22 October 2019

WISDOM ------

   मन  में  बहुत  कुछ  पाने  और  संचित  करने  की  अनैतिक   वृत्ति    लोभ  बनकर  उभरती  है  l  लोभ  का  विकृत  विस्तार  ही  समाज  में  घोटाले ,  घपला  एवं   भ्रष्टाचार  की  व्यथित  कथा - गाथा  है  l
 रातों - रात  बड़ा  बनने,  प्रतिष्ठित  कहलाने  की  आकुल  मानसिकता  से  भ्रष्टाचार  का  प्रादुर्भाव  होता  है  l  अधिक  से  अधिकतम   वस्तुओं  और   संपदा  प्राप्ति  की    ललक   सभी  मर्यादाओं  को  तोड़  देती  है   l  लोभ  गुब्बारे  की  तरह  बढ़ता और   फूलता  है  इसका  उदर    कभी  तृप्त  नहीं  होता  है  l  भ्रष्टाचार  ,  घपला  कभी  कोई  व्यक्ति  अकेले  नहीं  करता  ,  इसकी  बहुत  बड़ी   श्रंखला  होती  है    और  सब  बड़ी  मजबूती  से  एक - दूसरे  से  बंधे  होते  हैं  l  लोभ  का  आकर्षण  इतना  तीव्र  होता  है  कि  कभी   यह  श्रंखला  देश  व  सीमाओं  को  भी  लांघ  जाती  है   l  लोभ - लालच  का  अंतिम  परिणाम  जानते  व  देखते  हुए  भी  व्यक्ति  सुधरता  नहीं है  l