विद्वानों का कहना है पहले हम जंगली अवस्था में थे , धीरे - धीरे विकास कर हम आज सभ्य युग में पहुंचे हैं l जो सभ्यता के इस युग में अपने को दूसरों से ज्यादा सभ्य समझते हैं वे शेष सब को अपने ही जैसा बनाना चाहते हैं l दूसरे को बर्दाश्त न कर पाने के कारण ही परिवार में , समाज में , सारे संसार में लड़ाई - झगड़े और युद्ध होते हैं l पहले शक्तिशाली लाव - लश्कर लेकर दूसरे देशों पर आक्रमण करते थे , वहां से लूटमार कर अपार धन - सम्पदा अपने देश ले जाते थे , अपने देश को संपन्न बनाते थे लेकिन अब मनुष्य सभ्य हो गया है वह दूसरे देशों को आक्रमण कर के नहीं लूटता l अब यह कार्य सभ्य तरीके से होता है लेकिन मार - काट , हत्या , अपराध , उत्पीड़न आदि की पुरानी आदतें जो संस्कार में तब्दील हो गईं हैं , ऐसे शौक को वह अपने ही देश में , अपने ही लोगों से पूरा कर लेता है l सभ्यता के इस युग में संसार के लगभग सभी देशों में हत्या , अपराध , बच्चों , और महिलाओं पर अत्याचार , धार्मिक स्थलों को तोडना , साम्प्रदायिक दंगे - फसाद की घटनाएं बढ़ गईं हैं l ये सब आपराधिक घटनाएं विभिन्न देशों में आंतरिक स्तर पर होती है , दूसरे देश के लोग आकर ये सब नहीं करते l आज संसार के सामने प्रश्न चिन्ह है --- क्या हम सभ्य हैं ? क्यों आत्महत्या , तनाव , पागलपन के आकड़े सभ्य और संपन्न में ज्यादा बढ़ते हैं l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने लिखा है ---- स्वयं को सभ्य और उत्कृष्ट बनाने के जो भी उपाय किए हैं , वे सब शारीरिक और मानसिक स्तर पर ही किए गए हैं , मानवी सत्ता का मूल रूप चेतना है , चेतना के स्तर को ही ऊँचा उठाने का प्रयास किया जाना चाहिए l उसके बिना केवल कायिक - मानसिक विकास होने से चतुर , चालाक , अहंकारी , आततायी रावण , कुम्भकरण , हिरण्यकशिपु , भस्मासुर , वृत्रासुर जैसे दानवों की बिरादरी ही पनपेगी l " ईश्वर ने मनुष्य को चयन की स्वतंत्रता दी है l संसार के विचारशील वर्ग को ही चयन करना है की हमारे सभ्य कहलाने का पैमाना क्या हो l एक और धन - वैभव , भौतिक सुख - सुविधाओं के साथ तनाव , अशांति , मनोरोग आदि हैं तो दूसरी ओर सात्विकता , शांति , आनंद है l