14 March 2020

WISDOM ------ प्रकृति को क्रोध करने पर विवश न करें

  ' हम  सब  एक  ही  मोतियों  के  हार  में   गुँथे   हुए  हैं   l   ईश्वर  सभी  जीवों  के  हृदय  में   छिपा  हुआ  है  ,  उस  धागे  की   भांति  है   जो  मोतियों  के  हार  में   उन  मोतियों  को  परस्पर  जोड़ता  है   l '
  जब   लोग  इस  सच्चाई  को   जानते  हुए  भी  अनजान  रहते  हैं   और  अपने  अहंकार  के  वशीभूत  होकर  धर्म , जाति ,  ऊंच - नीच ,  अमीर  - गरीब , रंगरूप  आदि  विभिन्न  कारणों  से  समाज  में  अन्याय  और  अत्याचार  करते  हैं  , निर्दोष  को  सताना ,  छोटे - छोटे  बच्चों  पर अमानुषिक  अत्याचार  ,  मूक पशु - पक्षियों   की  हत्या  और  सम्पूर्ण  पर्यावरण  को  प्रदूषित  करते  हैं  l   समाज  को  दिशा  देने  वाले  भी  अपनी - अपनी  दुकान  बचाने   में  , अपना  स्वार्थ  सिद्ध  करने  में  तत्पर  रहते  हैं  l   तब  प्रकृति  क्रोधित  हो  जाती  है   l   शिवजी  का  तीसरा  नेत्र  खुल  जाता  है   और  तब ' गेंहू  के  साथ  घुन  भी   पिसता   है  l '
    अत्याचार  करने  वाले  और  उसे  चुपचाप   मूक - दर्शक  की  भांति   देखने  वाले  बराबर  के  अपराधी  हैं  l
  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी   कहते  हैं --- 'मनुष्य  सच्चा  इनसान   बने ,  स्वार्थ  के  स्थान  पर  पुण्य - परमार्थ  की  प्रवृति  को  जगाये  ,  भौतिक  प्रगति  के  साथ  चेतना  का  स्तर  ऊँचा  हो  यही  सच्ची  प्रगतिशीलता  है  l '
 आचार्य श्री  लिखते  हैं  --- ' मनुष्य  में  सन्मार्ग  पर  चलने  की   स्वाभाविक  इच्छा  होती  है   l  यदि  इस  प्रवृति  को  निरंतर  पुष्ट  किया  जाता  रहे    तो मनुष्य  ऊंचाइयों   के  शिखर  पर  चढ़ता  जाता  है  l   इसमें  ढिलाई  बरतने  पर   बिना  मांजे  बर्तन  की  तरह  वह  मैला  भले  हो  हो  जाये   पर  उसकी  वह  वृत्ति   मरती  नहीं  है   l  "
  लेकिन   जब  मनुष्य  पर  दुर्बुद्धि  का  प्रकोप  होता  है   ,  अनैतिक  और  अमर्यादित   कार्यों  से  वह  ईश्वर  के  अनुशासन  को  चुनौती  देने  लगता  है   तब  प्रकृति   के   डंडे   से   ही   उसकी  दुर्बुद्धि  सद्बुद्धि  में  बदलने  लगती  है  l