नारी पर अत्याचार की गाथा कोई नई नहीं है , विभिन्न देश , विभिन्न समाज अपने अपने तरीके से नारी पर अत्याचार करते हैं l लेकिन हम जब संसार में शांति की बात करते हैं , अहिंसा की बात करते हैं , स्वयं को शांति प्रिय कहकर अन्य देशों पर आक्रमण नहीं करते , ऐसे में नारी पर अत्याचार की अनेक घटनाएं जो मनुष्य को पशु से भी निम्नतर स्तर पर ले जाती हैं , समाज के लिए कलंक हैं l नारी को अत्याचार सहते - सहते एक युग बीत गया l जिन जातियों ने स्वयं को श्रेष्ठ कहा उन्होंने ही सती - प्रथा के नाम पर नारी को जिन्दा जलाया l कन्या - वध के नाम पर बच्ची के पैदा होते ही उसे मार डाला l फिर बालिका भ्रूण हत्या l दहेज़ - प्रथा के नाम पर नारी पर अत्याचार , पारिवारिक हिंसा - उत्पीड़न ! पहले नारी पर अत्याचार एक सामाजिक बुराई थी लेकिन अब उसमे राजनीति भी जुड़ गई l बड़े - बड़े अपराधी अपनी अपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने के लिए छुटभैया लोगों की मदद लेते हैं , इसके बदले में उन्हें पैसा भी देते हैं और समाज में अपराध करने की खुली छूट l इसलिए पकड़े जाने पर भी अपराधी बच जाते हैं l इस तरह की घटनाएं कभी - कभी समाज में अपने वर्चस्व को स्थापित करने के लिए , लोगों में आतंक पैदा करने के लिए प्रायोजित भी होती हैं l समस्याएं जब बढ़कर एक वृक्ष की तरह विशाल हो गई हों , तब उसे समाप्त करने के लिए जड़ को ही काटना पड़ता है l इसके लिए समाज का संगठित और जागरूक होना जरुरी है l
30 September 2020
WISDOM -----
गुरु नानक प्रव्रज्या पर थे l मुखमण्डल का तेज छिपाने के लिए उनने चेहरा ढँक लिया एवं कुछ फटे - पुराने कपड़े पहन लिए l सिपाहियों ने उन्हें बेगार में पकड़कर सेनापति के सम्मुख प्रस्तुत किया l वह उनका तेज देखकर उन्हें बाबर के पास ले गया l बाबर समझ गया कि यह खुदापरस्त फकीर है l कहीं कोई बददुआ न दे दे , यह सोचकर वह उठा और आदरपूर्वक उन्हें गद्दी दी l शाही सम्मान की रीति से उन्हें शराब परोसी गई l नानक देव बोले --- " बाबर ! हमने वह आला शराब पी है , जिसका नशा जन्म - जन्मांतर तक नहीं उतरता l " बाबर ने शर्मिंदा होकर हीरे - जवाहरात जड़े कपड़े मंगवाए l गुरु नानक ने कहा ---' इन्हे तू गरीबों में बंटवा दे , जिनका धन चूस - चूसकर तू सम्राट बना है l मेरे पास तो भगवान के नाम का धन है l सारी दौलत मिटटी है l " बाबर ने कहा --- ' मैं आपकी सेवा कैसे करूँ ? ' इस पर नानक देव ने कहा --- " तेरे यहाँ जितने कैदी हैं , उन्हें छोड़ दे और लूटपाट बंद करवा दे --- यही हमारी सबसे बड़ी सेवा है l ' बाबर ने तुरंत आदेश दिया l
29 September 2020
WISDOM -------
इनसान बनना बहुत कठिन है , लेकिन पशु बनना , पाशविक कार्य करना बहुत सरल है l और ऐसा कर के मनुष्य अपनी ही जाति, अपनी ही संस्कृति और अपने ही देश के गौरव को कलंकित करता है l
लंदन प्रवास में एक सभा के बीच जब स्वामी विवेकानंद भारत के गौरव का वर्णन कर रहे थे , तब एक आलोचक ने उठकर पूछ लिया ---- " भारत के हिन्दुओं ने क्या किया है ? वे आज तक किसी जाति पर विजय प्राप्त नहीं कर सके l " तब स्वामीजी ने कहा --- " नहीं कर सके नहीं , कहिए कि उन्होंने की नहीं l यही हिन्दू जाति का गौरव है कि उसने कभी दूसरी जाति के रक्त से पृथ्वी को रंजित नहीं किया l वे दूसरों के देश पर अधिकार क्यों करेंगे l भारत को भगवान ने दाता के महिमामय आसन पर प्रतिष्ठित किया l वह देगा की छीनेगा ? भारतवासी आप लोगों की तरह रक्तपिपासु दस्यु नहीं थे l इसलिए मैं अपने पूर्वजों के गौरव से स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता हूँ l " ऐसा जवाब योद्धा संन्यासी स्वामी विवेकानंद ही दे सकते थे l
WISDOM ----- प्राणी का आंतरिक स्तर उठाए बिना उसे उत्तम स्थिति में नहीं पहुँचाया जा सकता ----- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
भौतिक प्रगति के साथ चेतना का स्तर भी उच्च हो l एक कथा है --- देवर्षि नारद सबका सुख - दुःख जानने के लिए संसार में भ्रमण करते हैं l उनकी इच्छा हुई कि पृथ्वी पर जो प्राणी घिनौना , नारकीय जीवन जीवन जी रहे हैं , उन्हें स्वर्ग पहुंचा दें l इस क्रम में उन्होंने सबसे पहले कीचड़ में लोटते , गंदगी चाटते सुअर को देखा , उन्हें बड़ी दया आई l नारद जी ने उससे कहा --- ' ऐसा जीवन किस काम का ! चलो हम तुम्हे स्वर्ग पहुंचा देते हैं l ' नारद जी की बात सुनकर वाराह तैयार हो गया l रास्ते में उसने पूछ ही लिया ---- " वहां खाने , भोगने और लोटने के क्या साधन हैं l " नारद जी वहां के सब सुख बताने लगे , वह बीच में ही पूछ बैठा --- " महाराज ! वहां खाने के लिए गंदगी , लोटने के लिए कीचड़ और साथ में क्रीड़ा - कल्लोल हेतु वाराह कुल वहां है या नहीं l ' महर्षि ने कहा ---- " मूर्ख ! इन चीजों की वहां क्या जरुरत है l वहां तो देवताओं के अनुरूप स्वर्ग का वातावरण है l " वाराह ने आगे बढ़ने से मना कर दिया और कहा -- 'जहाँ ये सब नहीं , वहां जाकर मैं क्या करूँगा l " देवर्षि ने अपना सिर पीट लिया , वे समझ गए कि जब तक आंतरिक स्तर उच्च नहीं है , प्राणी को उच्च स्थिति में पहुँचाना व्यर्थ है l
28 September 2020
WISDOM -----
कहते हैं किसी भी बात की अति अच्छी नहीं होती , इसे प्रकृति भी बर्दाश्त नहीं करती , अपने तरीके से अपना क्रोध व्यक्त करती है l प्रत्येक देश में कोई - न - कोई सामाजिक बुराई है , यहाँ जाति - प्रथा सदियों से चली आ रही है l एक वर्ग स्वयं को श्रेष्ठ समझता है , यह ठीक है , कुछ गुण , कुछ विशेषताएं अवश्य हैं , जिसके आधार पर वे श्रेष्ठ हैं लेकिन दूसरे वर्ग को चैन से जीने न देना एक ऐसी बुराई है जो प्रकृति को सहन नहीं होती l ईश्वर ने अवतार लेकर अपने आचरण से सिखाया कि जातिगत भेदभाव , ऊंच - नीच की भावना को त्याग दो l भगवान श्रीराम ने शबरी के जूठे बेर खाये , निषादराज से मित्रता की l भगवान श्रीकृष्ण ने दुर्योधन के महल - मेवा को त्यागा और विदुर जी के यहाँ रूखी - सुखी खा कर प्रसन्न हुए l लोग भगवान की जय - जयकार तो करते हैं लेकिन उनके आदर्श को स्वीकार नहीं करते l हमारी इसी बुराई की वजह से हम सदियों तक गुलाम रहे l लेकिन हम सुधरे नहीं , इसलिए प्रकृति के प्रकोप के रूप में यह महामारी आ गई l इस कोरोना के माध्यम से प्रकृति हमें संदेश देती है कि सब बराबर हैं , कोई ऊंच - नीच नहीं , कोई भेदभाव नहीं है l चाहे कोई अमीर हो या गरीब , नेता हो या नौकर , उच्च जाति का हो या निम्न जाति का , जो भी इस बीमारी से ग्रसित हो गया वह समाज से दूर हो गया , सब की एक जैसी दशा ------ इस महामारी का मूल कारण जो भी हो , इसका माध्यम कोई भी हो , इससे कोई फरक नहीं पड़ता , हम इसकी गहराई में छिपे प्रकृति के संदेश को समझें और सारे भेदभाव भूलकर ' जियो और जीने दो ' की नीति पर चलें , आपस में प्रेम चाहे न हो पर परस्पर वैर भाव भी न हो l कहते हैं ' जब जागो , तब सवेरा ' l हम अपनी गलतियों को सुधार लें , इसी में सबका कल्याण है l
WISDOM ---- सच्चे हृदय से ईश्वर को पुकारो , वे अवश्य आते हैं
महाभारत का प्रसंग है --- युधिष्ठिर जुएँ में महारानी द्रोपदी को हार गए l तब दुर्योधन ने दु:शासन को द्रोपदी के चीर - हरण करने की आज्ञा दी l दु; शासन द्रोपदी को उसके बाल पकड़ कर घसीट कर ला रहा था l द्रोपदी क्रंदन कर रही थीं और भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण कर रही थीं l उधर भगवान श्रीकृष्ण अपने महल में पलंग पर लेटे थे और रुक्मणी जी पंखा झल रहीं थीं l एकदम अचानक भगवान ने रुक्मणी जी का हाथ , जिसमें वे पंखा पकड़े थीं , दूर किया और पीताम्बर पहने ही तेजी से दौड़े , दरवाजे तक गए , फिर धीमे से वापस आ गए l रुक्मणी जी ने पूछा --- ' भगवन ! आखिर बात क्या है ? आप ऐसे तेजी से दौड़े फिर वापस आ गए l ' तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा --- ' देखो ! हस्तिनापुर में पांचाली की लाज पर संकट है , उसने मुझे बुलाया तो मैं दौड़ा , लेकिन देखो , अब वह अब पितामह से अपनी रक्षा के लिए कह रही है , अब गुरु द्रोण से , अब धृतराष्ट्र से , अब देखो वह किस तरह अपने पाँचों पतियों से अपनी रक्षा की गुहार लगा रही है l ' रुक्मणी जी ने कहा --- ' आप अवश्य जाएँ , द्रोपदी की रक्षा करें l " भगवान ने कहा --- ' पांचाली मुझे नहीं बुला रही , वो अपने सांसारिक रिश्तों से ही मदद मांग रही है , इसलिए मैं वापस लौट आया l " अंत में द्रोपदी सब से अपनी लाज बचाने के लिए मदद मांगते - मांगते थक गई तब उसने भगवान को पुकारा --- ' हे कृष्ण ! मेरी रक्षा करो , मैं तुम्हारी शरण में हूँ l " तब भगवान दौड़ते आए , वस्त्रावतार धारण कर लिया l दु:शासन का दस हजार हाथियों का बल हार गया l ' द्रोपदी की लाज राखि , तुम बढ़ायो चीर l
26 September 2020
WISDOM ---- आसुरी शक्तियों के हाथ में पहुंचकर उत्कृष्ट ज्ञान भी निकृष्टतम परिणाम देने लगता है
आसुरी शक्तियां जब बल से किसी को नहीं जीत पातीं तब वे छल का सहारा लेती हैं l आसुरी प्रवृति के लोग अपनी योग्यता , अपने ज्ञान का उपयोग विनाशकारी कार्यों में करते हैं जिससे संसार के सामने महासंकट पैदा हो जाता है और उनका अहंकार स्वयं उनके विनाश का कारण बनता है l रामचरितमानस में प्रसंग है --- बालि और सुग्रीव दोनों भाइयों में प्रगाढ़ प्रेम था l सुग्रीव अपने बड़े भाई बालि को पिता की तरह मान - सम्मान देता था l बालि ने तपस्या से अनेक वरदान प्राप्त किये थे , उसे अपने बल और वरदान का बहुत अहंकार था l रावण को भी उसने अनेकों बार पराजित किया था l इस कारण उसका अहंकार और अधिक बढ़ा - चढ़ा था l उसके अहंकार के कारण ही अतिप्रेम करने वाले दोनों भाइयों में शत्रुता हो गई l प्रशंसा से उसके अहंकार को पोषण मिलता था , इसलिए जिसने भी उसकी तारीफ की वह उसे अपना सगा मान लेता था l इस कारण चाटुकार और चापलूस उसे पथभ्रमित करते थे l सुग्रीव ने भगवान राम की शरण ली और भगवान के हाथों बालि का वध हुआ l
WISDOM ----- अत्याचारी और अनीति पर चलने वाले व्यक्ति का एहसान नहीं लेना चाहिए
भीष्म पितामह शरशय्या पर थे l उत्तरायण की प्रतीक्षा थी l युद्ध रुक चूका था l सभी उनके पास आते एवं उनसे धर्म का मर्म पूछते l वे सब की जिज्ञासाओं का यथोचित उत्तर देते l पाँचों पांडव व महारानी द्रोपदी भी उन्हें प्रणाम करने आये l पितामह को ऐसे शरशय्या पर लेटा देख सबका हृदय दुःखी था , पर द्रोपदी उन्हें धर्मोपदेश देते देखकर हँसने लगी l युधिष्ठिर ने उलाहना दिया --- 'ऐसे समय में यह असामाजिक आचरण क्यों ? ' तब द्रोपदी ने कहा --- मुझे सीधे पितामह से बात करने दीजिए l " पितामह ने स्नेहपूर्वक द्रोपदी से कहा कि वह अपनी बात कहे l तब द्रोपदी बोलीं --- " जब आप कौरवों के साथ राजसभा में थे व मेरी लाज लुट रही थी , तब आपका यह धर्मज्ञान कहाँ चला गया था तात ! " भीष्म बोले ---- " द्रोपदी ! तेरा असमंजस सही है l कुधान्य से मेरी बुद्धि भ्रष्ट हो गई थी l उचित - अनुचित का भेद भी नहीं था l उसके एहसानों ने मेरा मुँह बंद कर दिया था l अब वह कुधान्य रक्त बनकर मेरे घावों से रिस रहा है तो धर्मोपदेश का सही समय व अधिकार मेरे पास है l " द्रोपदी का समाधान हो गया l
25 September 2020
WISDOM ------
महान संत सूरदास जी के जीवन की घटना है -- एक बार वे हरिनाम गाते हुए जा रहे थे l नेत्रहीन होने के कारण वे मार्ग में एक गहरे कुएं में गिर गए l सुनसान क्षेत्र था l आसपास कोई व्यक्ति भी नहीं था , जो उनकी मदद करता l वे बार - बार आवाज भी लगाए जा रहे थे और ईश्वर का स्मरण भी करते जा रहे थे l थोड़ी देर बाद एक बालक ने कुएं में प्रवेश कर के उन्हें सकुशल बाहर निकाला l उस बालक के पावन स्पर्श से वे पहचान गए कि वह बालक और कोई नहीं , वरन उनके आराध्य स्वयं भगवान श्रीकृष्ण हैं , जो उन्हें बचाने आये हैं l उन्होंने उनका हाथ पकड़ लिया l कहने पर भी सूरदास जी उनका हाथ नहीं छोड़ रहे थे l भगवान ने झटके से हाथ छुड़ा लिया और चलने लगे l इस पर सूरदास जी ने कहा ---- ' हाथ छुड़ाये जात हो , निबल जान के मोहि l हिरदय से जब जाओगे, मरद कहोंगो तोहि l l सूरदास जी के इन वचनों को सुनकर भगवान श्रीकृष्ण फिर सदा उनके साथ ही रह गए एवं उनके हृदय में निवास करने लगे l
24 September 2020
WISDOM ----- मनुष्य ऐसा अहंकारी है , जिसने स्वयं अपने विनाश की विधियों की खोज की है
छोटे - छोटे जीव - जंतु भी अपने जीवन को सहज - सरल व सुखद बनाने के लिए अनेकों विधियाँ ढूंढते हैं l चींटी , दीमक , मधुमक्खी जैसे छोटे जीवों ने न जाने कितने युगों पहले से समूह में , सहयोग - सहकार से रहना सीख लिया लेकिन मनुष्य क्योंकि बुद्धिमान है , ज्ञानी है इस काम को अभी तक नहीं सीख पाया l मनुष्य में स्वार्थ , अहंकार , लालच इतना है कि वह स्वयं अपनी सामूहिकता का विनाश कर लेता है l सामूहिक भावना के विनाश के लिए उसके पास अनेकों तर्क है जैसे ---- भाषा , जाति , धर्म , क्षेत्रीयता , ऊंच - नीच , काले - गोरे ---- ऐसे विभिन्न तर्कों के आधार पर मनुष्यों ने ही अपनी बुद्धि का दुरूपयोग कर समूह भावना का विनाश कर लिया अब स्वार्थी तत्व इसी फूट का लाभ उठाते हैं l
23 September 2020
WISDOM------
गुरु नानक यात्रा पर थे तो उनसे किसी ने आकर पूछा --- " हिंदू और मुसलमान में कौन बड़ा ? " गुरु नानक जी ने उत्तर दिया ---- " धर्म का मर्म अच्छे कर्म करने में है l बड़ा वह कहलाता है जो अच्छे कर्म करता है l कोई धर्म के आधार पर बड़ा नहीं होता l कहने को खजूर का पेड़ भी बड़ा होता है , पर उससे किसी की भलाई नहीं होती है लेकिन तुलसी का पौधा बहुत छोटा होते हुए भी बहुत उपयोगी है , अनेक रोगों का नाश कर देता है l यदि बड़प्पन और महानता का आकलन करना हो तो व्यक्ति के कर्मों को देखो , वह किस संप्रदाय या मजहब को मानता है --- इससे उसके बड़प्पन का मूल्यांकन मत करो l " उस व्यक्ति ने फिर पूछा ---- " क्या अच्छे कर्म करने के लिए किसी धर्म को मानना जरुरी नहीं है ? " गुरु नानक जी बोले ---- " अच्छा कर्म करना ही धर्म है l अच्छे कर्म करने वालों को किसी धर्म को मानने की आवश्यकता नहीं है l "
WISDOM -----
दो आचार्य परस्पर वार्तालाप कर रहे थे l एक ने दूसरे से पूछा --- " उन्हें मूर्ख , परन्तु विनम्र शिष्य पसंद हैं अथवा बुद्धिमान , किन्तु अहंकारी l " आचार्य ने उत्तर दिया --- " जो मूर्ख है उसे समझाया जा सकता है , किन्तु जो विशेषज्ञ , परन्तु अहंकारी है , उसे ब्रह्मा भी रास्ते पर नहीं ला सकते l " विश्व का इतिहास ऐसे ही अहंकारियों की गाथा से भरा पड़ा है जिन्होंने अपने अहंकार के कारण सामान्य जन को बेकसूर मरने पर मजबूर कर दिया l यह सत्य है कि प्रत्येक प्राणी इस संसार में जीना चाहता है , कोई नहीं चाहता कि उसके बच्चे अनाथ हो जाएँ , उसका परिवार बेसहारा हो जाये , यह धरती अनाथों , विधवाओं , अपाहिजों और बीमारों के करुण क्रंदन से भर जाये l केवल कुछ लोगों के अहंकार , महत्वाकांक्षा और स्वार्थ का दुष्परिणाम संसार को भुगतना पड़ता है l यह जानते हुए भी कि मृत्यु निश्चित है , इस धरती से एक तिनका भी साथ नहीं ले जा सकते , फिर भी निर्दोष जनता को कष्ट व मुसीबत में डालकर लोग स्वयं अपने जीवन को कलंकित करते हैं
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- ' स्वार्थी व अहंकारी व्यक्ति कभी सुखी व संतुष्ट नहीं हो सकता क्योंकि उसके मन में सदैव कुछ पाने की इच्छा बनी ही रहती है l स्वार्थ के साथ अहंकार , ईर्ष्या , द्वेष आदि अवगुण स्वत: ही जुड़ जाते हैं l अहंकार कभी भी थोड़े से संतुष्ट नहीं होता , बल्कि वह तो और अधिक , सबसे अधिक , सर्वश्रेष्ठ की अपेक्षा रखता है l इसी कारण व्यक्ति में ईर्ष्या , द्वेष का उदय होता है , जो दूसरों के शोषण का कारण बनता है और इसी से उत्पन्न होती है भाव शून्यता l आज मनुष्य इसी भावशून्यता की स्थिति में जी रहा है l ' प्रेम , दया , त्याग का स्थान स्वार्थ , अहंकार व ईर्ष्या , द्वेष ने ले लिया है l " आचार्य श्री लिखते हैं --- ' अहंकारी व्यक्ति समाज की उपेक्षा कर अपने लिए सुख के साधन तो जुटा सकता है किन्तु जीवन को सुखी नहीं बना सकता l जीवन में सब कुछ होते हुए भी सुख , शांति व संतुष्टि नहीं होती l '
22 September 2020
WISDOM -----
इस संसार में व्यक्ति को सर्वाधिक आकर्षित करती है ---- सुख की चाह l इस सुख को पाने के लिए वह तरह - तरह के प्रलोभनों में फँसता है , वह सुख की चाह में केवल भ्रमित होता रहता है , लेकिन उसे वास्तविक सुख नहीं मिल पाता l महत्वपूर्ण बात यह है कि व्यक्ति को जो सुख मिला है , वह उसमें खुश नहीं होता , वह चाहता है कि दूसरों के हिस्से का सुख भी उसे ही मिल जाये l दूसरों का सुख उससे सहन नहीं होता और अपने सुखों के खो जाने का भय उसे दिन - रात सताता है l संसार में आज ऐसे ही लोगों की अधिकता है , जिनमे त्याग का भाव नहीं है l पुराणों में कथा है --- महाराज ययाति की l उनकी इच्छाएं कभी पूरी नहीं हुईं l उन्होंने अपने पुत्र - पौत्रों से यौवन की भीख मांगी , हजारों वर्षों तक सुख - भोग भोगने के बाद भी उन्हें तृप्ति नहीं हुई अंत में उन्हें गिरगिट की योनि प्राप्त हुई l हमारे ऋषियों ने सुख - भोग को मर्यादित करने के लिए ही आश्रम - व्यवस्था की , मनुष्यों को त्याग करने और आने वाली पीढ़ियों के लिए स्थान रिक्त करने की सलाह दी l लेकिन संसार में दुर्बुद्धि का ऐसा प्रकोप है कि ज्यों - ज्यों जीवन हाथ से छूटने का समय करीब आता है , व्यक्ति उसे और तेजी से पकड़ना चाहता है और चाहता है कि कितना सुख भोग लें , इस सुख के लिए चाहे संसार को युद्ध के दावानल में ही क्यों न झोंखना पड़े l
21 September 2020
WISDOM -----
एक समय की बात है इंदौर में किसी रास्ते के एक किनारे पर एक गाय अपने बछड़े के साथ खड़ी थी l तभी देवी अहिल्याबाई के पुत्र मालोजी राव की सवारी निकली l गाय का बछड़ा अकस्मात उछलकर रथ के सामने आ गया l गाय भी उसके पीछे दौड़ी , पर तब तक मालोजी का रथ बछड़े को कुचलता हुआ आगे निकल गया , किसी ने परवाह नहीं की l गाय स्तब्ध आहत - सी वहीँ बैठ गई l थोड़ी देर बाद अहिल्याबाई वहां से गुजरीं , उन्होंने गाय को और उसके पास मृत पड़े बछड़े को देखकर घटनाक्रम का पता लगाया l सारा घटनाक्रम जानने पर अहिल्याबाई ने दरबार में मालोजी की पत्नी मेनाबाई को बुलाया l उन्होंने मेनाबाई से पूछा ---- " यदि कोई व्यक्ति किसी माँ के सामने उसके बेटे की हत्या कर दे , तो उसे क्या दंड मिलना चाहिए ? " मालोजी की पत्नी ने जवाब दिया --- " उसे प्राणदंड मिलना चाहिए l " देवी अहिल्या ने मालोजी को हाथ - पैर बांधकर मार्ग पर डालने को कहा और फिर उन्होंने यह आदेश दिया कि मालोजी को यह मृत्युदंड रथ से टकरा कर दिया जाये l परन्तु यह कार्य करने को कोई भी सारथी तैयार न हुआ l देवी अहिल्याबाई न्यायप्रिय थीं l अत: वे स्वयं माँ होते हुए भी इस कार्य को करने के लिए रथ पर सवार हो गईं l वे रथ को लेकर आगे बढ़ी ही थीं कि तभी एक अप्रत्याशित घटना घटी l वही गाय रथ के सामने आकर खड़ी हो गई और उसे जितनी बार हटाया जाता , वह उतनी ही बार अहिल्याबाई के सामने आ जाती l यह दृश्य देखकर मंत्री परिषद ने देवी अहिल्या से मालोजी को क्षमा करने की प्रार्थना की l इस तरह गाय ने स्वयं पीड़ित होते हुए भी मालोजी को क्षमा करके उनके जीवन की रक्षा की | इंदौर में जिस जगह यह घटना घटी , वह स्थान आज भी आड़ा बाजार के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस स्थान पर गाय ने अड़कर दूसरे की रक्षा की l
WISDOM ----
चाहे कोई भगवान का कितना भी बड़ा भक्त हो , कर्म फल से कोई नहीं बचा है l जब धरती पर पाप बहुत बढ़ जाता है तब भगवान स्वयं जन्म लेते हैं पापियों का नाश करने के लिए l जब दसों दिशाओं में रावण का आतंक था , तब भगवान राम का जन्म हुआ l उस समय ऋषियों के चिंतन में यह बात थी की रावण तो सपरिवार परम शिव भक्त है , तो क्या प्रभु स्वयं अवतार लेकर अपने ही भक्त का विनाश करेंगे ? तब भगवान भोलेनाथ ने ऋषियों से कहा --- ' हे ऋषिगण ! पूजा के कर्मकांड को भक्ति नहीं कहा जा सकता l भक्ति तो पवित्र भावनाओं में वास करती है l जो भक्त है , उसकी संवेदना का विस्तार तो सृष्टिव्यापी होता है , भला वह कैसे किसी का उत्पीड़न कर सकेगा l रावण भक्त नहीं , तपस्वी है l आज उसे अपने तप का फल मिल रहा है , परन्तु उसकी संवेदना को उसके अहंकार ने निगल लिया है l फिर यदि किन्ही अर्थों में वह मेरा भक्त भी है तो अपने भक्त का उद्धार करना मेरा ही दायित्व है l ' युद्ध से पूर्व जब रावण ने शक्ति पूजा की तब देवी ने उसे वरदान दिया था --- ' तुम्हारा कल्याण हो l ' रावण का अंत होने में ही उसका कल्याण था l
20 September 2020
WISDOM -----
कहानी उस समय की है जब संसार में राजतन्त्र था , राजे - महाराजे विभिन्न राज्यों पर आक्रमण कर उन्हें अपने आधीन कर लेते थे l ऐसे ही एक राजा था जिसने अनेकों राज्यों को जीतकर वहां अपनी हुकूमत कायम कर ली , बहुत अत्याचारी था , लोगों की ख़ुशी से उसे बहुत ईर्ष्या थी l उसे अपने गुप्तचरों से मालूम हुआ कि लोग उससे बड़ी नफरत करते हैं l उसके मन में विचार आने लगा कि मैंने जमीन जीती है लेकिन अब मैं ऐसा कुछ करूँ जिससे लोगों के मन पर मेरा नियंत्रण हो जाये , उनका वजूद ही मिट जाये l इसके लिए उसने दूर - दूर से विद्वान् , विशेषज्ञ बुलाये जो कोई ऐसी योजना बनाएं जिससे लोगों पर उसका नियंत्रण भी हो जाये और उसे किसी की नफरत भी न झेलनी पड़े l
' सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे ' l जो जैसा होता है , उसे वैसे ही सलाहकार भी मिल जाते हैं l अच्छाई के रास्ते पर चलकर भी लोगों के दिलों को जीता जा सकता है लेकिन अत्याचारी तो वही राह पकड़ता है जिससे लोगों को कष्ट हो l सलाहकारों की योजना के अनुसार काम शुरू हो गया l इस कार्य में उसे कहाँ तक सफलता मिल रही है , इसकी वह विभिन्न माध्यमों से पूरी जानकारी रखता l एक दिन उसके अधिकारियों ने उसे बताया कि उनकी योजना बहुत सफल रही , लोगों की सोच पर भी उसका नियंत्रण है , परदे के पीछे रहकर वह जैसा आदेश देता है , लोग आँख बंद कर उसे स्वीकार कर लेते हैं l इसे सिद्ध करने के लिए राजा के सामने एक नमूना पेश किया गया l राजा ने उससे पूछा --- क्या नाम है तुम्हारा ? उसने कहा ----' जो आप कहें l ' क्या काम कर सकते हो ? ' जो आप दें ' l क्या खाना पसंद करोगे ? ' जो आप दें l ' बीमार पड़ोगे तो क्या इलाज करोगे ? को ' जो आप कहेंगे वही दवा , वही इलाज लेंगे ' l राजा ने उससे खेती के बारे में जानकारी ली , अमुक खेती के लिए बीज कहाँ से लोगे ? ' जहाँ से आप कहेंगे l ' खाद कौन सी डालोगे ? ' जो आप देंगे l ' जुताई कैसे करोगे ? जिससे आप कहेंगे l ' उसका ऐसा समर्पण देख राजा की सनक को बड़ा सुकून मिला l उसने और प्रश्न पूछे --- सामाजिक जीवन में कैसे व्यवहार करोगे , कैसे चलोगे - फिरोगे ? ' उसने कहा --- हुजूर ! जैसे आप कहें l हम तो आपके गुलाम हैं , श्वास भी जैसे आप कहोगे , वैसे ही लेंगे l राजा बहुत खुश हुआ , उसने अपने अधिकारियों को मालामाल कर दिया और साथ ही यह आदेश दिया कि मेरी यह योजना रुकनी नहीं चाहिए , मैं ही ' समर्थ सत्ता ' हूँ मुझे लोगों के जीवन - मरण पर भी अपना नियंत्रण करना है l कहते हैं जब व्यक्ति ईश्वर को चुनौती देने लगता है तो प्रकृति उसे सहन नहीं करती , -------- ऐसा ही हुआ , विवेकशील लोगों के प्रयास से उसकी योजना का भंडाफोड़ हुआ l ----
19 September 2020
WISDOM -----
कहते हैं इतिहास से शिक्षा लेकर स्वयं को सुधारना चाहिए , व्यक्ति , समाज हो या राष्ट्र अपनी गलतियों को बार - बार दोहराना नहीं चाहिए , उन्हें सुधारने का सशक्त प्रयास करना चाहिए , अन्यथा इतिहास स्वयं को दोहराता है l आपसी फूट , ऊंच - नीच , जातिगत भेदभाव , संपन्न और शक्तिवान लोगों का भोग - विलास का जीवन --- इन्ही सब दोषों के कारण देश पर समय - समय पर विदेशी आक्रमण हुए और हम अपनी जमीन पर , अपनी धरती पर रहते हुए भी विदेशी आधिपत्य को , उनके आदेश को मानने के लिए मजबूर हुए l इतिहास में इसके सैकड़ों उदाहरण हैं ------- करनाल के विशाल मैदान में मुहम्मद शाह की सेना परास्त हो चुकी थी l विजयी नादिरशाह जब दिल्ली पहुंचा तो उसका भव्य स्वागत किया गया l नादिरशाह ने पानी पीने की इच्छा जाहिर की l मुहम्मद शाह ने पानी लाने का संकेत किया l काफी देर हुई , किन्तु पानी अभी तक नहीं लाया गया l नादिरशाह को नगाड़े और तुरही की आवाज सुनाई दी l नादिरशाह ने समझा कि कोई उत्सव आरम्भ हो गया l देखा तो अनुचरों की भीड़ सोने - चांदी के थालों में सजाये , चँवर ढुलाते पानी की सुराही और गिलास , पानदान और पीकदान लिए चले आ रहे हैं l उसने विलासितापूर्ण आडम्बर देखकर कहा --- मुहम्मद शाह अब मैं समझा कि तुम्हारे पास इतनी विशाल सेना होते हुए तुम क्यों हारे l उसने अपने भिश्ती को संकेत दिया जो मशक भरकर पानी लाया और नादिरशाह ने अपना टोप उतारा और उसमे पानी भरा और पी गया फिर मुहम्मद शाह से बोला --- यदि हम भी तुम्हारी तरह विलासी होते तो ईरान से हिंदुस्तान तक नहीं आ सकते थे l
18 September 2020
WISDOM -----
एक रोगी राजवैद्य शार्गंधर के समक्ष अपनी कष्टगाथा सुना रहा था l अपच , बेचैनी , अनिद्रा , दुर्बलता , खांसी , जुकाम जैसे अनेकों कष्ट व उनके उपचार में ढेरों राशि नष्ट कर कोई लाभ न मिलने के कारण ही वह राजवैद्य शार्गंधर के पास आया था l वैद्यराज ने उसे संयम युक्त जीवन जीने व आहार - विहार के नियमों का पालन करने को कहा l रोगी बोला ---- ' यह सब तो मैं कर चुका हूँ l आप तो मुझे कोई औषधि दीजिए , ताकि मैं कमजोरी पर नियंत्रण पा सकूँ l पौष्टिक आहार आदि भी बता दें , आप मुझे पहले जैसा समर्थ बना दें l ' वैद्यराज बोले --- " वत्स ! तुमने संयम अपनाया होता तो मेरे पास आने की स्थिति ही नहीं आती l तुमने जीवनरस ही नहीं , जीवन की सामर्थ्य और धन - संपदा भी इसी कारण खोई है l बाह्य उपचारों से और पौष्टिक आहार आदि से ही स्वस्थ बना जा सका होता तो विलासी और समर्थ कोई भी मधुमेह , अपच आदि का रोगी नहीं होता l मूल कारण तुम्हारे अंदर है , बाहर नहीं l पहले संयमित जीवन जियो , अमृत का संचय करो और फिर देखो वह शरीर निर्माण में किस प्रकार जुट जायेगा l " रोगी ने सही दृष्टि पाई और जीवन को नए सांचे में ढाला , अपने अंतरंग और बहिरंग की अपव्यय वृत्तियों पर रोकथाम की और कुछ ही माह में स्वस्थ - समर्थ हो गया l
16 September 2020
WISDOM -----
ईश्वर हमें बिना मांगे ही बहुत कुछ देते हैं , लेकिन यदि हम जागरूक नहीं हैं , विवेक नहीं है तो ईर्ष्या , द्वेष , अहंकार , लालच , छल - कपट जैसे दुर्गुणों के कारण हम ईश्वर की देन का सदुपयोग नहीं कर पाएंगे l एक कथा है ---- एक बार पार्वती जी और शंकर जी धरती पर भ्रमण को निकले l उन्होंने देखा कि उनका एक ब्राह्मण भक्त , उसकी पत्नी व बच्चा सारे दिन ॐ नम: शिवाय का जप करते l यह देख पार्वती जी ने शंकर जी से कहा --- " ये हमारे भक्त लोग हैं , हम यहाँ से निकल रहे हैं तो इन बेचारों को कुछ वरदान देकर चलें l " शंकर जी ने कहा --- " पार्वती ! बेकार है इनको वरदान देना l ये इस लायक नहीं हैं कि इन्हे कुछ दिया जाये l न तो इनमे पात्रता है और न सँभालने की क्षमता l " पार्वती जी ने कहा --- नहीं महाराज ! आप तो ऐसे ही बहाने बना देते हैं l पहले आप इन्हे कुछ दें , फिर पता चलेगा l शंकर जी राजी हो गए और उन तीनों से वरदान मांगने को कहा l ब्राह्मण की पत्नी जरा समझदार थी , सबसे पहले वह आगे आई l शंकर जी ने पूछा --- ' तुम्हारी मनोकामना क्या है ? ' वह बोली --- " भगवन ! हमें बीस साल की खूबसूरत युवती बना दीजिए l " भगवन ने कहा --- तथास्तु ! अब वह बहुत खूबसूरत हो गई l ब्राह्मण ने उसे देखा तो उसे बहुत गुस्सा आया कि अब तो ये पति , बच्चा सबको भूल जाएगी l अब ब्राह्मण की बारी आई वरदान मांगने की तो उसने शंकर जी से कहा --- " भगवन ! इस स्त्री को शूकरी बना दीजिये l ' शंकर जी ने कहा --- " अच्छी तरह सोच लो l ' उसने कहा ---" महाराज जी ! मैंने सोच समझकर ही वर माँगा है l शंकर ही तो भोले बाबा हैं , उनने तथास्तु कहते हुए जल छिड़का , तो वह सुन्दर नारी से शूकरी बन गई l बालक यह सारा दृश्य देखकर रोने लगा l शंकर जी ने कहा --- " तुम क्यों रोते हो ? तुम भी वरदान मांग लो l बच्चे ने कहा --- " भगवन ! यदि आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मेरी माँ को पहले जैसी बना दीजिए , मुझे मेरी माँ चाहिए l शंकर जी ने कहा --- ' तथास्तु ! और वह ब्राह्मण की पत्नी पुन: शूकरी से पहले जैसी स्थिति में आ गई l शंकर जी ने पार्वती जी से कहा " देवि ! देखा आपने , इन तीनों ने तीन वरदान व्यर्थ गँवा दिए l चाहते तो विवेकपूर्ण वरदान लेकर अपना जीवन और जन्म सुधार सकते थे l हमें ईश्वर से प्रार्थना कर के कुछ माँगना और जो मिला है उसका सदुपयोग करना आना चाहिए l
WISDOM -----
धृतराष्ट्र ने विदुर से पूछा --- " क्या कारण है कि सभी सौ वर्ष की आयु नहीं जी पाते l जरा एवं व्याधि से उससे पूर्व ही वे काल - कवलित हो जाते हैं ? " विदुर जी ने तब नीति का एक सूक्त कहा , जिसका भावार्थ है ----- ' अत्यंत अभिमान , अधिक बोलना , त्याग का अभाव , क्रोध , अपना ही अपना भरण - पोषण करने की चिंता , स्वार्थपरता और मित्रद्रोह ----- ये छह तीखी तलवारें हैं , जो देहधारियों की आयु को काटती हैं l ये ही मनुष्यों का वध करती हैं , मृत्यु नहीं l फिर वे बोले ---- " हे राजन ! जो इन छह बातों से बचकर रहेगा , निश्चय ही वह सौ वर्ष की आयु तक जी सकेगा l "
15 September 2020
WISDOM -----
ब्रह्मा जी ने प्राणियों का निर्माण किया , फिर मनुष्य से पूछा --- " तुम्हारी और क्या इच्छा है ? " मनुष्य बोला ---- " मैं बुद्धिमान तो बहुत हूँ , पर चाहता हूँ कि और आगे बढूं और ऐसा रहूं , जिसकी कोई बराबरी न कर सके l " ब्रह्मा जी ने उसे दो झोलियाँ दीं और कहा --- ' इन्हे गले में लटकाये रहना l दूसरों की विशेषताएं ढूंढ़ना और उन सभी अच्छाइयों को अपनी आगे वाली झोली में भरते जाना l और अपनी विशेषताओं पर ध्यान न देना , उन्हें पीछे वाली झोली में भरना , इससे तुम्हारी बुद्धिमत्ता बढ़ेगी l मनुष्य प्रसन्न हो गया , पर झोलियों के सम्बन्ध में आगे - पीछे वाला निर्देश भूल गया , उसने आगे की झोली पीछे और पीछे वाली आगे लटका ली l यही कारण है कि अब वह अपने गुणों को बखानता है , दूसरों के गुणों को नहीं देखता , उनसे कुछ सीखता नहीं , पर - निंदा में उलझा रहता है l
14 September 2020
WISDOM ----- समस्त बीमारियों का मूल है ---- असंयम ---- पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
आचार्य श्री लिखते हैं --- विधाता ने मनुष्य को अनेकानेक संपदाओं और विशेषताओं से सुसज्जित कर के भेजा है l अपार विभूतियों के होते हुए भी मनुष्य अपने को इतना असहाय और विक्षुब्ध पाता है l इतना शानदार शरीर होने के बावजूद मनुष्य यदि असंख्य बीमारियों से जूझता हुआ मिलता है तो उसका एक ही कारण है और वह है --- असंयम l "
अपने एक प्रवचन में आचार्य श्री कहते हैं ---' कोई व्यक्ति बार - बार बीमार होता है तो डॉक्टर कहता है आपके भीतर वायरस है l छोटे - छोटे वायरस हमको इतना हैरान कर सकते हैं l उन्होंने कहा -- एक फ्रांसीसी डॉक्टर था l कॉलेरा के जर्म्स की पांच सी. सी. की ट्यूब लेकर आया और डाक्टरों की सभा में कहा कि देखिए , आप इसका टैस्ट कीजिये कि इससे कितने आदमी मारे जा सकते हैं l डॉक्टर ने कहा कि इसमें एक लाख आदमियों के मारे जाने लायक जहर है l फ्रांसीसी डॉक्टर ने कहा कि आप लोगों के सामने एक बार फिर टेस्ट कर लीजिये कि यह कॉलेरा के ही जर्म्स हैं कि नहीं हैं l अब मैं इसको पी कर दिखाता हूँ कि पीने के बाद मैं जिन्दा रह सकता हूँ कि नहीं l उसने जर्म्स भरी ट्यूब में से पांच सी. सी. निकाल लिया और पी लिया l इसे पीने के बाद भी वह मरा नहीं l आचार्य श्री कहते हैं --- हमारे शरीर का यह किला और दुर्ग इतना मजबूत बना कर भेजा गया है कि जन्म से ही इसमें कोई गोलीबारी काम नहीं कर सकती l यदि जर्म्स से बीमारियाँ आई होतीं , तो वार्ड ब्वॉय टी. बी. के मरीजों की , कैंसर के मरीजों की तीमारदारी करते हैं , सफाई कर्मचारी मरीजों की गंदगी साफ करते हैं , अस्पताल की , वहां की नाली की सफाई करते हैं , उन्हें जर्म्स लग जाएँ तो लाशों के ढेर लग जाएँ , लेकिन यह तो वहम है l बीमारियों का दुनिया में केवल एक ही कारण है और वह है --- असंयम l मनुष्य अपने स्वाद , कामना , वासना के आधीन होकर असंयमित जीवन जीता है जिससे उसका शरीर खोखला हो जाता है और तरह - तरह की बीमारियां उसे घेर लेती हैं l
13 September 2020
WISDOM -----
प्रजातंत्र जब असफल होता है तो उसका स्थान तानाशाही ले लेती है l प्रजातंत्र में सफल सरकार वह है जो भय और गरीबी से जनता को बचा सके अन्यथा लोग सब्र खो बैठेंगे और गृहयुद्ध जैसी स्थिति में तानाशाही उठ खड़ी होती है l प्रजातंत्र की सफलता ऐसी सशक्त सरकार पर निर्भर है जो जनता के हितों की रक्षा कर सके l ऐसी सरकार बना सकने के लिए सशक्त और सजग जनता का होना आवश्यक है l वस्तुत: जाग्रत जनता ही प्रजातंत्र को सफल बनाती है और वही उसका लाभ लेती है l
WISDOM -----
किसी का मूल्यांकन उसके बहिरंग रूप से नहीं , वरन उसकी संस्कार निधि द्वारा किया जाना चाहिए l वास्तव में सुन्दर तो वही है जो दूसरों और स्वयं के प्रति अच्छी भावनाएं रखे l सुंदरता का संबंध व्यक्तित्व की चमक से है और यह तभी पैदा होती है जब व्यक्ति के भाव , विचार व व्यवहार अच्छे हों l मैक्सिको सिटी में पैदा हुई अश्वेत लुपिटा न्योंगो को हॉलीवुड फिल्म ' 12 इयर्स ए स्लेव ' में बेहतरीन अदाकारी के लिए सर्वश्रेष्ठ सह - अभिनेत्री का पुरस्कार मिला l पुरस्कार मिलने के उपरांत उसे एक पत्र मिला , जिसमे कुछ इस प्रकार लिखा था --- ' प्रिय लुपिटा , तुम बहुत किस्मत वाली हो l तुम अश्वेत हो , यानि तुम्हारा रंग काला है , फिर भी तुम्हे इतनी शोहरत और सफलता मिली l मैं बाहरी सौंदर्य को बढ़ाने के प्रयास में लगती , उससे पहले तुम्हे मिली सफलता ने मुझे यह एहसास कराया कि सुंदरता बाहर की नहीं , अंदर की होनी चाहिए l ' पत्र लिखने वाली लड़की भी अश्वेत थी और उसे लगता था कि काले रंग वाली लड़कियों को सफलता नहीं मिल सकती l शरीर की सुंदरता पार्थिव है यह सुंदरता उम्र बढ़ने के साथ - साथ अधिक दिनों तक टिकी नहीं रह सकती l केवल व्यक्ति के अच्छे कार्य ही होते हैं , जो पुण्य रूप में संचित होकर उसके ओज को बढ़ाते हैं और उसे आकर्षक बनाते हैं l
12 September 2020
WISDOM -------
आज का समय ' यूज एंड थ्रो ' का है l धन - वैभव को प्रमुखता देने के कारण मनुष्य भी चाहे वह नर हो या नारी , वस्तु की तरह उसे इस्तेमाल किया जाता है l हम इनसान बने , वस्तु नहीं , इसके लिए जागरूकता की जरुरत है l एक छोटी सी कहानी है जो यह बताती है कि कोई शक्तिवान , अहंकारी यदि किसी कमजोर की मदद लेता है तो निश्चित ही उसके पीछे उसका कोई बड़ा स्वार्थ होता है l स्वार्थ पूरा होते ही उसे उपेक्षित ( थ्रो ) कर दिया जाता है l विद्वानों का कथन है कि हम विवेकशील बने , सतर्क रहें , कहीं हमारी योग्यता का फायदा गलत लोग तो नहीं उठा रहे l कहानी है ---- एक शेर को एक बार बारहसिंगा खाने की बड़ी इच्छा हुई l उसने एक सभा की और सियारों से कहा कि वह चलने - फिरने में असमर्थ है , अत: बारहसिंगा को पकड़ने में वे उसकी मदद करें , तो उन्हें भी उसका मांस खाने को मिलेगा l सियार बहुत खुश हुए , अपनी ख़ुशी जंगल में सबसे बताते फिरे , कि देखो शेर को भी हमारी जरुरत है l लोमड़ी ने उन्हें बहुत समझाया कि बारहसिंगा खाने के बाद शेर तुमको भी मार डालेगा , उसकी बातों में न आओ l लेकिन सियार तो सियार , वे लालच में अपना होश खो बैठे थे l आखिर सियार के सहयोग से शेर ने बारहसिंगा को मारा l मांस का बंटवारा शेर को ही करना था --- उसने शिकार के टुकड़े किए और कहा --' एक टुकड़ा राजवंश का है l दूसरा टुकड़ा अधिक पुरुषार्थ करने के कारण मेरा है और तीसरा स्वयंवर जैसा, उसे पाने के लिए प्रतिद्वंदिता में जो आना चाहे , वो मेरे साथ संघर्ष करे l " सियार को लोमड़ी की बात याद आ गई , किसी तरह जान बचाकर वे भागे l कहानी की यही शिक्षा है कि धूर्त के साथ सहयोग भी हितकारी नहीं होता , जहाँ तक हो उससे बचना चाहिए l
11 September 2020
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ----- ' धनी होने में बुराई नहीं है l बुरा है यह समझना कि धन अपने साथ हर सुख - सुविधा का साधन लेकर आएगा , क्योंकि ऐसा होना संभव नहीं है l व्यक्ति चाहे कितना भी धनी हो , लेकिन ख़ुशी , शान्ति और प्रेम के लिए उसे अलग से प्रयास करने होंगे l '
मशहूर हास्य अभिनेता चार्ली चैपलिन का बचपन अभावों में व्यतीत हुआ , लेकिन बाद में बहुत अमीर होते हुए भी उन्होंने हमेशा यह याद रखा कि पैसा ही सब कुछ नहीं होता l अमेरिका के प्रसिद्ध उद्दोगपति ऐंड्र्यू कारनेगी ने ब उन्होंने हुत पैसा कमाने के बाद भी अपना सारा धन गरीबों के लिए पुस्तकालय बनाने में खरच कर दिया l अमेरिका के चौथाई से ज्यादा सार्वजनिक पुस्तकालय कारनेगी के दान से ही खड़े हो पाए l बाद में उन्होंने एक साक्षात्कार में यह कहा भी था कि उन्हें जीवन में सबसे ज्यादा संतोष दुनिया का सर्वाधिक अमीर बनने में नहीं , बल्कि गरीबों के लिए पुस्तकालय बनाने से मिला l
10 September 2020
WISDOM----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना है --- केवल विचारों पर संयम करना पर्याप्त नहीं है l विचारों के साथ वाणी पर संयम करना अनिवार्य है l वाणी की वाचालता शक्ति के क्षरण के अतिरिक्त संबंधों में कटुता भी पैदा करती है l वाणी के माध्यम से हमारी मानसिक शक्तियों का सर्वाधिक क्षरण होता है l अहंकार , कामुकता , क्रोध , द्वेष से लेकर तृष्णा , वासना की अभिव्यक्ति का माध्यम भी वाणी बन जाती है l अंदर के कुत्सित उद्वेग वाणी के माध्यम से शब्दों का आकार पाते हैं l इसलिए वाणी की शक्ति का संरक्षण , संयम व सदुपयोग भी शक्ति संरक्षण का एक महत्वपूर्ण आधार कहा जा सकता है l
WISDOM -------
मृत्यु होने पर अपनी धन - दौलत छोड़कर जाना हमारी मज़बूरी है क्योंकि यही प्रकृति का नियम है कि व्यक्ति खाली हाथ आता है और खाली हाथ जाता है l इसलिए ऋषियों ने , आचार्य ने सिखाया है कि जीवन को उदारतापूर्वक जिएं l यही शिक्षण देने वाली एक कथा है ----- एक गाँव में एक सेठ था , वह बहुत धनवान था लेकिन बहुत दुःखी रहता था क्योंकि उसके गाँव वाले उससे बहुत नफरत करते थे l एक दिन उसने गाँव वालों से कहा --- ' तुम सब मुझसे इतनी नफरत क्यों करते हो l मैं अपनी सारी सम्पति दान में दे दूंगा जिससे सारा गांव खुशहाल हो जायेगा , लेकिन मरने के बाद दूंगा l तुम लोग कुछ साल इंतजार भी नहीं कर सकते l " गाँव के लोग उसका उपहास करते , भला - बुरा कहते l एक दिन सेठ को किसी काम से दूसरे गाँव जाना था , वह एक जंगल से होकर गुजर रहा था l रास्ते में थककर पेड़ के नीचे विश्राम करने लगा l उस पेड़ से थोड़ी दूरी पर एक गाय और सुअर आपस में बात कर रहे थे l सेठ जानवरों की भाषा समझता था सो ध्यान से सुनने लगा l --- सुअर गाय से कह रहा था --- " मुझे समझ में नहीं आता कि सभी तुमसे ``इतना क्यों प्यार करते हैं और मुझे कोई पूछता तक नहीं , जबकि मेरे तो मरने के बाद मेरा गोश्त , चर्बी , चमड़ा सभी कुछ इनके काम आता है , फिर भी जीते जी मुझे नफरत की नजर से देखा जाता है l और तुमको सदा सम्मान मिलता है , लोग इतने प्यार से पालते हैं l " गाय सुअर से बोली --- ' भाई देखो , मैं जीते जी उन्हें दूध देती हूँ , और वह सब मैं उन्हें उदारता पूर्वक देती हूँ l तुम तो जीते जी उन्हें कुछ नहीं देते l तुम्हारे मरने के बाद ही उन्हें कुछ मिलता है l दुनिया का एक दस्तूर जान लो ' लोग भविष्य में विश्वास नहीं करते ```` वे वर्तमान में विश्वास करते हैं l अत: यदि तुम उन्हें जीते जी कुछ दो तो वे तुम्हे बेहतर ढंग से अपनाएंगे l " यह सुनकर सेठ को अपनी गलती का एहसास हुआ , वह वापस गाँव आया और अपनी आय का एक अंश गरीब और जरूरतमंदों के लिए खर्च करने लगा l गाँव वालों को भी उससे अपनापन हो गया और सेठ का जीवन भी संतोष व ख़ुशी से भर गया l
9 September 2020
WISDOM -----
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं --- ' इस संसार में अंधकार भी है और प्रकाश भी , स्वर्ग भी है और नरक भी , पतन भी है और उत्थान भी , त्रास भी है और आनंद भी l इन दोनों में से मनुष्य अपनी इच्छानुसार जिसे चाहे चुन सकता है l कुछ भी करने की सभी को छूट है , पर प्रतिबन्ध इतना ही है कि कृत्य के प्रतिफल से बचा नहीं जा सकता l स्रष्टा के निर्धारित क्रम को तोड़ा नहीं जा सकता l
WISDOM----- कलियुग का एक लक्षण है --- लोग अच्छाई में भी बुराई खोज लेते हैं
एक कथा है ---- एक बार एक आदमी एक ऐसे गाँव में पहुँच गया , जहाँ सब अंधे रहते थे l नेत्रहीन होते हुए भी वे सभी काम आसानी से कर लेते थे l वहां उसे एक लड़की मिली बहुत सुन्दर थी , शिष्ट थी l उस गाँव में सभी अंधे थे , वह भी अंधी थी l उस आदमी को उससे प्रेम हो गया l वह उसे उसके सौंदर्य का भान कराता l सुन्दर दृश्यों का वर्णन करता , रंग बताता तो वह पूछती कि कैसा होता है ये रंग ? वह बार - बार यही कहता कि इसके लिए आँखे होनी चाहिए l उस लड़की ने उससे विवाह करने के लिए घर के बुजुर्गों से बात की , पर साथ में यह भी बताया कि उसमे एक बहुत बड़ी कमी है कि उसे दिखाई देता है l वह हम लोगों की तरह नहीं है l सभी अंधे बुजुर्ग बोले --- " यह बड़ी भयावह बीमारी है l सारी तकलीफें इसी से पैदा होती हैं l तुम चिंता न करो , हम उसका इलाज कर देंगे , फिर तुम्हारी शादी उससे करा देंगे l " सब अंधे उसके पीछे पड़ गए , उनका चक्रव्यूह इतना प्रबल था कि वह उनके जाल में फँस गया l लेकिन उसकी आँखे थी , उसमे विवेक था , वह जागरूक था इसलिए उन अंधों के , उसके विवेक को नष्ट करने के , उसकी जागरूकता को पनपने न देने के सारे प्रयास विफल हो गए l वह किसी तरह बच कर निकल भागा l लड़की कहती रही , हम तुमसे प्रेम करते हैं , मत भागो , लेकिन वह उस चक्रव्यूह से बच निकला l
अंधों के गाँव में देखना भी एक बीमारी है l आज के संसार की स्थिति भी ऐसी है l विवेकवान होना , जागरूक होना भी एक बीमारी है , बनो तो उनके जैसे l
8 September 2020
WISDOM ----- पत्रकारिता -----
भारत की आजादी में पत्रकारिता का महान योगदान है l पत्रकारों की आग्नेय भाषा ने जन - जन में वैचारिक चेतना जगाने का कार्य किया l विलियम वोल्ट्स प्रथम व्यापारी था , जिसने 1764 में प्रथम विज्ञापन प्रसारित किया कि ईस्ट इंडिया कंपनी की गतिविधियों से जन सामान्य को अवगत कराने के लिए वह पत्र निकलना चाहता है किन्तु कंपनी ने इसे अपने विरुद्ध विद्रोह का षड्यंत्र पाकर उसे देश से निर्वासित कर इंग्लैण्ड वापस भेज दिया l उसके बाद आगस्ट्स हिक्की ने 1780 में ' बंगाल गजट ' एवं पहला अख़बार निकाला , इसे हिक्की गजट के नाम से खूब लोकप्रियता मिली l भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने इस अख़बार को अपनी और अपनी सत्ता का घोर निंदक घोषित किया और आगस्ट्स को देशद्रोह के झूठे आरोप में जेल भेज दिया l भारत में पत्रकारिता के प्रसार पर अंकुश लगाने के लिए 1799 में लार्ड वेलेस्ली ने सबसे पहले प्रेस एक्ट लागू किया l 1 857 के बाद अंग्रेजों का दमन चक्र और भी बढ़ गया तब अनेकों देशभक्तों ने अपनी जान जोखिम में डालकर पत्रकारिता द्वारा जनता को जागरूक किया l उस समय पत्रकारों के सामने उज्जवल आदर्श था , वे सभी स्वहित नहीं , राष्ट्र के लिए समर्पित थे l उनका यही जज्बा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का मुख्य आधार बना l