग    स्वयं  को  भगवान  का  यंत्र  मानकर  कार्य  करते  हैं  ,  अपनी  सफलता  का  सारा   श्रेय    भगवान  को  देते  हैं  ,  समाज  में  उन्ही  की  प्रतिष्ठा  होती  है   l  लेकिन  जो  अहंकारी  हैं  , स्वयं  पर  गर्व  करते  हैं   कि  महान  घटनाओं  के  जन्मदाता  वही  हैं  ,  वे  बड़ी  भ्रान्ति  में  रहते  हैं   l  अहंकार  के  कारण  वे  काल  की  गहरी  खाई  में  जा  गिरते  हैं   l    नेपोलियन    के  कार्य  इतिहास प्रसिद्ध  हैं  किन्तु  उसका  अवसान  अत्यंत  दर्दनाक   हुआ   l   

WISDOM ----- जो खुशियों की खोज अन्तस् में करता है , उसे फिर इन्हें कहीं अन्यत्र नहीं खोजना पड़ता l

   आज  मनुष्य  खुशियों  कीं   तलाश  में  सारी  उम्र    बाहर  भटकता  रहता  है  लेकिन  उसे  कहीं  शांति  नहीं  मिलती l  खुशियों  का  यह  खजाना ,  मन  की  शांति  उसके  अन्तस्  में  ही  है  l  बस  !  उसे  पाने  के  लिए   सदाचार , सत्कर्म  और  सकारात्मक  सोच  की जरुरत  है   l  
  एक  कथा  है  ----  एक  भिखारी  था  ,  वह  जिन्दगी  भर  एक  ही  जगह  बैठकर  भीख  मांगता  रहा   l  उसकी  इच्छा थी  कि  वह  भी  धनवान  बने  ,  इसलिए  वह   दिन  में  ही  नहीं  ,  रात में  भी  भीख  माँगा  करता  था  l  जो  कुछ उसे  भीख  में  मिलता  उसे खरच करने  के  बजाय  जोड़ता  ही  रहता   l  अपनी   ख्वाहिश   को  पूरा  करने  के  लिए  उसने   दिन - रात  भरपूर कोशिश  की  ,  लेकिन  वह  कभी  भी  धनवान  न  हो  सका  l  वह  भिखारी  की  तरह  जिया  और  भिखारी  की  तरह  मरा  l 
 जब  वह  मरा  तो  कफन  के  लायक  भी    पूरे   पैसे  उसके  पास  नहीं  थे   l  आसपास  ले  लोगों  ने  उसका   झोंपड़ा  तोड़  दिया  ,  फिर  सबने  मिलकर  वहां  की  जमीन  साफ  की  l  सफाई  करने  वाले   इन  सभी  को   तब  भारी  आश्चर्य  हुआ  ,  जब  उन्हें  उस  जगह  पर   बड़ा  भारी  खजाना  गड़ा  हुआ  मिला  l  यह  ठीक  वही  जगह  थी  ,  जिस  जगह  पर  बैठकर    वह  भिखारी   जिन्दगी  भर  भीख  माँगा  करता  था  l  जहाँ  पर  वह  बैठता  था  ,  उसके  ठीक  नीचे  यह   भारी   खजाना  गड़ा  हुआ  था  l 
  आज  मनुष्य  की  हालत  कुछ  ऐसी  ही  है  l  वह  बाहरी  चीजों  में  ही  खुशियों  को  तलाशता  रहता  है ,  किन्तु  पाता  कुछ  भी  नहीं  है   l  

26 February 2019

WISDOM ----- यदि संगठित रूप से अत्याचार - अनाचार का प्रतिरोध किया जाये तो शक्तिशाली बर्बरता को भी परास्त किया जा सकता है

 गढ़ मंडला  की  रानी  दुर्गावती  ने   अकबर  जैसे  शक्तिशाली  सम्राट  को  भी  दो  बार  पराजित  कर  के  पीछे खदेड़  दिया    l  क्षत्रियों  ने  युद्धों  में  जैसी  वीरता  दिखाई , उसकी  प्रशंसा  इतिहास  के  पन्ने - पन्ने  में  लिखी  हुई  मिलती  है  ,  पर  साथ  ही  अवसर  के  अनुकूल  कार्यप्रणाली  न  अपनाकर  ,  और  केवल  परम्पराओं  के  पीछे  ही  लगे  रहकर   उन्होंने  जो  बहुत  बड़ी  भूल  की  उसकी  अबुद्धिमत्ता  की  आलोचना  भी  अनेक  विद्वानों  ने  की  है  ----- पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने   वाड्मय ' मरकर  भी  जो  अमर  हो  गए '  में   पृष्ठ   1.7  पर  लिखा  है -----  दो  आक्रमणों  में  रानी  दुर्गावती  ने  शत्रु  को  अच्छी  तरह  हरा  दिया  ,  पर  न  मालूम  किस  कारण  उसकी  सेना  ने  शत्रु  की   भागती  हुई  सेना  का  पीछा  नहीं  किया    ?
   शत्रु    को   आधा  कुचल  कर  छोड़  देने  से   वह  प्राय:  प्रतिशोध  की  ताक  में  रहता  है   और  फिर  से  तैयार  होकर  आक्रमण  कर  सकता  है   l  गढ़ मंडला  के  सेनाध्यक्षों   से  यही  भूल  हुई    जिसके  फलस्वरूप   मुगल  सेना  एक  के  बाद  एक  तीन  आक्रमण  कर  सकी   और  अंत  में  सुयोग  मिल  जाने  से   उसने  सफलता  प्राप्त  कर  ली   l  "  
उन्होंने  आगे  लिखा  है  '  महाराज  पृथ्वीराज  ने  प्रथम  बार  के  आक्रमण  में    मुहम्मद  गौरी  को  हराकर  पकड़  लिया  था    लेकिन  बाद  में  कुछ  लोगों  की  चिकनी - चुपड़ी  बातों  में  आकर   मुहम्मद  गौरी  के  क्षमा  प्रार्थना  करने  पर  उसे  छोड़  दिया  l  परिणाम  यह  हुआ  कि   उसने  फिर  अधिक  तैयारी  के   साथ  आक्रमण  किया  और  विजय  मिलने  पर  पृथ्वीराज  को  मरवा   ही   डाला  l  '
  हमारे  नीतिकारों  ने  भी  यही  कहा  है  --- दुष्ट  शत्रु  पर  दया  दिखाना   अपना  और  दूसरों  का  अहित  करना  है  l   आजकल  के  व्यवहार शास्त्र  का  स्पष्ट  नियम  नही  कि    दूसरों  को  सताने  वाले   दुष्टजन  पर  दया  करना  ,  सज्जनों  को  दंड  देने  के  समान  है   क्योंकि  दुष्ट  तो  अपनी  स्वभावगत   क्रूरता   और  नीचता   को  छोड़  नहीं  सकता    l  जब  तक  उसमे  शक्ति  रहेगी  ,  वह  निर्दोष  व्यक्तियों  को  सब  तरह  से  दुःख  और  कष्ट  ही   देगा   l   
बर्नार्ड शा  ने  भी  एक  लेख  में  लिखा  है --- स्वभाव  से  ही  दुष्ट  और  आततायी  व्यक्तियों   को  समाज  में  रहने  का   अधिकार  नहीं  है  l  उनका  अंत  उसी  प्रकार  कर  देना  चाहिए  जिस  प्रकार  हम  सर्प  और  भेड़िया  आदि  अकारण  आक्रमणकारी    और  घात  में  लगे  रहने  वाले  जीवों  का  कर  देते  हैं   l   

25 February 2019

WISDOM ----- समस्याओं का कारण ----- मानवी दुर्बुद्धि

 बुद्धि  तो  सहज  रूप में  सभी  को  प्राप्त  होती  है -- किसी  को  कम ,  किसी  को  ज्यादा   l   लेकिन  बुद्धि    यदि  भ्रष्ट  होकर  कुमार्गगामी  बन  जाये    तो  वह  व्यक्ति  का  स्वयं  का  तो  पतन  करती  ही  है  ,  उसके  क्रिया - कलाप   समाज  को  भी  क्षति  पहुंचाते  हैं   l  जिस  प्रकार    द्रष्टि   दोष  होने  के  कारण  मात्र  नजदीक  की वस्तुएं  ही  दीख  पड़ती  हैं    और    दूर  रखी  हुई  वस्तुओं  को    पहचानना  कठिन  होता  है   उसी  प्रकार  दुर्बुद्धिग्रस्त  व्यक्ति  तात्कालिक  लाभ   को  ही  सब  कुछ  समझता   है  ,   किस  कृत्य  का  भविष्य   में   क्या  परिणाम  होगा  , इसका  अनुमान  नहीं  लगा  पाता  l  तात्कालिक लाभ कमाने  की    अविवेकपूर्ण   कामना  की वजह  से  ही  समाज  में     भ्रष्टाचार ,  अनाचार , अत्याचार  , अन्याय , शोषण  बढ़ा  है  l  

23 February 2019

WISDOM ----- बुराई को रोकना भलाई करने के बराबर है

 इस  संसार  में  अच्छाई  और  बुराई  दोनों  शक्तियां  कार्य  करती  हैं   l  अच्छाई  की  रक्षा  के  लिए  आवश्यक  है  कि  बुराई  का  विरोध  किया  जाये  ,  उसे  नष्ट  किया  जाये  l 
 बुराई  छोटी  है  ,  यह  समझकर  यदि  उसकी  उपेक्षा   की  जाये    तो  वह  क्षय  रोग की  तरह   उस  उपेक्षा  से  उठकर   चुपके - चुपके  अपना  कब्ज़ा  जमाती  है   और  एक  दिन  उसका  पूरा  आधिपत्य  हो  जाता  है   l  बुराइयों  का  आकर्षण    अच्छाइयों  की  अपेक्षा  अधिक  चमकदार  होता  है   , इसलिए  देखा  जाता  है  कि  निर्बल  शक्ति  वाले  प्राय: बड़ी  आसानी  से   बुराइयों  का  प्रलोभन   सामने  आते  ही  फिसल  जाते  हैं    और  उसके  चंगुल  में  फंस  जाते   हैं   l   
  भगवान  ने   गीता  में  अर्जुन  को   "  सदा  युद्ध  में   रत  रहने   का  उपदेश दिया  है   l  यह   सतत  युद्ध  निम्न  वृतियों  के  विरुद्ध  जारी  रहना  चाहिए   l  "   हम   अन्य    आवश्यक  कार्यों  की  तरह  अपनी  बुराइयों  का  नाश  करें  और  अपने  चारों  ओर  फैली  हुई  बुराइयों ,  अन्याय  और  अत्याचार  से  लड़ें   l 
  निर्बल  को  देखकर  हर  किसी  को  आक्रमण ,  अन्याय  और  शोषण  करने  का  लालच  आता  है    इसलिए  ऋषियों  का  मत  है  कि  --- ' न्याय  रक्षा  के  लिए    जहाँ  शक्तिमानो  का  धर्मात्मा  बनना  उचित  है  ,  वहां  दुर्बलों  को  भी  अपना  बल  बढ़ाना  आवश्यक  है    l    गायत्री  मन्त्र  में  ' भर्ग  '  शब्द  का  सन्देश  है  कि   हम  अपना  शारीरिक , बौद्धिक  ,  आर्थिक , चारित्रिक  तथा  संगठन  बल  बढ़ाएं  ,  जिससे  दुर्बलता  तथा  अन्य  हानियों   से  बच  सकें   l    

22 February 2019

WISDOM ------ अपने गुणों के कारण गांधीजी के साथ 'बा ' ने भी अपना नाम अमर कर लिया

   बचपन  में  तो  बा  को  किसी  ने  पढ़ाया  नहीं ,  पर  बड़ी  उम्र  में  वातावरण  बदल  जाने  के  कारण  उनको  पढ़ने का  शौक  हो  गया  l कभी  किसी  की मदद  से  तुलसी  रामायण  पढ़तीं  और  कभी गीता  का  अभ्यास  करतीं  l  अपनी  आयु  के  अंतिम  वर्षों  में  आगा  खां  महल  में  कैद  रहते  हुए  वे  गांधीजी  से  गीता  के  श्लोकों  का   शुद्ध  उच्चारण  करना  सीखतीं  थीं  l  इन  दोनों  75-75  वर्ष  की  आयु  के '  शिक्षक   और  विद्दार्थी '   का  द्रश्य  देखते  ही  बनता  था  l
अपने  गृहस्थ  जीवन  में  बा  ने    प्राचीन  भारतीय  आदर्श  का  पालन  कर  के  दुनिया  को  चकित  कर  दिया       35 वर्ष  की  आयु  में  गांधीजी  ने  यह  निश्चय  किया  कि  अब  हम  दोनों  को   काम  वासना  का  त्याग  कर   भाई - बहन  की  तरह  रहना  चाहिए  ,  तो  बा  ने  इसे  स्वीकार  करने  में  कुछ  भी  आगा   पीछा  न 
किया   l   और  जीवन  के   पिछले  37 वर्ष  ब्रह्मचर्य-व्रत  को   मनसा - वाचा - कर्मणा  पालन  करते  हुए  व्यतीत  किये  l   इस  सम्बन्ध  में  स्वयं  गांधीजी  का  कथन  है ----- " ब्रह्मचर्य - व्रत  के  पालन  में  बा  ने  कभी  मेरा  विरोध  नहीं  किया ,  या  बा  उसे  कभी  तोड़ने  के  लिए ललचाई  नहीं  l  इसका  फल  यह  हुआ  कि  हम  दोनों  का  सम्बन्ध  सच्चे  मित्रों  का  सा  हो  गया  l  लेकिन  मित्र  होते  हुए  भी  उसने  पत्नी  के  नाते   मेरे  काम  में  समा  जाने  में  अपना  धर्म   माना  l  यही  कारण  है  कि  मरते  दम  तक  उसने  मेरी  सुख - सुविधा  का  ध्यान  रखा  l  "
 गांधीजी  का  यह  कथन  निराधार  नहीं  था   l    22 फरवरी  1944  को  ' बा '  का   स्वर्गवास  हुआ,  उस  दिन  बा  ने  मनु  बहन  से  कहा  ---मनु ,  बापूजी  की  बोतल  का  गुड  ख़त्म  हो  गया  है  l मेरे  पास कई  लोग  बैठें  हैं  l  तू  जा ,  बापूजी  को  दूध  और  गुड़  देकर  तू  भी  भोजन  कर  ले  l ' यह  थी  सच्ची  और  निस्स्वार्थ  सेवा  भावना  l  जब  यह  मालूम  है  कि  हम  कुछ  घंटों  में  इस  संसार  को  छोड़ने  वाले  हैं  ,  तब  भी  अपनी  चिंता  न  कर  के  दूसरों  का  ख्याल  रखना   महानता  का  ;लक्षण  है  l 
गांधीजी  कहते  थे  ---" मेरी  पत्नी  मेरे   अन्तर  को  जिस  प्रकार  हिलाती  है  ,  उस  प्रकार  दुनिया  की  कोई  दूसरी  स्त्री  उसे  हिला  नहीं  सकती  l  उसके  लिए  ममता  के  एक  अटूट   बंधन  की  भावना  मेरे  अन्तर  में  जाग्रत  रहती  है  l 
युग - पुरुष  गाँधी  को  इतना  प्रभावित  कर  के    नारी  जाति  का  महत्व  बढ़ाना   कोई  साधारण  बात  नहीं  है  l    श्रीमती  सरोजिनी  नायडू  ने  जो  बा  और  बापू  के  साथ  प्राय:  रहती  थीं  , उनके  देहावसान  होने  पर लिखा  --- "  जिस  महापुरुष  को  वे  चाहतीं ,  जिसकी  वे  सेवा  करतीं   और    अद्वितीय  श्रद्धा ,  धैर्य  और  भक्ति  के  साथ   जिसका  वे  अनुसरण  करतीं  ,  उसके  लिए  वे  निरंतर  कुरबानी  करती  रहीं  l  जिस  कठिन  मार्ग  को  उन्होंने  अपनाया  था  ,  उस  पर  चलते  हुए  उनके  पैर  एक  क्षण  के  लिए  भी  लड़खड़ाये  नहीं  l  वे  मातृत्व   से  अमरत्व  में   गईं  और  हमारी  गाथाओं ,  गीतों   और  हमारे  इतिहास  की   वीरांगनाओं  की  मंडली  में    अपना  वास्तविक  स्थान  पा  गईं  l  " 

21 February 2019

WISDOM ------ मोह से दुर्गति

मनुष्य  अपना  जीवन  लालच  और   तृष्णा   में ,  धन  एकत्र  करने  में  गँवा  देता  है   l  ईश्वर  का  नाम  लेने , सत्साहित्य  का  अध्ययन  करने  और  परोपकार  करने  के  लिए  उसके  पास  समय  नहीं  होता  l  ऐसी  तृष्णा  से  व्यक्ति    की    कैसी  गति  होती  है   उसे  समझाने  के  लिए  एक  पौराणिक  कथा  है -----
 एक  आदमी  बूढ़ा  हुआ  तो   नारदजी  उसके  पास  आये  और  उससे  कहा  कि  भगवान  को  याद  कर  लो  !  इतना  समय  ऐसे  ही  बीत  गया  l  बूढ़े  ने  कहा --- " व्यापार    ठिकाने  लग  जाये  , बच्चे  संभल  जाएँ ,  नाती - पोते  देख  लें  फिर  भगवान  को  याद  करेंगे  l  ""  मृत्यु  आई  और  वह  चल  बसा  l   कंजूस  था  , परोपकार  किया  नहीं  ,  बैल  की  तरह  श्रम  किया  तो  अगले  जन्म  में  बैल  बना  l   मोह  के  कारण     अपने    बच्चों  की  जमीन   पर  ही  खूब  काम  करता  l  नारदजी  ने  समझाया  -- भगवान  को  याद  कर  लो , इस  बैल  की  योनि  से  मुक्त  हो  जाओगे  l  वह  बोला  --- बच्चों  के  लिए  ही  तो काम  कर  रहे  हैं  l
  अब  मरे  तो  कुत्ते  की  योनि  मिली  l   अब  भी  बेटों  के  यहाँ  गए  l  घर  की  रक्षा  करते  l   नारदजी  फिर  गए  और  कहा  -- तुम्हे  मोह  से  कब  मुक्ति  मिलेगी  ,  अब  तो  भगवान  को  याद  कर  लो  l  कुत्ता  बोला  -- नाती - पोते  बड़े  हो  जाएँ ,  इनका  घर  बस  जाये  l "  अब  उसे  मरने  के  बाद  सांप  की  योनी  मिली  l  अब  वह  अपने  द्वारा  गाड़े  गए  खजाने  की  रक्षा  करने  लगा  l  बच्चों  को  खजाने  का  पता  चला   तो  उन्होंने  लाठी  से  सांप  को  मार  डाला  और  खजाने  पर  अधिकार कर  लिया  l
   नारदजी  ने  उस  आत्मा  से कहा --- "  देख  लिया  !  तुम  इन्हीं  के  लिए सब  कुछ  करते  थे  न  l "
आत्मा  बोली --- " आप  सही  कहते  हैं ,  हमारे  मोह  ने  हमारी  दुर्गति  की  "
पुराणों  की  ये   कथाएं  हमें  होश  में  लाने  के  लिए  हैं  कि  हम  यह  ख्याल  रखें  कि   परमात्मा  हर  पल  हमारे  साथ  है ,  हमें  देख  रहा  है   इसलिए  ईमानदारी  से  कर्तव्य  पालन  करें ,  बेईमानी  और  भ्रष्टाचार  छोड़कर  सन्मार्ग  पर  चलें  l  

WISDOM ------ मनुष्य को यदि वास्तविक आत्मग्लानि हो जाये , तो वह आत्मसुधार हेतु बड़े से बड़ा कदम उठा सकता है--- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य -

   घटना  1939  की  है  -- जारक  खान --कबयिली  सरदार  का  होनहार  बेटा  था   जो  समाज  की  अव्यवस्था  तथा  दुष्प्रवृत्तियों  का  शिकार  होकर  दस्यु  बन  गया   था   l   एक  हजार  सुसंगठित  दस्यु  सेना  का  सेनापति  l  उसका  आतंक  इतना  अधिक  था  कि  ब्रिटिश  सरकार  ने  उसके  सिर  की  कीमत  25000 पौंड  रखी  थी  l   एक  बार   उसने  एक  व्यक्ति  को  कोड़ों  से  पीट - पीटकर  मार  डाला  l  अपने  हाथों  मार  डालने  के  पश्चात  उसे  पता  चला  कि  वह  एक  निर्दोष  संत  था  जो  सेवा  कार्य  में  लगा  था  l  इस  पवित्र , निर्दोष  व्यक्ति   की  हत्या  का  उसे  इतना  दुःख  हुआ  कि  वह  अड्डे  से  भाग  निकला  और  दो  वर्ष  तक   भिखारी  की  तरह   घूम   फिर कर    पिता  के  पास  आत्मसमर्पण  कर  दिया   l  कानून  की  निगाह  से  बचा  नहीं  उसे  फांसी  की  सजा  सुना  दी  गई  l
1942  में  विश्व  युद्ध  में  हिटलर  के  बढ़ते  हुए  प्रभाव  के  कारण  ब्रिटिश  सरकार  के  लिए एक - एक  सिपाही   मूल्यवान  था  l  तभी  जारक  ने  प्रस्ताव  रखा -- " मेरे  जैसे  व्यक्ति  के  लिए  मौत  कोई मायने  नहीं  रखती  l  मरना  तो  मुझे  है  ही  l  अच्छा  हो  कि  फांसी  के  फंदे  को  गन्दा  करने  के  स्थान  पर  मुझे  दुश्मन  की  गोलियों  का  सामना  करने  दिया  जाये  l "  उसकी  आवाज  में  सच्चाई  थी  , प्रस्ताव  स्वीकृत  हो  गया   l  जारक  को  विभिन्न  क्षेत्रों  में  जासूसी  तथा  गुरिल्ला  टुकड़ियों  में  रखा  गया  l  हर  जगह  उसकी  सूझ - बूझ  और  साहस की  धाक  जमती  रही  l    1943  में  उसे  बर्मा  की  गुरिल्ला टुकड़ी  में  भेज  दिया  गया  l   6  अप्रैल  को  वह  अपने  एक  गोरखा  साथी  के  साथ  जापानी  शत्रु  सेना  की  टोह  लेने  गया  l
                   लौटा  तो  देखा  कि  उसके  अड्डे  पर  जापानी  सेना   की    एक  टुकड़ी  ने  कब्ज़ा  कर  लिया   और  12  साथियों  में  से  9  को  वे  मार  चुके  थे  ,   तीन  बंधे  थे  l   दो  सैनिकों  को   मार    से  अधमरा  कर दिया  था  ,  उसके  बाद  नायक  का  नंबर  था  l  जारक   चाहता  तो  भाग  सकता  था   लेकिन  उसे  अपना  संकल्प  याद  था  कि  वह  कैदी की  घ्रणित  मौत  नहीं ,  शहीद  की  शानदार  मौत  मरेगा  l  जारक  ने  अपने  गोरखा  साथी  को  पास  की  छावनी  से  सहायता लाने  को  कहा  l   गोरखा  साथी  सुरक्षित  दूरी  तक  निकल  गया  ,  अब  उसने  पिस्तौल  निकल  ली  l  अब  तक  दो  साथी  भी  मर  चुके  थे  और  जापानी  सैनिक   उसके  नायक  की  और  बढ़  रहे  थे  l  जारक  ने  दो  जापानी  सैनिकों  को  निशाना  बना  दिया  l  अपनी  फुर्ती , सूझ - बूझ  से  जापानी  सैनिकों  को  उलझाये  रखा  l  जानबूझकर  उसने  जापानी   सैनिकों  को कठोर  व्यंग  किये   जिससे  जापानी कमांडर  अपना  संतुलन  खो  बैठा   और  जारक  पर  कोड़े  बरसाने  लगा  ,  भयंकर  अत्याचार  किया  l  इसके  पीछे  जारक  का  यही  उद्देश्य  था  कि छावनी  से  कुमुक  आ  जाये  जापानियों  को  खदेड़  दे  और  नायक  बच  जाये  l  उसके  प्राण  छटपटा  रहे  थे  लेकिन  प्रबल  संकल्प  से  मौत  भी   ठहर  गई  l  जारक  सफल  हुआ  l  छावनी  से  कुमुक  आ  गई  ,  सभी  जापानी  सैनिक  खदेड़  दिए  गए  l   नायक  के  बंधन  खोले  जाते  देख,   उसकी  आँखों  में  संतोष  था  l  अब  उसने  मृत्यु  को  आज्ञा  दे  दी  ,  प्राण - पखेरू  उड़  गए  l  उसका  प्रायश्चित  पूरा  हो  गया  l  पूर्ण  सैनिक  सम्मान  के  साथ  उसकी   अंत्येष्टि   की  गई   l   

18 February 2019

WISDOM ------ शत्रु से सतर्कता जरुरी है

 छत्रपति  शिवाजी  के  दक्षिण  में  विस्तार ,  उनकी  वीरता  और  साहस से अनेक  ईर्ष्या  करते  थे   और  हिन्दुस्तान का  बादशाह  औरंगजेब    इसे  दिल्ली  पर  खतरा  समझता  था   l  उसने  भी  उन्हें  बंदी  बनाने  का  षडयंत्र  रचा   l --- जिनके  संस्कार  विकृत  होते  हैं    उन्हें  शत्रुओं  की  चाटुकारी  करने  और  अपनों  को  हानि  पहुँचाने  में   ही  सुख - संतोष   अनुभव  होता  है  ,  वे  अपने  स्वार्थ  के  लिए  शत्रुओं  के  प्रति  वफादार  रहते  हैं  ,  लेकिन  अपने  देश  व  समाज  के  लिए  नहीं  रह  पाते  l   जयसिंह  नाम  का  हिन्दू  राजा  औरंगजेब   का  दूत बनकर  शिवाजी  के  पास  आया   l  जयसिंह  ने  शिवाजी  को  विश्वास  दिलाया  कि   यदि  वह  उनके  साथ  चलकर  औरंगजेब  से  मिल  लें   तो  वे  उनको  उससे   जीते  हुए  इलाके  और  दरबार  में  ऊँचा  पद  दिलवा  देंगे  l    शिवाजी  ने  अपने  विशाल  मंतव्य  के  लिए  इसे  एक  अच्छा  अवसर  समझा   और  जयसिंह  की  बातों  पर  विश्वास  कर  लिया  l   सतर्कता  में  थोड़ा  सा    असावधान  होते  ही  शिवाजी  धोखा  खा  गए   और  आगरे  में  बंदी  बना  लिए  गए  l    लेकिन   अपनी  सूझ - बूझ  और  साहस  के  बल  पर    फलों  की   टोकरी  में  बैठकर   कैद  से  बाहर  निकल  आये  और  पूना  जा  पहुंचे   l 
  शिवाजी  की  अनुपम  सफलता  का  एकमात्र  कारण    उनकी  समयानुकूल  कार्य प्रणाली   और  परिस्थितियों  के  अनुसार   चलने  का  गुण  था   l 

17 February 2019

WISDOM ------ लालच , ईर्ष्या - द्वेष में व्यक्ति अँधा हो जाता है और मनुष्यता के स्तर से गिर जाता है

 कहते  हैं   स्वार्थी , अनीतिवान  तथा  कायर  व्यक्ति  के   पास   छल - कपट  के  सिवा  कोई   और  संबल  नहीं  होता  l    छत्रपति  शिवाजी  की   ताकत ,  उनकी  वीरता  और  सफल  राजनीति  से  बीजापुर  का  नवाब  आदिलशाह   जल  गया  और  उसने  उनको   छल - प्रपंच  से    परास्त  करने  का  षड्यंत्र  रचा ----- सर्वप्रथम  उसने   एक  जाति - द्रोही   बाजी  घोर  पाण्डे  को  लालच  देकर  अपनी  ओर कर  लिया  l बाजी  घोर  पाण्डे  बड़ा  स्वार्थी  और   निकृष्ट  था    ,  उसने   शिवाजी  के  पिता  शाहजी  को  एक  प्रीति  भोज    निमंत्रित  कर  धोखे  से  बंदी  बना  लिया   और  एक  छोटी  सी  कोठरी  में  बंद  कर  उसका  द्वार  ईंटों    चुनवा  दिया ,  सांस  लेने  को  थोड़ी  सी  जगह  छोड़ी  l    शिवाजी  अपने  पिता  की  रक्षा  के  लिए  बीजापुर  दरबार  में  आत्म समर्पण  करें  l  शिवाजी  ने  अपनी  कुशल  नीति से  पिता  शाहजी  को मुक्त  करा  लिया  l
   अब  आदिलशाह  और  जल  गया  और  उसने  शिवा  को  छल  से मरवा  डालने  की  ठानी   l  उसने  फिर  किसी  विश्वासघाती  की  तलाश  की  l   अब  उसे  बाजी  श्यामराज  एक   जाति  द्रोही  मिल  गया  l   उसने  उसे  धन  और  पद  का  लोभ  दिया  l  वह  कायर  वहीँ  घात  लगाकर  बैठा  जहाँ  शिवाजी  उस  समय  रह  रहे  थे  l   शिवाजी  सतर्क  थे  ,  गुप्तचरों  से  उन्हें  श्यामराज  के  रंग - ढंग  पता  चले   तो  उन्होंने  श्यामराज  पर  हमला  कर  दिया  l  शिवाजी  से  मार  खाकर  वह  कायर  भागा  ,  जवाली  के  राजा   चन्द्रराव  की  मदद  से  वह भाग  निकला l     शिवाजी   के  अभ्युदय  से  वह  भी जलता  था  इसलिए  उसने  श्यामराज  की सहायता   की  l   जाति - द्रोही   विजातियों  से   अधिक  भयंकर  और  दंडनीय  होता  है    l  शिवाजी  ने  श्यामराज   को  तो  धर  दबोचा    और  ऐसे     स्वार्थी   व  अदूरदर्शी   राजा  चन्द्र्राव  पर    आक्रमण  कर  उसे  परस्त  किया  l  जवाली  के  किले  व  मंदिर  का  जीर्णोद्धार  कराया  l  और  वहां  से  दो  मील  की   दूरी    पर    प्रतापगढ़  किला  और  अपनी  इष्ट  देवी  भवानी  का  मंदिर  स्थापित  किया   l  

15 February 2019

WISDOM ---- संसार में नैतिक क्रांति की जरुरत है

 मानवीय  मूल्यों  के  पतन  के  कारण  ही   आज  धरती  पर  युद्ध  , बहशीपन ,  शोषण  , उत्पीड़न  की  घटनाएँ  बढ़ी  हैं  l    शिक्षा के  साथ  नैतिकता  का  समन्वय   जरुरी  है  क्योंकि  नैतिक  व्यक्ति  संवेदनशील  होता  है ,  वह  कभी   मानवाधिकारों  का  उल्लंघन  नहीं  करता   l  
    आज   व्यक्ति  के  जीवन  में   भौतिक  सुख - सुविधा  एवं  समृद्धि  के  नाम  पर  बहुत  कुछ  है  ,  ज्ञान - कौशल  की  भी  उसमे कमी  नहीं  ,  किन्तु  नैतिक  मूल्यों  की  कसौटी  पर   स्थिति  दिवालियेपन  की  है  l  नैतिकता  का  अस्तित्व  सरस्वती  नदी  की  तरह  विलुप्त  हो  गया  है  l 
 नैतिकता  एवं  मूल्यहीनता  के  साये  में  पल  रही  पीढ़ी  से   कोई  भी  राष्ट्र  व  संस्कृति  अपने  को  गौरवान्वित   करने  की  उम्मीद  कैसे  कर  सकता  है  ?   इलेक्ट्रोनिक  संचार  माध्यमों  ने   बच्चों  और  युवा  मस्तिष्क  को   अराजक  और  अनैतिक  बनाने  का  काम  किया  है  l  इसने  मस्तिष्क  के  उस  हिस्से  जिसे 
 ' एनिमल  ब्रेन  ' अर्थात  पशु  मन   कहा  जाता  है  ,  जगा  दिया  है  l  ऐसे में  अपराध ,  अत्याचार  ,  आतंक  व  अराजकता  से   समाज  का    उत्पीड़न  स्वाभाविक  है  l 
 विश्व  में  सुख - शांति  के  लिए    जरुरी   है  कि   राष्ट्र  अपने   संसाधनों  का  एक  बड़ा  भाग   नई  पीढ़ी  के  शारीरिक , मानसिक  और   भावनात्मक   विकास   के  साथ   युवा  पीढ़ी  और   प्रौढ़ - पीढ़ी  को  भी    मानवीय  मूल्यों  की  शिक्षा  देने  और  जीवन  जीना  सिखाने  में  नियोजित  करे  l  स्वयं  के  आचरण  से  दी  जाने  वाली  शिक्षा  ही  प्रभावी  होती  है  l  

13 February 2019

WISDOM ---- स्वास्थ्य का सद्विचारों और प्राकृतिक जीवन शैली से गहरा संबंध है

  श्रीमद् भगवद्गीता  का श्लोक  है ----- युक्ताहारविहारस्य   युक्तचेष्टस्य   कर्मसु    l   युक्त स्वप्नावबोधस्य  योगो  भवति  दुःखहा  ll      इस  श्लोक   का  सरल  भावार्थ  इतना  ही  है   कि  अपने  खान - पान  ,   रहन - सहन ,  शयन - जागरण   एवं  श्रम  करने  में   औचित्य  का  ध्यान  रखना  चाहिए  l  इन  दोनों  सूत्र  का  सार  यही  है  कि    यदि  व्यवहार  में  प्रकृति  का  साहचर्य    एवं  चिंतन  में   परमात्मा  का  साहचर्य  बना  रहे    तो  फिर  स्वास्थ्य - संकट  नहीं  खड़े  होते   l    ये  दोनों  सूत्र  ऐसे  हैं  --- जिनमे  कहीं  भी  ,  किसी  भी  देश  में    स्वास्थ्य  - क्रांति  लाई  जा  सकती  है   l  
  पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का मत  है ----   ' जिस  दिन  हम  प्रचलित  असंयम  को  सभ्यता  समझने  की  मान्यता  बदल  देंगे  ,  अपने  सोचने  का  ढंग  सुधार  लेंगे  ,  उसी  दिन  मानव  जीवन  पर  लगा  अस्वस्थता  का  ग्रहण  उतर  जायेगा   l  '
  वे  कहते  हैं  --- " यदि  रोगों  से  छुटकारा  पाना  है   तो  आज  और  आज  से  हजारों  साल  बाद   इसी मान्यता  को  अपनाना  पड़ेगा  कि  प्राकृतिक  आहार - विहार  अपनाने  के  अतिरिक्त   स्वस्थ  होने ,  नीरोग  रहने   और  दीर्घजीवन  जीने  का  अन्य  कोई  मार्ग  नहीं  है   l  "                          

12 February 2019

WISDOM ----- क्रांति स्वार्थ और वासना से शून्य निर्भीक दिलों में बसती है l क्रांति की निरंतरता ही धर्म है ------ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  बात  उन  दिनों  की  है  जब  भगतसिंह  जेल  में  थे  l   कोठरी    में  रोशनी  कम  थी   और  वे  पढ़ने  में  व्यस्त  थे  l  एक  साथी  ने  आवाज  दी --- " अरे , क्या  कर  रहे  हैं  ? "  उत्तर में  भगतसिंह  ने  कहा --- " एक  क्रांतिकारी  दूसरे  क्रांतिकारी  से  मिल  रहा  है  l "  आवाज  देने  वाले  उनके  साथी  ने  देखा  कि  उनके  हाथों  में  लोकमान्य  तिलक  द्वारा  लिखा  गया   श्रीमद् भगवद्गीता  का    भाष्य  ' गीता - रहस्य ' था  l 
 पूछने  वाले  ने  कहा --- " तुम  तो  कह  रहे  थे कि  तुम  क्रांतिकारी  से  मिल  रहे  हो , पर  तुम  तो  गीता - रहस्य  पढ़  रहे  हो  l "
भगतसिंह  ने  कहा --- " यही  तो  हमारी  मुलाकात  का  रहस्य  है  l  इस मुलाकात  में  एक  नहीं  , तीन  क्रांतिकारी  साथ  थे  --- पहले  क्रांतिकारी  स्वयं   श्रीकृष्ण ,  दूसरे  लोकमान्य  तिलक  और  तीसरा  मैं  स्वयं  l  भगतसिंह  कह  रहे  थे  --- " क्रांति  उन  लोगों  के  दिलों  में  बसती  है  , जो  सच्चे  हैं , साहसी  हैं , जिन्हें  अनीति  , अनाचार  से  समझौता  करना  नहीं  आता    और  क्रांतिकारी  वह  है  जो  अपने  दिल  में  लगी  हुई  क्रांति  की  आग  दूसरे  के  दिलों  में  लगाना  जानता  है  ,  जो  अपने  मन - मस्तिष्क  में  छिपे  हुए  क्रांति  के  विचार - बीज  दूसरे  के  मन - मस्तिष्क  में  बोना  जानता  है   l   हिरण्यकशिपु  की निरंकुशता  को   अस्वीकार  करने  वाला  प्रह्लाद  भी  सच्चा  क्रांतिकारी  था   l  अपने    स्वामी   विवेकानंद  क्रांति  के  सच्चे  पथ - प्रदर्शक  थे  l  
 अपनी  जेल  की  कोठरी  में  टहलते  हुए   वे  बोले ---- "  जिस  तरह  लोकमान्य  तिलक  ने  ' गीता - रहस्य ' लिखा  उसी  तरह  गीता  का  क्रांतिदर्शन  भी  लिखा  जाना  चाहिए  l  जिसमे  प्रखर  विवेक  और  प्रचंड  वैराग्य  है  ,  वही    सच्चा  क्रांतिकारी  बन  सकता  है   l    अगले  दिनों  क्रांति  बम - पिस्तौल  से  नहीं  , विचारों  से  होगी   l    "
  क्रांति  की  जरुरत  केवल  राजनीति  में  नहीं  ,  बल्कि  हर  कहीं  है    l सच्ची  आजादी  तब  है  जब  एक  मनुष्य  द्वारा   दूसरे मनुष्य  का  शोषण  असंभव  हो  जाये  l  l   क्रांति  को  धर्म  के  रूप  में  अपनाएं ,  एक  ऐसा  महान  धर्म  , जो  अनौचित्य  के  विनाश  के  लिए  संकल्पित  है   l  

10 February 2019

WISDOM ---- बाहरी दुनिया में काम करने वाली न्याय व्यवस्था को झांसा देना कितना ही आसान हो , दिव्य प्रकृति में कोई झांसेबाजी नहीं चलती , वहां शुद्ध ईमानदारी ही काम आती है ------ पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  आचार्य जी  ने  अपने  एक  लेख  में  कहा  है -----    अकारण  दया  और  क्षमा  का  नियम  बना  लिया  जाये  तो  प्रत्येक  अपराधी  और  पापी   को  मनमाना  आचरण  करने  की  छूट  मिल  जाएगी  l  वह  इस  आधार  पर  गलत  रास्ते  पर  चलता   रहेगा  कि  क्षमा  तो  मिल  ही  जाएगी  l 
  प्रकृति  में  क्षमा  का  प्रावधान  नहीं  होता ,  प्रारब्ध को  बदला  भी  नहीं  जा  सकता   l  आचार्यश्री  का ,  ऋषियों  आदि  का मत  है   कि  -- यदि  हम  अपने  आपको   दिव्य  प्रयोजनों  के  लिए  समर्पित  कर  सकें   तो  भागवत  चेतना  हमारी  नियति  अपने  हाथ  में  ले  लेती  है   l  इससे  पिछले  जन्मों  में  किये  गए  कर्म  केंचुली  की  तरह   उतर  जाते  हैं  l   अपने  आपको बदलने  और  विश्व  को  अधिक  सुन्दर ,  उन्नत ,  व्यवस्थित  बनाने  के  लिए  समर्पण  का  मन  बना  लिया  जाये   तो नियति  में  बदलाव  आने  लगता  है  l  तब  प्रकृति  एक  अवसर  देती  है   l         
   हमारे  मन  के  तार  ईश्वर  से  जुड़े  हैं  ,  वे  हमारे  ह्रदय  के  हर  भाव  को  समझते  हैं   इसलिए  बदलने  या  सुधरने  का  ढोंग  कर  के  अपने  लिए  क्षमा  नहीं  बटोरी  जा  सकती  l  बाहरी  दुनिया  में  काम  करने  वाली  न्याय  व्यवस्था  को झांसा  देना  कितना  ही  आसान  हो  ,  दिव्य  प्रकृति  में  कोई  झांसे   बाजी  नहीं  चलती  l   वहां  शुद्ध  ईमानदारी  ही  काम  आती  है   l   अहंकार  को  त्याग  कर  स्वयं  को  ईश्वर  के  हाथों  का ' यंत्र '   मान  लेने  से ,  सुख  और  दुःख  को  ईश्वर  की इच्छा  समझकर  स्वीकार  करने  से  नियति  में  परिवर्तन   संभव  है  l  

9 February 2019

WISDOM ---- दुराचारी से दुराचारी व्यक्ति भी ईश्वर की शरण में जाये और यह संकल्प ले कि अब उससे कोई गलत कार्य नहीं होगा तो प्रभु उसे भी तार देते हैं ----- श्रीमद् भगवद्गीता

' गन्दा  नाला  गंगा  में  मिलकर  पवित्र  हो  जाता  है  l ' ऐसे  कई  उदाहरण  हैं   जब  प्रभु  से  जुड़ने  के  बाद   जीवन  की  राह  बदल  गई  ----- अंगुलिमाल  डाकू  के  रूप  में  कुख्यात  हो   चुका    था  और  अनेक  नागरिकों  की  उँगलियाँ  काटकर   उनकी माला  पहनकर  घूमता  था  , तब  प्रसेनजित  की  सेनाएं  भी  उससे  हार  मान  गईं  थीं  l   तब  उसके  पास  चलकर  गौतम  बुद्ध  आये  l  अंगुलिमाल  ने  उनसे  कहा  --- " भिक्षु  !  मैं  तुम्हे  मार  दूंगा  l  "   अपराधी  की मन:  स्थिति  कायर  के  समान  ही  होती  है  इसलिए  वह  उन्हें  बार -बार रुकने  को  कह  रहा  था  l  तब  तथागत  बोले  --- " रुकना  तो  तुझे  है  पुत्र  ! मैं  तो  कभी  का  ठहरा  हुआ  हूँ  l  भाग  तो  तू रहा  है  --- जिन्दगी  से , अपने  आप  से  ,  अपने  भगवान  से   l  इतना  कहते  हुए  वे  नजदीक  आ  गए   और  जब  तक  वह  कुछ  समझ  पाता,  उनने  उसे  गले  लगा  लिया  l
 अंगुलिमाल  को  लोग   ऊँगली  दिखा - दिखाकर  ताना  मारते  थे  ,  पहली  बार उसे  सच्चा  प्यार  मिला  l 
  धीरे - धीरे  संघ  में  लोग  चर्चा  करने  लगे  कि   एक  अपराधी  हमारे  बीच  रह  रहा  है   l  भगवन  ने  अंगुलिमाल से  धैर्य  रखने  को  कहा   कि  कोई  प्रतिक्रिया  न  करे  l  भगवन  बुद्ध  के  पास   सभी  भिक्षु जन   आये   और  कहा  कि  अंगुलिमाल  के  संघ  में  शामिल  होने  से  संघ  की  बदनामी  हो  रही  है   l  "
  बुद्ध  बोले --- "  वह  तो  पूर्व  में  डाकू  था  ,  अब  भिक्षु  है   l  पर  अब  तुममे  से  बहुत  सारे  डाकू  बनने  की  दिशा  में  चल  रहे  हो  ,  उसे  मार  डालने  की  सोच  रहे  हो  l  यह  क्या  कर  रहे  हो  l "     वास्तव  में  कुछ  ऐसा  ही  सोच  रहे  थे   l  एक  दिन  भगवान  ने   अंगुलिमाल  को  भिक्षा  मांगने  भेजा ,  उसी  क्षेत्र  में  जहाँ  वह  अपराधी  बना  था  l  लोगों  में  द्वेष  था , गुस्सा  था  l  उसे   पत्थर खाने  पड़े   l  चोट  खाकर  मूर्छित  होकर  गिर  पड़ा  l  और  कोई  तो  नहीं  आया  ,  बुद्ध  भगवान  आये  ,  उसकी  सेवा - शुश्रूषा   की  l  जब  वह  चैतन्य  हुआ  तो   कहा  कि  --- "  तुम  एक  घुड़की  दे  देते  ,  सब  भाग  जाते  ,  क्यों  मार  खाते  रहे  ? "
अंगुलिमाल  बोला --- "  प्रभो  !   कल  तक  मैं  बेहोश  था  ,  आज  ये  बेहोश  हैं  l  "  

8 February 2019

WISDOM ------- विनम्रता से सफलता

  विनम्रता  से व्यक्ति  का  विवेक   जाग्रत  होता  है , समझदारी  बढ़ती  है    जबकि  अहंकार  होने  पर व्यक्ति  का  विवेक  कुंद  हो  जाता  है  l  अहंकार  व्यक्तित्व  में  पनपने  वाली  दुर्गन्ध  है   जबकि  विनम्रता  सुगंध  है  l   विनम्रता  से मनुष्य  के  व्यक्तित्व  का  विकास  होता  है   l  विनम्र  व्यक्ति  संवेदनशील  होता  है  l 
  इस  सम्बन्ध  में    एक  पौराणिक  कथा  है  कि  एक  शबर  जाति  के  भील  से  महर्षि  व्यास  ने   ' वृक्ष  नमन '  मन्त्र विद्दा  सीखी  l  इस  मन्त्र  की शक्ति  से   खजूर   और  नारियल  जैसे  बड़े वृक्ष  नीचे  झुक  जाते  थे   और  कार्य  पूरा  होने  पर  पुन:  अपनी  जगह  पर  आ  जाते  थे  l 
 भील    मन  में  ऐसा  सोचता  था  कि  महर्षि  व्यास  महापुरुष  हैं  ,  ऋषि - मुनि  और  भगवान  श्रीकृष्ण   भी  उनका  आदर  करते  है   ,  अत:  वे  हमारा  ( भील )  आदर  नहीं  करेंगे  l  यदि  मन्त्र  और  मंत्रदाता  का  आदर  न  हो  तो  मन्त्र  फलता  नहीं  है  l
किन्तु  व्यासजी  जितने   ज्ञानी  थे  उनमे  उतनी  ही  विनम्रता  थी   l  एक  बार   जब  भील  उनसे  मिलने  गया  ,  तो  व्यासजी  ने  अपने  आसन  से  उठकर   उसका  सत्कार  किया   और  गुरु  की  तरह  उसे  सम्मान  दिया  l  भील  ने  यह  बात  जब  अपने  पिता  को  बताई  तो  उन्होंने  कहा ---   व्यासजी  महान  हैं  l  इतनी  विनम्रता  महान  पुरुषों  में  ही  हो  सकती  है  l  

7 February 2019

WISDOM ----- मैं दमन करने वालों का दंड अर्थात दमन करने की शक्ति हूँ ----- श्रीमद् भगवद्गीता

 भगवान  श्रीकृष्ण  अर्जुन  को  यह  सच  समझा  रहे  हैं   कि  जहाँ  भी  श्रेष्ठता  का  फूल  खिलता  है  ,  वहां  मेरी  ही  उपस्थिति  है   l    इस  क्रम  में  वे  स्वयं  को  दमन  करने  वालों  का  दंड   घोषित  करते  हैं   l  
        आज  हरेक  दूसरे  को  दबाना  चाहता  है  l   थोड़ी  सी  ताकत  का  एहसास  हुआ  कि   व्यक्ति  औरों  को  दबाने  का  ,  उनको  दमित  करने  का  ख्वाब  देखने  लगता  है   l  संसार  में  , शासन  में  , समाज  में  और  घरेलू  जिन्दगी  में  दमन  के ,  दूसरे  को  दबाने  के , दंड  देने  के  सैकड़ों  उदाहरण  मिल  जाते  हैं   l   यह  दमन   पाशविक  है  , नीतिहीन  है , पशुता  है   l       ऐसे  में  जब  भगवान  स्वयं  को  दमन  की  शक्ति   कहते  हैं     तो  यहाँ  ईश्वरीय  भाव  है -- अन्याय , अनीति , अत्याचार ,  अनाचार , दुराचार , शोषण ,  भ्रष्टाचार  का  दमन  किया  जाता  है  ,  तो  दमन  ईश्वरीय  विभूति  बनता  है    और  जो  इसे करने  का  साहस  दिखाते  हैं  ,  दंड  उनके  हाथों  में  ईश्वरीय   शक्ति  के  रूप  में  सुशोभित  होता  है  l  

6 February 2019

WISDOM --- -- समय को सार्थक करना जरुरी है

  यह  बात  विचार  करने  की  है  कि    हमने  अपनी  जिन्दगी  में  जो  कुछ  भी  किया  ,  जिस  दिन  जीवन  का  अंत  होगा   ,  उसमे  से   कितना  सार्थक  रह  जायेगा  l   आज  संसार  में  अनेक  लोग  ऐसे  हैं  जो     निरर्थक  कामों जैसे  ताश  खेलना , शराब  पीना  ,  षड्यंत्र  रचना  आदि  में  समय  गँवा  देते  हैं    और  स्वाध्याय  , सत्संग  आदि  ऐसे  कार्य  जिनसे  स्वयं  के  जीवन  का  निर्माण  होता  है ,  उसके  लिए  उनके  पास  समय  नहीं  है   l  भौतिक  तरक्की  के  साथ  आत्मिक  विकास  जरुरी  है   l  

5 February 2019

WISDOM ----- शुभारम्भ हमेशा छोटे - छोटे कदमों से होता है

  छत्रपति  शिवाजी  उन  दिनों  मुगलों  के  विरुद्ध    छापामार  युद्ध  लड़  रहे  थे  l  रात  को   थके - मांदे  एक  बुढ़िया  की  झोंपड़ी  में  जा  पहुंचे  और  कुछ  खाने - पीने  की याचना  की  l  बुढ़िया  के  घर  में  कोंदों  थी  ,  सो  उसने  प्रेमपूर्वक  भात  पकाया  और  पत्तल  पर  उनके  सामने  परोस  दिया  l  शिवाजी  बहुत  भूखे  थे  l  सो  सपाटे  से  भात  खाने  की आतुरता  में  उँगलियाँ  जला  बैठे  , मुंह  से  फूंककर  जलन  शांत  करनी  पड़ी  l   बुढ़िया  बोली --- सिपाही  तेरी  शक्ल  शिवाजी  जैसी  लगती  है    और  साथ  ही  यह  भी  लगता  है  कि   तू  उसकी  तरह  मूर्ख  भी  है  l 
 शिवाजी  स्तब्ध  रह  गए  l  उनने  बुढ़िया  से  पूछा ---- भला  शिवाजी  की  मूर्खता  तो  बताओ  और  मेरी  भी  l    बुढ़िया  ने  कहा --- तूने  किनारे - किनारे  से  थोड़ी - थोड़ी  ठंडी  कोंदो  खाने  की  अपेक्षा   बीच  के  सारे  भात  में  हाथ  मारा   और  उँगलियाँ  जला  डालीं  l  यही  बेअकली  शिवाजी  करता  है  l  वह  दूर  किनारों  पर  बसे   छोटे - छोटे  किलों  को  आसानी  से  जीतते  हुए   अपनी  शक्ति बढ़ाने  की  अपेक्षा   बड़े किलों  पर  धावा  बोलता  है   और  मार  खाता  है  l 
  शिवाजी  को  अपनी   रणनीति   की   विफलता  का   कारण  समझ  में  आ  गया  l  उन्होंने  बुढ़िया  की  सीख  मानी   और  पहले  छोटे - छोटे  लक्ष्य बनाये   और  उन्हें  पूरा करने  की  रीति - नीति  अपनाई  l  छोटी  सफलताएँ  पाने  से   उनकी  शक्ति  बढ़ी   और  अंततः  बड़ी  विजय  पाने  में  समर्थ  हुए  l  शुभारम्भ  हमेशा  छोटे - छोटे  कदमों  से  होता  है   और  ज्ञान  कहीं  से  भी मिले  ,  उसे  समझने  और  जीवन  में  उतारने  से  सफलता  मिलती  है  l  

4 February 2019

WISDOM ----- न दैन्यं न पलायनं ----- श्रीमद् भगवद्गीता

 अर्जुन  महाभारत  के  महासमर  से  भागना  व  बचना  चाहते  थे   l  भगवान   श्रीकृष्ण  ने  उन्हें  समझाया ---- ऐसा  कर  के  तुम  कहीं  भी  चैन  से  न  बैठ  सकोगे   l  पाप  को  हम  न  मारें , अधर्म ,  अनीति  का  संहार  हम  न  करें  ,  तो  निर्विरोध  स्थिति  पाकर  ये  पाप ,  अधर्म ,  अनीति   हमें ,  हमारी  सामाजिक  व्यवस्था  को  मार  डालेंगे   l  इसलिए  जीवित  रहने  पर  सुख  और  मरने  पर   स्वर्ग    का   उभयपक्षीय   लाभ  समझाते  हुए   उन्हें  उठ  खड़े  होने  का  उद्बोधन  देते  हैं   l   आना - कानी   की  स्थिति  आने  पर   उन्होंने  अर्जुन  को  अनुशासनात्मक   निर्देश  दिया  ---- ' युद्धाय  कृतनिश्चय: '  अर्थात   अर्थात   निश्चित  रूप  से  युद्ध  करना  ही  चाहिए   l  
  कायरता  का   त्याग   अनिवार्य  है  l 
    नीतिशास्त्र  में    साम   की  तरह  दंड  को  भी   औचित्य   की  संज्ञा   दी  गई  है   l  समझाने  और  सज्जनता  की  नीति  हमेशा  सफल  नहीं   होती   l  दुष्टता  को  भय  की  भाषा  ही  समझ  में   आती  है   l 
  गुरु  गोविन्दसिंह  ने   अपने  समय  की  दुर्दशा  का  कारण  जन - समाज  की   आंतरिक  भीरुता  को  ही  माना   l  उनका  निष्कर्ष  था  कि   जब  तक  जन  आक्रोश  न  जागेगा   ,  शौर्य  व   साहस  की  पुन:  प्राण  प्रतिष्ठा   न  होगी  ,   तब  तक  पद दलित  स्थिति  से  उबरने  का  अवसर  न  मिलेगा   l  

3 February 2019

WISDOM ---- महान आत्माएं अपनी मृत्यु से भी संसार को शिक्षा देती हैं

  संत  सुकरात  को  वहां  के   कानून  से  मृत्यु दंड  की  सजा  दी  गई  l    सुकरात  के  शिष्य  अपने  गुरु  के  प्राण  बचाना  चाहते  थे  l  उन्होंने  जेल  से  भाग  निकलने  की  एक  सुनिश्चित  योजना  बनाई   और  उसके  लिए  सारा  प्रबंध  भी  कर  लिया  l  प्रसन्नता  भरा  समाचार  देने   और  योजना  समझाने  को  उनका  एक  शिष्य  जेल  पहुंचा  और  सारी   व्यवस्था  उन्हें  कह  सुनाई  l  शिष्य  को  आशा  थी  कि  प्राण  रक्षा  का  प्रबंध  देखकर  गुरु  प्रसन्न  होंगे  l  सुकरात  ने  सारी  बात  सुनी  और  दुखी  होकर  कहा  ---- " मेरे  शरीर  की  अपेक्षा  मेरा  आदर्श  श्रेष्ठ  है  l मैं  मर  जाऊं  और  मेरा  आदर्श  जीवित  रहे ,  वही  उत्तम  है  , किन्तु  यदि  आदर्शों  को  खोकर  जीवित  रहा   तो  वह  मृत्यु  से  भी  अधिक   कष्टकारक  होगा  l  न  तो  मैं  सहज  विश्वासी    जेल  कर्मचारियों   को  धोखा  देकर   उनके  लिए  विपत्ति  का  कारण  बनूँगा   और  न  जिस देश  की  प्रजा  हूँ ,  उसके  कानून  का  उल्लंघन  करूँगा   l  कर्तव्य  मुझे  प्राणों  से  भी  अधिक  प्रिय  है  l  ' 
   योजना  रद्द  करनी  पड़ी   l  सुकरात  ने  हँसते  हुए   विष  का  प्याला  पिया  और  मृत्यु  का  संतोष  पूर्वक  आलिंगन   करते  हुए  कहा  ----- " हर  भले  आदमी   के  लिए  यही  उचित  है  कि   वह  विपत्ति  आने  पर  भी   कर्तव्य  धर्म  से  विचलित  न  हो   l  "  

2 February 2019

WISDOM ---- सभी प्राणी परमेश्वर में ही स्थित हैं ----- श्रीमद्भगवद्गीता

  जब  कृष्ण भक्त  मीरा  ने  दिया  बोध --- एक   कथा  है ----   तीर्थाटन   के  दौरान  जब  मीरा  वृन्दावन  आईं   तब   कण - कण  में  अपने   आराध्य  प्रीतम  का  वास  देखकर    निहाल  हो  गईं  l   मीरा  बिहारीजी  के  मंदिर   में  पहुंची  l  स्वामी  जीव  गोस्वामी  वहां  विराजते  थे  l   लोगों  ने  कहा  स्वामीजी स्त्रियों  से  नहीं    मिलते  ,  वे  स्त्री      की  ओर  देखते  भी  नहीं  हैं  l     मीरा  ने  कहा ----- "  ऐसा  क्यों  ?   पूरे   संसार  में   तो   पुरुष  मात्र  श्रीकृष्ण  हैं   l  यह  कौन  नया  पुरुष  के  नाम  का  पट्टीदार  आ  गया   l   हम  सब  स्त्रियाँ  हैं --- आप  भी , हम  भी   l  जहाँ  तक  प्रकृति  है ,  वहां  तक  हम  सब  हैं   l प्रकृति  के  पार  तो  एक  ही  पुरुष  है ---- श्रीकृष्ण  l "   जीव  गोस्वामी   तक  संवाद  पहुंचा  ,  उन्हें   आत्मबोध  हुआ  l   तुरंत  मीरा    मिलने  आये   और  अपनी  भूल  स्वीकार  की   l उसके      बाद  उनके  मन  से  यह  भेद  मिट  गया  l 
  आज  इक्कीसवीं  सदी  में भी   भारत  में  ऐसे  मंदिर  हैं  जहाँ  स्त्रियों  के  जाने  की मनाही  है ,  ऐसे  सम्प्रदाय  हैं  ,  जहाँ  स्त्रियों  को  महात्माजी  नहीं  देखते  l  उनके  प्रवचन  होते  हैं   तो  स्त्रियों  को  पीछे  बैठाया  जाता  है    l   उस  समय  कोई   सामयिक  कारण  रहा  होगा  ,  लेकिन  यह  प्रथा  अब  भी चली  आ  रही  है   l  यह  कथा  प्रेरणा  प्रदान  करती  है   l  

WISDOM ----- ह्रदय की पवित्रता जरुरी है

 एक  दिन  कबीर  गंगा  के  घाट  पर  गए  हुए  थे  l  उन्होंने  एक  ब्राह्मण  को   किनारे  पर  हाथ  से  अपने  शरीर  पर  पानी  डालकर  स्नान  करते  हुए  देखा   तो  अपना  पीतल  का  लोटा   देते  हुए  कहा --- " लीजिये , इस  लोटे  से  आपको  स्नान  करने  में  सुविधा  होगी   l "  लेकिन  ब्राह्मण  ने  कबीर  को  घूरते  हुए  --- " रहने  दे  l  ब्राह्मण  जुलाहे  के  लोटे  से  स्नान  करने  से   भ्रष्ट  हो जायेगा  l " इस  पर  संत  कबीर  हँसते  हुए  बोले ---- " लोटा  तो  पीतल  का  है,   जुलाहे  का  नहीं  ,  रही  भ्रष्ट  और  अपवित्र  होने  की  बात   तो   मिटटी  से  साफ कर  गंगा  के  पानी  से  इसे  कई  बार  धोया  है   और   यदि  यह  अभी  भी  अपवित्र  है   तो  मेरे  भाई  ! दुर्भावनाओं  और  विकारों  से  भरा  मनुष्य   क्या  गंगा  में  नहाने  से  पवित्र  हो  जायेगा   ?  "
 कबीर  के  इस  जवाब  ने  ब्राह्मण  को  निरुत्तर  कर  दिया  l