ऋषियों का वचन है ------ ' जैसे हजारों गायों के मध्य बछड़ा अपनी माँ को स्वत: ढूंढ़ निकालता है , वैसे ही आपके किए गए कर्म आपको किसी भी योनि में सहजता से ढूंढ़ निकालते हैं l इसलिए सदा शुभ कर्म ही करना चाहिए l ' कर्म करने के लिए व्यक्ति स्वतंत्र है लेकिन उसका फल कब मिलेगा यह काल निश्चित करेगा l मनुष्य स्वयं के बुद्धिमान होने का दावा करता है और ईश्वर के इस विधान को अपने ढंग से समझ कर पाप कर्म करता रहता है कि अभी ऐशो आराम से जी लो जब सजा मिलेगी तो देखी जाएगी l कर्मफल को न समझ पाने के कारण आज संसार में इतना अत्याचार बढ़ गया है l
17 March 2022
WISDOM -------
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- " कामना एक ऐसी धधकती आग है , जो कभी बुझती नहीं l नए - नए रूपों में मन में सदा प्रज्वलित रहती है l कामना की आग में मिट जाना विनाश है और इसको नियंत्रित कर लेना विवेक है तथा उसे बुझा देने का अपार दुस्साहस करना विजय है l " कामनाओं की बाधा है ---- क्रोध l क्रोध की अग्नि में सब कुछ नष्ट हो जाता है l क्रोध से ही विनाश और संघर्ष उत्पन्न होता है l कामना के संसार में कहीं भी तृप्ति नहीं है l जितना है, उससे अधिक की चाहत बनी रहती है l गांव का एक सरपंच चाहता है वो विधायक बन जाये , विधायक बनने के बाद चाहेगा कि वह मंत्री बन जाये , फिर मनमाना विभाग मिल जाये , यह सब मिल गया तो भी संतोष नहीं , अब चाहेंगे कि राष्ट्र प्रमुख बन जाये ,--- फिर अन्य देश भी उसकी हुकूमत मान लें l जब यह कामना भी पूरी हो जाती है तो व्यक्ति अपने को भगवान समझने लगता है l बस ! यही उसकी सबसे बड़ी भूल है l भगवान कृष्ण अर्जुन के सारथि बने , महाभारत हुआ तो यहाँ विनाश के साथ सृजन था , अधर्म और अन्याय का अंत और धर्म की स्थापना l लेकिन मनुष्य की कामना तृप्ति में जब बाधा से क्रोध उत्पन्न होता है , इससे उसका विवेक नष्ट हो जाता है , मतिभ्रम हो जाती है और परिणाम --विनाश ही विनाश l परिवार , समाज और राष्ट्र ऐसे ही क्रोध और मति भ्रम के कारण आपस में ही लड़ -लड़कर टूट जाते हैं , नष्ट हो जाते हैं l कितनी ही सभ्यताएं मनुष्य की विवेकहीनता के कारण काल के गाल में समां गईं l आज संसार को सद्बुद्धि की जरुरत है l सद्बुद्धि के अभाव में ही व्यक्ति आपस में लड़ कर , दंगे - फसाद , युद्ध कर , प्रकृति , पर्यावरण सबको नष्ट कर के ही अपने आप पर गर्व महसूस करता करता है