1 December 2022

WISDOM -----

  ऋषियों  का  वचन  है ---- ' उदय  होता  सूर्य  भी  रक्त  होता  है  और  अस्त  होते  समय  भी  रक्त  रहता  है  l  उसी  तरह  बुद्धिमान  सज्जनों  का  रूप  भी  विपत्ति   में  और  संपत्ति  में  एक  जैसा  रहता  है  l  '    संसार  में  जो  व्यक्ति  सुख -दुःख  के  चक्र  को  नहीं  समझते  वे  सुख  आने  पर  अहंकारी  हो  जाते  हैं   और  दुःख  आने  पर  हताश -निराश  हो  जाते  हैं ,  उनका  आत्मविश्वास  ही  समाप्त  हो  जाता  है  , आत्महत्या   कर  लेते  हैं  l  लेकिन  जो  इस  सत्य  को  जानते  हैं  कि  गहरी  रात  के  बाद  सुबह  अवश्य  होगी  , उसे  कोई  रोक  नहीं  सकता , वे  अपने  आत्मविश्वास  पर  दृढ  रहते  हैं , उन्हें  ईश्वरीय  सत्ता  पर  विश्वास  होता  है   और  दुःख  के  कठिन  समय  में  आने  वाले  सुनहरे  पल  की  तैयारी  करते  हैं   l  महाभारत  का   प्रसंग  है ---- जब  पांडवों  को  जुए  में  हारने  के  बाद  बारह  वर्ष  का  वनवास  और  एक  वर्ष  का   अज्ञातवास  मिला   तब  अर्जुन  ने  दिव्यास्त्र  प्राप्त  करने  के  लिए  कठोर  तपस्या  की , शिवजी  से  'पाशुपत अस्त्र  ' प्राप्त  किया   तब  देवराज  इंद्र   जो  अर्जुन  के  पिता  थे  अपने  साथ  कुछ  समय  के  लिए  स्वर्गलोक  ले  गए  , वहां  उनका  मन  बहलाने  के  लिए  अप्सराओं  के  नृत्य  का  आयोजन  किया  l  स्वर्ग  की  सबसे  सुन्दर  अप्सरा  उर्वशी  उन  पर  आसक्त  हो  गई   और  उसने  अर्जुन  से  प्रेम -याचना  की  लेकिन  अर्जुन  ने  उर्वशी   की  याचना  को  अस्वीकार  कर  दिया  और  कहा  कि   आपके  सौन्दर्य  में  मैंने  अपनी  माँ  के  दर्शन  किए  l  उर्वशी  को  यह  अपना  अपमान  लगा  और  उसने  क्रोधित  होकर  अर्जुन  को  नपुंसक  होने  का  श्राप  दे  दिया  l  तब  देवराज  इंद्र  ने  उनकी  तपस्या  और  श्रेष्ठ  चरित्र   के  आधार  पर  कहा  कि  यह  श्राप  केवल  एक  वर्ष  के  लिए  जब  वह  चाहेंगे  तब  लागू  होगा  l  यह  शाप  अज्ञातवस्  की  अवधि  में  पांडवों  के  लिए  वरदान  बन  गया  , अर्जुन  ने  ब्रह्न्न्ला  बनकर  राजा   विराट   की  पुत्री   उत्तरा  और    उसकी  सहेलियों  को  नाच , गाना -बजाना  सिखाया l  कहाँ  अर्जुन  जिसके  गांडीव  की   टंकार    से  धरती  हिल  जाती  थी  , विपदा  के  समय  ऐसा  रूप  धरना  पड़ा  l  महारानी  द्रोपदी   ने   ऐसे  कठिन  समय  में  राजा    विराट   के  रनिवास  में  नौकरानी  बन   कर   सैरंध्री   नाम  रखकर   सबकी    सेवा  की  l    वहां  का  सेनापति  कीचक  जो  रानी  का  भाई  था  , रनिवास  में  आता -जाता  था  , उसकी   कुद्रष्टि  द्रोपदी  पर  थी   l  एक  दिन  जब  उससे  जान  बचाकर  द्रोपदी  राजसभा  की  ओर भागी   तब  कीचक  भी  उनके  पीछे  भागा  और  भरी  सभा  में  उसने  द्रोपदी  को  ठोकर  मारी , अपशब्द  कहे  l  महारानी  होकर  कितना  अपमान  !  समय  विपरीत  था   इसलिए  सहना  पड़ा  l   धीरे -धीरे  कष्ट  के  दिन  बीत  गए  l  कष्ट  , मान -अपमान  हम  सबके  जीवन  में  आता  रहता  है   इसलिए  हमें  अपने  सारे  रिश्तों  के  साथ  एक  रिश्ता  भगवान  से  भी  रखना  चाहिए   , इससे  हमें  शक्ति  और  सद्बुद्धि  मिलती  है  l