29 March 2020

WISDOM ------- निष्काम सेवा ही असली सेवा है

 महर्षि  वेदव्यास  ने  अपने  अठारह  पुराणों  में  एक  ही  बात  सार  रूप  में  लिखी  है --- परोपकाराय    पुण्याय  पापाय   परपीडनम  l '  अर्थात  परोपकार  करने  से  पुण्य  और  दूसरों  को  सताने  से  पाप  मिलता  है  l   रामचरितमानस  में  भी   गोस्वामीजी  ने  लिखा  है --- ' परहित  सरिस  धर्म  नहीं  भाई  l   पर  पीड़ा  सम  नहिं   अधमाई  l '
  शास्त्रों   में  कहा  गया  है  कि  यदि  सेवा  कर्तव्यपालन   या  आत्मिक  उन्नति  के  लिए  की  जा  रही  है  तो  वह  असली  सेवा  है   और  अगर  किसी  लालच  से  की  जा  रही  है  ,  तो  वह  आडंबरमात्र  है  l
  कल्याण  मासिक  पत्रिका  के  संपादक  श्री  हनुमान प्रसाद  पोद्दार जी   भीषण  ठंड   के  दिनों  में   गीता  वाटिका  ( गोरखपुर )  से  चुपचाप  निकलते  थे  और  ठण्ड  से  सिकुड़  रहे   गरीबों  को  कम्बल - चादर  ओढ़ा  दिया  करते  थे  l   एक  बार  एक  पत्रकार  ने   गरीबों  को  कम्बल  ओढ़ाते  हुए   उनका  फोटो  ले  लिया  ,  तो  पोद्दार जी  ने  बड़ी  विनम्रता  से   उससे  कहा --- " यह  फोटो  अख़बार  में  मत  छापना   ,  न  ही  इसके  बारे  में  किसी  दूसरे  को  बताना ,  नहीं  तो   मैं  पुण्य  की  जगह  पाप  का  भागी  बनूँगा  l  प्रचार  के  उद्देश्य  से  की  गई  सेवा  पुण्य  नहीं , पाप  का  मार्ग  बताई  गई  है  l  "
  हमारे  शास्त्रों  में  लिखा  है  -- निष्काम  सेवा  यही  है  जिसमे  हम  यश - मान - अपमान  से  कोसों  दूर  होते  हैं  l  यदि  इस  सेवा  में  अहंकार  की  गंध  हो  , यश  प्राप्ति  की  कामना  और  किसी  प्रकार  का  लालच  हो   तो  वह  सेवा  ही  नहीं  है  l  
  ईसामसीह   भी  सेवा  करने  की  भावना  को  बहुत  महत्व   देते  थे  l उनके  एक  शिष्य  की  शेखी  बघारने  की  बहुत  आदत  थी  l  एक  दिन  वह  महात्मा  ईसा  के  दर्शन  को  पहुंचा   और  बोला --- " आज  मैं  पांच  गरीबों  को  खाना  खिलाकर  आया  हूँ  l  जब  तक  मैं  किसी  की  सहायता  न  कर  दूँ  ,  मुझे  चैन  नहीं    मिलता  l  "  इस  बात  पर  ईसा  ने  उसे  समझाया --- ' तुम्हारा  आज  का  सेवा - पुण्य  समाप्त  हो  गया  l   जो  दिखावे  के  लिए   किसी  की  सहायता  करता  है  , समझ  लो  कि   वह  नाटक  करता  है  l   इसलिए  किसी  की  सहायता  गुप्त  रूप  से  करनी  चाहिए  l  ' उन्होंने  आगे  कहा --- ' सेवा - सहायता  का  कार्य  तुम्हारा  इतना  गुप्त  हो  कि  तुम्हारे  बांये  हाथ  को  भी  पता  न  चल  सके  कि   दाहिने  हाथ  से  तुमने  दान  किया  है   या  किसी  की  मदद  की  है  l  परमेश्वर  तुम्हारे  गुप्त  कार्यों  को  भी  देखता  है  l  ढिंढोरा  पीटने  से  कोई  लाभ  नहीं  l ' 

WISDOM ------- शक्ति की शोभा दुर्बल पर जोर दिखाने में नहीं , गिरे हुओं को उठाने में होती है ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  पेड़  की  एक  डाल   पर  तोता  और  दूसरी  डाल   पर  बाज  बैठे  थे  l   तोते  को  देखकर  बाज  अकड़कर  बोलै --- "अरे  तोते  ! अच्छा  है  कि   मेरा  पेट  भरा  है  ,  नहीं  तो  क्षण  भर  में   मैं  तेरे  टुकड़े  कर  दूँ  ,  पर  तू  ऐसे  दुस्साहस  के  साथ   मेरे  सामने  खड़ा  है  l "
  तोते  ने  कहा --- " आप  ठीक  कहते  हैं  कि   आप  मुझसे  ज्यादा  शक्तिशाली  हैं  ,  पर  शक्ति  की  शोभा  दुर्बल  पर  जोर  दिखाने   में  नहीं ,  गिरे  हुओं  को  उठाने  में  होती  है  l  भक्षण  तो  कोई  भी  कर  सकता  है  ,  पर  रक्षण  करना  बलवान  का  दायित्व  है  l  "  बात  बाज  की  समझ  में  आई  और  उसकी  समझ  में  परिवर्तन  आ  गया  l