11 October 2022

WISDOM ----

   हमारे  धर्म  ग्रंथों  का  एक  मूल  मन्त्र  है ---- ' जो  नम्र  होकर  झुकता  हैं  , वही  ऊपर  उठते  हैं   l '  आज  संसार  में  धर्म , जाति , ऊँच -नीच , अमीर -गरीब   आदि  के  नाम  पर   इतनी  फूट  है  कि  अब  मनुष्यं , मनुष्य  से  ही  डरने  लगा  है  l  आज  जानवर  से  सामना  करना  फिर  भी  सरल  है   किन्तु  मनुष्य  नाम  का  प्राणी  कब  पीठ  में  छुरा  भोंक  दे ,  छल , कपट , षड्यंत्र  कर  के   आपके  अस्तित्व  को  ही  मिटा  दे  ,  कोई  नहीं  जानता  ?  केवल  ईश्वर विश्वास , दैवी  शक्ति  ही  रक्षा  कर  सकती  है l  कलियुग  की  इस  दुर्बुद्धि  के  कारण  रिश्ते  और  प्रेम  ने  अपना  अर्थ  ही  खो  दिया  है  l  कहते  हैं --,एक  तो  करेला  , ऊपर  से  नीम  चढ़ा  l'    एक  तो  कलियुग  का  प्रभाव  ,  उस  पर  से    स्वार्थी  तत्वों  ने  इस   फूट  से   चाहे  परिवार  हो , समाज  हो  या  सम्पूर्ण  संसार  की  बात  हो  ,  कहीं  भी   फायदा  उठाने ,  अपना  स्वार्थ  सिद्ध  करने  में  कोई  कसर  नहीं  छोड़ी  l  प्रकृति  दंड  भी  देती    है  लेकिन  स्वयं  का  सुधार  सबसे  कठिन  कार्य  है  l  आज  जरुरत  है  विनम्रता  की  l   विनम्रता  के  वास्तविक  अर्थ  को  समझाने  वाली  एक  कथा  है -------  एक  बार   बाबा  फरीद  से  मिलने  एक  राजा  आया  l  वह  बड़ा  अहंकारी  था    और  बाबा  के  लिए  उपहार स्वरुप  एक  नायाब  तलवार  लेकर  आया  l  बाबा  फरीद  बोले ---- " राजन  !  मैं  शुक्रगुजार  हूँ  कि  तुम  मेरे  लिए  बेशकीमती  तलवार  लेकर  आए  ,  लेकिन  यह  मेरे  किसी  काम  की  नहीं  l  मुझे  कुछ  देना  ही  चाहते  हो  तो   सुई  के  साथ  विनम्रता  का  उपहार  दो  l  वह  मेरे  लिए  ऐसी  सौ  तलवारों  से  भी  अधिक  कीमती  होगा  l "  बाबा  की  बात  सुनकर  राजा  दंग  रह  गया  और  बोला --- " बाबा  ! सुई  और  विनम्रता   ऐसी  सौ  तलवारों  का  मुकाबला  कैसे  कर  सकती  हैं ? "   बाबा  बोले --- " तलवार  लोगों  को  मारने -काटने  का  काम  करती  है   जबकि  सुई  सिलने  का  काम  करती  है  l  छोटी  सी  सुई  चीजों  को  जोड़ती  है   l  तोड़ना  आसान  है  और  जोड़ना  कठिन  है  l  इसी  तरह  विनम्रता  से  व्यक्ति  उन  सभी  को  जीत  लेता  है  ,  जिन्हें  वह  अहंकारवश  नहीं  जीत  सकता  l  इसलिए  सुई  और  विनम्रता  ज्यादा  कीमती  है  l  "  राजा  को  बाबा  की  बात  समझ  में  आ  गई   , और  बाबा  के  चरणों  में  सिर  रखकर  बोला --- " आज  से  मैं  जोड़ने  का  काम  करूँगा ,   तोड़ने  का  नहीं   और  विनम्रता  से  प्रजा  के  ह्रदय  को  जीतने  का  प्रयास  करूँगा  l  "   विनम्रता   के  पीछे  कोई  छुपा  हुआ  स्वार्थ  या  अवसरवादिता  नहीं  होनी  चाहिए  ,  फिर  वह  विनम्रता  होगी  ही  नहीं  , फिर  वह  ढकोसला  होगा  l   आचार्य श्री  लिखते  हैं --- 'सच्ची  विनम्रता  व्यक्ति  को  संवेदनशील  बनाती  है  ,  जिससे  वह  दूसरों  के  कष्ट -पीड़ा  को  महसूस  करता  है   और  उसे  दूर  करने  के  लिए  वह  सेवा -सहायता  के  कार्यों  में  निरत  होता  है  l "