29 June 2020

WISDOM ----

 सिकन्दर   का  सपना  था  विश्व विजय  करने  का  l  शासक  बनते  ही  उसने  विश्व विजय  के  सपने  को  साकार  करना  आरम्भ  किया   l   स्वयं  को  विश्व विजेता  सिद्ध  करने  के  लिए   उसने  हजारों  आदमियों  का  रक्त  बहाया ,  कितनी  ही  माँगों   का  सिंदूर  पोंछ  दिया  ,  कितनी  माताओं  की  गोद   सूनी  कर  दी    और  कितने  बच्चों  को  अनाथ  कर  दिया   l
सिकन्दर   केवल  33  वर्ष  जिया   और  उसने  केवल  13  वर्ष  राज्य  किया   l   विश्व - विजय  करने  का  पागलपन   मस्तिष्क   में   बिठाये   स्वयं  भी  चैन  से  नहीं  बैठा   और  न  ही  अपने  सैनिकों  को  और  दूसरे  राजाओं  को  चैन  से  बैठने  दिया  l  अनावश्यक  रूप  से  उसने  सारे  संसार  की  शांति   भंग    कर  दी   l   सुख  और  चैन  से  रहती  जनता  में   भय , रोष  और  शंका  की   वृत्तियाँ  जगा  दीं  l
  ' केवल  स्वार्थ  और  मिथ्याभिमान  से  प्रेरित  होकर   किया  गया  काम  कितना  ही  बड़ा  क्यों  न  हो   न  तो  वह  उस  व्यक्ति  को  ही  सुखी  और  संतुष्ट  कर  सकता  है   और  न  ही  मानव  समाज  को  कुछ  दे  सकता  है   l   सिकंदर  का  जीवन  इस  सत्य  को  सिद्ध  करता  है  ,  सिखाता  है   कि  बड़े  आदमी  बनने  की  अपेक्षा   महान  कार्य  करने  की   कामना  हजार  गुनी  श्रेष्ठ  है   l '
  

WISDOM ----- अहंकार आसुरी प्रवृति है

  पं. श्रीराम  शर्मा   आचार्य जी  ने  वाङ्मय ' मरकर  भी  अमर  हो  गए  जो  '    में  लिखा  है  ----  ' अहंकार  सारी   अच्छाइयों  के  द्वार  बंद  कर  देता  है  l '   अहंकार  के  मद  में  लोग  इतने  मत्त   हो  जाते  हैं  कि ,  इस  बात  पर  विचार  ही  नहीं  करते   कि   उनके  अहंकार  के  नीचे  दबकर   कितने  निरपराध  तथा  असहाय  लोगों  का  बलिदान  हो  रहा  है  ?  यदि  धन  है   तो  उसके  बल  पर  लोगों  को  खरीदकर   अपना  अधीनस्थ  बनाने  में   बड़प्पन  अनुभव  किया  करते  हैं  l   दूसरों  की  उन्नति  तथा  प्रगति   देखकर  जल  उठना   वे  मनुष्य  का  सहज  स्वभाव   मानते  हैं   और  दूसरों  के  विकास  में  बाधा  डालना   वे  अर्थ  अथवा   राजनीति   माना  करते  हैं   l   अपने  दम्भ  की  तुष्टि  में   बड़ी  से  बड़ी  सामाजिक , राष्ट्रीय   अथवा  मानवीय  हानि   कर  डालने  में   किंचित  संकोच  नहीं  करते  l   अपनी  इस  दुर्बलता  पर   जरा  सा  आघात  पाकर   सर्प  की  तरह  कुपित  होकर   अपना  अथवा  पराया   अनिष्ट  कर  डालने  पर  तत्पर  हो  उठते  हैं  l
  मनुष्य  की  यह  अमानवीय  प्रवृति   पाप  के  अंतर्गत  आती  है  ,  जो  इस  लोक  में  तो  शांति , संतोष , शीतलता , निर्भयता   का  सुख  अनुभव   नहीं  करने  देती  ,  और  परलोक  में  भी  सद्गति  से   वंचित  कर  देती  है  l  प्रकृति  में  क्षमा  का  प्रावधान  नहीं  होता  अत:  देर - सबेर   उसका  दंड  मिलना  निश्चित  है  l '
    आचार्य श्री  ने  लिखा  है --- मानव  जीवन  एक  अलभ्य  अवसर  है   l  संसार  की  सुख - शांति   तथा  सुंदरता  बढ़ाने  के  लिए   ही  परमात्मा   ने  यह  मानव - जीवन  प्रदान  किया  है  l   इस  मंतव्य  में  ही  इसको  लगाए  रखना   जीवन  की  सुरक्षा  तथा  सम्मान  करना  है  l 

28 June 2020

WISDOM ------

   '  जो  ईश्वर  से  भय  खाता   है  उसे  दूसरा  भय  नहीं  सताता  है  l '
 ' भय ' का  यदि  विश्लेषण  करे   तो  उसका  एक  रूप  यह  है  कि   विभिन्न  कारणों  से  व्यक्ति  भयभीत  हो  जाता  है   जैसे  --- बच्चों  के  अनेक  खेल - खिलौने   ऐसे  होते  हैं  ,  जिनसे  वे  बहुत   डर   जाते  हैं ,  उनका  मन  बचपन  से  ही  बहुत  कमजोर  हो  जाता  है  l
जब  बड़े   हो  जाते  हैं   तो  डर   के  भिन्न  कारण  होते  हैं  जैसे  कोई   ऊंचाई  से  डरता  है ,  कोई  नदी , समुद्र  के  पास  जाने  से , डूबने  से  डरता  है ,  कोई भूत  - प्रेत  से  डरता  है  ,  कोई  डरावने  दृश्य  देखकर  डरता  है  l   इस  प्रकार  के  डर   जीवन  में  बने  रहते  हैं ,  उनसे   व्यक्ति  के   रोजगार ,  सामाजिक  जीवन  और  समाज  पर  कोई  प्रभाव  नहीं  पड़ता  ,  यह  व्यक्ति  की  निजी  कमजोरी  है  l
 ' भय ' का  सबसे  घृणित  पहलू   है  --- अपने  स्वार्थ  के  लिए   दूसरे  पर  छाये  रहने  की   भावना  से   अपने  अधीनस्थ  लोगों  का  शोषण  करना  ,  उनको  अपनी  इच्छानुसार  चलने  को  विवश  करना  l   इस  प्रकार  के  भय  का  क्षेत्र  जितना  व्यापक  होगा  ,  वह  उतना  ही  समाज  व  राष्ट्र  को  पतन  की  ओर   ले  जायेगा  l   इस  प्रकार  का  भय  व्यक्ति  का  गुण   नहीं  है ,  इसे  जबरन  पैदा  किया  जाता  है   जैसे  कोई  शक्तिशाली  है   उसके  विरुद्ध  एक  शब्द  भी  बोले    तो  जेल  हो  जाएगी ,  नौकरी  से  हटा  दिया  जायेगा  l   किसी  को  मरवा  देने  की  घटनाएं  इसी  भय  का    दुष्परिणाम  है  l   अपने  से  शक्तिशाली  की   बात  नहीं  मानी , अवहेलना  की  तो   खामियाजा  भुगतना  पड़ेगा  l
इस  प्रकार  के ' भय '  के  कारण   लोग  अपनी  रोटी - रोजी  और  अपने  परिवार  को  प्राथमिकता  देते  हुए   चुप  रहते  हैं  ,  सच्चाई  का  समर्थन  नहीं  करते ,  अत्याचार - अन्याय  को  देखकर  भी  अनदेखा  करते  हैं  l   इससे  योग्य  और   सच्चे  लोग  उपेक्षित  हो  जाते  हैं   और  समाज  व  राष्ट्र  का  पतन  होने  लगता  है  l
  पहले  छोटी - छोटी  रियासतें  थीं   तो  भय  का  क्षेत्र  भी  सीमित   था    लेकिन  वैश्वीकरण  के  इस  युग  में  ' भय '  भी   अंतर्राष्ट्रीय    हो  गया  है  ,        अपने  स्वार्थ  के  लिए   धन  और  शक्ति  संपन्न   लोग   भय  का  जाल  बिछा  देते   हैं  l   ऐसी  समस्या  से  निपटने  के  लिए  विवेक जरुरी  है  ,  ईश्वर विश्वास  से  हमें  शक्ति  मिलती  है  l   

27 June 2020

WISDOM ----- कुटिल की मित्रता और अपना अति अभिमान संकट का कारण बन जाता है ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य

  भारत  का  इतिहास  राजपूतों  की  वीरता , शौर्य  और  उनके  आन - बान   की  गाथाओं  से  भरा  है   l   अपने  वाङ्मय  ' महापुरुषों  के  अविस्मरणीय  जीवन  प्रसंग ' में  आचार्य श्री  लिखते  हैं ----- " यही  सब  कुछ  नहीं  होता  l   उनमें  इन  गुणों  के  सदुपयोग  और  एकता  की  भावना  का  सर्वथा  अभाव   था  l   राजपूत  राजाओं  से  मुगलों  ने   दोस्ती  की   थी  ,  किन्तु   यह  मित्रता  नीतिसंगत  और  व्यवहारिक   नहीं  थी  l   यह  तो  बेर  और  कदली  के  सामीप्य   जैसी  मित्रता  थी  l  उसके  फलस्वरूप  राजपूतों  का   गौरव  तो  कम   हुआ  ही  ,  पराधीनता  का  कलंक  भी  भारत  भूमि  को  ढोना   पड़ा  l 
  राजा  जसवंतसिंह    जोधपुर  के  राजा  थे  ,  बहुत  वीर  और  पराक्रमी  थे  ,  इसका  उन्हें  गर्व  भी  था  l   औरंगजेब  ने  उनसे  मित्रता  की  और  उनकी  वीरता  और  पराक्रम  का  जी  भरकर  लाभ  उठाया  l  राजा  जसवंतसिंह   ने  यह  न  सोचा  कि  क्रूर  और  अन्यायी  औरंगजेब   जब  अपने  पिता  को  कैद  कर  सकता  है ,  भाइयों  का  कत्ल   करा  सकता  है    तो  वह  उनके  परिवार  और  राज्य  पर  संकट  ला  सकता  है  l
    ' कुटिल  की  मित्रता  और  अपना  अति  अभिमान  उनके  परिवार  और  राज्य  पर  संकट  आने  का  कारण  बना  l  "  औरंगजेब  ने   जसवंतसिंह  को  ही  नहीं ,  उनके  पुत्रों  को  भी  धोखे  से   मरवा  दिया  l
  आचार्य  श्री  लिखते  हैं  ---- '  राजा  जसवंतसिंह   के  पास  जो  बल  विक्रम  था    वह  सही  दिशा  में  न  होकर   गलत  दिशा  में  प्रयुक्त  हुआ  l  वह  स्वयं  उनके  लिए , उनके  परिवार  के  लिए   तथा  हिन्दू  जाति   के  लिए   निरुपयोगी  ही  सिद्ध   नहीं  हुआ   वरन  उसका  लाभ  उठाकर   औरंगजेब  ने  अपना  स्वार्थ  सिद्ध  किया  l   किसी  को  ईश्वर  सम्पदा ,  विभूति   अथवा  सामर्थ्य  देता   है   तो  निश्चित  रूप  से   उसके  साथ   कोई  न  कोई  सद्प्रयोजन  जुड़ा  होता  है  l  मनुष्य  को  यह  समझना  चाहिए  कि   यह  विशेष  अनुदान   उसे  किसी  समाजोपयोगी  कार्य  के  लिए  ही  मिला  l   मनुष्य  को  जागरूक   रहकर  यह  देखन  चाहिए  कि   उसका  लाभ  गलत  व्यक्ति  तो  नहीं  उठा  रहे  l   नहीं  तो  यह  अच्छाइयाँ   भी  राजा  जसवंतसिंह   के  पराक्रम  की  तरह   निरर्थक  चली  जाएँगी   l  "

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने   वाङ्मय  ' महापुरुषों  के  अविस्मरणीय  जीवन  प्रसंग ' में  लिखा  है ---- 'पराधीनता  मनुष्य  के  लिए  बहुत  बड़ा  अभिशाप  है  ,  वह  चाहे  व्यक्तिगत  हो  अथवा  राष्ट्रीय ,  उससे  मनुष्य  के  चरित्र  का  पतन  हो  जाता  है  ,  तरह - तरह  के  दोष  उत्पन्न  हो  जाते  हैं  l  इसलिए  कवियों  ने   पराधीनता  को  एक  ऐसी  ' पिशाचिनी ' की  उपमा  दी  है  जो  मनुष्य  के  ज्ञान , मान , प्राण  सबका  अपहरण  कर  लेती  है   l   दूसरों  को  पराधीन  बनाना   संसार  में   सबसे  बड़ा   अन्याय  और  दुष्कर्म  है  l   ईश्वरीय  नियम  तो  यह  है  कि   जो  अपने  से  छोटा , कमजोर , नासमझ  हो   उसको  आगे  बढ़ने  में  ,  उन्नति  करने  में   सहायता  दी  जाये  ,  प्रगति  - क्षेत्र  में  उसका  मार्गदर्शन  किया  जाये    पर  इसके  विपरीत  जो  कमजोर  को   अपना  भक्ष्य  समझते  हैं  ,  छलबल  से  उनके  स्वत्व  का  अपहरण  करने  को  ही   अपनी  विशेषता  समझते  हैं  ,  उन्हें  काम  से  काम  ' मानव ' पद  का  अधिकारी  तो  नहीं  कह  सकते  l   इनकी  गणना  तो  उन  क्रूर  हिंसक  पशुओं  में  ही  की  जा  सकती  है  ,  जिनका  स्वभाव   ही  खूंखार  बनाया  गया  है   और  जो  सबके  लिए  भय  का  कारण  होते  हैं  l '

26 June 2020

WISDOM ------

 साम्राजयवाद  एक  प्रकार  का  अभिशाप  है  ,  जो  लाखों  निर्दोष  लोगों  का   संहार  कर  डालता  है   और  लाखों  का  ही  घर - बार  नष्ट  कर   उन्हें  पथ  का  भिखारी  बना  देता  है   l   साम्राज्यवादियों  के  लिए   अकारण  ही  दूसरे  राजाओं  पर   आक्रमण  करना ,  उन  पर  चढ़  बैठना  और  उनका  राज्य  छीन  लेना   कोई  नई   बात  नहीं  है  l   सिकन्दर ,  चंगेज खां , नादिरशाह   जैसे  आक्रमणकारियों  के  काले - कारनामों  से  इतिहास  भरा  है  l  धीरे - धीरे  साम्राज्यवादियों  ने   दूसरे  देशों  पर  अपना  कब्ज़ा  जमाने   के  तरीकों  में  परिवर्तन  किया  ,     उन्होंने   व्यापार  के  माध्यम  से   दूसरे  देशों   में  प्रवेश  किया  ,  वहां  की  जनता  को   अपनी  वस्तुओं , अपनी  भाषा , अपने  रहन - सहन  के  तरीकों  की  आदत  डाल   दी   और  इस  तरह   अनेक  देशों  को  अपना  गुलाम  बना  लिया   और  जी  भरकर  लूटा  l
कमजोर  पर  अत्याचार  करना,  लूटमार   करना    भी  एक  प्रकार  का  नशा  है  ,  इसकी  आदत  छूटती   नहीं  बल्कि   वैज्ञानिक  प्रगति  के  साथ   अत्याचार  , अन्याय  के  तरीके  भी  बहुत  घातक  हो  जाते  हैं  ,  जो  बाहर   से   कल्याणकारी  दीखते  हैं  लेकिन  जख्म  बहुत  गहरा  करते  हैं   l   यदि   जनता   जागरूक  नहीं  है ,  उसकी  चेतना  सुप्त  है  ,  चुपचाप  सब  सहन  करती  है    तब  दोष  किसका  है  ? 
 पं. श्रीराम  शर्मा   आचार्य जी   वाङ्मय  ' मरकर  भी  अमर  हो  गए  जो  '  में  लिखते  हैं  --- '  धन  और  राज्य  की  लालसा  मनुष्य  को  न्याय - अन्याय  के  प्रति   अन्धा   बना  देती  है  l  लोभ  उसकी  आँखों  पर  ऐसी  पट्टी  बाँध  देता  है   कि   उसे  सिवाय  अपनी  लालसा  पूर्ति  के   और  कोई  बात  दिखाई  ही  नहीं  देती  l '  आचार्य  श्री  आगे  लिखते  हैं  ---- "  यों   तो   डाकू  दल  भी   अपनी  संगठित  शक्ति   और  अस्त्र - शस्त्रों   के  बल  पर  लूटमार  करते  हैं   और  अपने  को  बड़ा  बहादुर  समझते  हैं    पर  कभी  किसी  डाकू  का  अन्त   अच्छा  हुआ  हो ,  यह  आज  तक  नहीं  सुना  गया  l  '

25 June 2020

WISDOM ------

  सामान्य  जनता  श्रेष्ठ  लोगों  का  अनुकरण  करती  है   l   उनके  द्वारा  कही  गई  बात  को  मानती  है  l   जो  कुछ  वे  कहते  हैं  ,  यदि  उसको   अपने  आचरण  से  भी  प्रस्तुत  करें  तो  सामान्य  जनता   उनकी  कही  गई  बात  को  हृदय  से  स्वीकार  करती  है  l   यही  बात  उनके  द्वारा  प्रयोग  में  लाई  गई  वस्तुओं  के  सम्बन्ध  में  है  ,  इसलिए  विज्ञापन  और  प्रचार  द्वारा  कंपनी  अपनी  वस्तु   को  श्रेष्ठ   बताने  का  प्रयास  करती  हैं   l   जीवन  रक्षक  दवाइयां  या  वैक्सीन  वास्तव  में  कितनी  उपयोगी  हैं  ,  श्रेष्ठ  लोग  और  जिसने  इसका  अविष्कार  किया  ,  उसके  लिए  वित्त व्यवस्था  की   , प्रबंध  किया   वे    जनता  के  सामने    स्वयं  पर   और  अपने  परिवार  पर  उनका  उपयोग  कर  के  बताएं  ,  तो  उसका  प्रभाव  अमिट    होगा  ,  ऐतिहासिक  होगा  ,  युगों  तक  याद  रखा  जायेगा  l   हमारे  आयुर्वेदिक  औषधि   और  प्राकृतिक  चिकित्सा  में  काम  आने  वाली  जड़ी - बूटियों  का  कोई  साइड इफेक्ट  नहीं  होता  ,    वे  फायदा  ही  करती  हैं , पुरानी   भी   हो जाएँ  तो   भी   उनसे  जीवन  को  खतरा  नहीं  होता   l   लेकिन    ऐलोपैथी  में  यह  गुण   नहीं  है   l
  हर  चिकित्सा  पद्धति  की  अपनी  विशेषताएं  हैं  l     स्वस्थ  होने  के  लिए   विश्वास  जरुरी  है  l 

WISDOM ----- वैज्ञानिक प्रगति ने मनुष्य को नास्तिक बना दिया है

  वैज्ञानिक  प्रगति  के  कारण  मनुष्य  अपने  को  सर्वशक्तिमान  समझने  लगा  है  l   इस  विकास  से  पहले  लोग  ईश्वर  के  प्रति  आस्था  को  आवश्यक  समझते  थे  l  मनुष्यों  को  एक  अज्ञात  शक्ति  के  प्रति  आस्था  थी  कि   कोई  एक  शक्ति  है  जो  सब  जड़ - चेतन  का  नियमन  करती  है  l   लेकिन  इस  विकास   से  बढ़ते  अहंकार   ने  मनुष्य  की  आस्था  को  समाप्त  कर  दिया  l  अब  वह   प्रकृति  में  हस्तक्षेप  कर  स्वयं  को  सर्वशक्तिमान  समझने  लगा  है    और   अपनी  तृष्णा , लोभ - लालच   के  कारण    प्रकृति  के    शुद्ध  और  पवित्र    अनुदान   में    भी  मिलावट  कर   प्रकृति  को  चुनौती  देने  लगा  है  l   मिटटी  में  रसायन  मिल  गया   तो  उसकी  उपज  खाकर  नियम - संयम  से  रहने  वाला  भी  बीमार  हो  गया  l   हमारी  श्वास  पर  ईश्वर  का  नियंत्रण  है  ,  हमारे  ऋषियों  ने  हमें  तरीका  भी  सिखाया  कि   खुली  हवा  में    गहरी  श्वास  लेनी  चाहिए  लेकिन  अपने  को  सर्वशक्तिमान  समझने  वाला  मनुष्य  इस  पर  भी  अपना  नियंत्रण  चाहता  है  l
  प्रकृति  ने ,  ईश्वर  ने  हमें  जो  अनुदान  दिए  वे  सब  हमारे  कल्याण  के  लिए  हैं  ,  इसमें  ईश्वर  का  कोई  स्वार्थ  नहीं  है   लेकिन  शक्ति  और  साधन  संपन्न  अहंकारी  मनुष्य   लोगों  की  भलाई  का  कोई  कार्य  करता  भी   दीखता  है  तो  उसमे  उसका  बहुत  बड़ा  स्वार्थ  छिपा  होता  है  l 
पुराणों  में  कथा  है  कि   हिरण्यकश्यप   ने  बहुत  शक्ति व  साधन  एकत्र   कर  लिए  और  स्वयं  को  भगवान   कहने  लगा  l   सब  प्रजाजनों    को  आदेश  दे  दिया  कि   उसी  को  भगवान   मानकर  पूजें  l  मनुष्य  की  महत्वाकांक्षा  का  चरम  स्तर  यही  है  l   सत्य  और  धर्म  की  राह  पर  चलकर   मनुष्य  राम  और  कृष्ण  बनता  है ,  युगों  तक  पूजा  जाता  है  लेकिन  अनीति  की  राह  पर  चलकर   रावण , कुम्भकरण  और   हिरण्यकश्यप  बनता  है  और  धिक्कारा  जाता  है  l 

23 June 2020

WISDOM -----

    जब  मनुष्य  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  होता  है   तो  वह   दूसरों  को  अपने  से  श्रेष्ठ  समझता  है  l   जब  यह  दुर्बुद्धि  पूरे   समाज  पर  हावी  हो  जाती  है  तब  व्यक्ति   अपनी  संस्कृति , अपनी  शिक्षा  ,   अपनी  जीवन  शैली  ,   अपनी  चिकित्सा   पद्धति   को  भूलकर  गलत  दिशा  में  भागने  लगता  है  l   जहाँ  राह  गलत  होती  है  वहां  सफलता  का  प्रश्न  ही  नहीं  होता  l   हमारे  पास   ऋषियों  की  बताई  गई  आयुर्वेदिक  चिकित्सा  है , प्राकृतिक  चिकित्सा  है   लेकिन  हम  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  है  इसलिए  हम  अपने  तरीके  को  छोड़कर  दूसरों  के  पीछे  भागते  हैं  ,  लाखों  रूपये  खर्च  कर  अपना  बजट  बिगाड़ते   हैं  l   इससे  एक  तो  स्वस्थ  ही  नहीं  होते  और  यदि  ठीक  भी   हो गए  तो  दूसरी  बीमारी  गिफ्ट  में  लेकर  आते  हैं  l ----
  दो  बहने  थीं  ,  छोटी  बहन    ऐलोपैथी  में  विश्वास  रखती  थी   और  बड़ी  बहन     अपनी  देशी  चिकित्सा  में  l   यह  एक  संयोग  ही  था  कि   दोनों  के  दांत  में  भयंकर  दर्द  हुआ  l  जो   ऐलोपैथी  में  विश्वास  रखती  थी  उसे  तुरंत  आराम  चाहिए  था   इसलिए  डॉक्टर   के  पास  गई  ,  डॉक्टर   ने  देखा , दाँत   निकलना  जरुरी  था  अत:  दांत  निकाल   दिया  ,  वह  बड़ी  खुश,  घर  आ  गई  l
दूसरी  बहन   ने   आयुर्वेदिक  मंजन  लिया ,  फिटकरी  के  पानी  से  कुल्ला  किये ,  दर्द  की  जगह  पर  लौंग  को  रखा  ,  इस  तरह  देशी  तरीके  से  एक - दो  दिन  में  उसका  दर्द  ठीक  हुआ  l  फिर  दुबारा  नहीं  हुआ  l   लेकिन  छोटी  बहन  के    कुछ  दिनों  बाद   जो  दाँत   निकाला   था  ,  उसके  पास  वाले    दाँत   में  दर्द  हुआ  l   इस  तरह  एक - एक  कर  के  उसने   अपने  तीन  दाँत   खो  दिए   और  हजारों  रूपये  खर्च  हुए  सो  अलग  l   अब  यह  बुद्धि  का  ही  फेर  है  l   संसार  में  सब  कुछ  है ,  लेकिन  चुनाव  हमें  करना  है  l
  यदि  हम  कमजोर  हैं ,  हम  में  आत्मविश्वास  नहीं  है    तो  संसार  में  फायदा  उठाने  वाले  सब  जगह  हैं  l   मनुष्य  की  इसी  कमजोरी  का  फायदा  उठाकर    वे  उसे  मानसिक  रूप  से  अपना  गुलाम  बना  लेते  हैं  ,  अपनी  इच्छानुसार  उन्हें  जीवन  जीने  को  विवश  कर  के  अपने  अहंकार  को  पोषित  करते  हैं  l   आज  के  युग  की  समस्याओं   का  हल  वाद - विवाद  से  नहीं  है  l   जब  हम  जागरूक  होंगे ,  हमारा  स्वाभिमान  जागेगा  ,  हमारे  जीवन  की  दिशा  सही  होगी    तभी  हमारा  मानव  जीवन  सफल  होगा  l 

WISDOM ------ दुष्ट की भलाई और अनाचारी का संग करने वाले सज्जन पुरुष का भी कल्याण नहीं होता

  हमारे  इतिहास  में  अनेकों  ऐसी  घटनाएं  हैं  जो  हमें  शिक्षा  देती  हैं   कि   शत्रु  का  कभी  विश्वास  नहीं  करे  l   ऐसा  शत्रु  जो  हमें  धोखा  दे   चुका    हो  ,  उस  पर  कभी  विश्वास  नहीं  करे ,  उसे  अपने  घर  में  घुसने  न  दे ,  अन्यथा  वह  कभी  भी  उचित  अवसर  पाकर   अपना  स्वार्थ  सिद्ध  करेगा  l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने   वाङ्मय  ' मरकर  भी  जो  अमर  हो  गए  '  में  लिखा  है  -----   लोभी  और  दुष्ट  -- इन  दो  के  लिए  संसार  में  कोई  भी  घात   अकरणीय  नहीं  होती  l   साहसी  शत्रु  की  अपेक्षा   कायर  शत्रु  से   अधिक  सतर्क  और  सावधान  रहने  की   नीति   का  निर्देश  दिया  गया  है  l  ' 
   जोधपुर    के  महाराज  जसवंतसिंह   ने  औरंगजेब   का  हर  तरह  से  साथ  दिया ,  अपनी  वीरता  और  बुद्धिमत्ता   से    उसे  निर्भय  रखा  लेकिन  औरंगजेब  मन  ही  मन  उनसे  ईर्ष्या  रखता  था  ,  उनकी  वीरता  ,  उनका  प्रखर  व्यक्तित्व  उससे  सहन  नहीं  होता  था   l   कहते  हैं -- कायर  की  जब    वीर  से   विसाती   नहीं  तो  वह  कुटिलता  पर  उतर  आता  है  l  '    कुटिल    औरंगजेब  ने  उनके  पुत्र  पृथ्वीसिंह  को   धोखे  से  मर  वा  दिया  और  जोधपुर  पर  अपना   अधिकार  कर  लिया  l
आचार्य श्री  ने  लिखा  है ---- ' वीर  और  बर्बर  के  आदर्शों  में  अन्तर   होता  है  l   हमें  हमेशा  सतर्क  रहना  चाहिए  l 

21 June 2020

WISDOM ----- जैसा खाए अन्न , वैसा हो मन

हमारे  आचार्य  ने , ऋषियों  ने  बताया  है  कि   हम  अपने  शरीर  के  पोषण  के  लिए  जो  कुछ  भी  ग्रहण  करते  हैं  ,  न  केवल  उसका   बल्कि  उसे  बनाते   समय  ,  बनाने  वाले  की  भावना  का  भी  हमारे  शरीर  व  मन   अर्थात  स्वास्थ्य  पर  प्रभाव  पड़ता  है  l   यदि  हमारी  अज्ञानता  में    हमारा  भोजन  बनाने  वाला  कोई  अपराधी  है ,  हत्यारा  है  तो  हमारे  मन  में  भी  वैसे  ही  बुरे  ख्याल  आएंगे  l   यदि  हम  किसी  ऐसी  महिला  से  खाना  बनवाते  हैं  , जो  हमेशा  अपने  घर  में  पति  से  कलह  करती  है    तो  उसके  बनाये  भोजन   को   खाने  का  प्रभाव  हमारे  पारिवारिक  जीवन  पर  भी  पड़ेगा  l
  यदि  हम  रासायनिक  खाद , बीज , कीटनाशक  आदि  से  उपजा  अन्न , फल , सब्जी  खाते   हैं   तो  बीमारी  हमारा  पीछा  नहीं  छोड़ेंगी  l
  जो  लोग  मांसाहार  करते  हैं    तो  इसमें    बड़ी  बात  यह  है   कि   वे  जिस  जानवर  का  मांस  खाते   हैं   तो  उस  जानवर   की  विशेषताएं  भी  धीरे - धीरे  उनमे  आ  जाती  हैं  l   यह  सब  एक  दिन  में  नहीं  होता ,   बचपन  से    मांसाहार  करते  रहने  से   बड़े  होने  पर  उस  जानवर  की  विशेषता   उनकी  बुद्धि  में  आ  जाती  है  l   यह  स्पष्ट  रूप  से  देखा  जा  सकता  है  कि   जो  लोग  विभिन्न  तरह  के  जानवर ,  कीड़े - मकोड़े  , पशु - पक्षी  आदि  न  खाने  योग्य  भी  सब  कुछ  खाते   हैं    तो  उन  सब  विभिन्न  जीव - जंतुओं  की  विशेषताओं  का  संयोग  उनकी  मानवी   बुद्धि  के  साथ    हो  जाता  है  ,  इसलिए  ऐसे  लोग  बहुत  क्रूर ,   चालाक   ,  धोखेबाज ,  खूंखार   अदि  दुर्गुणों  से  युक्त  होते  हैं  l   शास्त्रों  में  लिखा  है   ऐसे  लोगों  का  कभी  विश्वास  न  करे  ,  उनसे  दूरी   बना  कर  रहे  l 
  जब  हम  जागरूक  होंगे ,  शांत  रहकर    अपने  स्वाभाव , स्वास्थ्य ,  अपने  आचार - विचार  में  होने  वाले  परिवर्तनों  का   अध्ययन - मनन   करेंगे    तभी  हम  समझेंगे  कि   हम  क्या  थे  ? और  कैसे  हो  गए   ?
  जिस  भोजन  और  जल  से  हम  जीवित  रहते  हैं    उसकी  पवित्रता  जरुरी  है  l 

WISDOM ----- आपसी फूट से बुद्धि मूर्छित हो जाती है

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  वाङ्मय  ' महापुरुषों  के  अविस्मरणीय जीवन  प्रसंग  '  में  लिखा  है ----- '  सिकन्दर   ने  भारत  पर  आक्रमण  से  पहले   यहाँ  की  आंतरिक  दशा  का  पता  लगाने  भेदिये   भेजे  ,  जिन्होंने  आकर  समाचार  दिया  कि   इसमें  कोई  संदेह  नहीं  कि   वीरता  भारतीयों   की  बपौती  है  ,  किन्तु  उनकी  सारी   विशेषताओं  को  एक  नागिन   घेरे  हुए  है  जिसे  ' फूट '  कहते  हैं  l   इसी   फूट   रूपी  नागिन  के  विष  से   भारतीयों   की  बुद्धि  मूर्छित  हो  चुकी  है  l
 सिकन्दर   ने  भारतीयों   में  फैली  इस  फूट   की  विष बेल  का  फायदा  उठाया   और  उसने  शीघ्र  ही    उस  तक्षक  का  पता  लगा  लिया  ,  जो  प्रोत्साहन  पाकर   भारत  की  स्वतंत्रता  पर  फन  मार  सकता   है  l   और  वह  था  ---- तक्षशिला  का   दम्भी    राजा  आम्भीक  l    यह  महाराज  पुरु  से  द्वेष  रखता  था  और  ईर्ष्या - द्वेष  में  अँधा  था  l
सिकन्दर   ने  अवसर  का   लाभ  उठाया  और  लगभग  पचास  लाख  रूपये  की  भेंट  के  साथ   सन्देश  भेजा  ,  यदि  महाराज  आम्भीक   सिकन्दर   की  मित्रता  स्वीकार  करे  तो  वह  उन्हें   पुरु  को  जीतने  में  मदद  करेगा  और  सारे  भारत  में  उनकी  दुन्दुभी   बजवा   देगा  l   सिकन्दर   द्वारा  भेजी  भेंट  और  सन्देश  पाकर  द्वेषान्ध ,  अहंकारी   आम्भीक    होश  खो  बैठा    और  वह  देश  के  साथ  विश्वासघात  कर  के   सिकन्दर   का  स्वागत  करने  के  लिए  तैयार  हो  गया  l   भारत  के  गौरवपूर्ण  चन्द्र - बिम्ब  में  एक  कलंक  बिन्दु   लग  गया  l
  आचार्य श्री  लिखते  हैं --- ' जब  कोई  पापी  किसी  मर्यादा   की  रेखा   का  उल्लंघन   कर  उदाहरण  बन  जाता  है  ,  तब  अनेकों  को  उसका  उल्लंघन  करने  में   अधिक  संकोच  नहीं  रहता  l   आम्भीक   की 
 देखा  देखी    अनेक  राजा    सिकन्दर   से  जा  मिले  l   किन्तु  अभागे  आम्भीक   जैसे  अनेक    देश - द्रोहियों  के  लाख  कुत्सित  प्रयत्नों  के  बावजूद   भी  एक  अकेले  देशभक्त  पुरु   ने   भारतीय  गौरव  की  लाज  रखकर   संसार  को  सिकन्दर   से  पद - दलित   होने  से  बचा  लिया  l   भारतीय  इतिहास  में  महाराज  पुरु  का  बहुत  सम्मान  है  ,  केवल  वही  एक  ऐसे  वीर  पुरुष  हैं  ,  जिसने  पराजित  होने  पर  भी   विजयी  को  पीछे  हटने  पर  विवश  कर  दिया  l   

WISDOM ----- जीवन का विनाश करना एक अपराध है

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  वाङ्मय  ' मरकर  भी  अमर  हो  गए  जो '  में  लिखा  है ---- "  आत्मघात  तो  एक  पाप  है  ही  ,  साथ  ही  अन्य  प्रकार  से   भी  जीवन  का  विनाश  करना   एक  अपराध  है  ---- जो  मनुष्य  अज्ञानवश   विषय - वासनाओं  और  भोग - विलास  में  पढ़कर  इस  मानव  जीवन  का  दुरूपयोग  करते  हैं   और  लोभ , मोह , क्रोध  व  अहंकार   में  पढ़कर  ऐसे  काम  किया  करते  हैं  , जिससे  अन्य  मनुष्यों  व  प्राणियों   को  कष्ट  होता  है  , तो  ऐसा  कर  के   वे  अपने  मानव  जीवन  का  विनाश  करते  हैं  l
    लोभ  के  वशीभूत  होकर   प्राय:  लोग  अपनी  शारीरिक , बौद्धिक  तथा  व्यावहारिक  शक्तियों  का  दुरूपयोग  कर   धन - सम्पति  का  संचय  करते  हैं  l   इसके  लिए  वे  शोषण , छल - कपट  का   सहारा  लेते  हैं  और  चोरी , डकैती , भ्रष्टाचार   आदि  न  जाने  कितने  घृणित  कर्म  करते  हैं   l   उनके  इन  लोभ  प्रेरित  कार्यों  से   कितने  लोगों  को  कष्ट ,  हानि  और  भयंकर  शोक  सहन  करना  पड़ता  है  l   ऐसे  दुष्परिणाम  देने  वाले   कार्यों  को  करना  जीवन  का  दुरूपयोग  और  उसको  नष्ट  करना  है  l
  इसी  प्रकार  लोग  मोह  में  पड़कर   और  अहंकार  के  वशीभूत  होकर  अधर्म  के  पथ  पर  चलने  लगते  हैं  l   अपने  स्वार्थ  में  लिप्त  रहते  हैं , समाज , राष्ट्र  अथवा  संसार  के   प्रति  भी  उनका  कुछ  कर्तव्य  है ,  इसे   भूल  जाते  हैं    और  अपने  स्वार्थों  में  व्यवधान पड़ने  पर   अपराधों  में  प्रवृत  हो  जाते  हैं  l   इस  प्रकार  का  जीवन  चलना  उसे  नष्ट  करना  ही  है  l '

18 June 2020

WISDOM ---- शत्रु से सतर्कता शूरवीरों को संसार में बड़े - बड़े काम करने के लिए सुरक्षित रखा करती है l

    छत्रपति  शिवाजी   ने  अपनी   वीरता  और  कूटनीति  से  भारतवर्ष  के  एक  बड़े  भाग  को   विदेशी  शासन  के  प्रभाव  से  मुक्त  कर  दिखाया  l   अपने  जीवन  के  कटु  अनुभव  के  आधार  पर  वे    किसी  भी  शत्रु    पर    किसी  भी  मूल्य  पर   कभी  विश्वास  नहीं  करने  की  नीति   पर  दृढ़   रहते    थे  l   उन्होंने  शत्रु  पक्षीय    अथवा  अनबूझ   व्यक्ति  पर  सहसा  विश्वास  कर  लेना    राजनीति   में  एक   कमजोरी  मान  लिया  था  l 
     हमारे   नीतिकारों  ने  भी  यही  कहा  है   कि   दुष्ट  शत्रु  पर  दया  दिखाना   अपना  और  दूसरों  का  अहित  करना  है  l   आजकल  के  व्यवहार  शास्त्र  का  स्पष्ट  नियम  है  कि   दूसरों  को  सताने  वाले   दुष्टजन  पर  दया  करना  ,  सज्जनों  को  दंड  देने  के  समान  है   क्योंकि  दुष्ट  तो  अपनी  स्वभावगत   क्रूरता  और   नीचता  को  छोड़   नहीं  सकता  ,  जब  तक  वह  स्वतंत्र  रहेगा   और  उसमे  शक्ति  रहेगी  ,  वह  निर्दोष  व्यक्तियों  को   सब  तरह  से  दुःख  और  कष्ट   ही  देगा   l 

17 June 2020

WISDOM -------

  आइन्स्टीन   से  किसी  ने  पूछा   कि   संसार  में  इतना  दुःख  और  कलह  क्यों  है  , जबकि  विज्ञानं  ने  एक  से   बढ़कर  एक    सुख - साधन  दिए  हैं   l   उत्तर  देते  हुए  उन्होंने  कहा  --- कमी  बस  एक  ही  रह  गई   कि   अच्छे  इनसान   बनाने  की   कोई  योजना  नहीं  बनी  l   देश  संप्रदाय  के  पक्षधर  सभी  दीखते  हैं  ,  पर  ऐसे  लोग  नहीं  दीख  पड़ते    जो  अच्छे  इनसान   बनाने  की   योजनाएं  बनायें   l '

WISDOM -----

  '  पाप  एवं   दुष्कर्म   ही  एकमात्र  दुःख  का  कारण  नहीं  होते  ,   अयोग्यता , मूर्खता ,  निर्बलता ,  निराशा , फूट ,  निष्ठुरता ,  आलस्य   भी  ऐसे  दोष  हैं  जिनका  परिणाम   पाप  के   समान   और  कई  बार  उससे  भी  अधिक  दुःखदायी   होता  है  l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  जी  ने  लिखा  है ---- ' आप  कठिनाइयों  से  बचना  या  छुटकारा  पाना  चाहते  हैं   तो  अपने  भीतरी  दोषों  को  ढूंढ़   निकालिए   और  उन्हें  निकाल  बाहर  करने  में   जुट  जाइये  l   दुर्गुणों  को  हटाकर   उनके  स्थान  पर  आप   सद्गुणों  को   अपने  अंदर  जितना  स्थान  देते  जायेंगे  ,  उसी  अनुपात  के  अनुसार  आपका  जीवन   विपत्ति  से  छूटता   जायेगा   l 

16 June 2020

WISDOM ------

    हिंसा   और    अत्याचार  को  रोकने  के  लिए  निष्क्रिय  विरोध , उपेक्षा  व  उदासीनता  से  काम  नहीं   चलता  l   उसे  रोकने  के  लिए  अदम्य  साहस   और  कठोर  संघर्ष  की  आवश्यकता  है   तभी   उसमें    सफल  हुआ  जा  सकता  है   l   यदि  संगठित  रूप  से   अत्याचार - अन्याय  का  प्रतिरोध  किया  जाये   तो  शक्तिशाली  बर्बरता  को  भी  परास्त  किया  जा  सकता  है  l 

जीवन उसका है , जो कठिनाइयों के मस्तक पर अपने मजबूत पाँव जमाकर खड़ा हो सकता है l

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी   लिखते  हैं --- ' संकटों  से  डर   कर  जीवन  से  भागना   भीरुता  है   और    इस  संसार  में  समस्त  दण्ड   विधान  भीरु  और  कायर   व्यक्ति  के  लिए  बनाये  जाते  हैं  l '
आचार्य श्री  लिखते  हैं  ---- ' मरकर  परिस्थितियों  को  बदला  नहीं  जा  सकता  l   कर्मों  का  नाश  नहीं  होता  l  अगला  जीवन  वहीँ  से  शुरू  होगा ,  जहाँ  से  तुमने  इसे  छोड़ा  था l  आत्महत्या  पाप  है  --- इसका  दोहरा  दंड  है  --- एक  -आत्महत्या  का  दंड  और  दूसरा   अपने  कर्मक्षेत्र  से  भागने  का  दंड  l '  ऋषि  का  कहना  है -- प्रारब्ध  प्राप्त  भोगों  को  शांति  और  धैर्य  के  साथ  भोग  लेने  में   ही  भलाई  है  ,  उनसे  भागना  नहीं  चाहिए  क्योंकि  प्रारब्ध  कभी  पीछा  नहीं  छोड़ता  ,  भोगना  ही  पड़ता  है  l
  पेशवाओं  के  पथ - प्रदर्शक  -- ब्रह्मेन्द्र  स्वामी ,  इनका  जन्म  का  नाम  विष्णुपंत  था  ,    जब  दस  वर्ष  के  थे  ,  तब  उनके   माता - पिता  की  मृत्यु  हो  गई  l   सारी   सम्पति  सगे - संबंधियों   ने  हड़प  ली   और  उन्हें  रूखी  रोटी  भी  नहीं  देते  थे  ,  ऐसा  व्यवहार  करते  थे  जैसे  वे  कोई  छूत   के  रोगी  हों  l   जीवन  से  निराश  होकर   बीस  वर्ष  की  आयु  में  वे  आत्महत्या  करने  पहाड़  की  चोटी   पर  पहुँच  गए   l   कूदने  ही  वाले  थे  कि    महायोगी  ज्ञानेंद्र  सरस्वती  ने  उन्हें  आवाज  देकर  रोक  दिया   और  उन्हें  समझाया  कि  --- मानव  जीवन   दुबारा    नहीं  मिलता ,  यह  बहुमूल्य  है  l   अपरिमित  शक्तियों  का  स्रोत  है  l   दूसरों  की  पीड़ा  को  भी  समझो   l   औरों  को  ऊँचा  उठाने  में  लगी  दुर्बल  भुजाएं  भी  थोड़े  समय  में  लौह - दंड    बन  जाएँगी  l  मानव  जीवन  की  गरिमा  को  पहचानों  l --- इस  तरह  उन्होंने  युवक  विष्णुपंत  को   जीवन  जीना  सिखाया   और  कहा   कि   निराशा  में  डूबे   हुए  व्यक्तियों  में  जीवन  चेतना  का  प्रसार  करो  l 
 जीवन  के  इस  महामंत्र  से  यही  युवक  ब्रह्मेन्द्र  स्वामी  में  बदल  गया   और  17  वीं   सदी  में   महाराष्ट्र  के  इतिहास  को  एक  नया  मोड़  दिया  l   साधारण  से  क्लर्क   बालाजी  विश्वनाथ  को  गढ़कर  पेशवा  बनाया  l  

15 June 2020

WISDOM -----

   प्रकृति    की  मर्यादाओं ---- नियत  नियमों  की  अनुकूल  दिशा  में  चलकर  ही   सुखी  और  शांत  रहा  जा  सकता  है  ---- पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  l
 ग्रह - उपग्रह ,  नक्षत्र , तारे   एक  नियम  मर्यादा  के  अनुसार  चलते  हैं  l   वे  अपने  निश्चित  विधान  का  कभी  उल्लंघन  नहीं  करते  l   कीड़े - मकोड़े  और  पक्षियों  में  यह  विशेषता  पाई  जाती  है   कि   वे  अपने  भीतर  की   किसी  अज्ञात  घड़ी   के  मार्गदर्शन  से   अपनी  गतिविधियाँ   व्यवस्थित  रखते  हैं  l   केवल  मनुष्य  ही  ऐसा  है   जो  बार - बार   प्रकृति  के  नियमों  के  विरुद्ध  जाने  की  धृष्टता  करता  है  l
        आज  संसार  में  जो  समस्या  है  वह  मनुष्य  की  धृष्टता  का  ही  परिणाम  है  l   यदि  हम  जागरूक  नहीं  हैं  और  हमने   विज्ञान   की  आधुनिक  तकनीकों  और   आविष्कारों   से  प्राप्त  सुख - सुविधाओं  को  स्वीकार  कर  लिया  है    तो  हमें  उसके  विनाशकारी  परिणाम  भी  स्वीकार  करने  पड़ेंगे   l   जैसे  फ्रिज , टीवी ,   ए.सी. ,  मोबाइल , रासायनिक  खाद , बीज , कीटनाशक  आदि  का  हम  उपयोग  करते  हैं  l   इनके  दुष्प्रभावों  को  विशेषज्ञ  अनेकों  बार  बता  चुके  हैं   लेकिन  हम   जागरूक  नहीं  हैं  ,  इन  सुविधाओं  की  हमें  आदत  हो  गई  है   तो  इनके  दुष्परिणाम  भी  हमें  भुगतने  पड़ते  हैं  l   विज्ञान   इसके  बहुत  आगे  बढ़  गया  है  l   हजारों  की  संख्या  में  कृत्रिम  उपग्रह  हैं ,   संचार  के  साधनों  में  नित्य   नई   तकनीक  आ  रही  है  l   जब  ए.सी.  और  मोबाइल  से  निकलने  वाली  तरंगे  हमारे  शरीर  को  नुकसान  पहुंचाती   हैं   तो    इनसे  और  अधिक  विकसित  तकनीक   से  निकलने  वाली  तरंगे   क्या  हमें  जीवित  रहने  देंगी  ?   इस   आधुनिकता  के  बीच     मनुष्य    का  दम   घुटने  लगेगा  l   जब  पक्षियों  की , पेड़ - पौधों  , वनस्पतियों   की  प्रजाति  लुप्त  हो  रही  है  तो  अब  मनुष्य  के  अस्तित्व  पर  भी  खतरा  है  l
  विज्ञान  बुरा  नहीं  है  ,  लेकिन  जिनके  पास  असीम  धन - सम्पदा  है   और  कभी  न  मिटने  वाली  तृष्णा  है   वे  इन  तकनीकों  का  उपयोग   अपने  स्वार्थ  के  लिए  ,  दुनिया  पर  राज  करने  के  लिए  करते  हैं  l   कुछ  लोगों  की  इस  लोभ - लालसा  का  दुष्परिणाम  सारा  संसार  भुगतता  है   और  इसलिए  भुगतता  है  क्योंकि  जागरूक  नहीं  हैं  l  हम  अपने  स्वाभिमान  को  जगाएं ,  इससे  हम  निर्भय  होंगे  l    निर्भय  और  आत्मविश्वासी    व्यक्ति  से  बीमारी ,  भूत - प्रेत  सब  डर  कर  भागते  हैं   l

WISDOM ------

 जिस  प्रकार   सूखे  बांस  आपस  की  रगड़  से  ही  जलकर  भस्म  हो  जाते  हैं  ,  उसी  प्रकार  अहंकारी  व्यक्ति  आपस  में  टकराते  हैं  और  कलह  की  अग्नि  में  जल  मरते  हैं  l ---- पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य 
      अहंकार  ज्ञान  के  सारे  द्वार  बंद  कर  देता  है   l   अहंकार  यदि  धन  का  हो   तो  व्यक्ति  धन  के  माध्यम  से  सब  कुछ  हथियाना  चाहता  है  l   जिनके  पास  असीम  धन - सम्पदा  है  ,  वे  उस  धन  के  बल  पर  संसार  पर  शासन  करना  चाहते  हैं  l    समय  के  साथ  शासन  का  तरीका  भी  बदल  जाता   है  ,  अब  वे  लोगों  के  मन  में  भय  पैदा  कर  के  ,  उन्हें  मानसिक  रूप  से  कमजोर  बना  कर ,  उनके  दैनिक  जीवन  पर  भी   नियंत्रण  करना  चाहते  हैं  l   महत्वाकांक्षा  यहीं  नहीं  रूकती  l     वे  धन  के  बल  पर  प्रकृति  को  जीतना  चाहते  हैं  l   इसी  महत्वाकांक्षा  के  कारण   अनेक  सभ्यताएँ    धूल  में  मिल  गईं  l  लेकिन  अहंकार  के  कारण  व्यक्ति  इनसे  सबक  नहीं   सीखता  l 
  विज्ञान   की  आधुनिक  तकनीकों , आविष्कारों   से   ही  आज   नियम - संयम  से  रहने  वाला  व्यक्ति  भी  स्वस्थ  नहीं  है  l     अधिक    धन  कमाने   का  लालच   संसार  को  नई - नई  बीमारियाँ   देता  है ,  फिर  उनके  इलाज  देता  है  ,  फिर  नई  बीमारी  !  यह  चक्र  कभी  ख़त्म  नहीं  होता  l
  यह  चक्र  तभी  रुकेगा  जब  व्यक्ति  जागरूक  होगा ,   आधुनिक  सुविधाओं  को  छोड़कर  एक  सरल  जीवन  जियेगा ,   प्रकृति  के  साथ  तालमेल  रखेगा  ,  संवेदनशील  बनेगा  l
 अभी  लोग  क्रूरता  और  छल - छद्म     के  आधार  पर  संसार  को   अपने  ढंग  से  चलाना   चाहते  हैं  ,  लेकिन  यदि  वे  संवेदनशील  बन  जाएँ , '  जियो   और  जीने  दो '  के  सिद्धांत  पर  चलें  ,  अपना  स्वार्थ  छोड़  दें   तो  बिना  किसी  प्रयास  के  संसार  उनके  क़दमों  में   झुकेगा   l 

13 June 2020

WISDOM ------

   एक  साधु   वर्तमान  शासन  तंत्र  की  आलोचना   कर  रहा  था  ,  तब  एक   तार्किक  ने  उनसे  पूछा  --- "  कल  तो  आप  संगठन  शक्ति  की  महत्ता  बता  रहे  थे  l   आज  शासन  की  बुराई  !  शासन  भी  तो  एक  संगठन  ही  है  l  "  इस  पर  महात्मा  ने  एक  कहानी  सुनाई -----
 "  एक  वृक्ष  पर  एक  उल्लू  बैठा  हुआ  था  ,  उसी  पर  आकर  एक  हंस  भी  बैठ  गया   और  स्वाभाविक  रूप  में  बोला ---- "  आज  सूर्य  प्रचंड  रूप  में  चमक  रहे  हैं ,  इसलिए  गर्मी  तीव्र  हो  गई  है  l  "
  उल्लू  ने  कहा ---- "  सूर्य  कहाँ  है  ?  गर्मी  तो  अंधकार  बढ़ने  से   होती  है  ,  जो  इस  समय  भी  हो  रही  है   l  "  उल्लू  की   आवाज   सुनकर   एक  बड़े  वट वृक्ष  पर  बैठे  हुए   अनेक  उल्लू  वहां  आकर  हंस  को   मूर्ख   बनाने  लगे   और  सूर्य  के  अस्तित्व  को  स्वीकार  न  कर   हंस  पर  झपटे  l   हंस  यह  कहता  हुआ  उड़  गया   क़ि  --- " यहाँ  तुम्हारा  बहुमत  है  , बहुमत  में  समझदार  को   सत्य  के  प्रतिपादन  मे   सफलता  मिलना    दुष्कर  ही  है   l "    बहुमत  के   महत्व  को    समझते  हुए   हंस  चुप  हो  गया  l 

11 June 2020

WISDOM ---

 राजा  जनक  की  शोभा  यात्रा  निकल  रही  थी  ,  उस  अवधि  में  राज  कर्मचारी  सारा  रास्ता  पथिकों  से  शून्य  बनाने  में  लगे  थे  l  अष्टावक्र  को  हटाया  गया  तो  उन्होंने  हटने  से  इनकार   कर  दिया   और  कहा  प्रजाजनों  के  आवश्यक  कार्यों   को  रोककर  अपनी  सुविधा  का  प्रबंध  करना  राजा  के  लिए  उचित  नहीं  है  l   यदि  राजा  अनीति  करे  तो  विवेकवानों  का  कर्तव्य  है   कि   वे  उन्हें  रोके  और  समझावें  l   आप  राजा  तक  मेरा  संदेश   पहुंचाएं   और  कहें  कि  अष्टावक्र  ने  अनुपयुक्त  आदेश  को  मानने  से  इनकार   कर  दिया  l   वे  हटेंगे  नहीं  राज - पथ  पर  ही  चलेंगे  l
राज्य अधिकारियों   ने  अष्टावक्र  को  बंदी  बना  लिया   और  राजा  के  पास  पहुंचे  l  राजा  जनक  ने  सारा  किस्सा  सुना  तो  वे  बड़े  प्रभावित  हुए   और  कहा ---" इतने  तेजस्वी  और  विवेकवान  लोग  जहाँ  मौजूद  हैं   जो  राजा  को  भी  ताड़ना   कर  सकें  ,  तो  वह  देश  धन्य  है  l   नीति   और  न्याय  के  पक्ष  में  आवाज  उठाने  वाले   सत्पुरुषों  के  द्वारा  ही   जान - मानस  की  उत्कृष्टता  स्थिर  रह  सकती  है  l   राजा  जनक  ने  अष्टावक्र  से  माफी   मांगी   और  कहा ---- " मूर्खतापूर्ण  आज्ञा  चाहे  राजा  की  ही  क्यों  न  हो   तिरस्कार  के  योग्य  है  l   आपकी  निर्भीकता  ने  हमें  अपनी  गलती  समझने  और  सुधारने  का  अवसर  दिया  l  "

8 June 2020

WISDOM ----- प्रकृति के सन्देश को समझें

  महाभारत  में  एक  प्रसंग  है  ----  महारथी  कर्ण   के  पास  जन्मजात  कवच  और  कुण्डल  थे  ,  जिनके  रहते  उसे  परास्त  करना  असंभव  था  l   अर्जुन   की  सुरक्षा  के  लिए  देवराज  इन्द्र   ने   कर्ण   से  दान  में  उसके  कवच - कुण्डल  मांगने  का  निश्चय  किया  l   कर्ण   महादानी  और  सूर्यपुत्र  था  l  अत:  रात्रि  में  सूर्यदेव  कर्ण   के  पास  आये  और  कहा -- पुत्र  !  प्रात:  देवराज  इंद्र  वेश  बदलकर  तुम्हारे  पास  कवच - कुण्डल  मांगने  आएंगे  ,  तुम  उन्हें  मना  कर  देना ,  इनके  रहते  तुम्हे  कोई  पराजित  नहीं  कर  सकता  ,  इसलिए  तुम  उन्हें  कवच - कुण्डल  नहीं  देना  l "   लेकिन  कर्ण   ने  उनकी  बात  नहीं  मानी   और  अर्जुन  के  साथ  युद्ध  में  पराजित  हो  वीरगति  को  प्राप्त  हुआ   l
  आज  भी  ईश्वर  हमें  समय - समय  पर  विभिन्न  रूपों  में  समझाने   आते  हैं , सचेत  करने  आते  हैं   लेकिन  मनुष्य  अपने  अहंकार ,  लालच , तृष्णा  में  इतना  डूबा  हुआ  है  कि   प्रकृति  के  संदेश   को ,  उसकी  चेतावनी  को  नहीं  समझ  रहा   और  स्वयं  अपना  अंत  करने  पर  उतारू  है  l
  महामारी  का  कहर ,  दो  बार  समुद्री  तूफान ,  कई  बार  भूकंप ,  फिर  टिड्डी  दल  का  आक्रमण  ---  यह  सब   बड़े  खतरे  की  चेतावनी  है  ,  प्रकृति  हमें  समझा  रही  है  कि   विज्ञान   अपनी  मर्यादा   में  रहे , प्रकृति  को  जीतने  का  प्रयास    न  करे   l   मनुष्य  अपने  लोभ - लालच  पर  नियंत्रण  रखे   l   अति  हर  चीज  की  बुरी  है  ,  धन  का  अति  लालच  ,  गुलाम  बनाने  की  प्रवृति ,  अत्याचार - अन्याय -- इन  सब  की  अति  प्रकृति  को  बर्दाश्त  नहीं  है  l   मनुष्य  जागे ,  अन्यथा   शिवजी  के  तीसरे  नेत्र  को  खुलने  से  कोई  नहीं  रोक  सकता  l 

7 June 2020

WISDOM ------ निर्भय होकर जिएं

  आज  संसार  में  अधिकांश  समस्याएं   और  आपा - धापी  इसलिए  है  कि   हर  व्यक्ति  भयभीत  है ,  चारों  और  ' भय  का  कारोबार  है  '  l   यह  कारोबार  एक  दिन  में  नहीं  हुआ  है   l   मानवीय  कमजोरियों  से  फायदा  उठाने  के  लिए  आसुरी  प्रवृतियां   योजनाबद्ध  तरीके  से  यह  कारोबार  करती  हैं  l   बच्चों  के  कई  खेल - खिलौने   ऐसे  बनते  हैं  कि   छोटे - छोटे  दूध  पीते   बच्चे  उन  खिलौने   से  भयभीत  हो  जाते  हैं  l   इससे  उनके  कोमल  मन  पर  दुष्प्रभाव  पड़ता  है  ,  उनका  मन  कमजोर  हो  जाता  है  l   जो  माताएं  इस  सत्य  को  जानती  हैं , वे  गर्भावस्था  में  ही   अत्याधिक   शोर , भयभीत  करने  वाली  फिल्म  आदि  नकारात्मक  चीजों  से  दूर  रहती   हैं  l  भयभीत  करने  वाली  फ़िल्में , सीरियल  ,  खेल  आदि  को  लोग  बहुत  देखते  हैं  l   इन  सबसे  क्षणिक  मनोरंजन  होता  है   लेकिन   ये  भी  मन  को  कमजोर  कर  देती  हैं  l
   वैसे   ही   तो व्यक्ति  के  जीवन  में  अनेक  भय  हैं --- सौंदर्य  है  तो  बुढ़ापे  का  भय , धन  है  तो  उसके  चोरी  का   भय ,  सत्ता    है  तो  उसके  खोने  का  भय   l   इस  भय  से  मुक्ति  पाने  के  लिए  व्यक्ति    सौंदर्य  सामग्री ,  धन  की  सुरक्षा ,   सत्ता  को  बनाये  रखने  के  लिए  हजारों - करोड़ों  रूपये  खर्च  कर  देता  है  l   इन  सबसे  ऊपर  है --- मृत्यु  का  भय  l   हर  व्यक्ति  जीना  चाहता  है  ,  संसार  का  आकर्षण  ही  कुछ  ऐसा  है  l    अपनी  जिंदगी  पर  थोड़ा  सा  भी  खतरा   व्यक्ति    को    बेचैन  कर  देता  है  ,  इसी  का  फायदा  व्यवसायी  उठाते  हैं  l   गीता  में  कहा  गया  है --- निर्भय  होकर  जिओ  l  लेकिन  जब  बचपन  से  ही  डराने   वाली  सामग्री  से  मन  कमजोर  हो  जाये   तो  क्या  करें  ?  हर  समस्या   से   जागरूक   रहकर  ही   निपटा  जा  सकता  है  l 

WISDOM ------

  जब  बाबर  ने  अमीनाबाद  को  जीतकर  अपने  राज्य  में  मिला  लिया    तो  गुरु  नानक  और  उनके  शिष्य  मरदाना  को  भी  जेल  की  हवा  खानी   पड़ी  l   जब  बाबर  को  अपने  अधिकारियों   से  गुरु  नानक  की   आध्यात्मिक  शक्ति  का  पता  चला  तो  वह  उनसे   जेल  में  मिलने  गया  l
नानक  ने  बादशाह  को  देखकर  कहा --- " मनुष्य  का  धर्म  तो  लोगों  की  सेवा  करना  है  ,  और  आप  अपने  राज्य  की  प्रजा  पर  शासन  कर  रहे  हैं  l "  बाबर     ने  अपनी  भूल  स्वीकार  करते  हुए  कहा  --- " बाबा  ! यदि  आप  कुछ  मांगना  चाहते  हों  तो   नि:संकोच  मांग  लीजिए  l "
 गुरु  नानक  ने  कहा --- " राजा  से  तो  मूर्ख   मनुष्य  ही  मांगते  हैं  l  मुझे  यदि  किसी  वस्तु   की  आवश्यकता  भी  होगी   तो  ईश्वर  से  मांगूंगा  l   आपसे  मांगने  का  लाभ  भी  क्या  है  ?  देने  वाला  तो  दाता   एक  राम  है  ,  जो  मनुष्यों  को  तो  क्या  राजाओं    तक  को  देता  है  l "
 इतना  सुनकर  बाबर  ने  कहा --- " तो  आप  ही  मुझे  कुछ  प्रदान  कीजिए  l  "
 नानक  ने  एक  उपदेश  दिया ---- " बाबर  ! इस  संसार  में  किसी  भी  वस्तु  का  स्थायित्व  नहीं  है   l  ध्यान  रखो  !  आपका  या  आपके  पुत्रों  का  शासन  तब  तक  चलेगा   जब  तक  उसका  आधार   प्रेम  और  न्याय  बना  रहेगा  l  "  इस  उपदेश  से  बाबर  के  जीवन  की  दिशा  बदल  गई  l 

6 June 2020

WISDOM ------

 ब्रह्मा जी  ने  सृष्टि  की  रचना  की  l  बढ़ती  हुई  जनसँख्या  से  उन्हें  चिंता  हुई  तो  उन्होंने   अपने  तपोबल  से   मृत्यु   को  बनाया   और  उसे  आदेश  दिया  कि ---- ' मनुष्यों  की  बढ़ोत्तरी  न  हो  पाए  ,  इसलिए  तुम  उन्हें  मार - मारकर   परलोक  भेजती  रहो  l  '
यह  सुनकर  मृत्यु  रोने  लगी  कि   यह  निर्दयतापूर्ण  कार्य  मुझसे  न  हो  पायेगा   l   तब  प्रजापति  ने  उससे  कहा  ----  "  मैं  आठ  काल - दूतों  को   पृथ्वी  पर  भेजता  हूँ   l   वे  आदमी  के  मन  में  प्रवेश  कर   उन्हें  भीतर  ही  भीतर  खोखला  करते  रहेंगे  l   इनके  चंगुल  में  फँसे   रहने  के  कारण  वे  मरणासन्न  हो  जायेंगे    और  इस  क्लेश  से  मुक्ति  पाने  के  लिए   वे  स्वयं  ही  तुम्हारे  आश्रय  को  ढूंढने  लगेंगे  l   फिर  तुम्हारा  कार्य  निष्ठुरता  का  नहीं  दया  और  सांत्वना  का  होगा  l  '  मृत्यु  संतुष्ट  हो  गई  l   अब  ब्रह्मा जी  ने  काल - दूतों  से  उसका  परिचय  कराया ---- इनके  नाम  हैं  ---- असंयम ,  आवेश , ईर्ष्या ,  लोभ ,  निष्ठुरता ,  अशिष्टता ,  तृष्णा  और  आलस्य  l
  ये  जहाँ  रहेंगे   वहां  तीव्र  और  मंद  गति  से  आदमी  मरणासन्न  होते  रहेंगे  l 

WISDOM -----

  किसी  भी  समस्या  का  समाधान  करना  है  तो  उसकी  जड़  में  जाकर  मूल  कारण  को  समाप्त  करना  होगा   l  समस्या  कुछ  ऐसी  होती  है  कि   बच्चा  अपनी  माँ  की  गोद   में  ,  आँचल  में  छुपा   सो  रहा  है  ,   इस  बात  से  बेखबर  माँ   सारे  घर , मोहल्ले  में  बदहवास  होकर  अपना  बच्चा  ढूंढ  रही   कि   उसका  बच्चा  कहीं  खो  गया  l   थक - हार  कर  वह  पुलिस  थाने   पहुँचती  है  और  रो - रोकर   बच्चे   के    गुम   होने  की  रिपोर्ट  लिखाती   है  कि   उसका  एक  ही  बेटा   है  , मिल  नहीं  रहा   l    पुलिस वाला  पूछता  है -- यह  गोद   में  किसका  बच्चा  लिए  हो   ?  वह  औरत  बहुत  खुश  होती  है  कि   बच्चा  मिल  गया  l
  आज  सारा  संसार  एक  महामारी  से  पीड़ित  है  ,  चारों  ओर   इसका  इलाज  ढूंढा  जा  रहा  है  l  जब  सक्षम   माननीय  लोगों  ने  पहले  से  ही   भविष्यवाणी   कर  दी  थी  कि   एक  वायरस  फैलेगा  ,  तो  यह  निश्चित  है  कि   उन्हें  इसका  कारण  भी  पता  होगा  कि  ऐसा  क्यों  होगा  ?  बस  !  उस  कारण  को  दूर  कर  दिया  जाये   तो  सारे   संसार  को   मुसीबत  से  छुटकारा  मिल  जाये  l
  जैसे  कोई  मीठा  बहुत  खाता   है ,  दिनचर्या  अनियमित  है  ,  इस  कारण  के  आधार  पर  ही  भविष्यवाणी  की  जाएगी  कि  उसे  डाइबिटीज  होने  की  संभावना  है  l   इस  कारण  को  दूर  कर  दिया  जायेगा   तो  व्यक्ति  स्वस्थ  हो  जायेगा  l
पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है  कि   यदि  हमारे  मन  में  लोभ  नहीं  है ,  लोक - कल्याण  का  भाव  है   तो  दैवी  शक्तियां  मदद  करती  हैं ,  हर  समस्या  का  समाधान  संभव  है  l 

2 June 2020

WISDOM ----- तृष्णा का कोई अंत नहीं है

  तृष्णा  का  अंत  नहीं  है  l   व्यक्ति  वृद्ध  होता  जाता  है  लेकिन  उसकी  कामनाएं  समाप्त  नहीं  होतीं  l  स्थिति  तब  और  विकट   हो  जाती  है  जब    बढ़ती  उम्र  के  साथ  व्यक्ति  अपनी   असीमित  कामनाओं  को  तृप्त  करने  के  लिए   दूसरों  की  खुशियां   छीनता   है  l   पुराणों  में  एक  कथा  है  ---- महाराज  ययाति  बूढ़े  हो  गए   लेकिन  उनकी   कामनाएं   समाप्त  नहीं  हुईं  l   उन्होंने  अपने  पुत्रों  से  उनका  यौवन  माँगा   l   उनके  चार  पुत्रों  ने  तो  मना  कर  दिया   किन्तु   छोटे  पुत्र  ने  पिता  की  इच्छाओं  के  आगे  अपना  जीवन  उत्सर्ग  कर  दिया  l   अपना  यौवन  उन्हें  देकर  उन का  बुढ़ापा  ले  लिया  l   हजारों  वर्षों  तक  भोग  भोगने  के  बाद  भी  उन्हें  शांति  नहीं  मिली   l
  आज  संसार  की  स्थिति  कुछ  ऐसी  ही  है   युवा  लोगों  की  नौकरी  , उनकी  उमंगें   छिन   गईं  l   ययाति  आज  भी  हैं  , एक  नहीं  अनेक  हैं  l   हमारे  पूर्वजों  ने  इसलिए  आश्रम  व्यवस्था  की  थी  l   एक  निश्चित  आयु  के  बाद  वानप्रस्थ आश्रम  की  व्यवस्था  थी  ताकि  नई  पीढ़ी को  आगे  बढ़ने  का ,  परिवार  की  और  युग  की  जिम्मेदारी  निभाने  का  अवसर  मिले  लेकिन  मनुष्य  की  असीमित  इच्छाओं , लालच , तृष्णा  ने   सब  कुछ  ध्वस्त  कर  दिया  l 

1 June 2020

WISDOM ---- हम ईश्वर की संतान हैं , अपना मूल्य समझें

    आज  की  समस्त  समस्याएं  इसलिए  हैं  क्योंकि  हम  अपनी  कृषि , अपनी  चिकित्सा ,  अपनी  कला , अपनी  संस्कृति , अपनी  भाषा   और  अपनी  क्षमता  को   महत्व  न  देकर    पराई  चीजों  को  महत्व  देते  हैं  l   इसलिए  हम  बीच  में  फँसे   हैं ,  न  घर  के  रहे ,  न  घाट   के  l
अभी  भी  वक्त  है  ,  यदि  हम  संभल  जाएँ ,  जागरूक  हो  जाएँ ,  हमारा  स्वाभिमान   जाग    जाये  ,  तो  फिर  हमारा  मुकाबला  कोई  नहीं  कर  सकता  l   यदि  हम  केवल  चिकित्सा  के  बारे  में  बात  करें  ---- तो  हम  कितने  भाग्यवान  हैं  कि   हमारे  पास  अपनी  वैकल्पिक  चिकित्सा  है  l   यद्द्पि  एलोपैथी  का  बोलबाला  है  , लेकिन  यदि  ये  अंग्रेजी  दवाइयाँ   हमें  रिएक्शन  करती  हैं  तो  हम  घरेलू    चिकित्सा , आयुर्वेदिक  , होम्योपैथी , प्राकृतिक , सूर्य चिकित्सा   आदि    हमारे  प्राचीन  साहित्य  में  चिकित्सा   के  विशेषज्ञों  से  चिकित्सा  करा  के  स्वस्थ  हो  सकते  हैं  l
 आज  उन  लोगों  की  और  उन  देशों  की  स्थिति   बहुत   दयनीय  है   जो  पूरी  तरह  एलोपैथी  पर  निर्भर  है  l  यह  पद्धति   भी  अच्छी  है  लेकिन  इसकी  अपनी  सीमायें  हैं  जैसे --- एक  व्यक्ति  को  पेट दर्द  हुआ   तो  एक  गोली  खाई ,  फिर  ब्लड प्रेशर  है , डाइबिटीज है  तो  उसकी  दवाई  खाई ,  फिर  हाथ - पैरों  में  दर्द  है  तो  उसकी  एक  गोली ,  तनाव  है  सिर   दर्द  है  तो  उसकी  एक  गोली  ------ शरीर  चलता - फिरता  मेडिकल स्टोर  बन  जाता  है  l   फिर  विभिन्न  दवाइयों  के  साइड इफेक्ट  l   बीमारियाँ   पीछा  नहीं  छोड़तीं  l
    लेकिन  यदि  हम  अपनी  संस्कृति , अपना  मूल्य  समझेंगे  तो  बीमारी  हमसे   दूर  भागेगी  l
जैसे  --- सुबह  जल्दी  उठे , सूर्य  देवता  के  दर्शन  किये , गायत्री मन्त्र  जपा ,  प्राणायाम  किया   तो  आधी  बीमारी  तो  वैसे  ही  चली  गई  l  और  शेष  का  इलाज  हमारी  रसोई  में  और  प्रकृति  में , आयुर्वेद  में  मिल  जाता  है   जैसे --- पेट  दर्द  है  तो  हींग , अजवाइन  खा  ली ,  गुनगुने  पानी  से  एक  चम्मच  हल्दी  फाँक   ली l , लहसुन  ,   नीम  की  पत्ती , जामुन  की  पत्ती ,  अर्जुन  की  छाल,  आंवला   ----- आदि   का  सेवन या  इनसे  बनी   औषधि   का  सेवन  करने   से  ही  व्यक्ति  स्वस्थ  हो  सकता  है  l   खरचा   भी  कम , बजट  संतुलित    और  कोई  रिएक्शन  भी  नहीं   l     जब  लोगों  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  होता  है   तो  बीमारी  भी 
स्टेट्स   सिंबल   बन  जाती  है  ,  व्यक्ति  उसमें   अंधाधुंध  पैसा  खर्च  कर  के  ,  और  फिर  से  एक  नई  बीमारी  लेकर  भी  गर्व  महसूस  करता  है  l   इसलिए  हम  ईश्वर  से  सद्बुद्धि  के  लिए  प्रार्थना  करें ,  जिससे  हमारे  जीवन  को  सही  दिशा  मिले   l