18 February 2024

WISDOM ----

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  है ---- जब  तक  व्यक्ति  स्वयं  न  चाहे  , उसके  संस्कारों  में  परिवर्तन  कठिन  है  l  अनेक  बातों  को  सुनने , समझने  और  जानने  के  बावजूद   भी   वह  वही  करता  है  जहाँ  उसके  संस्कार  खींचते  हैं  , जिसके  लिए  उसकी  वृत्तियाँ  उसे  वशीभूत  करती  हैं   l '    जब  व्यक्ति   संकल्प  ले  और  श्रेष्ठ  गुरु  के  बताए  मार्ग  पर  चले   तब  कठोर  साधना  और  गुरु  की  कृपा  से  ही  रूपांतरण  संभव  होता  है  l   प्रवचन  और  रटी -रटाई  बातों  से  संस्कार  परिवर्तित  नहीं  होते  l   इस  संबंध  में  वे  बहेलिया  और  पक्षियों  की  कथा  कहते  हैं -----  अनेक  ज्ञानीजनों  ने  पक्षियों  को  समझाया  था   कि  बहेलिया  किसी  भी  तरह  भरोसेमन्द  नहीं  है  l  वह  बड़ा  चालाक , धूर्त  व  मक्कार  है  l  वह  जंगल  में  आएगा ,  अपना  जाल  बिछाएगा ,  उसमें  दाने  डालेगा  ,  लेकिन  तुम में  से  किसी  को  इसमें  फंसना  नहीं  है  l   कहते  हैं  कि  सबने  यह  बात  पक्षियों  को  इतनी  ज्यादा  बार  समझाई  कि  उन्हें  रट  गई  l    बहेलिया  जब  जंगल  में  आया   तो  ज्ञानीजनों  द्वारा  पढ़ाये  गए  पक्षी   बड़े  उच्च  स्वर  में  अपने  पढ़े  हुए  पाठ  को  दोहरा  रहे  थे  l  बहेलिया  आएगा  , अपना  जाल  बिछाएगा  ,  दाने  डालेगा , लेकिन  इन  दानों  को  चुगना  नहीं  है  l  किसी  भी  कीमत  पर  बहेलिए  के  जाल  में   फँसना  नहीं  है  l  बहेलिए  ने  पक्षियों  की  यह  पाठ -रटन  सुनी ,  वह  चालाकी  से  मुस्कराया  l  फिर  उसने  हँसते  हुए   अपना  जाल  फैलाया  , उसमें  दाने  डाले  और  दूर  खड़ा  हो  गया  l  अपनी  प्रवृत्ति  के  वशीभूत  पक्षी   अपना  पाठ  रटते -दोहराते   उसके  जाल  पर  आ  बैठे  l  वे  दाने  चुगते  गए  और  जाल  में  फँसते  गए   l  उनकी  प्रवृत्ति  और  संस्कारों  पर  इस  पाठ -रटन   का  कोई  प्रभाव  नहीं  पड़ा   l  मानव  मन  की  स्थिति  भी  यही  है  l