महर्षि व्यास श्लोक बोलते गए और गणेश जी लिखते गए तब यह महाकाव्य -' महाभारत ' की रचना हुई l यह कोई सामान्य ग्रंथ नहीं है , इसमें बहुत ही स्पष्ट रूप से बताया गया है कि जब भी अन्याय , अत्याचार , उत्पीड़न , अनैतिकता , शोषण की अति हो जाती है , फिर चाहे यह परिवार में हो , किसी संस्था में हो , राष्ट्र में या फिर वैश्विक स्तर पर हो , उसका अंत किस प्रकार होता है l ------- जब संसार में असुरता बहुत शक्तिशाली हो जाती है और देव पक्ष कमजोर हो जाता है तब गीता में दिए गए वचन को निभाने भगवान को आना पड़ता है l भगवान कृष्ण ने जैसे अर्जुन का मार्गदर्शन किया वैसे ही वे देव पक्ष का मार्गदर्शन करते हैं और भगवान शिव का तृतीय नेत्र खुल जाता है l महाभारत में प्रसंग है --- द्रोपदी का चीर -हरण के लिए दु:शासन उसे उसके केश पकड़ कर घसीटते हुए लाया था , तब द्रोपदी ने प्रतिज्ञा की थी कि जब दु:शासन के रक्त से अपने केश धोऊंगी तभी उन्हें गूथूंगी l उस दिन आने तक वे खुले ही रहेंगे , इसलिए जब भी भगवान कृष्ण उनके सामने आते तो द्रोपदी उन्हें अपने खुले केश दिखातीं , उनकी आँखों में प्रश्न होता , भगवन कब तक ? तब भगवान कृष्ण ने उन्हें समझाया -- अवतार का उद्देश्य अधर्म का नाश और धर्म व न्याय की स्थापना है l केवल मात्र दुर्योधन और दु;शासन के अंत से यह उद्देश्य पूरा नहीं होगा , तुम धैर्य रखो l युद्ध निश्चित हो गया , संसार के जितने भी शक्तिशाली राजा दुर्योधन के , अन्याय और अत्याचार के पक्ष में थे , एक - एक कर के उन सब का अंत हुआ फिर आखिरी में दुर्योधन का भी अंत हो गया l अत्याचारी , अन्यायी कभी अकेला नहीं होता उसके तार पूरी धरती पर फैले होते हैं l उस युग में दुर्योधन हो या रावण , यह स्पष्ट था कि उनके आदेश पर ही यह अन्याय हो रहा है l आज के युग में दुर्योधन , रावण या कहें ' डॉन ' कौन है ? यह तो ईश्वर ही जानते हैं , बस ! क्रम वही है , पहले उसके चाटुकारों का , अधर्म , अन्याय का साथ देने वालों का अंत होगा , उसका नंबर सबसे आखिरी में आएगा l पहले के युद्ध मैदान में होते थे , निर्दोष प्रजा , बच्चे फिर भी सुरक्षित थे लेकिन यह कलियुग है , असुरता की भूख बहुत बढ़ गई है , गेहूं के साथ घुन भी पिस जाते हैं l