चाणक्य चन्द्रगुप्त संवाद में चन्द्रगुप्त द्वारा जबरन एक किसान के खेत से फसल उठा लेने एवं सेना हेतु व्यवस्था की चर्चा आती है l चाणक्य पूछते हैं --- क्या इसका मूल्य चुकाया गया ? चन्द्रगुप्त कहते हैं --- वे इसका मूल्य चुका देंगे l फिर आचार्य चाणक्य कहते हैं ---- हर वस्तु का मूल्य है l जिसका भी मूल्य है , वह अर्थ है l अर्थ व्यवहार धर्मपूर्वक होना चाहिए l बिना मूल्य दिए दूसरे का द्रव्य लेना ---- एक प्रकार से अपहरण है , अपने नाश को आमंत्रण है l मगध सम्राट चन्द्रगुप्त बड़ी दुविधा में पड़ जाते हैं l एक ओर आचार्य द्वारा लगाई गई लताड़ और दूसरी ओर एक खबर कि चुने हुए उच्च वर्ग द्वारा कर न चुकाने पर श्रेष्ठी जनों को दण्डित किया जा रहा है , वह भी आचार्य के निर्देश पर l पुन: चन्द्रगुप्त जब आचार्य से रूबरू होते हैं , तो पूछते हैं कि समाज को धन देने वाले श्रीमंत वर्ग का अपमान क्यों किया जा रहा है ? तब आचार्य कहते हैं ---- उनके लिए व्यक्ति नहीं , देश महान है l उनकी निष्ठा समाज के उत्कर्ष में है न कि चन्द्रगुप्त या उन्हें धन देने वाले श्रेष्ठिवर्ग में l वे कार्पोरेट सोशल जिम्मेदारी का चिंतन करते हैं l कर व दान ही किसी राज्य का आधार होते हैं , दान से ही समाज चलता है l यह व्यवस्था टूट गई तो अनर्थ ही अनर्थ हो जायेगा l इसलिए राजा कर लेता है और समाज दान देता है l अपरिग्रही ब्राह्मण चाणक्य से पूछते हैं कि मैं उन व्यापारियों का सम्मान कैसे करूँ ? चाणक्य कहते हैं जब तक राज्य में एक भी व्यक्ति भूखा है , सम्राट कैसे सुखी हो सकता है l प्रजा के हित में ही राजा का सुख - हित है l प्रजा को सुखी बनाना राजा का पहला कर्तव्य है l आज देश को विष्णुगुप्त की जरुरत है ताकि सच्चा सुख प्रजा को भी मिले और शासन के अधिकारियों को भी सच्चा सुख मिले l