18 August 2021

WISDOM -----

   विद्वानों  का  कहना  है  पहले  हम  जंगली  अवस्था  में  थे  ,  धीरे - धीरे  विकास  कर  हम  आज  सभ्य  युग  में  पहुंचे  हैं  l   जो   सभ्यता  के  इस  युग  में  अपने  को  दूसरों  से  ज्यादा  सभ्य   समझते  हैं   वे  शेष  सब  को   अपने  ही  जैसा  बनाना  चाहते  हैं  l   दूसरे  को  बर्दाश्त  न  कर  पाने  के  कारण  ही    परिवार  में  , समाज  में  ,  सारे    संसार  में  लड़ाई - झगड़े  और  युद्ध  होते  हैं   l   पहले  शक्तिशाली   लाव - लश्कर  लेकर  दूसरे  देशों  पर  आक्रमण  करते  थे  ,  वहां  से  लूटमार  कर  अपार  धन - सम्पदा  अपने  देश  ले  जाते   थे ,  अपने  देश  को  संपन्न  बनाते  थे   लेकिन  अब  मनुष्य  सभ्य  हो  गया  है    वह  दूसरे  देशों  को   आक्रमण  कर  के  नहीं   लूटता    l   अब  यह  कार्य  सभ्य  तरीके  से  होता  है    लेकिन   मार - काट  , हत्या  , अपराध  , उत्पीड़न   आदि     की  पुरानी   आदतें  जो  संस्कार  में  तब्दील  हो   गईं   हैं  ,  ऐसे  शौक  को  वह  अपने  ही  देश  में , अपने  ही  लोगों   से  पूरा  कर  लेता  है   l     सभ्यता  के  इस  युग  में  संसार  के  लगभग  सभी  देशों  में   हत्या , अपराध ,  बच्चों ,  और  महिलाओं  पर  अत्याचार  ,  धार्मिक  स्थलों  को   तोडना ,  साम्प्रदायिक दंगे - फसाद   की  घटनाएं   बढ़  गईं   हैं   l  ये  सब  आपराधिक  घटनाएं   विभिन्न  देशों  में    आंतरिक  स्तर  पर  होती  है ,   दूसरे  देश  के  लोग  आकर  ये  सब  नहीं  करते  l  आज  संसार  के  सामने  प्रश्न  चिन्ह  है  --- क्या  हम  सभ्य  हैं   ?   क्यों  आत्महत्या , तनाव , पागलपन  के  आकड़े   सभ्य और  संपन्न  में  ज्यादा  बढ़ते  हैं  l   पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है  ---- स्वयं  को  सभ्य  और  उत्कृष्ट  बनाने  के   जो  भी  उपाय  किए   हैं  ,  वे  सब  शारीरिक  और  मानसिक  स्तर  पर  ही    किए   गए  हैं  ,   मानवी  सत्ता  का  मूल  रूप  चेतना  है  ,  चेतना  के  स्तर  को  ही  ऊँचा  उठाने  का  प्रयास  किया  जाना  चाहिए   l   उसके  बिना  केवल  कायिक - मानसिक  विकास  होने  से   चतुर ,  चालाक ,  अहंकारी  ,  आततायी   रावण , कुम्भकरण ,  हिरण्यकशिपु , भस्मासुर , वृत्रासुर  जैसे  दानवों  की  बिरादरी  ही  पनपेगी   l  "    ईश्वर  ने  मनुष्य  को  चयन  की  स्वतंत्रता  दी  है  l   संसार  के  विचारशील   वर्ग  को  ही   चयन  करना  है  की  हमारे  सभ्य  कहलाने  का  पैमाना  क्या  हो   l   एक  और  धन - वैभव ,   भौतिक सुख - सुविधाओं   के  साथ   तनाव , अशांति  , मनोरोग  आदि  हैं    तो  दूसरी   ओर   सात्विकता ,   शांति ,  आनंद   है  l