27 November 2018

WISDOM ----- अध्यात्म का प्रथम सोपान ---- कर्मयोग अर्थात निरंतर प्रयास और पुरुषार्थ अनिवार्य है

  स्वामी  विवेकानन्द जब  अमेरिका  गए  तो  वहां   एक   ने  उनसे  सवाल  किया  ----- " क्या  आपने  हिंदुस्तान में  ब्रह्म विद्दा  सिखा ली  ?  हिंदुस्तान  में  ज्ञान  और  धर्म  का  प्रचार  हो  गया  ,  जो  इतना  लम्बा    सफर   कर के  यहाँ  आये   ? " स्वामी  ने  गम्भीरता  से  उत्तर  दिया ------ " हमारा  भारतवर्ष    तमोगुण  में  डूबा  हुआ  है    आप   एक  क्लास  आगे  बढ़  गए  हैं  ,  आप  रजोगुण  में  हैं   इसलिए  आपको  उसके  आगे  -- सतोगुण  का  पाठ  सिखाने  आये  हैं  l  हम  आपको  न  तो  भजन    की   शिक्षा  देने  आये  हैं   और  न  ही   संयम  और  सेवा   की  l  आप  सामर्थ्यवान  हैं    और  सामर्थ्यवान  को   त्याग    की    शिक्षा  दी  जा  सकती  है, ज्ञान , ध्यान  और  प्रेम  की शिक्षा  दी  जा  सकती  है   लेकिन  जहाँ  गरीबी  है  , बेरोजगारी  है  वहां  ध्यान  और  त्याग  की  शिक्षा  कैसे   दे  सकते   हैं   l  "  
  हजारों   वर्षों  की  गुलामी  के  कारण    भारत  अभी  भी  तमोगुण  अर्थात  जड़ता   की  स्थिति  में  है   यहाँ  कर्मयोग  के   शिक्षण  की  जरुरत  है  l
   तुलसीदासजी  ने  भी  लिखा  है ---- ' सकल  पदारथ  हैं  जग  मांहीं,  करमहीन  नए  पावत नाहीं  l 
  कर्मकांड  और  आडम्बर  छोड़कर  आज  लोगों  को  कर्मयोगी  बनने  की  जरुरत  है  l