प्राचीन काल में पापी व्यक्ति के सामाजिक बहिष्कार एवं सार्वजनिक निंदा की प्रथा का चलन था इस कारण कुछ हद तक लोग बुराई से बचते थे लेकिन अब झूठ बोलने वाले , बेईमानी करने वालों और अनीति बरतने वालों का सामाजिक बहिष्कार होता अब कहीं दिखाई नहीं देता , उलटे इसे लोगों से डरकर या उनसे लाभ उठाने के लिए अनेक लोग उनके समर्थक बन जाते हैं l
यही बात राजदंड के सम्बन्ध में है l एक तो कानून से दंड बहुत कम मिलता है और आवश्यक गवाह न मिल पाने के कारण असंख्य लोग अपराधी होते हुए भी छूट जाते हैं l
पं. श्रराम शर्मा आचार्य ने लिखा है ---- लोकनिंदा और राजदंड की उपेक्षा का भाव यदि मन में जम जाये तो व्यक्ति और भी ढीठ व उच्छ्रंखल हो जाता है l
यही बात राजदंड के सम्बन्ध में है l एक तो कानून से दंड बहुत कम मिलता है और आवश्यक गवाह न मिल पाने के कारण असंख्य लोग अपराधी होते हुए भी छूट जाते हैं l
पं. श्रराम शर्मा आचार्य ने लिखा है ---- लोकनिंदा और राजदंड की उपेक्षा का भाव यदि मन में जम जाये तो व्यक्ति और भी ढीठ व उच्छ्रंखल हो जाता है l