1 December 2019

WISDOM ----- विज्ञान ने मनुष्यों को एक हाथ से जो कुछ दिया , उसकी दुष्प्रवृतियों ने उसे दूसरे हाथ से छीन कर उसे घुटन भरा , तनाव पूर्ण वातावरण दिया दिया

     पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने    लिखा  है ---- ' आज  औसत  मनुष्य  की  ऐसी  विपन्न  परिस्थिति  है , जिसमें  जीना  और  मरना  दोनों  ही  कठिन  हो  रहा  है   l  आलस , प्रमाद , नशेबाजी , आवारागर्दी  जैसे   दुर्व्यसन    के  कारण    पशु - पिशाच  स्तर की   अवधारणा  ही  व्यवहार  में   उतरती  है  l '
  आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं --- ' इन  दिनों  जिधर  नजर  डालकर  देखते  हैं   अनर्थ  का  ही  बोलबाला  दीखता  है   l   पाप  की  विजय  दुंदभी   बज  रही  है   l   कुम्भकरण  का  खुलता  हुआ  मुँह   असंख्यों  को  चबैने  की  तरह  चबाता  दीखता  है   l   पृथ्वी  को  चुरा  ले  जाने  वाले  हिरण्याक्षों   की  कमी  नहीं  l   इतने  पर  भी  कोई  अदृश्य  शक्ति  कहती  है    कि   उसकी  नियत  मर्यादाओं  का  उल्लंघन  देर  तक  नहीं  चल  सकेगा   l   अनाचार  को  एक  सीमा  से   आगे  नहीं  बढ़ने  दिया  जा  सकता   l  '  
 आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं --- 'जब  असुरता  के  शक्तिशाली  साम्राज्य  पृथ्वी  के  अधिकाश  भाग  को   शिकंजे  में  कसे   हुए  थे  ,  उसे  कुचल  देने  के  लिए   जब  मनुष्यों  ने  इनकार   कर  दिया    तो  रीछ , वानरों  की  मंडली    अपनी  अदक्षता  से  परिचित  होते  हुए  भी  मैदान  में  कूद  पड़ी   l   और  उसने  वह  कर   दिखाया  जिस  पर  सहज  विश्वास  नहीं  होता   l    समुद्र  लांघना , पर्वत  उठाना  , लंका  जलाना  ,   समुद्र  पर  पल  बनाना ,  यह  सब  कैसे  संभव  हो  सका  ?    इस  गुत्थी  के  समाधान  में  वह  विश्वास  है   कि   हर  अति  का  अंत  होता  है  ,  अनाचार  को  एक  सीमा  से  आगे  नहीं  बढ़ने  दिया  जा  सकता   l
       '  पराजितों  की  शक्ति  भी   संगठित  होकर    कभी - कभी   अपनी  समर्थता  का  अद्भुत  परिचय  देती  है  l  हारे  हुए  देवताओं  की  शक्ति   सामर्थ्य  को  संगठित  कर  के   प्रजापति  ने   देवी  दुर्गा  की  रचना  की   और  उसके  अदृश्य  हाथों  ने  दृश्यमान   महा बलशाली   मधु कैटभ , महिषासुर , शुंभ ,  निशुम्भ   जैसे  दुर्दांत  दैत्यों  को   धरती  में  मिला  दिया  l  '
 आचार्य श्री  लिखते  हैं   एक  दूसरे  को  ठगने  के  लिए   सज्जनता  का  लिबास  तो   बहुत  लोग  ओढ़ते  हैं    पर  जिनकी  कथनी  और  करनी  मानवी  मर्यादाओं  के  अनुरूप  हो   ऐसे  कहीं  कोई   विरले  ही   दीख  पड़ते  हैं  l