30 August 2023

WISDOM ----

  पं . श्रीराम   शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " बुराई  करने  की  आदत  यदि  हमारे  जीवन  में  शामिल  है   तो  यह  हमारे  व्यक्तित्व  का  नकारात्मक  पहलू  है  , जो  हमारे  विकास  में  हमेशा  बाधक  है  l  इसके  कारण  हम  अपने  लक्ष्य  से  भटक  जाते   हैं   और  संसार  के  दोष  ही  देखते  रहते  हैं  , अच्छाईयों  को  नहीं  देख  पाते  l  दोष  या  बुराइयाँ  देखते  रहने  से  उनमें  ही  रस  मिलने  लगता  है   और  धीरे -धीरे   दूसरों  की  बुराई  करना  स्वभाव  का  स्थायी  हिस्सा  बन  जाता  है  l   बुराई  करने  की  इच्छा  को  निंदा  रस  भी  कहते  हैं  l  यह  आदत   केवल    हम  तक  सीमित  नहीं  रहती  , बल्कि  इसका  प्रभाव  हमसे  जुड़े   अन्य  लोगों  पर  भी  होता  है   और  धीरे -धीरे  सब  लोग   अन्य  लोगों  की  बुराई  करने  की  गतिविधि  में  सम्मिलित  हो  जाते  हैं   l  इस  आदत  की  वजह  से   उनके  चारों  ओर   एक  ऐसा  नकारात्मक  औरा   बन  जाता  है   जिसकी  वजह  से  कोई  भी  सकारात्मक  विचार  व  भाव  उनकी  ओर  आकर्षित  नहीं  होता  l  "    बुराई  करने  की  इस  आदत  का   घातक  प्रभाव  पारिवारिक  संबंधों  पर  पड़ता  है  , घर  में  लड़ाई -झगड़े  होते  हैं , कलह  मची  रहती  है  , घर  की  सुख -शांति  खो  जाती  है  l                         आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- यदि  हम  लंबे  समय  से  दूसरों  की  कमियाँ , बुराई  देख  रहे  हैं  , तो  इस  आदत  को  छोड़ना  इतना  आसान  नहीं  है  ,  लेकिन  हम  इस  बात  के  लिए  सतर्क  रहें   कि  उस यदि  हमें  किसी  व्यक्ति  की  कोई  कमजोरी  या  गलती  दिखाई  देती  है   तो  उसे  कहने  से  पहले  उसकी  एक  अच्छाई  को  प्राथमिकता  दें  , उसके  बाद  उसकी  कमियों  को  उजागर  करें  l  इस  तरह  सुनने  वाला  व्यक्ति   अपनी  अच्छाई  को  देख  सकेगा   और  प्रसन्नता  के  साथ   अपनी  कमियों  को  दूर  करने  के  लिए  सहमत  हो  सकेगा  l  इसके  साथ  यह  भी  जरुरी  है   कि  हम  अपनी  कमियों  को  भी  समझें  और  उन्हें  दूर  करने  का  प्रयास  करें   l  हमें  जीवन   में  अपनी  अच्छाइयों  और  गुणों  को  देखने  की  आदत  डालनी  चाहिए  l  उन  गुणों  को   बढ़ाने  और  उनका  सदुपयोग  करने  से   जीवन  सकारात्मक  दिशा  में  आगे  बढ़ता  है  l  

28 August 2023

WISDOM -----

  श्रीराम  के  एक  ही  शिष्य  हैं ,  हनुमान जी  l  बड़े  से  बड़ा  काम  कर  के  भी   उन्हें  कोई  अहंकार  नहीं  l  परम  समर्थ  और  सतत  राम -नाम  का  जप  l  जब  वे  लंका  जलाकर   अकेले  ही   रावण  का  मान  मर्दन  कर   प्रभु  के  पास  लौटे   और  प्रभु  ने  पूछा   कि  त्रिभुवन  विजयी   रावण  की  लंका  को  तुमने  कैसे  जलाया   हनुमान  !  तब  उन्होंने  कहा --- सो  सब  तव  प्रताप  रघुराई  l  नाथ  न  कछू  मोरि  प्रभुताई  l     श्री  हनुमान जी  व्याकरण  के  पंडित , वेदज्ञ ,  ज्ञान  शिरोमणि, बड़े  विचारशील , तीक्ष्ण  बुद्धि  और  अतुल  पराक्रमी  हैं  , लेकिन  अति  विनम्र  हैं  ,  अहं  उन्हें  छू  भी  नहीं  गया  है  l  सभी  भक्तों  के  वे  आदर्श  हैं  l  श्रीराम  कहते  हैं ----- सुनु  सुत   तोहि   उरिन  मैं  नाहीं  l  देखेउँ  करि  बिचार  मन  माहीं  l  

27 August 2023

WISDOM ----

  संत  तुलसीदास जी  और  कवि  रहीम  ,  दोनों  घनिष्ठ  मित्र  थे  l  दोनों  एक  दूसरे  को  कविता  लिखकर  भेजते  थे   और  कई  बार  इसी  माध्यम  से  वार्तालाप  किया  करते  थे  l  एक  बार  रहीमदास जी  के  मन  में   जिज्ञासा  उठी  कि   गृहस्थी  में  रहकर  भगवान  की  भक्ति  कैसे  की  जा  सकती  है  ?  इसलिए  उन्होंने  एक  दोहा  लिखकर   तुलसीदास जी  को  भेजा  --- चलन  चहत  संसार  की  ,  मिलन  चहत  करतार l  दो  घोड़े  की  सवारी  ,  कैसे  निभे  सवार  l  '  अर्थात    सांसारिक  चलन  में  रहकर   भी  उस  परमात्मा  से  मिलने  का  प्रयास  क्या  दो  घोड़ों  की  सवारी  करने  जैसा  नहीं  है  ,  जिसे  निभाना  सवार  के  लिए   असंभव  सा  है  l      उत्तर  में  तुलसीदास जी  ने  रहीमदास जी   को  लिखकर  भेजा ---- चलन  चहत  संसार  की ,  हरि  पर  राखो  टेक  l   तुलसी  यूँ  निभ  जाएंगे  ,  दो  घोड़े  रथ  एक  l     अर्थात  सांसारिक  कार्यों  को  करते  हुए  भी   द्रष्टि  प्रभु  पर  ही  रखनी  चाहिए  l  ऐसा  करने  पर  जीवन  वैसे  ही  चलेगा  ,  जैसे  दो  घोड़ों  के  होते  हुए  भी   एक  रथ  सहजता  से  चलता  है   l  दूसरे  शब्दों  में  यदि  हमारा  मन   व  मस्तिष्क   सदा  प्रभु  भक्ति  में  लीन  रहे   तो  गृहस्थ   रहते  हुए  भी   हरि भक्ति   संभव  है  l  तुलसीदास जी  का  उत्तर  पाकर  रहीमदास जी  गदगद  हो  उठे  l  

WISDOM -----

   संत  रज्जब  सदा  परवरदिगार  की  प्रार्थना  में  निमग्न  रहते  थे  और  जो  भी  उनके  संपर्क  में  आता  , उसे  भी  अच्छे  पथ  पर  चलने  की  प्रेरणा  देते  l  उनके  गाँव  में  जुबेर  नामक  एक  व्यक्ति  रहता  था  ,  उसे  जुआ  खेलने , शराब  पीने  और  लोगों  को  निरर्थक  परेशान  करने  की  आदत  थी  l  एक  दिन  ज्यादा  शराब  पीकर  वह  नाली  में  गिर  पड़ा  l  उसकी   गन्दी  आदतों    के  कारण  कोई  उसकी  सहायता  के  लिए  आगे  नहीं  आया  l  ऐसे  में  संत  रज्जब  उधर  से  निकले  l  उन्होंने  उसे  उठाया , उसका  मुंह  धुलाया   और  उसके  होश  में  आने  तक   उसकी  देखभाल  की  l  उसके  होश  में  आने  पर  वे  उससे  बोले --- " नौजवान  जिस  मुँह  से  परवरदिगार  को  बुलाते  हैं  ,  उसे  शराब  पीकर  कुत्सित  करना  किसी  गुनाह  से  कम  नहीं  है  l "  संत  रज्जब  की  कही  यह  बात  जुबेर  के  दिल  में  बैठ  गई   और  वह  सदा  के  लिए  नेक  इनसान  बन  गया  l 

24 August 2023

WISDOM -----

  ' क्रोध  एक  ऐसा  विकार  है  ,जो  अकल्पनीय  क्षति  पहुंचा  सकता  है  l '------- श्रेणिक  नामक  एक  राजा  था  l  चेलना  नाम  की  उसकी  रानी  थी  l  एक  बार  दोनों  महावीर  तीर्थंकर  के  दर्शन  कर  लौट  रहे  थे  तो  रानी  ने  देखा  कि  एक  दिगंबर  मुनि  भयंकर  शीत  में  तप  कर  रहे  हैं  l  यात्रा  में  रानी  बेहद  थक  गईं  थी  इसलिए   महल  में  लौटने  पर  उन्हें  गहरी  नींद  आ  गई  l  उनका  एक  हाथ   शीत  के  कारण  बिस्तर  से  नीचे  लटककर  अकड़  गया  l  आँखें  खुली  तो  बहुत  दरद  था  l  जब  सेंक  दिया  जा  रहा  था   तो  रानी  के  मन  में  सहज  ही  उस  मुनि  की  स्मृति  हो  आई  ,  जो  निर्वस्त्र  बैठा   भयावह  शीत  झेलता  तप  कर  रहा  था  ,  वे  बोल  उठीं --- " हे  भगवान  !  उस  बेचारे  का  क्या  हाल  होगा  , जब  मेरा  यह  हाल  हो  गया  है  ! "  राजा  ने  शब्द  सुने , संदेह  जन्मा   कि  रानी  के  मन  में  अवश्य  ही  कोई  परपुरुष  है  l  वे  बाहर  निकले   और  क्रोध  से  पागल  होकर  मंत्री  से  बोले  ---- "  रानी  अंदर  सो  रही  है  , तुम  अंत:पुर  जला  दो  l "  इसके  बाद  मन  शांत  करने  राजा  भगवान  महावीर  के  पास  पहुंचे  l  पहुँचते  ही    भगवान  महावीर  बोले  ---- "  चेलना  पवित्र  है , पतिव्रता  है  l  यह  तुमने  क्या  किया  ! "  तुरंत  राजा   श्रेणिक  वापस  लौटे  l  पूछा --- " महल  जला  दिया  क्या  ? "  मंत्री  ने  कहा ---- " हाँ , आपकी  आज्ञा  थी  l "  राजा  एकदम  शोक  में  डूब  गए  l  मंत्री  ने  कहा --- " राजन  !  दुःखी  न  हों  l मैं  जानता  था  , आपने  निर्णय  आवेश  में  लिया  l  महल  व  रानी  सुरक्षित  हैं   l  मैंने  प्रतीक  रूप  मर  हस्ति शाला  जला  दी  l " राजा  प्रसन्न  भाव  से  रानी  के  पास  पहुंचे  l   फिर  राजा  ने  संकल्प  लिया  कि   कभी  कोई  निर्णय  होश  खोकर ,  क्रोध  में  नहीं  लेंगे  l  

23 August 2023

WISDOM -----

   1 . एक  व्यापारी  घोड़े  पर  नमक  और  एक  गधे  पर  रुई  की  गांठें  लादे  जा  रहा  था  l  रास्ते  में  एक  नदी  मिली  l  पानी  में  घुसते  ही  घोड़े  ने  पानी  में   डुबकी   लगाईं   तो  काफी  नमक  पानी  में  घुल  गया  l  गधे  ने  घोड़े  से  पूछा  --- यह  क्या  कर  रहे  हो  ?  घोड़े  ने  कहा --- वजन  हल्का  कर  रहा  हूँ  l  यह  सुनकर  गधे  ने  भी   दो  डुबकी  लगाईं  ,  पर  उससे  गांठें  भीगकर  इतनी  भारी  हो  गईं  कि  उसे  ढोने  में  गधे  की  जान  आफत  में  पड़  गई  l   आचार्य  जी  कहते  हैं --- कुरीतियों  और  कुप्रचलनों  की   बिना  समझे -बूझे  की  गई  नक़ल   कठिनाइयाँ  बढ़ाती  है  , सुविधा  नहीं  l '  

2 .  एक  परिवार  में  विवाह  का  अवसर  था , बहुत  मेहमान  इकट्ठे  थे  ,  बहुत  मिष्ठान -पकवान  बन  रहे  थे  ,  तब  घर  की  एक  पालतू  बिल्ली  ने  बहुत  उधम  मचाया  l  हर  चीज  में  मुँह  डाल  देती   और  जूठा  कर  देती  l  घर  की  मालकिन  ने  उसे  पकड़कर  नांद  के  नीचे  बंद  कर  दिया  l  फिर  वह  काम  में  लग  गई  l  कई  रोज  काम  में  व्यस्त  रहने  के  कारण   उसे  बिल्ली  को  निकालने  की  बात  याद  न  रही   और  वह  बिल्ली  उसी  में  दबकर  मर  गई  l  बारात  जब  लौटकर  आई  और  बहू  ने  घर  में  प्रवेश  किया  ,  उसी  समय  मालकिन  को  बिल्ली  की  याद  आई  l  उसे  निकाला  गया  , तो  मरी  मिली  l  उसे  फिंकवाया  गया  l  नई  बहू  यह  सब  देख  रही  थी  l  उसने  समझ  लिया  कि   यही  इस  घर  की  परंपरा  है  l  उसके  एक  पुत्र  हुआ  l  पुत्र  के  बड़े  होने  पर  उसका  विवाह  हुआ , बारात  गई   और  नई  बहू  आई  l  उसने  भी  बारात  जाने  से  पहले  एक  बिल्ली  नांद  के  नीचे  बंद  की  ,  वह  बिल्ली  मर  गई   और  जैसे  ही  नई  बहू  ने  घर  में  प्रवेश  किया  ,  उसने   उस  मरी  बिल्ली  को  फिंकवाया  l  जो  उसने  देखा  था  ,  उसे  कुल  परंपरा  समझा  और  उसी  का  पालन  करने  में  अपना  धर्म  और  कल्याण  समझा  l   आजकल  विभिन्न  जातियों  और  धर्मों  में  ऐसी  ही  कई  अंध  परम्पराएँ  फैली  हैं  ,  जिनकी  कोई  उपयोगिता  नहीं  है   लेकिन  बिना  विचारे   उनका  क्रम  चलता  रहता  है  ,  भेड़ों  की  तरह  सब  उनका  अंधानुकरण   करते  चले  जाते  हैं  , उसमें  अपना  समय , ऊर्जा  व  धन  बरबाद   करते  हैं  l  

22 August 2023

WISDOM ------

   1 . हकीम  लुकमान  से  लोगों  ने  पूछा ---" वे  इतने  बुद्धिमान  कैसे  बने  ? " तो  वे  बोले --- "मुझे  बुद्धि  मूर्खों  से  मिली  l " लोगों  ने  पूछा  --- "कैसे ? '  लुकमान  बोले ---- " मैंने  उनके  जीवन  को  बारीकी  से  देखा   और  उनके  जीवन  में  जो  छोड़ने  लायक  लगा ,  उसे  अपने  जीवन  में  भी  छोड़  दिया  l  प्रेरणा  प्राप्त  करने  के  लिए   संसार  के  सभी  मार्ग  उपलब्ध  हैं  l " 

2 .  प्राचीन  समय  में  जब  मनुष्य  के  पास  प्रकाश  नहीं  था   तब  लोगों  ने  अंधकार  को   दूर  करने  के  अनेकों  उपाय   सोचे  किन्तु  कोई  भी  कारगर  नहीं  हुआ  l  किसी  ने  सुझाव  दिया  कि  हमें  अंधकार  को   टोकरी  में  भरकर   गड्ढे  में  डाल  देना  चाहिए  l  लोगों  ने  टोकरी  लेकर  ऐसा  प्रयास  करना  आरम्भ  कर  दिया  l  धीरे -धीरे  इसने  एक  प्रथा  का  रूप  ले  लिया  l  उसी  समय  एक  युवक  का  विवाह  एक  विदुषी  महिला  से  हो  गया  l  प्रथा  के  अनुरूप  उससे  भी  अंधकार  को   फेंकने  का  कार्य  करने  के  लिए  कहा  गया  l  यह  सुनकर  वह  हँसने  लगी  l  उसने  सूखे  पत्तों  को  एकत्र  किया   और  फिर  दो  पत्थरों  को  टकराया   तो  लोग  चकित  होकर  देखते  रह  गए  कि  आग  पैदा  हो  गई  और  अँधेरा  दूर  हो  गया  l  उस  दिन  से  लोगों  ने  अँधेरा  फेंकना  छोड़  दिया  , क्योंकि  वे  आग  जलाना  सीख  गए  थे  l  हम  भी  उन  गाँव  वालों  की  तरह  हैं  ,  जो  पाप , दोष , दुर्गुणों  से  लड़ते  रहते  हैं  ,  जबकि  सद्गुणों  को  अपनाने  पर  ये  अपने  आप  छूट  जाते  हैं  l  आचार्य श्री  लिखते  हैं  --हमें  अपने  जीवन  में  सकारात्मक  होना  चाहिए  l  प्रारम्भ  में   किसी  एक  अवगुण  को  छोड़ें  और  उसके  खाली  स्थान  को  किसी  एक  सद्गुण  से  भरें  l  ऐसा  निरंतर  प्रयास  करते  रहने  से  सन्मार्ग  पर  चलने  की  आदत  हो  जाएगी  और  जीवन  सकारात्मक  दिशा  में  ही  बढ़ेगा  l 

20 August 2023

WISDOM -----

    धर्म  के  नाम  पर  लोग  कितना  लड़ते -झगड़ते  हैं   लेकिन  सत्य   यही  है  कि  जैसे  सूर्य  एक  है  वैसे  ही  ईश्वर  भी  एक  है , हम  अपनी  सुविधा  अनुसार  उसे  अपने -अपने  ढंग  से  पुकारते  हैं l बहुत  सरल  ढंग  से  देखें  तो  एक  हिन्दू  अचानक  दुर्घटना  होने , चोट  लगने  पर  कहेगा 'हाय  राम ',  मुस्लिम  कहेगा  'उई  अल्लाह '   ईसाई  कहेगा  'ओ माय गॉड '  !  पुकारते  सब  उसी  अज्ञात  शक्ति  को  हैं  बस  ! भाषा  अलग  और  नाम  अलग  है  l  सभी  धर्मों  की  मूल  शिक्षा  एक  सी  हैं , सभी  ने  सत्य , अहिंसा , प्रेम , करुणा , दया , ईमानदारी , कर्तव्यपालन   आदि  सद्गुणों  को  अपनाकर  सन्मार्ग  पर  चलने  पर  जोर  दिया  है  l  अपने  ईश्वर  को  पुकारने  के  तरीके  चाहे  हमारे  भिन्न -भिन्न  हों   लेकिन  धर्म  सारे  संसार  के  लिए  एक  ही  हो  ' मानव  धर्म ' --मनुष्य  की  चेतना  विकसित  हो  , वह  सच्चा  इन्सान  बनें  , तभी  संसार  में  सुख -शांति  आएगी  l -------  जापानी  संत  नान -इन  के  पास  एक  कैथोलिक  पादरी  मिलने  गए  l  उन्होंने  उनसे  कहा --- " मेरे  पास  ईसा   के  उपदेशों  की  एक  पुस्तक  है  , यह  मुझे  अत्यंत  प्रिय  है  l  मैं  इसे  आपको  पढ़कर  सुनाना  चाहता  हूँ  l " संत  नान -इन  ने  कहा  --- " अवश्य  , यह  मेरे  ऊपर  अनुग्रह  होगा   l "  यह  सुनकर  पादरी  ने  'दि सरमन  ऑन  दि  माउंट  '  की  कुछ  पंक्तियाँ  पढ़ीं  l  इन्हें  सुनकर  नान -इन  भावविभोर  हो  गए  l  उनकी  आँखों  से  आँसू  बह  निकले   और  वह  ध्यानस्थ  हो  गए  l  ध्यान  टूटने  पर  उन्होंने  कहा --- " ये  तो  बुद्ध  के  वचन  हैं , इन्हें  सुनकर  मैं  धन्य  हो  गया  l " यह  सुनकर  पादरी  बोले  ---"  लेकिन  ये  तो  ईसा  के  वचन  हैं   l "  इस  पर  नान -इन  ने  कहा --- "  तुम  जो  भी  नाम  दो  , पर  मैं  कहता  हूँ  , जहाँ  ज्ञान  और  प्रेम  अपने  शिखर  पर  होते  हैं ,  मानव  चेतना  का  शिखर  होता  है  , वहां  सब  एक  हैं ,  फिर  उनका  स्वरुप  कोई  भी  क्यों  न  हो  l "

19 August 2023

WISDOM -----

     छत्रपति  शिवाजी  अपने  गुरु   समर्थ  गुरु  रामदास    को  आनंद  में  निमग्न  देखा  तो  उनका  मन  हुआ  कि  राज्य , शासन  और  अन्य  परेशान  करने  वाले  दायित्वों  से  छुटकारा  पा  लिया  जाए  l  इसलिए  जब  एक  दिन  समर्थ  गुरु  का  आगमन  हुआ   तो  शिवाजी  ने  उनसे  कहा --- " गुरुदेव  ! मैं  राज्य  के  इन  झंझटों  से  परेशान  हो  गया  हूँ  l  नित्य  प्रति  नई  उलझनें  , इसलिए  मैं  संन्यास  लेने  की  सोच  रहा  हूँ  l "  गुरुदेव  बोले  --- " हाँ , ठीक  है  l संन्यास  ले  लो  , इससे  अच्छा  और  क्या  हो  सकता  है  l  "  शिवाजी  प्रसन्न  हो  गए   और  बोले  --- "  आप  कोई  ऐसा  व्यक्ति  बताइए  , जिसे  मैं  राज्य  सौंप  सकूँ  l "  समर्थ  बोले --- " मुझे  राज्य  दे  दे  और  निश्चिन्त  होकर  वन  में  चला  जा  ! "  शिवाजी  ने  हाथ  में  जल  लेकर   राज्य  दान  का  संकल्प  कर  लिया   और  वन  को  जाने  लगे  l  उन्होंने  दैनिक  दिनचर्या  के  कुछ  सामान  ले  जाना  चाहा   तो  समर्थ  बोले ---- " तुम  राज्य  दान  कर  चुके  हो  ,  तुम्हारा  उस  पर  कोई  अधिकार  नहीं  l  तब  शिवाजी  खाली  हाथ  ही  जाने  लगे   तो  समर्थ  बोले ---- "  दिनचर्या  के  लिए  साधनों  की  आवश्यकता  पड़ेगी  ,  वो  कहाँ  से  लाओगे  ? " शिवाजी  ने  उत्तर  दिया ---- " कहीं  नौकरी  कर  लूँगा  ,  उन्ही  पैसों  से  व्यवस्था  बना  लूँगा  l "  समर्थ  ने  हँसते  हुए  कहा --- "  राज्य  तो  तुम  मुझे  दे  ही  चुके  हो ,  अब  तुम्हे  नौकरी  करनी  है  तो  मेरे  सेवक  बनकर   इस  राज्य  का  सञ्चालन  करो  l  यह  राज -काज  ही  तुम्हारी  नौकरी  है  l "  इसके  उपरांत  छत्रपति  शिवाजी  को  राज्य  करने  में  कभी  कोई  तनाव   अनुभव  नहीं  हुआ  l  सत्य  यही  है  कि  मनुष्य  कार्य  करने  से  नहीं ,  वरन  उसे  बोझ  समझकर   करने  से  तनावग्रस्त  होता  है  ,  कार्य  को  प्रसन्नतापूर्वक  , दायित्व  रूप  में   करने  से  मन  निष्कलुष  और  तनावमुक्त  रहता  है  l  

17 August 2023

WISDOM ----

  तनाव  कहीं  बाहर  से  नहीं  आता  , यह  हमारी  अपनी  ही  कमजोरियों  से  उपजता  है  l  नाम , पद , यश , सम्मान  पाने  की  इच्छा  ही  हमें  तनाव  देती  है  l  यदि  हम  अपने  मन  में   इस  सत्य  को  बैठा  लें   कि  ' देने  वाला  ईश्वर  है  , वह  जो  दे  वह  अच्छा  है  , और  जो  न  दे  उसमें  कहीं  न  कहीं  हमारी  ही  कोई  भलाई  छुपी  है    हमने  अपना  कर्तव्य  किया  , आगे  ईश्वर  की  मर्जी  '     तो  हमें  कभी  कोई  तनाव  नहीं  होगा  l  सुख -चैन  की  नींद  आना  ईश्वर  की  बहुत  बड़ी  देन   है  l  ----एक  बार  गाँधी जी  का  एक  परिचित  धनाढ्य  व्यक्ति  गांधी जी  से  मिलने  पहुंचा  l  उसने  कहा  --- " गांधी जी  !  आप  तो  जानते  हैं  कि  मैंने  लाखों  रूपये  खरच  कर  के  धर्मशाला  का  निर्माण  कराया  था  l  अब  गुटबाजों  ने  मुझे  ही  प्रबंध  समिति  से  हटा  दिया  l  ऐसे  लोग  समिति  में  आ  गए  हैं  , जिनका  धन  की  द्रष्टि  से  योगदान   नगण्य  ही  है  l  इस  संबंध  में  क्या  न्यायालय में  मामला  दर्ज  कराना  उचित  नहीं  होगा  ? "   गांधी जी  ने  कहा --- "  तुमने  धर्मशाला  धर्मार्थ  बनाई  थी   या  उसे  व्यक्तिगत  संपत्ति  बनाए  रखने  के  लोभ  में  ?  असली  धर्म  तो  वह  होता  है  ,  जो  बिना  लाभ  की  इच्छा  के  किया  गया  हो  l  तुम  अभी  तक  नाम  व  प्रसिद्धि  का  लालच  नहीं  त्याग  पाए  हो  , इसलिए  तुम  धर्मशाला  में  प्रबंध  समिति  के  पद  से   हटाए  जाने  से  दुःखी  हो   l  मेरी  बात  मानो   तो  तुम  धर्मशाला   की  प्रबंध  समिति  में  पद   और  नाम  की  प्रसिद्धि   के  मोह  को  त्याग  दो  l  इससे  तुम्हारे  मन  को  शांति  प्राप्त  होगी  l "  यह  सुनकर  उस  व्यक्ति  ने  संकल्प   किया  कि  अब  वह  पद   अथवा  नाम  के  लोभ  में  कभी  नहीं  पड़ेगा   l  

15 August 2023

WISDOM ------

 पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----" यदि  हम  समस्या  को  सुलझाना  चाहते  हैं  , उस  पर  विजय  पाना  चाहते  हैं   तो  हमें  अपनी  प्रतिक्रिया  को  नियंत्रित  करना  होगा  l  समस्या  के  कारणों   को  जाने -समझे  बिना   तुरंत  रिऐक्ट  करने  से  समस्या  और  भी  जटिल  हो  जाती  है  l  यदि  हमें  समस्या  को  सुलझाना  है  , उससे  बाहर  निकलना  है   तो  हमें  अपना  ध्यान   उसके  समाधान  पर  केन्द्रित  करना  होगा  l  "------- एक  बार  महात्मा  बुद्ध   अपने  शिष्यों  के  साथ  यात्रा  कर  रहे  थे  l  एक  झील  देखकर  उन्होंने  अपने  दोनों  शिष्यों  से  कहा ----" मुझे  प्यास  लग  रही  है  , झील  से  पानी  ले  आओ  l "  तभी  एक  बैलगाड़ी  झील  में   उतरकर    उस  पार  जाने  लगी  l  इससे  पानी  मटमैला  हो  गया  l  एक  शिष्य  तुरंत  लौट  आया   और  बुद्ध  से  बोला --- " पानी  गन्दा  है  , आपके  पीने  लायक  नहीं  है  l "  जबकि  दूसरा  शिष्य   चुपचाप  वहीँ  झील  के  किनारे  ही  बैठ  गया  l  कुछ  समय  बाद  वह  साफ़  पानी  लेकर  बुद्ध  के  पास  पहुंचा  ,  तो  वे  बोले ---- "तुमने  पानी  को  साफ़  करने  के  लिए  क्या  किया  ? "  दूसरे  शिष्य  ने  कहा --- " कुछ  नहीं , सिर्फ  समय  दिया  , मिटटी  अपने  आप  जम  गई   और  मुझे  साफ़  पानी  मिल  गया  l "  आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- इस  घटना क्रम  में  दोनों  शिष्यों  के  पास  समान  समस्या  थी   किन्तु  पहले  शिष्य  का  ध्यान  सिर्फ  समस्या  पर  था  इसलिए  वह  पानी  लाने  में  असफल  रहा  l  जबकि  दूसरे  शिष्य  का  ध्यान  समस्या  के  कारण  और  उसके  समाधान  पर  थ  , इसलिए  वह  सफल  रहा  l  आचार्य श्री  लिखते  हैं --- इस  सूत्र  को  अपनाकर  जीवन  में  आने  वाली  किसी  भी  मुश्किल  समस्या  को  हम  सहजता  से  हल  कर  सकते  हैं  l  जीवन  की  हलचल  को  शांत  होने  के  लिए  कुछ  वक्त  देना  जरुरी  है  l  जिस  तरह  गंदे  पानी  को  स्वच्छ  बनाने  के  लिए   उसमे  मिली  मिटटी  के  नीचे  बैठने  का  इंतजार  करना  होता  है  ,  उसी  प्रकार  जीवन  की  हलचलों  को  शांत  करने  के  लिए   कुछ  वक्त  देना  भी  जरुरी  होता  है  l " 

13 August 2023

WISDOM ----

   पं .श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- "भौतिक  प्रगति  के  नाम  पर  मनुष्य  ने  सुविधाओं  के  अंबार  खड़े  कर  लिए  किन्तु  फिर  भी  वह  अपने  जीवन  में  सुखी  व  संतुष्ट  दिखाई  नहीं  पड़ता  l  मनुष्य  अब  पहले  की  अपेक्षा  और  दुःखी , परेशान , निराश , अशांत  व  असंतुष्ट  नजर  आता  है  l  मनुष्य  के  शारीरिक  और  मानसिक  रोग  भी  उसी  अनुपात  में  बढ़े  हैं  l  इसका  एक  कारण  मनुष्य  के  अंतर्मन  की  भाव शून्यता  और  संवेदनहीनता  है  , जो  समय  के  साथ  निरंतर  बढ़  रही  है  l  भौतिकता  की  चकाचौंध  में  पड़कर  मनुष्य  ने  जीवन  मूल्यों  को   नकारा  है  l  स्वार्थ , अहंकार , ईर्ष्या , द्वेष  आदि  में  पड़कर  व्यक्तिगत  हित  को  ही  सब  कुछ  मान  लिया  l "  आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं ---- " मनुष्य  एक  सामाजिक  प्राणी  है  l  वह  उसी  अनुपात  में   सुखी  हो  सकता  है  , जिस  अनुपात  में  उसका  समाज  सुखी  है  l  वह  समाज  की  उपेक्षा  कर  अपने  लिए  सुख  के  साधन  तो  इकट्ठे  कर  सकता  है  ,  किन्तु  जीवन  में  सुखी  नहीं  बन  सकता  l  आज  समाज  में  जो  भी  आतंकवाद , दंगे , खून -खराबे  बढ़  रहे  हैं   , वे  सब  संवेदनहीनता  के  कारण  ही  उपजे  हैं   l  यह  सब  तभी  समाप्त  हो  सकता  है  जब  व्यक्ति  के  अंदर  संवेदना  जगे   और  वह  प्राणिमात्र  के  कल्याण  की  बात  सोचे  l "    एक  प्रसंग  है   जो  यह  बताता  है  कि   ह्रदय  में  संवेदना  जागने  से  हिंसा  कैसे  समाप्त  हो  जाती   है  -------   कौशाम्बी  के  राजगृह  में  कारू कसूरी  नामक  कसाई  रहता  था  l  वह  पशुओं  का  मांस  बेचकर   अपनी  जीविका  चलाता  था  l  राजगृह  में  बौद्ध  संत  आते  रहते  थे  l  अपने  पुत्र  सुलस  के  साथ  वह  कभी -कभी  उनके  दर्शन  के  लिए  चला  जाता  था  l  संत  किसी  भी  प्रकार  की  हिंसा  न  करने  की  प्रेरणा  दिया  करते  थे  l  कारू कसूरी  कहता --- मैं  अपने  पुरखों  के  धंधे  को  कैसे  छोड़  दूँ  ? यदि  मैं  हिंसा  न  करूँ  तो  खाऊंगा  क्या  ?   जब  कारू  कसाई  वृद्ध  हो  गया  , तो  उसने  तलवार  अपने  बेटे  सुलस  को  सौंप  दी  l  कसाइयों  की  पंचायत  में  सुलस  से  कहा  गया  कि   वह  कुलदेवी  की  प्रतिमा  के  समक्ष   भैंसे  की  बलि  दो  l  सुलास  का  ह्रदय   पशुओं  के  वध  के  समय  उनकी  छटपटाहट  देखकर  द्रवित  हो  उठता  था  l  अत:  उससे  तलवार  नहीं  उठी  l  मुखिया  ने  दोबारा  उससे  कहा --- " बेटे  !  यह  हमारे  कुल  की  परंपरा  है  l  देवी   को  प्रसन्न  करने  के  लिए  रक्त  निकालना  पड़ता  है  l  सुलस  ने  भैंसे  की  जगह  अपने  पैर  पर  तलवार  से  वार  कर  दिया  l  पैर  से  खून  बहने  लगा  l  ऐसा  करने  का  कारण  पूछने  पर   सुलस  बोला  --- " यदि  कुलदेवी  को  रक्त  की  ही  चाहत  है   तो  किसी  निर्दोष  का  खून  बहाने  से  बेहतर  है  कि   वे  मेरा  ही  रक्त  स्वीकार  कर  लें  l "  उसका  उत्तर  सुनकर  कारू  कसाई  का  ह्रदय  द्रवित  हो  उठा  और  उस  दिन  के  बाद  से   उसके  परिवार  में  पशु  वध  बंद  कर  दिया  गया  l  

12 August 2023

WISDOM

  लघु कथा ----एक  बार  की  बात  है  घनघोर  पानी  बरस  रहा  था  l  दूर -दूर  तक  जल  ही  नजर  आता  था  l  ऊपर  उड़ती  हुई  दो  बतखों  की  द्रष्टि  एक  कछुए  पर  पड़ी  ,  जो  एक  पेड़  की  टहनी  मुँह  से  पकड़े   किसी  तरह  स्वयं  को  प्रकृति  के  प्रहार  से  बचाने  में  लगा  था  l  बतखों  को  कछुए  पर  दया  आ  गई  ,  वे  उसके  पास  जाकर  बोलीं ---" आओ  कछुए  भाई  !  तुम  टहनी  पकड़े  रहो   और  हम  तुम्हे  उड़ाकर   सूखी  जमीन  तक  पहुंचा  देते  हैं  l  बस , किसी  भी  स्थिति  में  अपना  मुँह  न  खोलना  l '  कछुए  ने  सीख  को  समझे  बिना   हाँ  कर  दी  l  दोनों  बतखों  ने  टहनी  के  सिरे   पकड़े ,  कछुआ   टहनी  को  बीच  से  पकड़े  था  , बतखें  उड़  चलीं   और  पलक  झपकते  ही  दूर   आसमान  में  जा  पहुँची  l  नीचे  जमीन    पर  खड़े  बच्चों  ने   यह  अचरज  भरा   द्रश्य  तो  जोर -जोर  से  हँसने  लगे  l   बच्चों  को  हँसते  देख   कछुआ  क्रोध  से  भर  गया   और  पलटकर  चिल्लाने  लगा  l  मुँह  खोलते  ही  टहनी  से  उसकी  पकड़   छूट  गई  और  वह  धड़ाम  से  जमीन  पर  आ  गिरा  l  इस  कथा  से  शिक्षा  है  कि  हमें  मौन  रहने  का  अभ्यास  करना  चाहिए  l  अविवेक  के  कारण  व्यक्ति  असमय  मुंह  खोलता  है  ,  ऐसी  मूढ़ता  का  परिणाम     विनाशकारी  होता  है  l  

WISDOM ----

   सच्चा  अध्यात्मवादी   कौन  ? ---  एक  व्यक्ति  बहुत  गरीब  था  l  उसने  कड़ी  मेहनत  और  पुरुषार्थ  के  बल  पर   धीरे -धीरे  काफी  संपत्ति  अर्जित  कर  ली   और  अपने  गाँव  का  सबसे  अमीर  व्यक्ति  बन  गया   लेकिन  उसे  अपनी  अमीरी  का  बिलकुल  भी  घमंड  नहीं  था  l  उसका  पुत्र  जब  बड़ा  हो  गया  तो  उसने   अपने  घर  की  सारी  जिम्मेदारी  उसे  सौंप  दी  और  स्वयं  अपने  घर  से   कुछ  दूर  जंगल  में  कुटिया  बनाकर  रहने  लगा  , वहीँ  ध्यान  व  भजन  करता  और   जब -तब  घर  जाकर  अपने  पुत्र  का  मार्गदर्शन  भी  करता  l  एक  दिन  देवर्षि  नारद  उस  जंगल  से    गुजरे  l  उस  व्यक्ति  को  वहां  देख  रुक  गए  l  उस  व्यक्ति  ने  नारद जी  को  अपने  परिवार  और  धन -वैभव  के  साथ  अपनी  आध्यात्मिक  रूचि   और  तपस्या   के  बारे  में  विस्तार  से  बताया  l  नारद जी  ने  उसकी  परीक्षा  लेने  की  सोची  , कुछ  दिन  बाद  वह  पुन:  जंगल  में  आए  तो  देखा  वह   व्यक्ति  ध्यान  कर  रहा  है  l  कुछ  देर  बाद  जब  वह  ध्यान  से  बाहर  आया   तो  नारदजी  ने  उससे  कहा  -- आपके  मकान  में  भयंकर  आग  लग  गई  है  , कुछ  ही  क्षणों  में  आपका  धन -वैभव  जल  कर  राख  हो  जायेगा  l  यह  सुनकर  वह  व्यक्ति  जरा  भी  परेशान  नहीं  हुआ   और  बोला  --- 'वह  धन -वैभव  प्रभु  का  दिया  हुआ  है  , जैसी  प्रभु  की  इच्छा  l  वैसे  भी  घर  में  बहुत  लोग  हैं  जो  विपत्ति  का  सामना  कर  सकते  हैं  l '  नारदजी  प्रसन्न  होकर  चले  गए  l  कुछ  दिनों  बाद  वे  पुन:  उस  व्यक्ति  को  देखने  आए  , तो  देखा  कुटिया  खाली  है , वह  व्यक्ति  वहां  नहीं  है  l  नारदजी  को  उस  व्यक्ति  पर  शक  हुआ  और  वे  उसे  खोजते  हुए  उसके  गाँव  पहुंचे   तो  देखा  , उन  दिनों  उस  क्षेत्र  में  भयंकर  अकाल  पड़ा  था   और  वह  व्यक्ति  अपनी  तपस्या , ध्यान  छोड़कर  लोगों  को   अपने  हाथ  से  राशन -पानी , धन , भोजन  सामग्री  बांटने  में  लगा  है  l  कोई  भी  खाली  हाथ  नहीं  जा  रहा , सब  प्रसन्न  होकर  जा  रहे  हैं  l  नारद जी  उसके  सेवा भाव  से  बहुत  प्रसन्न  हुए  और  बोले  --- " तुम्हारी  तपस्या  हर  द्रष्टि  से  उत्तम  है , तुमने  अध्यात्म  को  सही  अर्थों  में  अपनाया  है  l  तुम्हारे  भीतर  मानव कल्याण  की  भावना  है  l  तुम में  न  तो  धन -वैभव  का  अभिमान  है  और  न  ही  अपनी  तपस्या  का  अभिमान  है  l  तुम्हारे  लिए  वन  और  राजमहल  दोनों  एक  समान  हैं  , तुम  सच्चे  अध्यात्मवादी  हो  l "  नारदजी  ने  उसे  आशीर्वाद  दिया   और  उससे  विदा  ली  l 

9 August 2023

WISDOM ----

   एक  दरिद्र  मनुष्य  सुन्दर  राजकन्या  पर  मुग्ध  हो  गया   और  उसे  पाने  के  लिए  पुरुषार्थ  करने  लगा  l  असंभव  लक्ष्य , किन्तु  संकाल्प  दृढ  l  अंत  में  सोचा  साधु  होकर  तपस्या  करूँगा  , उससे  जो  आत्मबल  अर्जित  होगा  , उससे  राजकन्य  प्राप्त  हो  जाएगी  l  इस  प्रकार  संसार  त्यागकर  उग्र  तपस्या  करने  लगा  l  सारे  राज्य  में  उसकी  ख्याति  बढी  l  धनी , दरिद्र  सभी  उसके   दर्शनों  के  लिए  आने  लगे  l  एक  दिन  वह  राजकन्य  स्वयं  उस  तपस्वी  के  दर्शन  के  लिए  आई  l  उसे  अपने  सामने  देखकर  तपस्वी  के  ह्रदय  के  चक्षु  खुल  गए  l  उसने  सोचा  , जिस  प्रभु  के  प्रति  श्रद्धावश  यह  मेरे  दर्शनार्थ   आई  है  , उस  प्रभु  को  मैं  छोड़  दूँ  , तो  मेरी  क्या  गति  होगी  ?  तपस्वी  ने  वास्तविकता  को  समझा   और  अपनी  शक्ति  को  शाश्वत  सौन्दर्य  परमात्मशक्ति   को  पाने  हेतु  नियोजित  कर  दिया  l 

7 August 2023

WISDOM -----

     कलियुग  के  अनेक  लक्षण  हैं  , उनमें  से  एक  यह  भी  है  कि  इस  समय  में  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  बढ़  जाने  से   मनुष्य  भगवान  को  पूजता  नहीं  है  ,  भगवान  के  नाम  पर   लड़ता  है , विवाद  और  दंगा  करता  है  l  अधिकांश  इसी  को   अपनी  रोजी -रोटी  कमाने  का  साधन  बना  लेते  हैं   l   यदि  धर्म  और  जाति  के  नाम  पर  होने  वाले  झगड़े   क्या  वास्तव  में  इसी  आधार  पर  हैं  ?  तो  घरेलू  हिंसा , परिवार  में  धन , संपत्ति  के  विवाद , परिवार  में  ही  वर्चस्व  के  लिए  लड़ाई , सदस्यों  का  शोषण , उत्पीड़न , कार्य स्थल  पर  उत्पीड़न ---  यह  तो  समान  धर्म  के  लोग  ही  आपस  में  एक  दूसरे  को  सताते  हैं  l  इसलिए  इस  लड़ाई  में   ईश्वर  को  बीच  में  लाकर   प्रकृति  को  नाराज  नहीं  करना  चाहिए  l  पुराणों  में  अनेक  कथाएं  हैं  जिनमें  बताया  गया  है  कि  ईश्वर  का  निवास  हम  सब  के  ह्रदय  में  है ,  गीता  में  भी  यही  कहा  गया  है  l  लड़ाई -झगडे  में  अपनी  इतनी   ऊर्जा  और  जीवन  का  बहुमूल्य  समय   गंवाना  मूर्खता  है  l  ---- पुराण    में  एक  कथा  है  -- दो  महा पराक्रमी  और  अजेय  राक्षस  थे --- हिरण्याक्ष  और  हिरण्यकशिपु   l  देवासुर  संग्राम  में   हिरण्याक्ष  की  मृत्यु  हो  गई   तो  भाई  की  मृत्यु  का  बदला  लेने  के  लिए   हिरण्यकशिपु   गदा  लेकर  भगवान  से  लड़ने  के  लिए  निकल  पड़ा  l   जैसे  ही  युद्ध  आरम्भ  हुआ  भगवान  अंतर्धान  हो  गए  l  उनको  ढूंढते  हुए   उसकी  भेंट  नारद जी  से  हुई  l  नारद जी  ने  उससे  पूछा  कि  युद्ध  में  किसकी  विजय  हुई   ?  हिरण्यकशिपु   बोला --- ' लड़ते -लड़ते  वह   न  जाने  कहाँ  छुप  गया  , मैं  उसे  देख  नहीं  सका  l "  नारद जी  ने  जाकर  भगवान   से  पूछा --- " आप  कहाँ  छिप  गए  , जिससे  हिरण्यकशिपु   आपको  देख  नहीं  सका  l  l " भगवान  ने  कहा --- " मैं  सब  भूतों  में  अपने  रहने  के  स्थान   उसकी  ह्रदय गुहा  में  जा  बैठा  था  ,  जहाँ  बैठकर  अपनी  माया  द्वारा   प्राणियों  को   उनके  कर्मानुसार   संसार चक्र  में  घुमाता  हूँ  l "

4 August 2023

WISDOM ------

  मध्यकाल  की  बात  है  l  समाज  में  अनेक  कुरीतियाँ  पनप  रहीं  थीं   और  मानवता  का  पतन  अपनी  चरम  सीमा  पर  था  l  राजतन्त्र  भ्रष्टाचारियों  के  हाथ  की  कठपुतली  बन  गया  था  l  ऐसे  में  एक  संत  ने   समाज -सुधार  का  कार्य  आरम्भ  किया  l  कुछ  लोग  साथ  चले  और  कुछ  विरोधी  भी  हो  गए  l  संत  के  आचरण  के  संबंध  में  अनर्गल  बातों  का  प्रचार  करने  लगे  l  संत  के  शिष्य  को  यह  अच्छा  नहीं  लगा   l  वह  उनसे  बोला ---- "गुरुदेव  !  आप  तो  भगवान  के  समीप  हैं  ,  उनसे  कहकर  यह  दुष्प्रचार  बंद  क्यों  नहीं  करा  देते  l  "  संत  मुस्कराए  और  शिष्य  के  हाथ  में  एक  हीरा  देकर  बोले  --- " जा  बेटा  !सब्जी  मंडी  और  जौहरी  बाजार  में   इसका  दाम  पूछकर  आ  l  "  शिष्य  को  अजीब  तो  लगा  लेकिन  गुरु  का  आदेश  था  l   कुछ  समय  बाद   शिष्य  लौटा   और  बोला  --- "  सब्जीमंडी  में  तो   इसका  ज्यादा  से  ज्यादा  पचास  रूपये  का  दाम  लगा  ,  पर  जौहरी  इसकी  कीमत  हजारों  में  आँक  रहा  था  l  "  संत  बोले  ----- "  बेटा  !  अच्छे  कर्म   भी  इसी  हीरे  की  तरह  हैं  , जिसकी  कीमत  केवल  परमात्मा  रूपी  पारखी  ही   जानता  है  l  कुछ  नासमझों  के  विरोध  से   यदि  हम  उदेश्य  से  विमुख  हो  गए  ,  तो  हम में  और  उनमें  क्या  अंतर  रह  जायेगा  l "  शिष्य  भी  इस  सत्य  को  जान  गया  कि  ईश्वर  हम  सबके  कर्म  और  उस  कर्म  के  पीछे  छुपी  भावनाओं  को   जानते  है  l   अब  शिष्य  भी   समर्पण  के  साथ   समाज  सुधार  के  कार्यों  में  जुट  गया  l