19 December 2022

WISDOM -----

   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' संकीर्ण  स्वार्थ , वासना  और  अहं  से  युक्त  अनैतिक  जीवन   भय  का  प्रमुख  कारण  है  l '  पद -प्रतिष्ठा , धन , वैभव  जिनके  पास  है   वे  सबसे  ज्यादा  भयभीत  हैं  l  मनुष्य  का  मन  एक  दर्पण  है  l  बहुत  कुछ  हासिल  करने  के  लिए  वह  जो  तरीके  अपनाता  है   या  जाने -अनजाने  उससे  जो  भूलें  हो  जाती  हैं   उन्हें  वह  संसार  से  चाहे  छुपा  ले  ,  लेकिन  उसकी  आत्मा  उन  गलतियों  के  लिए  उसे  सदा  कचोटती  रहती  है  l  यह  भय  उसका  अपने  आप  से  है   कि  जैसा  उसने  किया  , कहीं  वैसा  उसके  साथ  न  हो  जाये  l  प्रकृति  का  न्याय  है  l  एक  और  भय   है  --वह  है ---- खोने  का  भय  l   पद , प्रतिष्ठा , धन - वैभव   आदि  को  अपने  पास  बनाये  रखने  के  लिए  व्यक्ति  न  जाने  क्या -क्या  यत्न  करता  है  l  इन  सबसे  बढ़कर  है  --मृत्यु  का  भय  l  इस  भय  का  कोई  अर्थ  नहीं  है  क्योंकि  यह  तो  निश्चित  है  , ईश्वर  ने  सबको  गिनकर   श्वास  दी  हैं    , इन्हें  कम  या  अधिक  नहीं  किया  जा  सकता  l  एक  कथा  है ----  एक  राजा  को  सदा  यह  भय  सताता  रहता  था  कि  कहीं  कोई  शत्रु  उस  पर  हमला  न  कर  दे  l  इसलिए  उसने  किले  के  चारों  ओर  बड़ी -बड़ी  दीवारों  का  निर्माण  कराया  , जिनके  बीच  में  गहरी  खाइयाँ  थीं  l  सुरक्षा  का  घेरा  इतना  मजबूत  बनाया  कि  कोई  शत्रु  उसे  मारने  के  लिए  प्रवेश  न  कर  सके  l   अपनी  उपलब्धि  पर  कुलगुरु  की  स्वीकृति  प्राप्त  करने  के  लिए   उसने  उनको  महल  में  आमंत्रित  किया  l  कुलगुरु  ने  पूरा  महल  देखा  , फिर  राजा  से  बोले ---- " राजन  !  यह  तो  ठीक  है  कि  अब  इस  महल  में  कोई  शत्रु  प्रवेश  नहीं  कर  सकता  ,  परन्तु  मृत्यु  को  आने -जाने  के  लिए  द्वार  की  आवश्यकता  नहीं  होती  l  उसका  आना  रोकने  के  लिए  तुमने  क्या  व्यवस्था  की  है  ?  निरंतर  सत्कर्म  करो  और  सन्मार्ग  पर  चलो  l  यही  सत्कर्म  ढाल  बनकर  व्यक्ति  की  रक्षा  करते  हैं  l "  अब  राजा  को  अपनी  भूल  समझ  में  आई   कि  बाहर  के  उपाय  तो   मात्र  मन  की  सांत्वना  के  लिए  हैं  l  

WISDOM -----

   संसार  में  अनेक  जाति , अनेक  धर्म  और  अनेक  संस्कृतियाँ  हैं   और  आज  सभी  अपने  अस्तित्व  के  लिए  प्रयत्नशील  हैं  l  संसार  की  अनेक  सभ्यता , संस्कृति  समय  के  साथ  काल  के  गाल  में  समां  गईं  लेकिन  भारतीय  संस्कृति  अभी  तक    जीवित  है  l  इसे  नष्ट  करने  के  अनेकों  प्रयास  किए  गए   लेकिन  हमारे  पास   नैतिक  बल  था , श्रेष्ठ  चरित्र  था   इसलिए  यह  संस्कृति  जीवित  रही   लेकिन  अब  प्रचार -प्रसार  के  साधनों  के  कारण  आसुरी  तत्वों  को   इस  देश  के  चरित्र  पर  आक्रमण  करने  का  सुनहरा  मौका  मिल  गया  l   ये  आसुरी  तत्व   संसार  में  कहीं  भी  हो  सकते  हैं   जो  अच्छाई  को  बर्दाश्त  नहीं  करते   और   मनुष्य  की  मानसिक  कमजोरियों  जैसे  लोभ , लालच , तृष्णा , महत्वकांक्षा, कामना   आदि   का  सहारा  लेकर  उसके  नैतिक  बल  को   कम  कर  देते  हैं  l  जागरूक  रहकर  ही  अस्तित्व  की  रक्षा  संभव  है , भगवान  बार -बार  अवतार  नहीं  लेते  l