26 April 2024

WISDOM ----

   युग  बीत  गए  लेकिन  धरती  पर  से  अत्याचार , अन्याय , अधर्म  समाप्त  ही  नहीं  होता   l  इसका  कारण  यह  है  कि  अत्याचारी  कुटिल  और  दूरदर्शी  होता  है   और  उसके  अत्याचार , अन्याय  का  समर्थन  करने  वाले   विभिन्न  मजबूरियों  से  घिरे  होते  हैं  l  जब  अत्याचारी , अहंकारी  का  समर्थन  करने  वाले , उसके  गलत  कार्यों  की  सराहना  करने  वाले  असंख्य  होंगे  तो   अत्याचार  क्यों  खत्म  होगा , वह  तो  और  तेजी  से  बढ़ेगा  l    कहते  हैं  जो  महाभारत  में  है , वही  इस  धरती  पर  भी  है  -- महारथी , महादानी  कर्ण  को  सूतपुत्र  होने  के  कारण   समाज  में  हर  ओर  से  तिरस्कार  मिला  l  दुर्योधन  ने  उसकी  योग्यता  को , उसके  महत्त्व  को  समझा   और  उसे  अंगदेश  का  राजा  बनाकर   उसे  अपना  ऋणी बना  लिया  l  यह  जानते  हुए  भी  कि   दुर्योधन   षड्यंत्रकारी  है ,  अत्याचारी  है , अधर्म  पर  है , फिर  भी  उसने  आखिरी  सांस  तक  दुर्योधन  का  साथ  दिया   क्योंकि  एक  राजा  का  सम्मान  तो  उसे  दुर्योधन  की  वजह  से  ही  मिला  था  l  इसी  तरह  द्रोणाचार्य , कृपाचार्य   को  भी  राजसुख   दुर्योधन  की  वजह  से  था  , यदि  वे  उसकी  नीतियों  का  विरोध  करते  तो  उन्हें  भी  विदुर  की  भांति  शाक -पात  पर  रहना  पड़ता  l  यह  स्थिति  हर  युग  में  है  l  हर  व्यक्ति  चाहता  है  कि  उसकी  दुकान  चलती  रहे  , उसके  परिवार  का  पालन -पोषण   होता  रहे  , इसलिए  वह   क्या  सही  है  और  क्या  गलत  है   यह  देखना  ही  नहीं  चाहता  l  जो  बुद्धिजीवी  हैं   और  जानते  हैं  कि  अन्याय  का  , अधर्म  का  साथ  देने  का  अंतिम  परिणाम  क्या  होगा  , फिर  भी  अपनी  आत्मा  की  आवाज  को  दबाकर  वे    अत्याचारी , अन्यायी  का  साथ  देते  है  ,संसार  में  रहने  की  मजबूरियों  की  वजह  से   l  महात्मा  विदुर  जैसे  लोग  बहुत  कम  होते  हैं  इसलिए  यह  सिलसिला  युगों  से  चलता  आया  है  और  आगे  भी  चलता  रहेगा   l  यही  कर्म  बंधन  है  जिसके  कारण  मनुष्य  विभिन्न  योनियों  में  भटकता  रहता  है  l   महाभारत  युद्ध  के  दौरान   कर्ण  ने  भीष्म पितामह  से  पूछा ----"  अर्जुन  से  अधिक  पराक्रमी  होने  के  बावजूद   और  यह  विश्वास  मन  में  होते  हुए  भी   कि  युद्ध  में  मैं  उसे  हरा  दूंगा  ,   जब  भी  मैं  अर्जुन  के  समक्ष  जाता  हूँ  , तब -तब  पराजय  का  भाव   मेरे  मन  में  आता  है  l "  भीष्म  ने  कहा ---- "  ऐसा  इसलिए  होता  है  कर्ण  कि  तुम  जानते  हो  कि  तुम  गलत  हो  ,  तुम  जानते  हो  कि   दुर्योधन  बिना  वजह  पांडवों  के  विरुद्ध  षड्यंत्र  रचता  है ,  उसकी  अनीति  और  अधर्म  के  साथी  तुम  भी  हो  , तुम्हारे  अन्दर  अपराधबोध  है   l  उसी  का  बोझ  तुम्हारे  मन  पर  है  l  भावनाओं  का  अवरोध  ही   तुम्हारी  क्षमताओं  को  रोकता  है  l  तुम  विचारशील  होने  के  नाते   यह  भी  जानते  हो  कि   पांडव  धर्म  पर  हैं , उनके  साथ  अन्याय  हो  रहा  है   और  तुम  अन्याय  के  पक्ष  में  खड़े  हो  l  तुम्हारा  अंतर्मन  तुम्हे  बार -बार  कचोटता  है   , कर्ण  !  तुम  अधर्म  के  साथ   खड़े  हो  l "  

24 April 2024

WISDOM ------

   लघु कथा ----- एक  पंडित जी  गंगा  में  स्नान  कर  के  निकल  रहे  थे   कि  उनका  स्पर्श  एक  निम्न  जाति  के  व्यक्ति  से  हो  गया  l  स्पर्श  होते  ही   उन्हें  क्रोध  आ  गया   और  वे  उसे  जोर  से  डांटने -डपटने  लगे  l  उनका  क्रोध  इतना  बढ़  गया  कि  उन्होंने  उस  व्यक्ति  को   दो  छड़ियाँ  भी  जमा  दीं  l   फिर  यह  कहते  हुए  दोबारा  स्नान  करने  चले  गए   कि  इस  व्यक्ति  ने  मुझे  अपवित्र  कर  दिया   l  नहाते  समय  उन्होंने  देखा  कि  वह  व्यक्ति  भी   स्नान  कर  रहा  है  l  उसे  स्नान  करते  देख  पंडित जी  को  बड़ा  आश्चर्य  हुआ    और  उन्होंने   उससे  पूछा  ---- ' मैं  तो   तुम्हारे  से  स्पर्श  होने  के  कारण  दोबारा  स्नान  करने  गया  ,  लेकिन  तुम  क्यों  नहाने  गए  ? "  वह  व्यक्ति  बोला  --- " पंडित जी  !  मानव  मात्र  तो  एक  समान  हैं  ,  जाति  से  पवित्रता  तय  नहीं  होती  ,  लेकिन  सबसे  अपवित्र  तो  क्रोध  है  l  जब  आपके  क्रोध  ने   मुझे  स्पर्श  किया   तो  उन  नकारात्मक  भावों  से  मुक्त   होने  के  लिए   मुझे  गंगा स्नान  करना  पड़ा  l "   यह  सुनकर  पंडित जी  बहुत  लज्जित  हुए  और  उनका  जाति -अभिमान  दूर  हो  गया  l    

23 April 2024

WISDOM ----

  पुराण  में  एक  रोचक  कथा  है ---- एक  बार  स्वर्ग  के  राजा  इंद्र  और  मरुत  देव   में  विवाद  हुआ  कि   तपस्या  श्रेष्ठ  है  या  सेवा   l  मरुत  देव  का  कहना  था  तपस्या  श्रेष्ठ  है   और   तपस्वियों  में  विश्वामित्र  श्रेष्ठ  हैं  l  वे  तपस्वी  होने  के  साथ  त्यागी  भी  हैं  l  उन्होंने  देवराज  पर  व्यंग  करते  हुए  कहा --- ' आपको  अपने  सिंहासन  का  भय   बना  रहता  है  लेकिन   विश्वामित्र  त्यागी  हैं  , उन्हें  इन्द्रासन  का  कोई  लोभ  नहीं  है  , उन्होंने  बहुत  सिद्धियाँ  अर्जित  की  हैं   और  वे  आत्म कल्याण    के  लिए  तप  कर  रहे  हैं   l  '   इंद्र  ने  कहा --- " सिद्धियाँ  प्राप्त  कर  लेने  के  बाद   यह  आवश्यक  नहीं  कि  व्यक्ति  उनका  उपयोग  लोक कल्याण  के  लिए  करे  l  शक्ति   अर्जित  होने  पर  अहंकार  आ  जाता  है   लेकिन  सेवा  में  अहंकार  का  दोष  नहीं  होता   इसलिए  मैं  सेवा  को  श्रेष्ठ  मानता  हूँ  l  महर्षि  कण्व में  सेवा  भाव  है  , वे   समाज   और  संस्कृति   के  उत्थान  के  लिए  निरंतर  प्रयत्नशील  हैं   इसलिए  मैं  महर्षि  कण्व  को  विश्वामित्र  से  श्रेष्ठ  मानता  हूँ  l '  इसी  विवाद  के  समय  महारानी  शची  आ  गईं   और  यह  तय  हुआ  कि  क्यों  न   कण्व  और  विश्वामित्र  की  परीक्षा  ली  जाये  l  स्वर्गपुरी  में  बात  फ़ैल  गई  कि  देखें  तपस्या  से  प्राप्त  सिद्धि   की  विजय  होती  है  या  सेवा  की  ?    अब  देवराज  किसी  की  परीक्षा  लेने  आ  जाएँ   तो  क्या  होगा  ?    इंद्र  ने  स्वर्ग  की  सबसे  सुन्दर  अप्सरा  मेनका  को  ऋषि  विश्वामित्र  की  तपस्या  भंग  करने  भेजा  l  फिर  क्या  था , रूप  और  सौन्दर्य  के  इंद्रजाल  ने   विश्वामित्र  को  आकाश  से  धरती  पर  ला  दिया  , उन्होंने  अपना  दंड , कमंडलु  एक  ओर  रख  दिया  l  सारी  धरती  पर  कोलाहल  मच  गया  कि  विश्वामित्र   का  तप  भंग  हो  गया  l  तप  के  साथ  उनकी  शांति , उनका  यश , सिद्धि   , वैभव  सब   नष्ट  हो  गया  l  कई  वर्ष  बीत  गए  l  जब  विश्वामित्र  को  होश  आया  तो  पता  चला  कि   उनसे  अपराध  हो  गया  , युगों  की  तपस्या  व्यर्थ  हो  गई  ,  क्रोध  में   उन्होंने  मेनका  को  दंड  देने  का  निश्चय  किया   लेकिन  प्रात: काल  होने  तक  मेनका  अपनी  पुत्री  को  आश्रम  में  छोड़कर  इन्द्रलोक  पहुँच  चुकी  थी  l  रोती -बिलखती , भूख  से  कलपती  अपनी  कन्या  पर  भी  विश्वामित्र  को  दया  नहीं  आई   कि   उसे  उठाकर  दूध  व  जल  की  व्यवस्था  करें  , उन्हें  तो  बस  अपने  आत्म कल्याण  की  चिन्ता  थी   इसलिए  बालिका  को  वहीँ  बिलखता  छोड़कर  वे  पुन: तप  करने  चले  गए   l  दोपहर  के  समय   ऋषि  कण्व  लकड़ियाँ  काटकर  लौट  रहे  थे  , मार्ग  में  विश्वामित्र  का  आश्रम  पड़ता  था  l  बालिका  के  रोने  का  स्वर  सुनकर   उन्होंने  सूने  आश्रम  में  प्रवेश  किया  तो  देखा   अकेली  बालिका  दोनों  हाथों  के   अंगूठे   मुंह  में   चूसती  हुई   अपनी  भूख  मिटाने  का  प्रयत्न  कर  रही  है  l  उसे  देख    स्थिति  का  अनुमान  कर  कण्व   की  आँखें  छलक  उठीं  l  उन्होंने  बालिका  को  उठाया  ,  चूमा , प्यार  किया   और  गले  लगाकर  अपने  आश्रम  की  ओर  चल  पड़े  l  अब  इंद्र  ने  मरुत  से  पूछा  --- " तात  !  बोलो    जिस  व्यक्ति  के  ह्रदय  में   विश्वामित्र  के  प्रति  जो  अबोध  बालिका  को   भूख  से  बिलखती  छोड़  गए ,  कोई  दुर्भाव  नहीं  है   और  अबोध  बालिका  की  सेवा  वे  माता  की  तरह  करने  को  तैयार  हैं  , तो  बोलो  कण्व  श्रेष्ठ  हैं  या  विश्वामित्र  ?   मरुत  कुछ  न  बोल  सके  , उन्होंने  अपना  सिर  झुका  लिया    l  इंद्र  ने  कहा --- 'श्रेष्ठ  तपस्वी  तो  वह  है   जो  अपने  लिए  कुछ  चाहे  बिना   समाज  के  शोषित ,उत्पीड़ित , दलित  और   असहाय  जनों  को   निरंतर  ऊपर  उठाने  के  लिए   परिश्रम  किया  करता  है   l  इस  द्रष्टि ने   महर्षि  कण्व  श्रेष्ठ  हैं  , उनकी  तुलना   विश्वामित्र  से  नहीं  कर  सकते  l  

22 April 2024

WISDOM -----

   लघु -कथा ---- 1 . लोमड़ी  और  खरगोश  पास -पास  रहते  थे  l  खरगोश  घास  चरता  था  और  खेत  को  कोई  नुकसान  नहीं  पहुंचाता  था  l  किसान  भी  उसकी  सज्जनता  से  परिचित  था  , इसलिए  उसे  रहने  के  लिए   एक  कोने  में  जगह  दे  दी  l   एक  दिन   एक    लोमड़ी  उधर  आई   और  खरगोश  से  पूछने  लगी ----" मक्की  पक  रही  है ,   कहो  तो  पेट  भर  लूँ  ? "   खरगोश  ने  कहा --- "  खेत  से  पूछ  लो  l  वह  कहे  , वैसा  करना  l "   लोमड़ी  ने आवाज  बदलकर  खेत  की  ओर  से  कहा  --- " खा  लो  ,  खा  लो  l "  इतने  में   किसान  का  पालतू  कुत्ता  आ  गया  l  वह  सब  देख -सुन  रहा  था  l  उसने  आते  ही  खेत  से  पूछा  --- "  बताओ  तो  इस  धूर्त  लोमड़ी   को  मजा  चखा  दूँ   ? "   फिर  स्वर  बदलकर  कहा  ---- "  धूर्त  लोमड़ी  की  टांग  तोड़  दो  l '  कुत्ते  को  झपटते  देख  लोमड़ी  नौ  -दो -ग्यारह  हो   गई   l  सज्जनता  का  व्यवहार  छद्म युक्त  होने  के  कारण  आकर्षक  तो  लगता  है  , परन्तु  उसकी  पोल   अंतत:  खुल   ही  जाती  है  l  

WISDOM ----

  संसार  में  जिनके  पास  शक्ति , धन -वैभव  सब  कुछ  है  ,  उन्हें  इसका  अहंकार  हो  जाता  है  ,  वे  स्वयं  को  भगवान  समझने  लगते  हैं  l  अपनी  उपलब्धियों  के  लिए  वे  ईश्वर  के  प्रति  कृतज्ञ  नहीं  होते  l  वे  सोचते  है  कि  जो  हम  हैं  सो  कोई  नहीं ,  इसलिए  ईश्वर  को  धन्यवाद  नहीं  देते  l  यही  कारण  है  कि  वे  भयभीत  और  भीतर  से  अशांत  होते  हैं  l  ईश्वर  ने  हमें  जो  कुछ  भी  दिया  , उसके  लिए  यदि  हम  ईश्वर  को  धन्यवाद  देते  हैं ,  उसके  महत्त्व  को  समझते  हैं  तो  उससे  हमारा  अहंकार   मिटने  लगता  है , जीवन  में  सकारात्मक  परिवर्तन  होने  लगते  हैं   और  जीवन  प्रगति  की  दिशा  में  आगे  बढ़ने  लगता   है   l   एक  कथा  है  ------  एक  नगरसेठ  अपनी  गुत्थियों  के  समाधान   में  सहायता  प्राप्त  करने  के  लिए   मंदिर  में  पहुंचे  l  देवता  को  प्रसन्न  करने  के  लिए   वे  थाल  भरकर  मोती   और  नैवेद्य  लाए  थे  l  मंदिर   छोटा  था  ,  उसमें  एक  भक्त  पहले  से  ही  बैठा  था  l  झरोखे  में  से  झांककर  सेठ  ने  देखा   तो  वह  फटे  कपड़े  पहने  , अस्थि -पंजर   जैसा   कोई  दरिद्र  व्यक्ति  था  , वह  बड़ी  प्रसन्नता  के  साथ  ईश्वर   के  प्रति  अपनी  कृतज्ञता  व्यक्त  कर  रहा  था   और  प्रार्थना  कर  कह  रहा  था --हे  प्रभु ,  आपकी  बड़ी  कृपा  है ,  मैं  सुख  की  नींद  सोता  हूँ  , आपकी  कृपा  से  मेरे  परिवार  का  भरण -पोषण  हो  रहा  है   और  कोई  मुझसे  ईर्ष्या  नहीं  करता  है  l '     उस  भक्त  के  बाहर  निकलने  पर  सेठ  ने  पूजा  तो  की   लेकिन  उसके  मन  में  यह  प्रश्न  उफनता  रहा   कि  मैं  इतने  समय  से  पूजा  कर  रहा  हूँ  , भगवान  को  बहुमूल्य  हार -मोती , फल ,  मिठाई   आदि  सब  कुछ  चढ़ाता  हूँ   पर  मेरे  ईर्ष्यालु  बढ़ते  ही  जा  रहे  हैं  और  मेरा  सुख -चैन  घटता  जा  रहा  है  l   देवता  मेरी  इतनी  उपेक्षा  कर  रहे  हैं  और  इस  दरिद्र  पर  इतना  अनुग्रह  ?   इस  संदेह  को  लेकर  सेठ  प्रधान  पुजारी  के  पास  पहुंचे  l  पुजारी  ने  कहा  --हम  देवता  से  पूछकर  तीन  दिन  में  इसका  उत्तर  देंगे  l  जैसे -तैसे  तीन  दिन  बीते   और  सवेरे  ही  सेठजी  प्रधान  पुजारी  के  पास  जा  पहुंचे  l  पुजारी  ने  देवता  का  अभिमत  सुनाया ---- "  आप  देवता  पर  सेवक  की  तरह   काम  करने  को  दबाव  डालते  हैं   और  दरिद्र  ने   ईश्वर  को  अपना  स्वामी  मानकर   बड़ी  श्रद्धा  से  उन्हें  अपने  ह्रदय  में  स्थान  दिया  हुआ  है  l  इसलिए  ईश्वर  ने   सेवक  वाले  की  अपेक्षा   ह्रदय  में  स्थान  देने  वाले  को  अपना  सच्चा  वरदान  देने  का  निश्चय  किया  है  l '  

20 April 2024

WISDOM -----

   इस  संसार  में  आरम्भ  से  ही  देवता  और  असुरों  में  संघर्ष   चला  आ  रहा  है  l  असुर  भी  सामान्य  मनुष्य  की  तरह  ही  होते  हैं  ,  उनके  कहीं  कोई  सींग , विशेष  आकृति  नहीं  होती  l  वास्तव  में  असुरता  एक  प्रवृत्ति  है   l  कैसे  समझें  की  असुरता  कहाँ  है  ?   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " ज्ञान , शक्ति  और  सामर्थ्य  का  जहाँ  दुरूपयोग   हो  रहा  है  ,  वहीं   असुरता  है  l  "  आचार्य श्री  लिखते  हैं --- " ज्ञान  का  अर्जन  दुर्लभ  है  , परन्तु  उसका  समुचित  उपयोग    अति  दुर्लभ  है  l  इस  स्रष्टि  में   प्रतिभा  की  , कला  की  , विद्या -ज्ञान -शक्ति  और  सामर्थ्य  की  कोई  कमी  नहीं  है   l  असुरों  से  श्रेष्ठ  तपस्वी  इस  संसार   अन्यत्र   कहीं  नहीं  है   लेकिन  उनका  सारा  ज्ञान ,  उनकी  समूची  सामर्थ्य    उनके  अहंकार  की  तुष्टि   और  भोग -विलास  के  साधन  जुटाने  में  खप  रही  है  l  "  आज  संसार  में   ज्ञान , शक्ति  और  सामर्थ्य  का  ही  दुरूपयोग  हो  रहा  है , सारे  संसार  में  असुरता  का  बोलबाला  है  ,  देवत्व  तो  कहीं  छिप  गया  है   l  अब  असुर  ही  आपस  में  लड़  रहे  हैं  l  असुरों  के  पास  ज्ञान  है , धन संपदा  अथाह  है  लेकिन  दया , करुणा , संवेदना  आदि  सद्गुणों  की  कमी  है   इसलिए  वे  आपस  में  ही  लड़  रहे  हैं  l  आज  संसार  की  सबसे  बड़ी  जरुरत  ' सद्बुद्धि ' की  है  l  सद्बुद्धि  होगी  तो    लड़ाई -झगड़े , वैर -भाव  सब  समाप्त  हो  जाएंगे  l 

19 April 2024

WISDOM-----

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " लोकसेवा  की  सफलता  इस  बात  पर  निर्भर  करती  है  कि   उसके  लोकसेवी  आम  जनता  की  जिन्दगी  से  कितना  जुड़े  हैं  l  गरीब  जनता  से  दूर   ऐशोआराम  में  रहने  पर   उनकी  आँखों  पर  पट्टी  चढ़   जाती    है   और  वे  जनता  की  दुःख -तकलीफों  को  देखना  बंद  कर  देते  हैं  l  फिर  धीरे -धीरे  लोकसेवा   व्यवसाय  बन  जाती  है   और   लोकतंत्र  भ्रष्टतंत्र  बन  जाता  है  l  "                               यदि  कोई  सच्चा  लोकसेवी  होगा   तो  उसका  आत्मबल  इतना  अधिक  होगा  कि  वह  रावण  की  सोने  की  लंका  को  भी  ढहा  दे  l  इस  सत्य  को  बताने  वाली   एक    कथा  है -----  अयोध्या  के  प्राचीन  राजा  और  भगवान  श्रीराम  के  पूर्वज  महाराज  चक्कवेण   की  कथा  है  l   राजा  चक्कवेण  बहुत  प्रतापी  राजा  थे  , उनके  राज्य  में  प्रजा  बहुत  सुखी  - संपन्न  थी  किन्तु  राजा  स्वयं   बहुत  सादगी  से  एक  झोंपड़ी  में  रहते  थे   और  राजकाज  से  जो  समय  मिलता  उसमें   वे  अपने  जीविकोपार्जन   के  लिए  खेती  कर  लेते  l  उनकी  धर्मपत्नी  भी  बहुत  सादगी  से  रहती  थीं  l   जब  कभी  वे  किसी  काम  से  बाहर  जातीं  तो  नगर  के  धनाढ्य  परिवारों  की  महिलाएं  उन्हें  टोकती  कि  आपके  शरीर  पर  कोई  आभूषण  नहीं  है  ,  यदि  महाराज  अपनी  मर्यादा  में   ऐसा  नहीं  करते  तो  आप  कहें  तो   हम  आपके  लिए  आभूषण  बनवा  दें  l  नगर  की  महिलाओं  के  बार -बार  कहने  के  कारण  महारानी  ने   आभूषणों  की  बात  महाराज  चक्कवेण  से  कह  दी  l   राजा  यह  सुनकर  चिंता  में  पड़  गए  , उन्होंने  कहा --- महारानी  आभूषणों  के  लायक  तो  हमारी  आर्थिक  स्थिति  है  नहीं  ,  फिर  भी  तुमने  जीवन  में  पहली  बार  मुझसे  कुछ  माँगा  है  , तो  कुछ  तो  करना  होगा  l  राजा  ने  अपने  प्रमुख  मंत्री  को  बुलाया  और  कहा --- " हम  अपने  सुख  के  लिए   अपने  राज्य  की  जनता  से  अधिक  कर   नहीं  वसूल  सकते  l  तुम  ऐसा  करो  कि  लंका  के  राजा  रावण  से   कर  वसूल  करो  l  उसने  स्वर्ण  की  बहुत  जमाखोरी  की  है  , इसलिए  तुम  उसी  से  स्वर्ण  ले  आओ  l "   मंत्री  राजा  की  बात  मानकर  लंका  गया   और  वहां  जाकर  उसने  रावण  से  कहा ---- " हमारे  महाराज  चक्कवेण  ने   तुमसे  कर  लेने  को  भेजा  है  l "  दम्भी  रावण  यह  सुनकर  बहुत  हँसा  और  बोला --- " तुम्हारे  भिखारी  राजा  की  यह  मजाल  की  रावण  से  कर  वसूल  करने  की  सोचे  l "  रावण  की  बात  सुनकर  मंत्री  ने  कहा --- "  तुम  हमारे  महाराज  के  प्रभाव  को  जानते  नहीं  हो  ,  हम  तुम्हे  कुछ  नमूना  दिखाते  हैं  ,  देखकर  हिल  जाओगे  l  फिर  मंत्री  बोला --- " यदि  हमारे  महाराज  चक्कवेण  सच्चे  लोकसेवी  और  तपस्वी  हैं   तो  लंका  का   उत्तरी  और  दक्षिणी  हिस्सा  ध्वस्त  हो  जाये  l "  मंत्री  के  ऐसा  कहते  ही  सोने  की  लंका  ढहने  लगी  l  न  कोई  सेना , न  मन्त्र  शक्ति  , सिर्फ  सच्ची  लोकसेवा  के  साथ  तप  और  त्याग  का  ऐसा  प्रभाव   !  रावण  यह  देखकर  घबरा  गया  , उसे  आश्चर्य  भी  हुआ  l  उसने  बहुत  सारा  स्वर्ण  देकर  मंत्री  को  विदा  किया  l  मंत्री  ने  वापस  आकर  महाराज  व  महारानी  को    यह  घटना  सुना  दी  l  यह  सुनकर  महाराज   चक्कवेण  ने  महारानी  से  कहा --- "  महारानी  सच  आपके  सामने  है  , अब  आप  चाहें  तो  आभूषण  पहन  लें  ,  लेकिन  आपके  आभूषण  पहनते  ही   मेरी  सच्ची  लोकसेवा  और  तपस्या  का   यह  प्रभाव  समाप्त  हो  जायेगा  l  "  महारानी  को  यथार्थ  समझ  में  आ  गया  ,  उन्होंने  आभूषण  पहनने  से  स्पष्ट  इनकार  कर  दिया  l  इस  पर  महाराज  चक्कवेण   ने  कहा --- "  महारानी  !  तप -त्याग , सादगी  , सदाचार  ही  लोकसेवी  की  सच्ची  संपत्ति  है  l "  

18 April 2024

WISDOM ------

  समय  परिवर्तनशील  है , वक्त  के  साथ  सब  कुछ  बदल  जाता  है  l  एक  समय  था  जब   विभिन्न  सत्ताधारियों  के  अहंकार  और  महत्वाकांक्षा  के  कारण  बड़े -बड़े  युद्ध  होते  थे  जैसे  रावण   के  अहंकार  के  कारण  ही  राम -रावण  युद्ध   और  दुर्योधन  के  अहंकार  के  कारण  महाभारत  हुआ  l  इस  युग  में  भी  सिकंदर , हिटलर  आदि  के  अहंकार  ने  ही  संसार  में  तबाही  मचाई  l  लेकिन   वर्तमान  के  युद्धों  में  अहंकार , महत्वाकांक्षा  जैसी  कोई  बात  स्पष्ट  नहीं  है  l  अहंकार   जैसे  दुर्गुण  को  भी  ' धन '  ने  खरीद  लिया  l  यदि  हम  सामान्य  द्रष्टि  से  भी  देखें  तो  इन  युद्धों  में   धन -वैभव  संपन्न  लोगों  का , राजा , बड़े  अधिकारी  , शक्ति   सम्पन्न  , समर्थ  लोगों  का  कोई  नुकसान  नहीं  होता  , वे  सब  सुख -वैभव  और  आराम  की  जिन्दगी  जीते  हैं  l  निर्दोष  प्रजा , कमजोर   लोग  ही  मारे  जाते  हैं  ,  मानों  वे  ही  बड़ी  हुई  जनसँख्या   और  धरती  पर  बोझ  हैं  l  वक्त  के  साथ  युद्ध  के  मायने  ही  बदल  गए  l  मारक  हथियार , बम  आदि  भी  बोलने  लगे  हैं  कि  जल्दी  इस्तेमाल  करो   ताकि  और  नए  , पहले  से  भी  घातक  बने   जिससे  ' फालतू ' जनसँख्या   को  देख  लें  l  इस  तरह  के  युद्ध  एक  छिपी  हुई  चाहत  को  दिखाते  हैं  कि  यह  धरती  केवल  धन  और  शक्ति , वैभव  संपन्न  लोगों  के  लिए  है   यहाँ  प्रकृति , पर्यावरण , छोटे -मोटे  प्राणी   किसी  की  कोई  जरुरत  नहीं  है  , कृत्रिम  से  काम  चलेगा  l  यह  सत्य  है  कि  ' धन  से  व्यक्ति  सब  कुछ  खरीद  सकता  है  l '  लेकिन  धन  से   उस  अज्ञात  शक्ति  , परम  पिता  परमेश्वर  को  भी  कोई  खरीद  सकता  है  क्या  ?   इसका  उत्तर  ' वक्त ' के  हाथ  में  है  l  

17 April 2024

WISDOM -----

    महाबली  रावण  ने  माता  जानकी  को  धोखे  से  बंदी  बना  लिया  l  सीता जी  ने  स्वयं को  अशोक  वाटिका   में  सीमित  कर  लिया  , परन्तु  रावण  उनको  मोहित  करने  के  लिए   भांति -भांति  के  रूप  धारण  कर  के  उनके  पास  जाता  l  रावण  के  सारे  उपाय  विफल  हो  गए   l  सीता जी  ने  भगवान   श्रीराम  के  अतिरिक्त   और  किसी  पर  कोई  ध्यान  नहीं  दिया  l  यह  देख  रावण  के  एक  मंत्री  ने   रावण  को  सुझाव  दिया  ---- " महाराज  ! आप  क्यों  न   राम  का  वेश  धर  कर   सीता  से  मिलें   , तब  तो  उन्हें  आपकी  ओर  देखना  ही  पड़ेगा  l "  रावण  बोला ---- " तुम्हे  क्या  लगता  है  कि  यह  विचार  मेरे  मन  में  नहीं  आया  होगा    लेकिन  जब  राम   का  रूप  धारण  करता  हूँ   तो  मेरा  मन  भी  वैसा  ही  हो  जाता  है  l  उनका  रूप  धरते  ही  ब्रह्म  पद  भी  तुच्छ  नजर  आने  लगता   हैं  ,  फिर  पराई  स्त्री  की  तो  बात  ही  क्या  ? "  जिनका  रूप  धारण  कर  के  मन  के  भाव  शुद्ध  हो  जाते  हैं  ,  उनका  ध्यान  यदि  सही  में  किया  जाए    तो  क्या  होगा  ?  

16 April 2024

WISDOM ------

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- " बदला  जाए  द्रष्टिकोण   तो  इनसान  बदल  सकता  है  ,                     द्रष्टिकोण   में  परिवर्तन  से  जहान  बदल  सकता  है  l  यदि  हमारा  नजरिया , हमारा  द्रष्टिकोण  सकारात्मक  है   तो  जीवन  की  दिशा  ही  बदल  जाती  है  ,  जीवन  की  रंगत  निखरती  है    और  यदि  नजरिया  नकारात्मक  हो   तो   जीवन  की  दिशा  उस  गर्त  में  जाती  है   जहाँ  से  उबरना , निकलना   आसान  नहीं  होता  है  l  यह  निर्णय  हमें  लेना  है  कि  हमें  किस  नजरिए  को  अपनाना  है  l  महाभारत  में  जब  जुए  में  हारने  पर  पांडवों  को  वनवास  हुआ   तो  उन्होंने  इसका  दुःख  नहीं  मनाया , विलाप  नहीं  किया  ,  अपने  दुःख  के  लिए  किसी  को  दोष  नहीं  दिया  l  उन्होंने  इस  कठिन  समय  को  चुनौती  माना  और  तपस्या  कर  दिव्य  अस्त्र  प्राप्त  किए , अपनी  शक्ति  और  आत्मविश्वास  को   बढ़ाया   l  दूसरी  ओर  दुर्योधन  आदि  कौरव  राजमहल  में  सुख - भोग  में  रहे , उन्होंने  छल , कपट , षड्यंत्र  की  नकारात्मक  राह  का  चयन  कर  स्वयं  अपने  पतन  की  कहानी  लिख  ली  l    मनुष्य  का  जैसा  द्रष्टिकोण  होता  है   वह  उसी  के  अनुसार   जीवन  की  व्याख्या  करता  है  ,  उसी  के  अनुरूप  कार्य  करता  है   और  उसी  के  अनुसार  फल  भोगता  है  l    गुरु  द्रोणाचार्य  कौरव , पांडव  सभी  को  अस्त्र -शस्त्र  की  शिक्षा  देते  थे   l एक  बार  उनका  मन  दुर्योधन  और  युधिष्ठिर  की  परीक्षा  लेने  का  हुआ   , उन्होंने  राजकुमार  दुर्योधन  को   अपने  पास  बुलाकर  कहा --- " वत्स  ! तुम  समाज  में  अच्छे  आदमी  की  परख  करो   और  वैसा  एक  व्यक्ति  खोजकर   मेरे  सामने  उपस्थित  करो  l "   दुर्योधन  ने  कहा --- ' जैसी  आज्ञा '  l  और  वह  अच्छे  आदमी  की  खोज  में  निकल  पड़ा  l  कुछ  दिनों  बाद  दुर्योधन      आचार्य  के  पास  आकर  बोला  --- " गुरुदेव  ! मैंने  कई  नगरों  और  गांवों  का  भ्रमण  किया  , परन्तु  कहीं  भी  कोई   अच्छा  आदमी  नहीं  मिला  l  इस  कारण  मैं  किसी  को   आपके  पास  नहीं  ला  सका  l "    इसके  बाद  द्रोणाचार्य  ने  राजकुमार  युधिष्ठिर   को  अपने  पास  बुलाया   और  कहा --- " बेटा  !   तुम  कहीं  से  भी  कोई   बुरा  आदमी  खोजकर   ला  दो  l "   युधिष्ठिर   गुरु  की  आज्ञा  से  बुरे  आदमी  की  खोज  में  निकल  पड़े  l  काफी  दिनों  बाद  वे  लौटे  और  आचार्य  से  कहा ----" गुरुदेव  ! मैंने   सब  जगह  बुरे  आदमी  की  खोज  की  ,  पर  मुझे  कोई  भी  बुरा  आदमी  नहीं  मिला   l  इस  कारण  मैं  खाली  हाथ  लौट  आया  l "   शिष्यों  ने  पूछा  --- "   गुरुदेव  !  ऐसा  क्यों  हुआ  कि  दुर्योधन  को  कोई  अच्छा   आदमी  नहीं  मिला  और   युधिष्ठिर  कोई  बुरा  आदमी  खोज  नहीं  सके  l "  आचार्य  द्रोणाचार्य   ने  कहा  ---"  जो  व्यक्ति  जैसा  होता  है  ,  उसे  सारे  लोग  वैसे  ही  दिखाई  पड़ते  हैं   इसलिए  दुर्योधन  को  कोई   अच्छा  व्यक्ति  नहीं  दिखा  और  युधिष्ठिर  को   कोई  बुरा  आदमी  नहीं  मिल  सका  l "  वास्तव  में  हमें  संसार  वैसा  ही  दिखाई  देता  है  ,  जैसा  हमारा  देखने  का  नजरिया  होता  है  l  

15 April 2024

WISDOM ------

  बादशाह  अब्बास  अपने  एक  पदाधिकारी  के  यहाँ  दावत  में  गए   l  वहां  उन्होंने  और  सब  साथियों  ने  इतनी  मदिरा  पी  ली    कि  किसी  के  होश -हवाश   दुरुस्त  नहीं  रहे  l  नशे  की  झोंक  में  बादशाह  खड़े  हो  गए   और  उस  पदाधिकारी  के  अंत:पुर   की  ओर  जाने  लगे  ,  लेकिन  दरवाजे  पर  उस  पदाधिकारी  का  नौकर  इस  प्रकार  खड़ा  था  कि   उसे  हटाये  बिना   बादशाह  भीतर  नहीं  घुस  सकते  थे  l  उन्होंने  नौकर  से  कहा --- " अभी  यहाँ  से  हट  जा    वरना    मैं  तलवार  से   तेरा  सिर  उड़ा  दूंगा   l "   नौकर  ने  सिर  झुककर  कहा ---- " हुजूर   , आप  मेरे  देश  के  स्वामी  हैं  , इसलिए  मैं  आप  पर  हाथ  तो  नहीं  उठा  सकता  ,  पर  यह  निश्चय  है  कि   आप  मेरी  लाश  पर  पैर  रखकर  ही   भीतर  जा  सकेंगे  l  याद  रखिए  कि  भीतर  जाने  पर   बेगमें  तलवार  लेकर   आपका  मुकाबला  करेंगी  ,  क्योंकि  जब  उनकी  इज्जत  पर  हमला  किया  जायेगा   तो  वे  अपना  बचाव  जरुर  करेंगी  l  "  बादशाह  का  नशा  सेवक  की  खरी   बातों  को  सुनकर  ठंडा  पड़  गया   और  वे  वापस  चले  गए  l   दूसरे  दिन  उस  पदाधिकारी  ने  बादशाह  से  कहा ---- " मेरे  जिस  नौकर  ने   कल   आपके  साथ  बेअदबी  की   थी  उसे  मैंने  नौकरी  से  निकाल  दिया  है  l "  बादशाह  ने  कहा ----- " यह  तो  बहुत  अच्छा  हुआ  l  मैं  उसे  आपसे  मांगकर   अपने  अंगरक्षकों  का   सरदार   बनाना  चाहता  था  l  आप  उसे  बुलाकर  मेरे  पास  भेज   दीजिए  l  सच्चे  व्यक्ति  की  कद्र  सब  जगह   होती  है  l  

14 April 2024

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- '  केवल  शिक्षा  और  बुद्धि  का  विकास  हो  लेकिन  मनुष्य  के  द्रष्टिकोण  का  परिष्कार  न  हो , ह्रदय  में  संवेदना  न  हो , ईमानदारी  न  हो  ,  ऐसा  ह्रदयहीन   दुनिया  का  सफाया  कर  के  रहेगा  ,  उसका  सत्यानाश  और  सर्वनाश  कर  के  रहेगा  l  जितनी  पैनी  अक्ल  होगी  ,  उतने  ही  तीखे  विनाश  के  साधन  होंगे  l  बुद्धि  के   विकास  के  साथ -साथ  लोगों  का  ईमान , द्रष्टिकोण  , उनका  चिन्तन  परिष्कृत  होना  चाहिए  l  बड़ी  फक्त्रियाँ  नहीं  , बड़े  इनसान   बनाने   चाहिए  l "    प्रसंग  है  ----ब्रिटिश  संसद  में   वेतन  बढ़ाने  की  मांग  को  लेकर   दार्शनिकों  की  राय  को  जानने  के  लियर   पार्लियामेंट  में   कुछ  विशेषज्ञों  को  बुलाया  गया  ,  उनमें  से  एक  थे ---जान  स्टुअर्ट  मिल   l  वे  उस  ज़माने  के  माने  हुए  फिलास्फर  और  महान  अर्थशास्त्री  थे  l  जान  स्टुअर्ट  मिल  आए  और  उन्होंने  छूटते  ही  कहा  --- " मजदूरों  का  वेतन  न  बढ़ाया  जाये  l  वेतन  बढ़ाने  के  मैं  सख्त  खिलाफ  हूँ  l  उन्होंने  अपनी  गवाही  में  कहा   कि  जो  वेतन  बढ़ाया  जा  रहा  है  ,  उसकी  तुलना  में  उनके  लिए  स्कूलों  का  प्रबंध  किया  जाए  ,  उनके  पढ़ने -लिखने  का  , दवा -चिकित्सा  का  इंतजाम  किया  जाए  l  उनके  शिक्षण  का  प्रबंध  किया  जाये  और  जब  वे   सभी   और  सुसंस्कृत   होने  लगे  ,  तब  उनके  पैसों  में  वृद्धि  की  जाए  l  अन्यथा  पैसों  में  वृद्धि  करने  से  मुसीबत  आ   जाएगी  l  ये   मजदूर    तबाह  हो  जाएंगे  l  "    उनकी  बात  वहीँ  खत्म  हो  गई  और  सभी  ने  एक  मत  से  मजदूरों  का  वेतन   डेढ़  गुना  बढ़ा  दिया  l  तीन  साल  बाद   जब   जब  इस  बात  की  जाँच  की  गई  कि     डेढ़  गुना  वेतन  जो  बढ़ाया  गया   उसका  लाभ  मजदूरों  को  क्या   लाभ  मिला   ?  मालूम  पड़ा  कि  मजदूरों  की  बस्तियों  में  जो  शिकायतें  पहले  थीं  ,  वे  पहले  से  दोगुनी  हो  गईं  l  खून -खराबा  पहले  से  दोगुना  हो  गया  l  शराबखाने   और  चारित्रिक  पतन  करने  वाले  साधन दुगुने , चौगुने  हो  गए   और  उनसे  होने  वाली  बीमारियाँ  दुगुनी , चौगुनी  हो  गईं  l  तब  लोगों  को  समझ  आया  कि  जे . एस . मिल  की  गवाही  सही  थी   कि   जब  तक  धन  के  सदुपयोग  करने  की  चेतना  विकसित  न  हो  वेतन  नहीं  बढ़ना  चाहिए  l   हमारे  ऋषियों  ने  भी  कहा  है  कि  धन  जीवन  के  लिए  अनिवार्य  है  ,  लेकिन  हमें  इसका  सदुपयोग  करना  आना  चाहिए   यह  बात  केवल  मजदूरों  के  लिए  ही  नहीं   , डाक्टर ,  इंजीनियर , व्यापारी , नेता , अधिकारी   आदि  हर  व्यक्ति  पर  लागू  होती  है  l  आज  सारा  संसार  धन  के  ही  पीछे  भाग  रहा  है   लेकिन  चेतना  परिष्कृत  न  होने  से ,  संवेदना , ईमानदारी , नैतिकता    आदि  आध्यात्मिक  गुणों  से  जुड़ाव  न  होने  के  कारण  ही   आज  सारा  संसार    बारूद  के  ढेर  पर  खड़ा  है  l  मानव  सभ्यता  के  इस  विनाश  को  धन  से  नहीं  बचाया  जा  सकता  , धन  तो  और  घातक  हथियार  बनाकर  उसे  विनाश  की  ओर  धकेल  रहा  है  l  केवल  अध्यात्म  में  ही  वह  ताकत    है , जिसका  सहारा  लेकर    इस  संसार  को  विनाश  से   बचाया  जा  सकता  है  l  

12 April 2024

WISDOM ------

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' ज्ञान  प्रकाश  है  , जबकि  अज्ञान  अँधियारा  है  l  जीवन  में  सफलतापूर्वक  चलने  के  लिए   ज्ञान  के  प्रकाश  की  जरुरत  होती  है  l  ज्ञान  स्वयं  की  आँखें  हैं  ,  इसे  स्वयं  ही  पाना  होता  है  l  स्वयं  का  ज्ञान  ही  असहाय  मनुष्य  का  एकमात्र  सहारा  है  l  "------ सूफियों  में  बाबा  फरीद   का  कथा -प्रसंग  है  ---- बाबा  फरीद  ने  अपने  शिष्यों  से  कहा ---" ज्ञान  को  उपलब्ध  करो  l  इसके  अतिरिक्त  कोई  दूसरा  मार्ग  नहीं  है  l "  यह  सुनने  पर  शिष्य  नम्र  भाव  से  बोला  ---- " बाबा  !  रोगी  तो  हमेशा  वैद्य  के  पास  ही  जाता  है  , स्वयं  चिकित्साशास्त्र  का  ज्ञान  अर्जित  करने  के   फेर  में  नहीं  पड़ता  l  आप  मेरे  मार्गदर्शक  हैं  , गुरु  हैं  l  यह  मैं   जानता  हूँ  कि  आप  मेरा  उद्धार  करेंगे   l  तब  फिर  स्वयं  के  ज्ञान  की  क्या  आवश्यकता   है  l "   यह  सुनकर  बाबा  फरीद  ने  एक  कथा  सुनाई  -----  एक  गाँव  में  एक  वृद्ध  रहता  था   l  मोतियाबिंद  के  कारण  अँधा  हो  गया   तो  उसके  बेटों   ने   उसकी  आँखों  की  चिकित्सा  करानी  चाही   l    वृद्ध  ने  अस्वीकार  कर  दिया   और  कहने  लगा --- " भला  मुझे  आँखों  की  क्या  जरुरत  l  तुम  आठ  मेरे  पुत्र  हो , आठ  बहुएं  हैं , तुम्हारी  माँ  है   l  ये  चौतींस  आँखें  तो  मुझे  मिली  हैं  l  मेरी  दो  नहीं  तो  क्या  हुआ  ? "   पिता  ने  पुत्र  की  बात  नहीं  मानी   l   कुछ  दिनों  के  बाद  अचानक  एक  रात  घर  में  आग  लग  गई  l  सभी  अपनी  जान   बचाने  के  लिए  भागे  ,  वृद्ध  की  याद  किसी  को  न  रही  l  वह  उस  आग  में  जलकर  भस्म  हो  गया  l   वृद्ध  की  स्वयं  की  आँखें  होतीं  तो  वह  भी  भाग  कर  अपनी  जान  बचा  लेता  l 

11 April 2024

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- "  सांसारिक  रिश्तों  को  निभाते  समय  अपना  एक  रिश्ता  भगवान  से  बना  लेना  चाहिए  l  इनसान  से  रिश्ते  और  भगवान  से   रिश्ते  में   यही  फर्क  है  कि   इनसान  किसी  दूसरे  इनसान  की   छोटी  सी  गलती  को  भी  जीवन  भर  याद  रखता  है  ,  जबकि   भगवान  उस  इनसान  की  जीवन  भर  की  गलतियों  को  भुलाकर   उसके  अच्छे  कर्मों   पर  ध्यान  देते  हैं  l  "   ईश्वर  से  रिश्ता  हमें  एक  अनोखी  ताकत  देता  है   कि  सारा  संसार  हमारे  विरुद्ध  हो  जाये   लेकिन  यदि  ईश्वर  हमारे  साथ  है   तो  संसार  की  कोई  भी  ताकत  हमारा  कुछ  नहीं  बिगाड़  सकती   l   ईश्वर  विश्वास  में  अनोखी  शक्ति  है   l  इस  कलियुग  में   जब  रिश्तों  में   धोखा  ,  छल ,कपट , षड्यंत्र  , स्वार्थ  , धन -संपदा  के  लिए  खींचातानी, मुकदमेबाजी     है   तो  रिश्तों  की  अहमियत  ख़तम  हो  गई  है   फिर  बहुत  से  लोग  ऐसे  भी  हैं   जो  अपने  अहंकार  के  पोषण  के  लिए    रिश्तों  को  इस  तरह  बाँध  कर  रखना  चाहते  हैं   ताकि  उनके  संभ्रांत  होने  के  पीछे  छिपी  कालिख  समाज  के  सामने  न  आ  जाये   l  परिवार  में   होने  वाली  हिंसा , उत्पीड़न , शोषण ,   अपने  ही  परिवार  के  सदस्य  को  अपना  प्रतिस्पर्धी  मानकर   उसे  चैन  से  जीने  न  देना ,  उसका  सुख -चैन   छीनना ----- यह  सब  सांसारिक  रिश्ते  में   ही  होता  है  l  ईश्वर  से  रिश्ते  में  शांति  है , सुकून  है  ,  ईश्वर  हमारे  जीवन  में  दखल  नहीं  देते  ,  वो  हमेशा  हमें  चुनाव  करने  की  स्वतंत्रता  देते  हैं  l  हमारे  सामने  अच्छाई - बुराई , सकारात्मक - नकारात्मक   दोनों  तरह  के  मार्ग  हैं  , चयन  हमें  करना  है   फिर  जैसी  हमारी  राह  होगी  हमारे  कर्म  होंगे  वैसा  ही  परिणाम  हमारे  सामने  आएगा  l  ईश्वर  से  रिश्ते  की  सघनता  ही  भक्ति  है   और  यह  भक्ति  जंगल  में  रहना  नहीं  है  , संसार  में  रहकर  सफलतापूर्वक  , शांति  व  सुकून  का  जीवन  जीना  है  l   भक्त  प्रह्लाद  की  कथा  है  ---  वे  भक्त  होने  के  साथ  राजा  भी  थे  ,  उनके  पास  बुद्धियोग  का  बल  था  l  बुद्धियोग  एक  तरह  की  भावनात्मक  योग्यता  है   जिसमें  व्यक्ति  अपनी  कुशल  और  कुशाग्र  बुद्धि  से   अपनी  भावनाओं  का  सही  उपयोग  व  नियोजन  कर  पाता  है  l   एक  बार  उनके  दरबार  में   दो  माताएं  एक  बच्चे  को  लेकर  आईं   और  दोनों  ही  कहने  लगीं  कि  वे  ही  इसकी  माँ  हैं  , दोनों  ने  ही  पक्के   सबूत   दिए  l  सब  मंत्रीगण  सोच  में  पड़  गए  , निर्णय  महाराज  प्रह्लाद  को  करना  था   कि  असली  माँ  कौन  है  ?   राजा  प्रह्लाद  ने  प्रभु  का  स्मरण  किया   और  घोषणा  की  कि   इसी  क्षण  इस  बच्चे  के  दो  टुकड़े  कर  दिए  जाएँ   और  दोनों  माताओं  को  एक -एक  टुकड़ा  दे  दिया  जाये  l  यह  सुनकर  सारी  सभा  स्तब्ध  रह  गई  l  तभी  दोनों  माताओं  में  से  एक  माता   रोते  हुए  बोली ---- '  महाराज  !  आप  ऐसा  न  करें  l  इसे  ही  यह  बच्चा  दें  दे  l  यह  बच्चा  मेरा  नहीं  है  , मैं  इसकी  माँ  नहीं  हूँ  , आप  इसे  ही  यह  बच्चा  दे  दें  l  '   इस  दौरान  दूसरी  महिला  कुछ  न  बोली   l    इसके  बाद  महराज  ने  अपना  निर्णय  सुनाते  हुए  कहा ---- "   यह  बच्चा  इस  रोने   वाली   माता  का  है  , इसे  बच्चा  दे  दिया  जाये   और  दूसरी  महिला  को  बंदी  बना  लिया  जाये   जो  दूसरों  की  भावनाओं  को  छलने  का  प्रयास  कर  रही  है  l  "  महाराज  प्रह्लाद  को  पता  था   कि  माँ  का  ह्रदय  बच्चे  के  लिए  कितना  व्याकुल  होता  है  वह  चाहती  है  कि   उसका  बच्चा   स्वस्थ  और  सकुशल  रहे  l  जिसके  ह्रदय  में  बच्चे  के  लिए  संवेदना  नहीं  , वह  माँ  नहीं  है  l   

10 April 2024

WISDOM -------

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " जीवन  में  यदि  सुख  है , तो  दुःख  भी  आएगा  l  यदि  दुःख  है , तो  सुख  भी   निश्चित  रूप  से  मिलेगा  l  यदि  आज  यश -सम्मान  , प्रतिष्ठा   है , तो  कभी  अपयश  भी  मिल  सकता  है  l  इसलिए  अपनी  मन: स्थिति  को   इन  सब  अवस्थाओं  के  लिए   तैयार  रखना  चाहिए   और  जीवन  में  ऐसे  कर्म  करने  चाहिए   कि  जिनसे  हम   इन  परिस्थितियों  को   बेहतर  समझ  सकें   और  इन्हें  सहन  कर  सकें  l "   आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं ---' किसी  भी  तरह  के  समय  को   परिवर्तित  करना  हमारे  हाथ  में  नहीं  होता  , यह  परिवर्तन  स्वत:   होता  है  , जिसे  हमें  स्वीकार  करना  पड़ता  है   l  जिस  तरह  रात्रि  को  हम  दिन  में  नहीं  बदल  सकते  , लेकिन  विद्युत  के  माध्यम  से   बल्ब  जलाकर   अंधकार  को  दूर  कर  सकते  हैं  ,   उसी  तरह  हम   दुःख , पीड़ा , कष्ट  , अपयश  आदि  के  आने  पर   इन्हें  तुरंत  दूर  नहीं  कर  सकते  ,  लेकिन  इन  परिस्थितियों  में   ईश्वर  का  स्मरण  करते  हुए  ,  शुभ  कर्म  कर  के   और   तप  कर  के   हम  इनसे  लाभान्वित  हो  सकते  हैं  l "   अकबर - बीरबल  की  कहानियों  का  एक  प्रसंग  है ---- एक  बार  सम्राट  अकबर  ने  सभासदों  से  पूछा ----"  इस  संसार  में  ऐसा  क्या  है  ,  जिसको  जान  लेने  के  बाद   सुख  में  दुःख  का   अनुभव  हो   और  दुःख  में  सुख  का   l "  सभा  में  सन्नाटा  छ  गया  , सबकी  नजरें  बीरबल  पर  टिकीं  थीं  l  बीरबल  ने  कहा ---- "  यह  केवल   एक  वाक्य  है   जिसके  स्मरण  से   व्यक्ति  को   सुख  में  दुःख  का  और  दुःख  में   सुख  का  अनुभव  होता  है   और  यह  वाक्य  है ---- ' यह  समय  भी  गुजर  जायेगा  l "  बीरबल  के  इस  जवाब  से  अकबर  बहुत  प्रसन्न  हुए  l 

8 April 2024

WISDOM -----

   एक  युवक  ने  भगवान  बुद्ध  से  दीक्षा  ली  l  इससे   पूर्व    वह  सुख -भोग  में  पला  था   और  संगीत  की  सभी  विधाओं  में  पारंगत  था   l   अचानक  ही  उसे  वैराग्य  हो  गया   और  वैराग्य  भी  ऐसा  कि  उसने  अति  कर  दी  l  सब  भिक्षु  मार्ग  पर  चलते  तो  वह  काँटों  पर   जानबूझ  कर  चलता  l  अन्य  भिक्षु  समय  पर  सोते  लेकिन  वह  रात  भर   जागता  l  सब  भोजन  करते  , वह  उपवास  करता  l   इस  तितिक्षा  के  कारण  छह  माह  में  उसका  शरीर   सूख  कर  काँटा  हो  गया  ,  पैरों  में  छाले  पड़  गए   l  तप -तितिक्षा  की  उसने  अति  कर  दी  l  एक  दिन  भगवान  बुद्ध  ने  उसे  बुलाकर  पास  बिठाया  और  पूछा  ---- "  तुम  तो  यहाँ  आने  से  पहले  संगीत  के  अच्छे  ज्ञाता  रहे  हो  ,  यह  बताओ  कि  वीणा  से   मधुर  ध्वनि   निकले  , इसके  लिए  क्या  किया  जाता  है  ? "    युवक  ने  उत्तर  दिया ---- "  तारों  को  संतुलित  रखा  जाता  है  l "   बुद्ध  बोले ---- "  भंते  !  यही  साधना  में  भी  किया  जाता  है  l  शरीर  भी  वीणा   के  समान  है  l  वीणा  के  तारों  को  इतना  मत  कसो  कि  वे  टूट  जाएँ  ,  और  इतना  ढीला  भी  मत  छोड़ो  कि  वे  बजना  ही  छोड़  दें  l  यदि  इसे  समत्व  की , संतुलन  की  स्थिति  में  रखोगे   तो  साधना  सिद्धि  में  परिणत  होगी  l  "  युवक  की  समझ  में  मर्म  आ  गया  ,  जीवन  का  कोई  भी  क्षेत्र  हो   उसमें  संतुलन  जरुरी  है  l  

7 April 2024

WISDOM -----

   गुलाब  का  पौधा  एक  राजनीतिज्ञ   के  पास  कुछ  सीखने  के  उदेश्य  से  पहुंचा  l  राजनीतिज्ञ   ने  उसे  सिखाया  --- " जो  जैसा  व्यवहार  करता  है  , उसके  साथ  वैसा  ही  व्यवहार  करना  चाहिए  l  दुष्ट  के  साथ  दुष्टता  करना  ही  नीति  है  ,  यदि  ऐसा  न  किया  गया  तो   संसार  तुम्हारे  अस्तित्व  को  मिटाने  में  लग  जायेगा  l  "                गुलाब  ने  उस  राजनीतिज्ञ   की  बात  गाँठ  बाँध  ली  l  घर  लौटकर  आया   और  अपनी  सुरक्षा  के  लिए   काँटे  उत्पन्न  करने  लगा  ,  जो  कोई  उसकी  ओर  आता  ,  वह  काँटे  छेद   देता  l   कुछ  दिनों  बाद   उस  पौधे  को   एक   साधु  से  सत्संग  का  भी  अवसर  मिला  l  साधु  ने  उसे  बताया  ---- "   परोपकार  में  अपने  जीवन  को  खपाने  वाले  से  बढ़कर   सम्माननीय   कोई  दूसरा  नहीं  होता  l  "  परिणामस्वरूप   गुलाब   गुलाब  ने   उस  दिन  अपने  प्रथम  पुष्प  को  जन्म  दिया  l  उसकी  सुगंध  दूर -दूर  तक  फैलने  लगी  ,  जो  भी  पास  से  गुजरता  ,  कुछ  क्षण  के  लिए   उसके  सौन्दर्य  और  सुरभि  से  मुग्ध  हो  जाता  l  आज  गुलाब  ने  जो  सम्मान  पाया  वह  अपने  काँटों  के  बल  पर  नहीं   वरन  अपने   पुष्पों  के  सौन्दर्य  और  सुरभि  के  बल  पर  l  

6 April 2024

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " पतन  एक  सहज  गतिक्रम  है  ,  उठना  पराक्रम  है  l  पानी  नीचे  की  ओर  बड़ी  तेजी  से  बहता  है  लेकिन  यदि  ऊपर  चढ़ाना  हो  तो  उसके  लिए  विशेष  प्रयास  करना  पड़ता  है  l   अचेतन  की  पाशविक  प्रवृत्तियां  बार -बार  मनुष्य  को  घसीटकर   विषयी  बनने   की  ओर  प्रवृत्त  करती  हैं  l  यह  मनुष्य  पर  निर्भर  है  कि   वह  इन  पर   किस  प्रकार  अंकुश  लगा  पाता  है   और  प्राप्त  सामर्थ्य  का  सदुपयोग  कर  पाता  है  l  "     रामकृष्ण  परमहंस  कहा  करते  थे  ,-- दो  प्रकार  की  मक्खियाँ  होती  हैं  l  एक  तो  शहद  की  मक्खियाँ  ,  जो  शहद  के  अतिरिक्त  और  कुछ   भी  नहीं  खातीं  और   दूसरी  साधारण  मक्खियाँ  ,  जो  शहद  पर  भी  बैठती  हैं   और  यदि  सड़ता  हुआ  घाव  दिखलाई  पड़े  ,  तो  तुरंत  शहद  को  छोड़कर   उस  पर  भी  जा  बैठती  हैं  l  इसी  प्रकार  दो  तरह  के  स्वभाव  के  लोग  होते  हैं  l  एक , जो  ईश्वर  में  अनुराग  रखते  हैं  ,  वे  ईश्वर  चर्चा  के  सिवाय   कोई  दूसरी  बात  करते  ही  नहीं  ,  और  दूसरे  वे  लोग  होते  हैं   जो  संसार  में  आसक्त   जीव  हैं  ,  वे  ईश्वर  की  बात  सुनते -सुनते    यदि  किसी  स्थान  पर   विषय  की  बातें  होती  हों  ,  तो  तुरंत   भगवान  की  चर्चा  छोड़कर    उसी  में  संलग्न  हो  जाते  हैं   l                                                                                पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- "  संस्कारों  में  परिवर्तन  करना  आसान  नहीं  है  l  ईश्वर ,  आत्मा , कर्मफल , पुनर्जन्म   जैसी  मान्यताएं    मनुष्य  को   संयमी , सदाचारी ,  कर्तव्यपरायण  एवं  उदार   बनने   की  प्रेरणा  देती  हैं  l   व्यक्तिगत , सामाजिक , संस्कृतिक  उत्थान   इन्ही  तत्वों  के  सहारे  संभव   होता  है  l  यदि  सत्प्रवृत्तियाँ  न  हों  तो   बुद्धि  कौशल  के  रहते   आदर्शहीन  व्यक्ति   केवल  पिशाच    ही  बन   सकते  हैं   l  "  

5 April 2024

WISDOM -----

   इस  संसार  में  गुरु  की  कृपा  से  सब  कुछ  संभव  है  l  कहते  हैं   यदि  भगवान  शिव  स्वयं  रूठ  जाएँ   तो  श्री गुरु  की  कृपा  से  रक्षा  हो   जाती  है  ,  लेकिन  यदि  गुरु  रूठ  जाएँ   तो  कोई  भी  रक्षा  करने  में  समर्थ  नहीं  होता  l    सद्गुरु के  बताए  मार्ग  पर  चलकर  ,  बिना  किसी  तर्क  के  उनके  आदेश  को  स्वीकार  कर  के  ही  गुरु कृपा  संभव  है  l  जो  शिष्य  अपने  गुरु  की  कृपा  की  छाँव  में  रहता  है  ,  उसका  कोई  कुछ  नहीं  बिगाड़  सकता  l    एक  सत्य  घटना  है  बंगाल  के  महान  साधक   सुरेन्द्रनाथ  बनर्जी  के  बारे  में  l  वे  सर्वेयर  के  पद  पर  कार्यरत  थे  l  पारिवारिक  परिस्थिति  कुछ  ऐसी  हुई  कि  पहले  बेटी  की  मृत्यु  हुई  , फिर  लंबी  बीमारी  के  बाद  पत्नी  की  मृत्यु  हो  गई  l  सुरेन्द्रनाथ   बहुत  दुःखी  थे  , ऐसे  में  उन्होंने   बंगाल  के  महान  संत  सूर्यानंदगिरी   की  शरण  में  रहना  चाहा  l  इस  उदेश्य  से  वे   उन  महान  संत  की  कुटिया  में  गए   और  उनसे  दीक्षा  देने  की  प्रार्थना  की  l   इस  प्रार्थना  को  सुनकर  संन्यासी  महाराज  नाराज  हो  गए  और  उन्हें  डपटते  हुए  बोले  --- " आज  तक  तुमने  सत्कर्म  किया  है  , जो  मेरा  शिष्य  बनना  चाहते  हो  l  जाओ  पहले  सत्कर्म  करो  l "    इस  झिड़की  को  सुनकर  सुरेन्द्रनाथ  विचलित  नहीं  हुए  और  बोले --- " आज्ञा  दीजिए  महाराज  l "   संत  सूर्यानंदगिरी  ने  कहा ---- " इस  संसार  में  पीड़ित  मनुष्यों  की  संख्या  कम  नहीं  है  l  उन  पीड़ितों  की  सेवा  करो  l "    सुरेन्द्रनाथ  ने  कहा ---- "   जो  आज्ञा  प्रभु  l  मैंने  सम्पूर्ण  अंतस  से  आपको  गुरु  माना  है  l  आपके  द्वारा  कहा  गया  प्रत्येक  वाक्य , प्रत्येक  अक्षर   मेरे  लिए  मूल मन्त्र  है  l  ऐसा  कहकर  सुरेंद्र्नाथ   कलकत्ता  आ  गए   और  अभावग्रस्त  , , लाचार    व  दुःखी   मनुष्य  की  सेवा  करने  लगे  l  निराश्रितों  के  सिरहाने  बैठकर  उनकी  सेवा  करते  वे  गरीबों  के   मसीहा   बन  गए  l  जब  अपने  पास  की  सारी रकम  समाप्त  हो  गई   तो   जिस  गली  का  नाम  उनके  पिता  के  नाम  पर  था , उसी  गली  में  वे  कुली  का  काम  करने  लगे  l  इससे  जो  आमदनी  होती  उससे  वे  अपाहिजों  की  सहायता  करते  l   ऐसा  करते  कई  वर्ष  गुजर  गए  l  इस  अवधि  में  उनकी  उन  संत  से  कोई  मुलाकात  नहीं  हुई  l  एक  दिन  जब  वे  कुली  का  काम  कर  के  जूट  मिल  से  बाहर  निकले   तो  देखा  सामने  गुरुदेव  खड़े  हैं  l  आशीर्वाद  देते  हुए    उन्होंने  कहा --- " सुरेन्द्र  तुम्हारी  परीक्षा   समाप्त  हो  गई  , अब  मेरे  साथ  चलो  l "  इस  आदेश  को  शिरोधार्य  कर  के  वे  चुपचाप  गुरु   के  पीछे -पीछे  चल  पड़े   गुरुदेव  उन्हें  बंगाल , आसाम  पार  कराते  बर्मा  के  जंगलों  में  ले  गए  , यहीं  उनकी  साधना  का  क्रम  शुरू  हुआ  l  गुरु  कृपा  से  वे   महान  सिद्ध  संत  महानंद  गिरी  के  नाम  से   प्रसिद्ध  हुए  l  

4 April 2024

WISDOM ----

 1. एक  भक्त  रोज  गंगा  स्नान  कर  के   भगवान  पर  जल  चढ़ाता  था  l  एक  दिन  रास्ते  में  एक  प्यासा  मनुष्य   रात  भर  के  बुखार  का  मारा  पड़ा था   l  पानी  लाते  देखकर  उसने  भक्त  से  पानी  पिलाने  की   याचना  की  l  भक्त  डपट  कर  बोला ---- " मूर्ख , यह  जल  भगवान  को  चढ़ाना  है  ,  तुम्हारे  जैसे  अनेकों   बीमार  पड़े  होंगे   उन्हें  कौन  पानी  पिलाता   घूमे  l "  रात  को  भक्त  ने  सपने  में  देखा   कि  भगवान  बीमार  हो  गए  हैं  l  भक्त  ने  बीमारी  का  कारण  पूछा   तो  भगवान  बोले  ----- "  तूने  पीड़ित  मनुष्य  की  सहायता  नहीं  की  , प्यासे  मनुष्य   की  आवश्यकता  पूरी  न  कर   मेरे  स्नान  में  जो  जल  काम   आया    वह  मेरे  लिए  पाप   रूप  सिद्ध  हुआ   और  उससे  मैं  बीमार  पड़  गया  l "  दूसरे  दिन  से  वह  मनुष्य   सच्चे  ह्रदय  से   दीन  दुःखियों  की   सेवा  करने  लगा  l  इसी  को  उसने   ईश्वर  भक्ति   का  सच्चा  स्वरुप  समझना  आरम्भ  कर  दिया   l  

2 .  एक  दुःखी  व्यक्ति  अपनी  व्यथा  भगवान  से  एकांत  में  कहना  चाहता  था   इसलिए  रात  के  एकांत  में  वह  मंदिर  पहुंचा  l  दरवाजे  पर  देवदूत  खड़े  थे  ,  उन्होंने  कहा ---- " भाई  , भगवान  के  लिए  कोई  उपहार लाये बिना   तुम  अन्दर  नहीं  जा  सकते  l "  उस  व्यक्ति  ने  रातों  रात  तीन  चोरियां  की  l  पहली  बार  राजमुकुट  लाया   तो  देवदूतो   ने  कहा , परमात्मा  को  मुकुट  की  जरुरत  नहीं  है , इसे  वापस  ले  जाओ  l  दूसरी  बार  तलवार  लाया  तो  देवदूतों  ने  कहा --भगवान  तो  सर्वशक्तिमान  हैं   उनके  लिए  तलवार  व्यर्थ  है  l  तीसरी  बार  वह  कहीं  से  वेद   उठा  लाया   l  देवदूतों  ने  यह  कहकर  कि   भगवान  तो  स्वयं  ज्ञान स्वरुप  हैं  , उनके  लिए  वेद   की  क्या  आवश्यकता  ?  उस  व्यक्ति  को  लौटा  दिया  l  वह  व्यक्ति  बहुत   उदास  हो  गया  कि  आखिर  क्या  दे  भगवान  को  ?  वह  जा  रहा  था  तभी  एक  गरीब   अँधा  व्यक्ति  ठोकर  खाकर  गिर  पड़ा  l उस  व्यक्ति  ने  उसे   उसकी  रात   भर    सेवा  की  l  इस  बार  वह  खाली  हाथ  पहुंचा   तो  देखा  वहां  देवदूत  नहीं  हैं  और  मंदिर  का  दरवाजा  भी  खुला  है  l   वह  समझ  गया  कि  दींन -दुःखियों   और  जरुरतमंदों  की  निस्स्वार्थ  भाव  से  सेवा  करने  से  ही  भगवान  प्रसन्न  होते  हैं  l  





3 April 2024

WISDOM -----

  महाकाश्यप  भगवान  बुद्ध  के  प्रमुख  शिष्यों  में  से  एक  थे  l  वह  जब  पहली  बार   भगवान  बुद्ध  से  मिलने  पहुंचे   तो  भगवान   के  उनके  मस्तक  पर  हाथ  रख  देने  से  ही  उन्हें   निर्वाण  की  प्राप्ति  हो  गई  l  यह  देखकर  आनंद  को   बड़ा  आश्चर्य  हुआ  l  उन्होंने  भगवान  बुद्ध  से  प्रश्न  किया  ---- " भगवन  ! यह  व्यक्ति   आज  आया   और  आपके  क्षणिक   स्पर्श  से  मुक्त  हो  गया   और  मैं  सदा  आपके  साथ  रहता  हूँ   तब  भी  उस  अवस्था  को   प्राप्त  न  कर  सका   , ऐसा  क्यों   ? "   बुद्ध  ने  उत्तर  दिया ---- " आनंद  !  तुम  जब  पहली  बार   मुझसे  मिले   तो  तुमने   तीन  शर्तें  रखीं   कि  हमेशा  साथ  रहोगे  ,  सदा  मेरे  निकट  सोओगे   और  जिसको  भी   मुझसे  मिलाना  चाहोगे   , उससे  मुझे  मिलना  पड़ेगा  l   तुम्हारा  समर्पण  सशर्त  समर्पण  था   और  महाकाश्यप  का  समर्पण   बिना  किन्ही  अपेक्षाओं  के  था  l   समर्पण  शर्तों  के  आधार  पर  नहीं  होता  l  जिस  दिन  तुम्हारी  अपेक्षाएं  छूट  जाएँगी  ,  उस  दिन  तुम  भी  उसी   शून्यता   को  उपलब्ध  हो  जाओगे  l  " आनंद  को  अपने  प्रश्नों  का  उत्तर  मिल  गया  l  

WISDOM ------

    एक  व्यक्ति  जिनका  नाम  था   अभय  कुमार   उन्हें  जंगल  में  एक  नवजात  शिशु  मिला  l  वह  शिशु  को  अपने  साथ  घर  ले  आए   और  उसका  नाम  रखा  ' जीवक ' l  जब  जीवक  बड़ा  हुआ   तो  उसे  पता  चला  कि  अभय  कुमार  उसके   असली  पिता  नहीं  हैं  किसी  ने   लोकाचार  के  भय  से   उसे  जंगल  में  छोड़  दिया   था  l   यह  जानकर  कि  वह  कुलहीन  है , जीवक  का  ह्रदय  ग्लानि  से  भर  गया  l  अभय  कुमार  ने  उसे  समझाया  कि   व्यक्ति  जन्म से  नहीं  कर्म  से  महान  बनता  है  ,  इसके  लिए  ज्ञान  बहुत  जरुरी  है  l  अत:  उन्होंने  जीवक  को  श्रेष्ठतम  विद्या   अर्जित  करने  के  लिए  तक्षशिला   जाने  के  लिए  प्रेरित  किया  l  जीवक  के  तक्षशिला  पहुँचने  पर   उससे  प्रवेश  के  समय  कुल , गोत्र   संबंधित  प्रश्न  पूछे   तो  उन्होंने  स्पष्ट  रूप  से  सब  सत्य  बता  दिया  l  जीवक   की  सत्यवादिता  से  प्रसन्न  होकर  उसे  प्रवेश  दे  दिया   गया  l   जीवक  ने  कठोर  परिश्रम  से  तक्षशिला  विश्वविद्यालय  से  आयुर्वेदाचार्य  की  उपाधि  हासिल  की  l   उनके  आचार्य  ने  उन्हें  मगध  जाकर   लोगों  की  सेवा  करने  का  निर्देश  दिया  l  जीवक  ने  कहा ---- " आचार्य  !  मगध  राज्य  की  राजधानी  है  l  सभी  कुलीन  लोग  वहां  निवास  करते  हैं  l  क्या  वे  मुझ  जैसे  कुलहीन  से   अपनी  चिकित्सा  करवाना  स्वीकार  करेंगे  ?  मुझे  आशंका  है  कि  कहीं  मुझे  अपमान  का  सामना  न  करना  पड़े  l "  जीवक  के  गुरु  ने  उत्तर  दिया  --- " वत्स  ! आज  से  तुम्हारी  योग्यता , क्षमता , प्रतिभा  और  ज्ञान   ही  तुम्हारे  कुल  और  गोत्र  हैं  l  तुम  जहाँ  भी  जाओगे  ,  अपने  इन्हों  गुणों  के  कारण   सम्मान  के  अधिकारी  बनोगे  l  कर्म  से  मनुष्य  की  पहचान  होती  है  ,  कुल  और  गोत्र  से  नहीं  l  सेवा  ही  तुम्हारा  धर्म  है  l  " जीवक  की  आत्महीनता  दूर  हो  गई   और  अपने  सेवाभाव  से   वे  महान  चिकित्सक  बने  l  

1 April 2024

WISDOM -----

    संत  अहमद  से  कुछ  शिष्य  बोले  --- " महाराज  !  हमें  ईश्वर  के  किसी  सच्चे  भक्त  के  बारे  में  बताइए   l "  संत  ने  कहा ---- " तो  सुनो  , बहराम  मेरा  पड़ोसी  था  l  मुझसे  उसकी  मित्रता  हो  गई  l  वह  मालदार  व्यापारी  था  l  एक  दिन  राह  में   डाकुओं  ने  उसके  कारवां  को  लूट  लिया  l  यह  सुनकर  मैं  उसे  ढाढस  बंधाने  गया  l  जब  मैं  उसके  घर  पहुंचा  ,  तो  बहराम  ने  सोचा  --- शायद  मैं  भी   दूसरों  की  तरह  भोजन  के  लिए  आया  हूँ  l   मैंने  उससे  कहा --- "  भाई  कष्ट  मत  करो  l   मैं  भोजन  की  आशा  से  नहीं  , बल्कि  तुम्हारे   इस  भारी  नुकसान  में   तुम्हे  ढाढस  बंधाने  आया  हूँ  l "  इस  पर  बहराम  बोला  --- "  हाँ  , यह  सच  है  कि  मुझे  लाखों  का  नुकसान  हुआ   है  l  लेकिन  ईश्वर  की  कृपा  है  कि   उन्होंने  मेरी  शाश्वत  संपत्ति  को  हाथ  तक  नहीं  लगाया  l  वह  संपत्ति  है  ---- ईश्वर  में  मेरी  आस्था  l  वही  तो   जीवन  की  सच्ची  संपत्ति  है  l "  संत  बोले  ----- "सत्पुरुषों  की  श्रेष्ठता   उनकी  आस्था  के  स्तर   के  आधार  पर  ही  पनपती  है  l  जिन्हें  ईश्वर  में  आस्था  नहीं  है   वे  न  तो  भक्त  हो  सकते  हैं  ,  और  न  ही  सज्जन  l  "  

31 March 2024

WISDOM -----

    महाभारत  का  महायुद्ध  शुरू  होने  से  पहले  अर्जुन  और  दुर्योधन  दोनों  ही  भगवान  श्रीकृष्ण  के  पास   मदद  की  इच्छा  से  गए  l  भगवान  ने  कहा  --- एक  तरफ  मेरी   विशाल  सेना  है  और  दूसरी  तरफ  मैं  नि:शस्त्र , युद्ध  में  शस्त्र  नहीं  उठाऊंगा  l  दुर्योधन  ने  विशाल  सेना  को  चुना  और  अर्जुन  ने  भगवान  से  भगवान  को  ही  मांग  लिया  l  श्रीकृष्ण   अर्जुन  के  सारथी  बने   l  अर्जुन  ने  अपने  जीवन  की  बागडोर  भगवान  के  हाथों  में  सौंप  दी ,  स्वयं  को  ईश्वर  के  चरणों  में  समर्पित  कर  दिया  l  यहाँ  महत्वपूर्ण  बात  यह  है  कि  यह  समर्पण  कर्तव्यपालन  के  साथ  था  l  आखिरी  साँस  तक  कर्तव्यपालन  करना  है  तभी  ईश्वर  की  कृपा  मिलेगी  ,  आलस  या  पलायन  नहीं  चलेगा  l  जब  अर्जुन   ने  युद्ध  के  मैदान  में   अपने  ही  भाई -बंधुओं  , गुरु , पितामह  को  देखा    तो  अपने  अस्त्र -शस्त्र  नीचे  रख  दिए  , तब  भगवान  श्रीकृष्ण  ने  उसे  गीता  का  उपदेश  दिया  ,  कर्तव्यपालन  के  लिए  प्रेरित  किया  l   जब  भीष्म  पितामह  के  साथ  युद्ध  में  अर्जुन  उस  वीरता  से  नहीं  वार  कर  रहा  था  ,  उसके  मन  में  यही  था  कि  ' पितामह  हैं , मुझे  बचपन  में  गोदी  में  खिलाया  है  '  l  कृष्ण जी  बार -बार  समझा  रहे  थे  कि  पितामह  अधर्म  और  अन्याय  के  साथ  है ,  और  इस  अन्याय  का  अंत  करने  के  लिए  ही   यह  महायुद्ध  है , पितामह  के  वार  से  निर्दोष  सैनिक  मरते  जा  रहे  हैं  ,   तुम  वीरता  से  वार  करो  l  लेकिन  ऐसा  करने  के  लिए  अर्जुन  स्वयं  को  असमर्थ  महसूस  कर  रहा  था  तब  अर्जुन  को  कर्तव्यपालन  से  विमुख  होते  देख   भगवान  श्रीकृष्ण  को  बहुत  क्रोध  आया   ,  वे  रथ  से  कूद  पड़े  और   एक  टूटे  हुए  रथ  का  पहिया  लेकर  भीष्म पितामह  को  मारने  दौड़े  l  सारी  सेना  में  खलबली  मच  गई  ,  पितामह  तो  भगवान  की  स्तुति  करने  लगे  कि  ऐसा  सौभाग्य  फिर  कहाँ  मिलेगा  l  अर्जुन  ने  दौड़कर  भगवान  के  पैर  पकड़  लिए   और  क्षमा  मांगी  कि  मेरी  वजह  से  आप  अपनी  नि:शस्त्र  रहने  की  प्रतिज्ञा  न  तोड़ें  l  फिर  अर्जुन  ने  जिस  वीरता  से  युद्ध  लड़ा   कि  पांडव  विजयी  हुए  l     आज  के  युग  में  ईश्वर  के  प्रत्यक्ष  दर्शन  तो  संभव  नहीं  हैं   लेकिन  यह  प्रसंग   इस  बात  को  स्पष्ट  करता  है  कि  ईमानदारी  से  कर्तव्यपालन  कर  के   ईश्वर  को , उनकी  कृपा  को   अनुभव  किया  जा  सकता  है  l  कलियुग  की  सबसे  बड़ी  व्यथा  यही  है  कि  बेईमानी , भ्रष्टाचार , लालच , तृष्णा , कामना ---- लोगों  को  नस -नस  में  समा  गया  है   इसलिए  कर्तव्यपालन  को  भी  लोग  अपने -अपने  ढंग  से  , अपने   संस्कार  और  मन: स्थिति  के  अनुसार  ही  समझते  हैं  l  इसलिए  ईश्वर  अब  केवल  कर्मकांड  तक  कोरी  कल्पना    हैं   ,  अब  मनुष्य  स्वयं  को  ही  भगवान  समझने  लगा  है  l   मनुष्य  के  इस  भ्रम  को  प्रकृति  अपने  ढंग  से  तोड़  देती  है   और  मनुष्य  समझ  भी  जाता  है   कि   भगवान  का  तीसरा  नेत्र  खुल  गया   लेकिन  फिर  भी  वो  सुधरता  नहीं  है  l  

30 March 2024

WISDOM -----

  1    चीन  के  प्रसिद्ध  दार्शनिक  लाओत्से  ने  अपने  शिष्य  से  कहा ---  "  तुम्हे  पता  है  कि  मैं   अपने  जीवन  में  कभी  किसी  से  पराजित  नहीं  हुआ l " शिष्य  को  यह  सुनकर  बड़ा  आश्चर्य  हुआ   और  बोला --- " पर  आप  तो  बहुत  छोटे  व  दुर्बल  शरीर  के  हैं  l  ऐसे  में  आपको  कैसे  कभी   किसी  ने  नहीं  हराया  ? "  लाओत्से  हँसा   और  बोले  --- "मैंने  कभी  जीतने  की  चाहत   ही  नहीं  रखी  l  इसीलिए  हारने  का  भी  प्रश्न  ही   उत्पन्न  नहीं  हुआ  l  संसार  में  सारी  दौड़  पाने  की  है  l  इसलिए  लोग  खोने  की  सोच  से  परेशान  हो  जाते  हैं  , परन्तु  जो  भगवान  ने  दिया  है   यदि  उसी  से  संतुष्ट  है   तो  उसके  मन  को  कोई  चिंता  परेशान  नहीं  करती   और  न  कोई  बेचैनी   होती  l  "  शिष्य  की  समझ  में  आ  गया  कि  अतृप्त  कामनाएँ  ही  समस्त  दुःखों  का  कारण  हैं  l  आज  संसार  में  ' तनाव '  सबसे  बड़ी  बीमारी  है   जो  अन्य  कई  बीमारियों  को  पैदा  करती  है  l  इसका  कारण  यही  है  व्यक्ति  कुछ  न  कुछ  पाने  की  चाह  में  दौड़  रहा  है   और  यह  दौड़  भी  सीधी  नहीं  है  ,  दूसरों  को  धक्का  मार  के , कुचल  कर  आगे  बढ़ने  की  है  l  इस  तरह  की  दौड़  में  व्यक्ति  स्वयं  तो   तनावग्रस्त  होता  है   इसके  साथ  ही   दूसरों  को  धक्का  देने  और  उनका  हक  छीन  लेने  का  पाप  भी  अपने  सिर  पर  रख  लेता  है  , अपने  ही  कर्मों  के  बोझ  से  दबा  जाता  है  l  

29 March 2024

WISDOM -----

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- " हमारे  पूर्वजों  ने   छूत -अछूत  का  भेद  , अच्छे  -बुरे   कर्मों  के   आधार  पर  बनाया  था  l  जन्म  से  कोई  छूत -अछूत  नहीं  होता  l "    उच्च  कुल  में   जन्म  लेकर  भी  यदि  व्यक्ति   छल , कपट , धोखा  , षडयंत्र , अत्याचार   और  नकारात्मक  शक्तियों  के  साथ  काम  करता  है   तो   वह  व्यक्ति  अछूत  है  , ऐसे  व्यक्ति  की  छाया  से  भी  बचना  चाहिए   क्योंकि  ऐसे  लोगों   के  संस्कार , उनकी  मानसिकता   दूषित  होती  है   इसलिए  उनकी  संगत  से  बचना  चाहिए  l    एक  कथा  है -------- एक  महात्मा  प्रतिदिन  जेल  जाते  और  एक  बंदी  को   उपनिषद  पढ़ाया  करते  l  वह  बंदी  काल कोठरी  में  था  लेकिन  उपनिषद  का  ज्ञान  उसकी  आत्मा  में  ऐसे  समा  गया   कि  उसके  जीवन  में  आनंद  और  शांति  थी  l  महात्मा  उसे  नियमपूर्वक  उपनिषद  पढ़ाने  जाते  थे  l  एक  दिन  महात्मा  ने  देखा  कि  उनके  शिष्य  के  चहरे  पर  प्रसन्नता  नहीं  है  l  महात्मा  ने  उससे  पूछा  कि   उपनिषद  पढ़कर  भी  मन  में  शांति  क्यों  नहीं  है  ?  तब  बंदी  ने  कहा   कि  उसने  रात्रि  में  एक  भयानक  स्वप्न  देखा   , जिसमें  वह  निर्ममता  से  अपने  किसी  प्रिय  की  हत्या   कर    रहा  है  l  बंदी  ने  कहा  कि  इस  स्वप्न  की  वजह  से  ही  वह  बहुत  परेशान  है  l  तब  महात्मा जी  ने   उससे  उसकी  पूरी  दिनचर्या  के  बारे  में  पूछा  कि  वह  किस  से  मिला  था ,  क्या  खाया  था  ?   फिर  महात्मा जी  ने  बंदीगृह  के  अधिकारी  से  पूछा  ---- " क्या  कल  किसी  नए   बंदी  ने  भोजन  पकाया  था  ?  "  अधिकारी  ने  कहा  --' हाँ  '  और  उस  बंदी  का  रिकार्ड  मंगाकर  देखा   तो  पता  चला  कि   उस  बंदी  ने  जिसने  खाना  बनाया  था  , उसने  अपने  प्रिय  की  हत्या  उसी  निर्ममता  से  की  थी   जैसा  कि  उस  उपनिषद  पढने  वाले  बंदी  ने  स्वप्न  में  देखा  था  l  तब  महात्मा  ने  अपने  शिष्य  को  कहा   --- ' व्यक्ति  के  दूषित  मानसिक  संस्कार  के  स्पर्श  मात्र  से  उस  भोजन  में   वह  दूषित  संस्कार  आ  गए   l  उस  भोजन  को  ग्रहण करने  से  ही  उसे  ऐसा  स्वप्न  आया  l  तब  महात्मा जी  की  सलाह  पर   उस  बंदी  को   खाना  बनाने  के  काम  से  हटाकर  अन्य  कोई  काम  दिया  गया  l  

28 March 2024

WISDOM -------

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने    अपने  वाडमय ' प्रेरणाप्रद  द्रष्टान्त '  में  लघु -कथाओं  के  माध्यम  से  हमें  जीवन  जीने  की  शिक्षा  दी  है  l  ----- एक  राजा  ने  अपने  राजकुमार  को  एक  दूरदर्शी  और  विद्वान्  आचार्य  के  पास  शिक्षा  प्राप्त  करने  के  लिए  भेजा   l  एक  दिन  आचार्य  ने  राजकुमार  से  पूछा  ---' तुम  अपने  जीवन  में  क्या  बनना  चाहते  हो  ?  यह  बताओ  तब  तुम्हारा  शिक्षा  क्रम   ठीक  बनेगा  l  राजकुमार  ने  उत्तर  दिया  --- ' वीर  योद्धा  l '  आचार्य  ने  समझाया  कि  इन  दोनों  शब्दों  में  अंतर  है  l  योद्धा  बनने  के  लिए   शस्त्र  कला  का  अभ्यास  करो  , घुड़सवारी  सीखो   किन्तु  यदि   वीर  बनना  हो  तो   नम्र  बनो  और  सबसे  मित्रवत  व्यवहार  करने  की  आदत  डालो  l  जो   वीर  है  वो  कभी  किसी  की  पीठ  पर  वार  नहीं  करता  , कमजोर   पर  अत्याचार  नहीं  करता  l     सबसे  मित्रता  करने  की  बात  राजकुमार  को  जंची  नहीं   और  वह  असंतुष्ट  होकर   अपने  महल  वापस  आ  गया  l  पिता  ने  लौटने  का  कारण  पूछा   तो  उसने   मन  की  बात  बता  दी  , सबसे  मित्रता  बरतना  भी  कोई   नीति  है  l   राजा  ने  उस  समय  तो  अपने  पुत्र  से  कुछ  नहीं  कहा  l   कुछ  दिन  बाद  राजा  अपने  पुत्र  के  साथ  जंगल  में  वन -विहार  को  गया  l  चलते चलते  शाम  हो  गई  , राजा  को  ठोकर  लगी   तो  बहुमूल्य  अंगूठी  में  जड़ा    बेशकीमती  हीरा   उस  पथरीली  रेत   में  गिर  गया  l  अँधेरा  होने  लगा  , जंगल  पार  करना  था  l  राजकुमार  ने  जहाँ  हीरा  गिरा  था  वहां  की   सारी  रेत  अपनी  पगड़ी  खोलकर  उसमे  बाँध  ली  l और  भयानक  जंगल  को  जल्दी  पार  करने  को  कहा  l   राजा  ने  पूछा  --- 'हीरा  तो  छोटा  सा  था  , उसके  लिए  इतनी  सारी  रेत   समेटने  की  क्या  जरुरत  ?   राजकुमार  ने  कहा --- जब  हीरा  अलग  से  नहीं  मिला   तो  यही  उपाय  था  कि  उस  जगह  की  सारी  रेत   समेट  ली  जाये  और  घर  पहुंचकर  सुविधानुसार  हीरा  ढूँढ  लिया  जाये  l  राजा  ने  पूछा  --- फिर   आचार्य जी   का  यह  कहना  कैसे  गलत  हो  गया   कि  सबसे  मित्रता  का  अभ्यास  करो  l  मित्रता  का  दायरा  बड़ा  होने  से  ही   उसमें  से   हीरे  जैसे   विश्वासपात्र  मित्र  ढूंढना  संभव  होगा  l   राजकुमार  का  समाधान  हो  गया   और  वह  फिर  से  उन  विद्वान्  गुरु  के  आश्रम  में  पढ़ने  चला  गया  l  इस  कथा  से  हमें  यही  शिक्षा  मिलती  है  कि  हमारा  मनुष्य  जीवन  भी  हीरे  के  समान  अनमोल  है   उसे   व्यर्थ  न  गंवाए  l  यदि  इस  सफ़र  में  कभी  गिर  भी  गए  तो  हिम्मत  न  हारें , पुन:  उठें  , संभलें  और  जीवन  को  सार्थक  करें   और  मित्र  हमेशा   जाँच -परखकर  ही  बनाएँ  l  

27 March 2024

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ----- " पद  जितना  बड़ा  होता  है  , सामर्थ्य  उतनी  ही  ज्यादा   और  दायित्व  भी  उतने  ही  गंभीर  l   जो  ज्ञानी  हैं  वे  अपनी  बढ़ती  हुई  सामर्थ्य  का  उपयोग   पीड़ितों  के  कष्ट  हरने   एवं  भटकी  मानवता  को  दिशा  दिखाने  में   करते  हैं  l  सामर्थ्य  का  गरिमापूर्ण  एवं  न्यायसंगत   निर्वाह  ही   श्रेष्ठ  मार्ग  है  l  " ---------------------- बोधिसत्व  सुंदर  कमल  के  तालाब   के  पास  बैठे  वायु  सेवन  कर  रहे  थे  l   कमल  की मनोहर  छटा  देखकर  वे  सरोवर  में  उतर  गए   और  निकट  जाकर  कमल  की  गंध का  पान  कर  तृप्त  हो  रहे  थे  l  उसी  समय  किसी  देवकन्या  का  स्वर  उन्हें  सुनाई  दिया  ------ ' तुम  बिना  कुछ  दिए  ही  इन  पुष्पों  की  सुरभि  का  सेवन  कर  रहे  हो  l '  बोधिसत्व  कुछ  कहते  ,  उसी  समय  एक  व्यक्ति  आया   और  सरोवर  में  घुसकर  निर्दयतापूर्वक   कमल -पुष्प  तोड़ने  लगा  l  उसे  रोकना  तो  दूर , देवकन्या  ने  उसे  मना  भी  नहीं  किया   l  बोधिसत्व  ने  उस  देवकन्या  से  पूछा --- " देवी  !  मैंने  तो  केवल  पुष्पों  का  गंधपान  ही  किया  था  ,  पर  अभी  आए  इस  व्यक्ति  ने    कितनी  निर्दयता  के  साथ  पुष्पों  को  तोड़कर   तालाब  को  असुंदर  और    अस्वच्छ  बनाया  ,  तब  तो  तुमने  इसे  कुछ  भी  नहीं  कहा  l  "  बोधिसत्व  की  बात  सुनकर  देवकन्या  गंभीर  होकर  कहने  लगी  --- " तपस्वी  !  लोभ  तथा  तृष्णा  में  डूबे  संसारी  मनुष्य   धर्म , अधर्म   में  भेद  नहीं  कर  पाते  l  अत:  उन  पर  धर्म  की  रक्षा  का  भार  नहीं  है  ,  किन्तु  जो  धर्मरत  हैं  ,  सत -असत  का  ज्ञाता  है  , नित्य  अधिक  से  अधिक  पवित्रता  और  महानता   के  लिए  सतत  प्रयत्नशील  है  ,  उनका  तनिक  सा  भी  पथभ्रष्ट  होना   एक  बड़ा  पातक  बन  जाता  है  l "  बोधिसत्व  ने  मर्म  को  समझ  लिया   कि  जिन  पर   धर्म   -संस्कृति की     रक्षा  का  भार   होता  है  ,  समाज  में   सर्वोपरि  पद  पर  रहने  के  कारण   उनके  दायित्व  भी  बढ़े -चढ़े  होते  हैं   l  अत:  अधिक  सजग  होना  उनके  लिए  एक  अनिवार्य  कर्तव्य  है  l