7 May 2020

WISDOM ----

  जब  कभी  अर्थव्यवस्था  में  मंदी   और  बेरोजगारी  का  दौर  आता  है  तो  उसका  सबसे  घातक  दुष्परिणाम  यह  होता  है   कि --- समाज  का  नैतिक  पतन  होने  लगता  है  l   इसका  कारण  है --' भूख '  l
   एक   ओर   लोगों  को  रोजगार  नहीं  मिलता   तो  अपना  व  अपने  परिवार  का  पेट  पालने   के  लिए  वे  कुछ  भी  करने  को  तैयार  हो  जाते  हैं  l
  दूसरी  ओर   वे  लोग  हैं   जिनका  व्यापार  - व्यवसाय  बहुत  अच्छा  था  , परिवार  को  सुख - सुविधाओं  में  जीने  की  आदत   पड़    गई  थी   , उनके    उद्दोग - धंधे  बंद  हो  जाते  हैं ,   उन्हें  अपने  स्थायी  कर्मचारियों  का  वेतन , भवन  का  किराया  आदि  अनेक  खर्चे  करने  हैं ,  लेकिन  व्यापार  में  लाभ  नहीं  मिल  रहा  ,  फिर  हर  किसी  का  कर्ज  भी  माफ   नहीं  होता  ,  जब - तब  साहूकार  वसूली  के  लिए  दरवाजे  पर  खड़ा  हो  जाता  है  ,  ऐसे  लोगों  की  स्थिति  और  भी  दयनीय  हो  जाती  है  l
  सबसे  बुरी  स्थिति  मध्यम  वर्ग  की  होती  है  ,  उनके  आमदनी  के  स्रोत  वैसे  ही  अस्थायी  थे , वे  भी  बंद  हो  गए  l   अब   क्या  करें  ? किसके  आगे  हाथ  पसारें  ?
  यह  एक  तरह  की  पराधीनता  है  l   संसार  के  विभिन्न  देश  राजनीतिक   दृष्टि  से  स्वतंत्र  हो  गए   लेकिन  वैश्विक  अर्थव्यवस्था  के  कारण   वे  सब  जिन  बड़े  संगठनों  और  समझौतों  से  जुड़े  हैं  ,  उनके  आदेश  का  पालन  करने  को  मजबूर  हैं  l
आज  गांधीजी  के  सिद्धांतों  की  जरुरत  है   l   यदि  प्रत्येक  गाँव , प्रत्येक  शहर  आत्मनिर्भर  हो  ,  अपने  साधनों  का  सर्वोत्तम  उपयोग  करें   तो  प्रकृति  सबका  पेट  भरने  के  लिए  पर्याप्त  देती  है  l
 इस  भौतिक  विकास  ने  मनुष्य  का  सुख - चैन  छीन  लिया  l परिश्रम  करने  वालों  से   उनका  परिश्रम  ही  छीन  लिया  और  उन्हें  क्या  बना  दिया  l   जागरूक  होकर  हमें  अपनी  शक्ति  और  साधनों  को  समझना  होगा   l