19 May 2023

WISDOM -----

   लघु कथा ---- ' आचरण  से  शिक्षा ' -----  एक  नगर  का  राजा  बड़ा  निर्दयी  था  , प्रजा  को  उत्पीड़ित  कर  बहुत  धन  जमा  करता  और  उसे  अपने  भोग विलास  पर  खर्च  करता  l  उसे  शिकार  का  भी  बहुत  शौक  था , निर्दोष  प्राणियों  का  शिकार   करने  नित्य  ही  जंगल  में   जाता  l  उस  जंगल  में  एक  महात्मा  रहते  थे  l  घायल  और  निरीह  प्राणियों  की  चीत्कार  से  उनका  मन  बहुत  दुःखी  हो  जाता  था , कभी  कोई  निरीह   हिरण  उनके  पास  भागता  हुआ  आता   और  अपने  शरीर  में  घुसे  बाण  को  निकालने  के  लिए   अपनी  भाषा  में   ,  आंसू  भरे  नेत्रों  से  प्रार्थना  करता  l    महात्मा  ने  विचार  किया  कि   पूजा  और  साधना  का  स्वरुप  केवल  ध्यान  करना  और  कर्मकांड   करना   ही  नहीं  है  l  संसार  के  कल्याण  के  लिए   लोगों  को  प्रेम  और  सदव्यवहार  की  शिक्षा  देना   और  राजा  को  उसका  राजधर्म  सिखाना  भी  जरुरी  है  l   सब  सोच -विचारकर  वे  उस  नगर  में  पहुंचे  और  राजा  से  कहा ---- ' राजन  !  मैं   आपके  नगर  में  कुछ  दिन  रहकर  साधना  करना  चाहता   हूँ  और  उसके  लिए  एक  स्थान  चाहता  हूँ  l '  राजा  के  ह्रदय  में  संत-महात्माओं  के  लिए   कोई  विशेष  स्थान  नहीं  था  , कुछ  सोचकर  राजा  ने  कहा ---- "  हमारा  एक  आम  का  बगीचा  है  , आप  उसमे  रह  कर  साधना  कर  सकते  हैं   लेकिन  उस  बगीचे  की  देखभाल  और  सुरक्षा  का  पूरा  दायित्व   आप   पर  होगा  l '  महात्मा जी शर्त  मान  कर  बाग़  में  चले  गए  l  वे  बाग़  में  रहकर  भजन -पूजन  भी  करते  और  बाग़  की  देखभाल  भी  करते  l  जो  बच्चे  वहां  आते  उन्हें  प्रेम व   सदव्यवहार  की  शिक्षा  देते  और  जो  फल  अपने  आप  जमीन  पर  गिर  जाते  , उन्हें  अपने  हाथ  से  खिलाते  l   एक  दिन   इस  राजा  का  एक  मित्र  राजा   इस  नगर  में  आवश्यक  कार्य  से  आया  l  वह  अभिमानी  नहीं  था  l   सुशील    और  संतों  की  सेवा  करने  वाला  था  l  उसने  जब  महात्मा  को  बाग  में  कार्य  करते  देखा  तो  कहा  भी  कि  इस  तरह  महात्मा  से  सेवा  लेना  उचित  नहीं  है  l   इस  अभिमानी  राजा  ने  उसकी  बात  पर  कोई  ध्यान  नहीं  दिया  और   उस  महात्मा  को  कुछ  आम  लाने  का  आदेश  दिया  ताकि  उस  मित्र  को  अपने  बाग  के  आम  खिलाये  l  मित्र  तो  महात्मा  की  वजह  से  संकोच  में  था  ,  इस  राजा  ने  जैसे  ही  आम  चूसा  तो  वह  बहुत  खट्टा  था , तो  थूक  दिया  l  उसने  क्रोध  से  उस  महात्मा  से  कहा --- ' मैंने  आपको  मीठे  आम  लाने  के  लिए  कहा  था   और  आप  जानबूझकर  सबसे  खट्टे  आम  लाये  l "  महात्मा  ने  शांत  स्वर  में  कहा --- " राजन  !  मुझे  इस  बात  का  ज्ञान  ही  नहीं  है  कि  इस  बाग  के  कौन  से  फल  मीठे  हैं  और  कौन  से  खट्टे  l  क्योंकि  मैंने  आज  तक  एक  भी  आम  चखा  भी  नहीं  है  l "  राजा  ने  कहा ---- " क्यों  ऐसी  क्या  बात  थी  जो  आपने  एक  भी  आम  आज  तक  नहीं  खाया  l '  महात्मा  ने  शांत  स्वर  में  उत्तर  दिया ---- " राजन  ! मैं  इस  बाग़  में  रक्षक  होकर  नियुक्त  हुआ  हूँ  , भक्षक  होकर  नहीं  l  आपने  मुझे  केवल  रखवाली  का  उत्तरदायित्व  सौंपा  था  , फल  खाने  का  अधिकार  नहीं  दिया  था  l  तब  मैं  आम  खाने  की  अनाधिकार  चेष्टा  कर   इस  लोक  में  अपयश  और  परलोक  में  नरक  यातना  का  भागी   नहीं  बनना  चाहता  l "  महात्मा  का  यह  उत्तर  सुनकर  मित्र  राजा  बहुत  प्रभावित  हुआ  , उसने  झुककर  महात्मा  का  चरण स्पर्श  किया  किन्तु  इस  अभिमानी  राजा  को  कुछ  समझ  में  नहीं  आया  l  तब  इस  मित्र  राजा  ने  कहा --- ' महात्मा  ने  अपने  इस  उत्तर  से  राजधर्म  को  समझाया  है   कि  राजा  को  अपनी  प्रजा  का  रक्षक  होना  चाहिए  , भक्षक  नहीं   l  उसे  प्रजा  का  पोषण  करना  चाहिए ,  शोषण  नहीं  l  "  महात्मा  के  सरल  और  शांत  व्यवहार  और  अपने  आचरण  से  सदाशयता  की  शिक्षा  से   राजा   की  आँखें  खुल  गईं   और  उसने  संकल्प  लिया  कि  अब  वह  प्रजा  का  शोषण  और  निरीह  प्राणियों  की  हत्या  नहीं  करेगा  l  आचरण  द्वारा  दी  गई  शिक्षा  से  जीवन  की  दिशा  बदल  गई  l