' जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता | ब्राह्मणत्व एक साधना है । मनुष्यता का सर्वोच्च सोपान । इसकी साधना की ओर उन्मुख होने वाले क्षत्रिय विश्वामित्र और शूद्र ऐतरेय भी ब्राह्मण हो जाते हैं । और साधना से विमुख होने पर ब्राह्मण कुमार अजामिल और कौंडीलायन शूद्र हो गये | ब्राह्मण वह है जो स्वयं के तप , विचार और आदर्श जीवन के द्वारा अनेक को सुपथ पर चलना सिखाये ।
पं. रामचन्द्र शुक्ल कालाकांकर नरेश के पास मालवीय जी का पत्र लेकर गये और कहा ---- " कल मालवीय जी का पत्र आया था , उन्होंने लिखा है कि यदि तुममे ब्राह्मणत्व जागे तो रियासत की आरामतलबी छोड़कर हिन्दू - विश्वविद्यालय के कर्तव्य क्षेत्र में आ जाओ | यहाँ तुम्हारी उपयोगिता और आवश्यकता अधिक है । "
महाराज ने कहा --- ब्राह्मण तो आप हैं ही l इसमें जागने की क्या बात है ? "
शुक्लजी ने कहा --- " आज से पहले मैं भी यही समझता था , किन्तु अब मालवीय जी की परिभाषा पढ़कर लगा कि अर्थ लोलुप भी कहीं ब्राह्मण हो सकता ।"
नरेश --- " कितना मिलेगा वहां ? "
शुक्ल जी -- यही तकरीबन अढाई तीन सौ । "
नरेश ---- " और यहाँ आपको साढ़े तीन हजार प्रतिमास मिलता है और आवास तथा अन्य सुविधाएँ अलग । मालवीय जी से पूछियेगा , ब्राह्मण होने का मतलब बुद्धिहीन होना तो नहीं है ? "
शुक्ल जी ने उत्तर दिया ---- " बुद्धि येन - केन प्रकारेण तिकड़म भिड़ाकर अपना उल्लू सीधा करती है और विवेक भावनाओं से एक होकर उच्च आदर्शों के लिए अपनी राह खोजता है । मैं अपनी आत्मा की इस प्रकार की अवहेलना करने में असमर्थ हूँ । "
नरेश ने कहा ---- " आप हमेशा से मेरे श्रद्धाभाजन रहे और आज तो आपके प्रति मेरी श्रद्धा पहले की अपेक्षा और अधिक हो गई ।
ऐसे महामानव पं. रामचन्द्र शुक्ल थे जिन्होंने कर्तव्य की पुकार पर कालाकांकर नरेश के हिन्दी - सचिव का पद ठुकराकर मालवीय जी का सहकर्मी बनना श्रेयस्कर माना ।
पं. रामचन्द्र शुक्ल कालाकांकर नरेश के पास मालवीय जी का पत्र लेकर गये और कहा ---- " कल मालवीय जी का पत्र आया था , उन्होंने लिखा है कि यदि तुममे ब्राह्मणत्व जागे तो रियासत की आरामतलबी छोड़कर हिन्दू - विश्वविद्यालय के कर्तव्य क्षेत्र में आ जाओ | यहाँ तुम्हारी उपयोगिता और आवश्यकता अधिक है । "
महाराज ने कहा --- ब्राह्मण तो आप हैं ही l इसमें जागने की क्या बात है ? "
शुक्लजी ने कहा --- " आज से पहले मैं भी यही समझता था , किन्तु अब मालवीय जी की परिभाषा पढ़कर लगा कि अर्थ लोलुप भी कहीं ब्राह्मण हो सकता ।"
नरेश --- " कितना मिलेगा वहां ? "
शुक्ल जी -- यही तकरीबन अढाई तीन सौ । "
नरेश ---- " और यहाँ आपको साढ़े तीन हजार प्रतिमास मिलता है और आवास तथा अन्य सुविधाएँ अलग । मालवीय जी से पूछियेगा , ब्राह्मण होने का मतलब बुद्धिहीन होना तो नहीं है ? "
शुक्ल जी ने उत्तर दिया ---- " बुद्धि येन - केन प्रकारेण तिकड़म भिड़ाकर अपना उल्लू सीधा करती है और विवेक भावनाओं से एक होकर उच्च आदर्शों के लिए अपनी राह खोजता है । मैं अपनी आत्मा की इस प्रकार की अवहेलना करने में असमर्थ हूँ । "
नरेश ने कहा ---- " आप हमेशा से मेरे श्रद्धाभाजन रहे और आज तो आपके प्रति मेरी श्रद्धा पहले की अपेक्षा और अधिक हो गई ।
ऐसे महामानव पं. रामचन्द्र शुक्ल थे जिन्होंने कर्तव्य की पुकार पर कालाकांकर नरेश के हिन्दी - सचिव का पद ठुकराकर मालवीय जी का सहकर्मी बनना श्रेयस्कर माना ।