हमारे धर्म ग्रंथों का एक मूल मन्त्र है ---- ' जो नम्र होकर झुकता हैं , वही ऊपर उठते हैं l ' आज संसार में धर्म , जाति , ऊँच -नीच , अमीर -गरीब आदि के नाम पर इतनी फूट है कि अब मनुष्यं , मनुष्य से ही डरने लगा है l आज जानवर से सामना करना फिर भी सरल है किन्तु मनुष्य नाम का प्राणी कब पीठ में छुरा भोंक दे , छल , कपट , षड्यंत्र कर के आपके अस्तित्व को ही मिटा दे , कोई नहीं जानता ? केवल ईश्वर विश्वास , दैवी शक्ति ही रक्षा कर सकती है l कलियुग की इस दुर्बुद्धि के कारण रिश्ते और प्रेम ने अपना अर्थ ही खो दिया है l कहते हैं --,एक तो करेला , ऊपर से नीम चढ़ा l' एक तो कलियुग का प्रभाव , उस पर से स्वार्थी तत्वों ने इस फूट से चाहे परिवार हो , समाज हो या सम्पूर्ण संसार की बात हो , कहीं भी फायदा उठाने , अपना स्वार्थ सिद्ध करने में कोई कसर नहीं छोड़ी l प्रकृति दंड भी देती है लेकिन स्वयं का सुधार सबसे कठिन कार्य है l आज जरुरत है विनम्रता की l विनम्रता के वास्तविक अर्थ को समझाने वाली एक कथा है ------- एक बार बाबा फरीद से मिलने एक राजा आया l वह बड़ा अहंकारी था और बाबा के लिए उपहार स्वरुप एक नायाब तलवार लेकर आया l बाबा फरीद बोले ---- " राजन ! मैं शुक्रगुजार हूँ कि तुम मेरे लिए बेशकीमती तलवार लेकर आए , लेकिन यह मेरे किसी काम की नहीं l मुझे कुछ देना ही चाहते हो तो सुई के साथ विनम्रता का उपहार दो l वह मेरे लिए ऐसी सौ तलवारों से भी अधिक कीमती होगा l " बाबा की बात सुनकर राजा दंग रह गया और बोला --- " बाबा ! सुई और विनम्रता ऐसी सौ तलवारों का मुकाबला कैसे कर सकती हैं ? " बाबा बोले --- " तलवार लोगों को मारने -काटने का काम करती है जबकि सुई सिलने का काम करती है l छोटी सी सुई चीजों को जोड़ती है l तोड़ना आसान है और जोड़ना कठिन है l इसी तरह विनम्रता से व्यक्ति उन सभी को जीत लेता है , जिन्हें वह अहंकारवश नहीं जीत सकता l इसलिए सुई और विनम्रता ज्यादा कीमती है l " राजा को बाबा की बात समझ में आ गई , और बाबा के चरणों में सिर रखकर बोला --- " आज से मैं जोड़ने का काम करूँगा , तोड़ने का नहीं और विनम्रता से प्रजा के ह्रदय को जीतने का प्रयास करूँगा l " विनम्रता के पीछे कोई छुपा हुआ स्वार्थ या अवसरवादिता नहीं होनी चाहिए , फिर वह विनम्रता होगी ही नहीं , फिर वह ढकोसला होगा l आचार्य श्री लिखते हैं --- 'सच्ची विनम्रता व्यक्ति को संवेदनशील बनाती है , जिससे वह दूसरों के कष्ट -पीड़ा को महसूस करता है और उसे दूर करने के लिए वह सेवा -सहायता के कार्यों में निरत होता है l "