5 November 2022

WISDOM ----

    आज  के  युग  में  भी  संसार  के  अधिकांश  देशों  में  तंत्र  जैसी  शक्तियों  का  प्रयोग  किया  जाता  है  l  चाहे  प्रकट  रूप  में  इसे  मान्यता  न  दी  जाए   और  कहा  जाए  हम  किसी  ऐसे  तंत्र  आदि  को  नहीं  मानते  लेकिन  ये  भी  सत्य  है   कि  अपने  पद -प्रतिष्ठा , वैभव,   महत्वाकांक्षा   और  दमित  आकांक्षाओं  की  पूर्ति  के  लिए   लोग  तांत्रिक  आदि  का  सहारा  लेते  हैं  l  लेकिन  प्रश्न  ये  है  कि  ' तंत्र  बड़ा  या  भक्ति  ? '   तंत्र  जैसी  नकारात्मक  क्रियाओं  से  सुरक्षा  का  केवल  एक  ही  उपाय  है -- ' भक्ति '--- ईश्वरीय  व्यवस्था  में  अटूट  विश्वास   और  उसके  अनुरूप  आचरण  l  पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---' तंत्र  चाहे  कितना  ही  बड़ा  क्यों  न  हो  ,  वह  भक्ति  और  भक्त  से  सदैव  कमजोर  होता  है  l   भक्त  की  रक्षा  स्वयं  भगवान  करते  हैं  l  पुराण  की  एक  कथा  है  ---------  भक्त  अम्बरीश   एक  विशाल  साम्राज्य  के  अधीश्वर  थे  लेकिन  उनका  मन  सदैव  ईश्वर  की  आराधना  में  लगा  रहता  था   l  उन्होंने  अपने  जीवन  को  भगवान  श्रीकृष्ण  के  चरण कमलों  में  समर्पित  कर  दिया  था  l  भोग  को   योग    में  परिवर्तित  कर  दिया  था  l  उनकी  अनन्य  भक्ति  से  प्रसन्न  होकर  भगवान   ने  अपने  सुदर्शन चक्र  को  उनकी   रक्षा  में  नियुक्त  कर  दिया  था  l  सुदर्शन  प्रभु  की  अनुमति  से  गुप्त  रूप  से   राजद्वार  पर  प्रहरी  बन  कर  पहरा  देने  लगे  l    एक  बार  राजा  अम्बरीश  ने  रानी  के  साथ  एक  वर्ष  तक  एकादशी  के  व्रत  का  अनुष्ठान  किया  l  वर्ष  भर  विधि -विधान  से  पूजा  हुई  l  अंतिम  एकादशी  के  दूसरे  दिन  विधान  के  अनुरूप   दान , पुण्य , ब्राह्मण भोज  आदि  हुआ  l  इन  सब  प्रक्रियाओं  के  बाद  राजा  पारायण  के  लिए  बैठे  ही  थे  कि  ऋषि  दुर्वासा   अपने  शिष्यों  के  साथ   आ  गए  l  राजा  ने   उनका  सेवा -सत्कार  किया   और  भोजन  ग्रहण  करने  का  निवेदन  किया  l  ऋषि  दुर्वासा  ने  इसे  स्वीकार  किया  और  कहा  कि  वे  यमुना  से  स्नान  आदि  का  आते  हैं  l  दुर्वासा  जी  को  देर  हो  रही  थी  और  द्वादशी  में  केवल  एक  पल  शेष  था  अत: ब्राह्मणों  ने  कहा  कि  आप  श्री भगवान  का  चरणोदक  ग्रहण  कर  लें  अन्यथा  आपका  व्रत  अपूर्ण  रह  जायेगा  l  राजा  ने  चरणोदक  लेकर  पारायण  किया  l  ऋषि  दुर्वासा  को  जब  यह  पता  चला  कि  राजा  ने  पारायण  कर  लिया  तो  इसे  उन्होंने  अपना  अपमान  समझा , बहुत  क्रोधित  हुए   और  अपने  मस्तक  से  जटा   उखाड़कर   जोर  से  धरती  पर  दे  मारा  l  जिससे   कृत्या   नामक  राक्षसी   प्रकट  हो  गई  और   तलवार  हाथ  में  लेकर  राजा  को  मारने  दौड़ी   l  ' कृत्या ' एक  अभिचार  कर्म  है  l  तांत्रिक  क्रिया  है  l    सुदर्शन  तो  पहरे  पर  बैठे  थे  उन्होंने  तुरंत  कृत्या  को  भस्म  कर  दिया  और  अब  ऋषि  दुर्वासा   की  ओर  लपके   l  दुर्वासा  ऋषि  अपनी  जान  बचाने  के  लिए  दसों  दिशाओं  और  चौदह  भुवनों  में  भटके  , कहीं  सुरक्षा  नहीं  मिली  , सुदर्शन  ने  उनका  पीछा  नहीं  छोड़ा  l  अंत  में  वे  दौड़ते - भागते   विष्णु  भगवान  के  पास  पहुंचे   l  भगवान  ने  भी  उनको  सुरक्षा  देने  से  इनकार  कर  दिया  और  कहा  की  यदि  वे  सुरक्षा  चाहते  हैं  तो  महाराज  अम्बरीश  की  शरण  में  जाएँ  l  अंत  में  ऋषि  दुर्वासा  को  राजा  अम्बरीश  की  शरण  में  जाना  पड़ा   जिन्हें  मारने  के  लिए    उन्होंने  महा भयानक  तंत्र  किया  था  l   भक्ति  के  सामने  तंत्र  पराजित  हुआ  l