15 April 2024

WISDOM ------

  बादशाह  अब्बास  अपने  एक  पदाधिकारी  के  यहाँ  दावत  में  गए   l  वहां  उन्होंने  और  सब  साथियों  ने  इतनी  मदिरा  पी  ली    कि  किसी  के  होश -हवाश   दुरुस्त  नहीं  रहे  l  नशे  की  झोंक  में  बादशाह  खड़े  हो  गए   और  उस  पदाधिकारी  के  अंत:पुर   की  ओर  जाने  लगे  ,  लेकिन  दरवाजे  पर  उस  पदाधिकारी  का  नौकर  इस  प्रकार  खड़ा  था  कि   उसे  हटाये  बिना   बादशाह  भीतर  नहीं  घुस  सकते  थे  l  उन्होंने  नौकर  से  कहा --- " अभी  यहाँ  से  हट  जा    वरना    मैं  तलवार  से   तेरा  सिर  उड़ा  दूंगा   l "   नौकर  ने  सिर  झुककर  कहा ---- " हुजूर   , आप  मेरे  देश  के  स्वामी  हैं  , इसलिए  मैं  आप  पर  हाथ  तो  नहीं  उठा  सकता  ,  पर  यह  निश्चय  है  कि   आप  मेरी  लाश  पर  पैर  रखकर  ही   भीतर  जा  सकेंगे  l  याद  रखिए  कि  भीतर  जाने  पर   बेगमें  तलवार  लेकर   आपका  मुकाबला  करेंगी  ,  क्योंकि  जब  उनकी  इज्जत  पर  हमला  किया  जायेगा   तो  वे  अपना  बचाव  जरुर  करेंगी  l  "  बादशाह  का  नशा  सेवक  की  खरी   बातों  को  सुनकर  ठंडा  पड़  गया   और  वे  वापस  चले  गए  l   दूसरे  दिन  उस  पदाधिकारी  ने  बादशाह  से  कहा ---- " मेरे  जिस  नौकर  ने   कल   आपके  साथ  बेअदबी  की   थी  उसे  मैंने  नौकरी  से  निकाल  दिया  है  l "  बादशाह  ने  कहा ----- " यह  तो  बहुत  अच्छा  हुआ  l  मैं  उसे  आपसे  मांगकर   अपने  अंगरक्षकों  का   सरदार   बनाना  चाहता  था  l  आप  उसे  बुलाकर  मेरे  पास  भेज   दीजिए  l  सच्चे  व्यक्ति  की  कद्र  सब  जगह   होती  है  l  

14 April 2024

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- '  केवल  शिक्षा  और  बुद्धि  का  विकास  हो  लेकिन  मनुष्य  के  द्रष्टिकोण  का  परिष्कार  न  हो , ह्रदय  में  संवेदना  न  हो , ईमानदारी  न  हो  ,  ऐसा  ह्रदयहीन   दुनिया  का  सफाया  कर  के  रहेगा  ,  उसका  सत्यानाश  और  सर्वनाश  कर  के  रहेगा  l  जितनी  पैनी  अक्ल  होगी  ,  उतने  ही  तीखे  विनाश  के  साधन  होंगे  l  बुद्धि  के   विकास  के  साथ -साथ  लोगों  का  ईमान , द्रष्टिकोण  , उनका  चिन्तन  परिष्कृत  होना  चाहिए  l  बड़ी  फक्त्रियाँ  नहीं  , बड़े  इनसान   बनाने   चाहिए  l "    प्रसंग  है  ----ब्रिटिश  संसद  में   वेतन  बढ़ाने  की  मांग  को  लेकर   दार्शनिकों  की  राय  को  जानने  के  लियर   पार्लियामेंट  में   कुछ  विशेषज्ञों  को  बुलाया  गया  ,  उनमें  से  एक  थे ---जान  स्टुअर्ट  मिल   l  वे  उस  ज़माने  के  माने  हुए  फिलास्फर  और  महान  अर्थशास्त्री  थे  l  जान  स्टुअर्ट  मिल  आए  और  उन्होंने  छूटते  ही  कहा  --- " मजदूरों  का  वेतन  न  बढ़ाया  जाये  l  वेतन  बढ़ाने  के  मैं  सख्त  खिलाफ  हूँ  l  उन्होंने  अपनी  गवाही  में  कहा   कि  जो  वेतन  बढ़ाया  जा  रहा  है  ,  उसकी  तुलना  में  उनके  लिए  स्कूलों  का  प्रबंध  किया  जाए  ,  उनके  पढ़ने -लिखने  का  , दवा -चिकित्सा  का  इंतजाम  किया  जाए  l  उनके  शिक्षण  का  प्रबंध  किया  जाये  और  जब  वे   सभी   और  सुसंस्कृत   होने  लगे  ,  तब  उनके  पैसों  में  वृद्धि  की  जाए  l  अन्यथा  पैसों  में  वृद्धि  करने  से  मुसीबत  आ   जाएगी  l  ये   मजदूर    तबाह  हो  जाएंगे  l  "    उनकी  बात  वहीँ  खत्म  हो  गई  और  सभी  ने  एक  मत  से  मजदूरों  का  वेतन   डेढ़  गुना  बढ़ा  दिया  l  तीन  साल  बाद   जब   जब  इस  बात  की  जाँच  की  गई  कि     डेढ़  गुना  वेतन  जो  बढ़ाया  गया   उसका  लाभ  मजदूरों  को  क्या   लाभ  मिला   ?  मालूम  पड़ा  कि  मजदूरों  की  बस्तियों  में  जो  शिकायतें  पहले  थीं  ,  वे  पहले  से  दोगुनी  हो  गईं  l  खून -खराबा  पहले  से  दोगुना  हो  गया  l  शराबखाने   और  चारित्रिक  पतन  करने  वाले  साधन दुगुने , चौगुने  हो  गए   और  उनसे  होने  वाली  बीमारियाँ  दुगुनी , चौगुनी  हो  गईं  l  तब  लोगों  को  समझ  आया  कि  जे . एस . मिल  की  गवाही  सही  थी   कि   जब  तक  धन  के  सदुपयोग  करने  की  चेतना  विकसित  न  हो  वेतन  नहीं  बढ़ना  चाहिए  l   हमारे  ऋषियों  ने  भी  कहा  है  कि  धन  जीवन  के  लिए  अनिवार्य  है  ,  लेकिन  हमें  इसका  सदुपयोग  करना  आना  चाहिए   यह  बात  केवल  मजदूरों  के  लिए  ही  नहीं   , डाक्टर ,  इंजीनियर , व्यापारी , नेता , अधिकारी   आदि  हर  व्यक्ति  पर  लागू  होती  है  l  आज  सारा  संसार  धन  के  ही  पीछे  भाग  रहा  है   लेकिन  चेतना  परिष्कृत  न  होने  से ,  संवेदना , ईमानदारी , नैतिकता    आदि  आध्यात्मिक  गुणों  से  जुड़ाव  न  होने  के  कारण  ही   आज  सारा  संसार    बारूद  के  ढेर  पर  खड़ा  है  l  मानव  सभ्यता  के  इस  विनाश  को  धन  से  नहीं  बचाया  जा  सकता  , धन  तो  और  घातक  हथियार  बनाकर  उसे  विनाश  की  ओर  धकेल  रहा  है  l  केवल  अध्यात्म  में  ही  वह  ताकत    है , जिसका  सहारा  लेकर    इस  संसार  को  विनाश  से   बचाया  जा  सकता  है  l  

12 April 2024

WISDOM ------

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' ज्ञान  प्रकाश  है  , जबकि  अज्ञान  अँधियारा  है  l  जीवन  में  सफलतापूर्वक  चलने  के  लिए   ज्ञान  के  प्रकाश  की  जरुरत  होती  है  l  ज्ञान  स्वयं  की  आँखें  हैं  ,  इसे  स्वयं  ही  पाना  होता  है  l  स्वयं  का  ज्ञान  ही  असहाय  मनुष्य  का  एकमात्र  सहारा  है  l  "------ सूफियों  में  बाबा  फरीद   का  कथा -प्रसंग  है  ---- बाबा  फरीद  ने  अपने  शिष्यों  से  कहा ---" ज्ञान  को  उपलब्ध  करो  l  इसके  अतिरिक्त  कोई  दूसरा  मार्ग  नहीं  है  l "  यह  सुनने  पर  शिष्य  नम्र  भाव  से  बोला  ---- " बाबा  !  रोगी  तो  हमेशा  वैद्य  के  पास  ही  जाता  है  , स्वयं  चिकित्साशास्त्र  का  ज्ञान  अर्जित  करने  के   फेर  में  नहीं  पड़ता  l  आप  मेरे  मार्गदर्शक  हैं  , गुरु  हैं  l  यह  मैं   जानता  हूँ  कि  आप  मेरा  उद्धार  करेंगे   l  तब  फिर  स्वयं  के  ज्ञान  की  क्या  आवश्यकता   है  l "   यह  सुनकर  बाबा  फरीद  ने  एक  कथा  सुनाई  -----  एक  गाँव  में  एक  वृद्ध  रहता  था   l  मोतियाबिंद  के  कारण  अँधा  हो  गया   तो  उसके  बेटों   ने   उसकी  आँखों  की  चिकित्सा  करानी  चाही   l    वृद्ध  ने  अस्वीकार  कर  दिया   और  कहने  लगा --- " भला  मुझे  आँखों  की  क्या  जरुरत  l  तुम  आठ  मेरे  पुत्र  हो , आठ  बहुएं  हैं , तुम्हारी  माँ  है   l  ये  चौतींस  आँखें  तो  मुझे  मिली  हैं  l  मेरी  दो  नहीं  तो  क्या  हुआ  ? "   पिता  ने  पुत्र  की  बात  नहीं  मानी   l   कुछ  दिनों  के  बाद  अचानक  एक  रात  घर  में  आग  लग  गई  l  सभी  अपनी  जान   बचाने  के  लिए  भागे  ,  वृद्ध  की  याद  किसी  को  न  रही  l  वह  उस  आग  में  जलकर  भस्म  हो  गया  l   वृद्ध  की  स्वयं  की  आँखें  होतीं  तो  वह  भी  भाग  कर  अपनी  जान  बचा  लेता  l 

11 April 2024

WISDOM -----

   पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----- "  सांसारिक  रिश्तों  को  निभाते  समय  अपना  एक  रिश्ता  भगवान  से  बना  लेना  चाहिए  l  इनसान  से  रिश्ते  और  भगवान  से   रिश्ते  में   यही  फर्क  है  कि   इनसान  किसी  दूसरे  इनसान  की   छोटी  सी  गलती  को  भी  जीवन  भर  याद  रखता  है  ,  जबकि   भगवान  उस  इनसान  की  जीवन  भर  की  गलतियों  को  भुलाकर   उसके  अच्छे  कर्मों   पर  ध्यान  देते  हैं  l  "   ईश्वर  से  रिश्ता  हमें  एक  अनोखी  ताकत  देता  है   कि  सारा  संसार  हमारे  विरुद्ध  हो  जाये   लेकिन  यदि  ईश्वर  हमारे  साथ  है   तो  संसार  की  कोई  भी  ताकत  हमारा  कुछ  नहीं  बिगाड़  सकती   l   ईश्वर  विश्वास  में  अनोखी  शक्ति  है   l  इस  कलियुग  में   जब  रिश्तों  में   धोखा  ,  छल ,कपट , षड्यंत्र  , स्वार्थ  , धन -संपदा  के  लिए  खींचातानी, मुकदमेबाजी     है   तो  रिश्तों  की  अहमियत  ख़तम  हो  गई  है   फिर  बहुत  से  लोग  ऐसे  भी  हैं   जो  अपने  अहंकार  के  पोषण  के  लिए    रिश्तों  को  इस  तरह  बाँध  कर  रखना  चाहते  हैं   ताकि  उनके  संभ्रांत  होने  के  पीछे  छिपी  कालिख  समाज  के  सामने  न  आ  जाये   l  परिवार  में   होने  वाली  हिंसा , उत्पीड़न , शोषण ,   अपने  ही  परिवार  के  सदस्य  को  अपना  प्रतिस्पर्धी  मानकर   उसे  चैन  से  जीने  न  देना ,  उसका  सुख -चैन   छीनना ----- यह  सब  सांसारिक  रिश्ते  में   ही  होता  है  l  ईश्वर  से  रिश्ते  में  शांति  है , सुकून  है  ,  ईश्वर  हमारे  जीवन  में  दखल  नहीं  देते  ,  वो  हमेशा  हमें  चुनाव  करने  की  स्वतंत्रता  देते  हैं  l  हमारे  सामने  अच्छाई - बुराई , सकारात्मक - नकारात्मक   दोनों  तरह  के  मार्ग  हैं  , चयन  हमें  करना  है   फिर  जैसी  हमारी  राह  होगी  हमारे  कर्म  होंगे  वैसा  ही  परिणाम  हमारे  सामने  आएगा  l  ईश्वर  से  रिश्ते  की  सघनता  ही  भक्ति  है   और  यह  भक्ति  जंगल  में  रहना  नहीं  है  , संसार  में  रहकर  सफलतापूर्वक  , शांति  व  सुकून  का  जीवन  जीना  है  l   भक्त  प्रह्लाद  की  कथा  है  ---  वे  भक्त  होने  के  साथ  राजा  भी  थे  ,  उनके  पास  बुद्धियोग  का  बल  था  l  बुद्धियोग  एक  तरह  की  भावनात्मक  योग्यता  है   जिसमें  व्यक्ति  अपनी  कुशल  और  कुशाग्र  बुद्धि  से   अपनी  भावनाओं  का  सही  उपयोग  व  नियोजन  कर  पाता  है  l   एक  बार  उनके  दरबार  में   दो  माताएं  एक  बच्चे  को  लेकर  आईं   और  दोनों  ही  कहने  लगीं  कि  वे  ही  इसकी  माँ  हैं  , दोनों  ने  ही  पक्के   सबूत   दिए  l  सब  मंत्रीगण  सोच  में  पड़  गए  , निर्णय  महाराज  प्रह्लाद  को  करना  था   कि  असली  माँ  कौन  है  ?   राजा  प्रह्लाद  ने  प्रभु  का  स्मरण  किया   और  घोषणा  की  कि   इसी  क्षण  इस  बच्चे  के  दो  टुकड़े  कर  दिए  जाएँ   और  दोनों  माताओं  को  एक -एक  टुकड़ा  दे  दिया  जाये  l  यह  सुनकर  सारी  सभा  स्तब्ध  रह  गई  l  तभी  दोनों  माताओं  में  से  एक  माता   रोते  हुए  बोली ---- '  महाराज  !  आप  ऐसा  न  करें  l  इसे  ही  यह  बच्चा  दें  दे  l  यह  बच्चा  मेरा  नहीं  है  , मैं  इसकी  माँ  नहीं  हूँ  , आप  इसे  ही  यह  बच्चा  दे  दें  l  '   इस  दौरान  दूसरी  महिला  कुछ  न  बोली   l    इसके  बाद  महराज  ने  अपना  निर्णय  सुनाते  हुए  कहा ---- "   यह  बच्चा  इस  रोने   वाली   माता  का  है  , इसे  बच्चा  दे  दिया  जाये   और  दूसरी  महिला  को  बंदी  बना  लिया  जाये   जो  दूसरों  की  भावनाओं  को  छलने  का  प्रयास  कर  रही  है  l  "  महाराज  प्रह्लाद  को  पता  था   कि  माँ  का  ह्रदय  बच्चे  के  लिए  कितना  व्याकुल  होता  है  वह  चाहती  है  कि   उसका  बच्चा   स्वस्थ  और  सकुशल  रहे  l  जिसके  ह्रदय  में  बच्चे  के  लिए  संवेदना  नहीं  , वह  माँ  नहीं  है  l   

10 April 2024

WISDOM -------

  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " जीवन  में  यदि  सुख  है , तो  दुःख  भी  आएगा  l  यदि  दुःख  है , तो  सुख  भी   निश्चित  रूप  से  मिलेगा  l  यदि  आज  यश -सम्मान  , प्रतिष्ठा   है , तो  कभी  अपयश  भी  मिल  सकता  है  l  इसलिए  अपनी  मन: स्थिति  को   इन  सब  अवस्थाओं  के  लिए   तैयार  रखना  चाहिए   और  जीवन  में  ऐसे  कर्म  करने  चाहिए   कि  जिनसे  हम   इन  परिस्थितियों  को   बेहतर  समझ  सकें   और  इन्हें  सहन  कर  सकें  l "   आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं ---' किसी  भी  तरह  के  समय  को   परिवर्तित  करना  हमारे  हाथ  में  नहीं  होता  , यह  परिवर्तन  स्वत:   होता  है  , जिसे  हमें  स्वीकार  करना  पड़ता  है   l  जिस  तरह  रात्रि  को  हम  दिन  में  नहीं  बदल  सकते  , लेकिन  विद्युत  के  माध्यम  से   बल्ब  जलाकर   अंधकार  को  दूर  कर  सकते  हैं  ,   उसी  तरह  हम   दुःख , पीड़ा , कष्ट  , अपयश  आदि  के  आने  पर   इन्हें  तुरंत  दूर  नहीं  कर  सकते  ,  लेकिन  इन  परिस्थितियों  में   ईश्वर  का  स्मरण  करते  हुए  ,  शुभ  कर्म  कर  के   और   तप  कर  के   हम  इनसे  लाभान्वित  हो  सकते  हैं  l "   अकबर - बीरबल  की  कहानियों  का  एक  प्रसंग  है ---- एक  बार  सम्राट  अकबर  ने  सभासदों  से  पूछा ----"  इस  संसार  में  ऐसा  क्या  है  ,  जिसको  जान  लेने  के  बाद   सुख  में  दुःख  का   अनुभव  हो   और  दुःख  में  सुख  का   l "  सभा  में  सन्नाटा  छ  गया  , सबकी  नजरें  बीरबल  पर  टिकीं  थीं  l  बीरबल  ने  कहा ---- "  यह  केवल   एक  वाक्य  है   जिसके  स्मरण  से   व्यक्ति  को   सुख  में  दुःख  का  और  दुःख  में   सुख  का  अनुभव  होता  है   और  यह  वाक्य  है ---- ' यह  समय  भी  गुजर  जायेगा  l "  बीरबल  के  इस  जवाब  से  अकबर  बहुत  प्रसन्न  हुए  l 

8 April 2024

WISDOM -----

   एक  युवक  ने  भगवान  बुद्ध  से  दीक्षा  ली  l  इससे   पूर्व    वह  सुख -भोग  में  पला  था   और  संगीत  की  सभी  विधाओं  में  पारंगत  था   l   अचानक  ही  उसे  वैराग्य  हो  गया   और  वैराग्य  भी  ऐसा  कि  उसने  अति  कर  दी  l  सब  भिक्षु  मार्ग  पर  चलते  तो  वह  काँटों  पर   जानबूझ  कर  चलता  l  अन्य  भिक्षु  समय  पर  सोते  लेकिन  वह  रात  भर   जागता  l  सब  भोजन  करते  , वह  उपवास  करता  l   इस  तितिक्षा  के  कारण  छह  माह  में  उसका  शरीर   सूख  कर  काँटा  हो  गया  ,  पैरों  में  छाले  पड़  गए   l  तप -तितिक्षा  की  उसने  अति  कर  दी  l  एक  दिन  भगवान  बुद्ध  ने  उसे  बुलाकर  पास  बिठाया  और  पूछा  ---- "  तुम  तो  यहाँ  आने  से  पहले  संगीत  के  अच्छे  ज्ञाता  रहे  हो  ,  यह  बताओ  कि  वीणा  से   मधुर  ध्वनि   निकले  , इसके  लिए  क्या  किया  जाता  है  ? "    युवक  ने  उत्तर  दिया ---- "  तारों  को  संतुलित  रखा  जाता  है  l "   बुद्ध  बोले ---- "  भंते  !  यही  साधना  में  भी  किया  जाता  है  l  शरीर  भी  वीणा   के  समान  है  l  वीणा  के  तारों  को  इतना  मत  कसो  कि  वे  टूट  जाएँ  ,  और  इतना  ढीला  भी  मत  छोड़ो  कि  वे  बजना  ही  छोड़  दें  l  यदि  इसे  समत्व  की , संतुलन  की  स्थिति  में  रखोगे   तो  साधना  सिद्धि  में  परिणत  होगी  l  "  युवक  की  समझ  में  मर्म  आ  गया  ,  जीवन  का  कोई  भी  क्षेत्र  हो   उसमें  संतुलन  जरुरी  है  l  

7 April 2024

WISDOM -----

   गुलाब  का  पौधा  एक  राजनीतिज्ञ   के  पास  कुछ  सीखने  के  उदेश्य  से  पहुंचा  l  राजनीतिज्ञ   ने  उसे  सिखाया  --- " जो  जैसा  व्यवहार  करता  है  , उसके  साथ  वैसा  ही  व्यवहार  करना  चाहिए  l  दुष्ट  के  साथ  दुष्टता  करना  ही  नीति  है  ,  यदि  ऐसा  न  किया  गया  तो   संसार  तुम्हारे  अस्तित्व  को  मिटाने  में  लग  जायेगा  l  "                गुलाब  ने  उस  राजनीतिज्ञ   की  बात  गाँठ  बाँध  ली  l  घर  लौटकर  आया   और  अपनी  सुरक्षा  के  लिए   काँटे  उत्पन्न  करने  लगा  ,  जो  कोई  उसकी  ओर  आता  ,  वह  काँटे  छेद   देता  l   कुछ  दिनों  बाद   उस  पौधे  को   एक   साधु  से  सत्संग  का  भी  अवसर  मिला  l  साधु  ने  उसे  बताया  ---- "   परोपकार  में  अपने  जीवन  को  खपाने  वाले  से  बढ़कर   सम्माननीय   कोई  दूसरा  नहीं  होता  l  "  परिणामस्वरूप   गुलाब   गुलाब  ने   उस  दिन  अपने  प्रथम  पुष्प  को  जन्म  दिया  l  उसकी  सुगंध  दूर -दूर  तक  फैलने  लगी  ,  जो  भी  पास  से  गुजरता  ,  कुछ  क्षण  के  लिए   उसके  सौन्दर्य  और  सुरभि  से  मुग्ध  हो  जाता  l  आज  गुलाब  ने  जो  सम्मान  पाया  वह  अपने  काँटों  के  बल  पर  नहीं   वरन  अपने   पुष्पों  के  सौन्दर्य  और  सुरभि  के  बल  पर  l