लघु कथा ----- 1 . एक साँप को बहुत गुस्सा आया l उसने फन फैलाकर गरजना और फुफकारना शुरू कर दिया और कहा ---- " मेरे जितने भी शत्रु हैं , आज उन्हें खाकर ही छोडूंगा l उनमें से एक को भी जिन्दा न रहने दूंगा l " मेढ़क ,चूहे , केंचुए और छोटे -छोटे जानवर उसके गुस्से को देखकर डर गए और छिपकर देखने लगे कि देखें आखिर होता क्या है ? साँप दिनभर फुफकारता रहा और दुश्मनों पर हमला करने के लिए दिनभर इधर से उधर बेतहाशा भागता रहा l फुफकारते -फुफकारते उसके गले में दरद होने लगा l शत्रु तो कोई हाथ नहीं आया , पर कंकड़ -पत्थर की खरोचों से उसकी सारी देह जख्मी हो गई l शाम होते -होते थकान से चकनाचूर होकर वह एक तरफ जा बैठा l क्रोध करने वाला शत्रुओं से पहले अपने को ही नुकसान पहुंचाता है l
2 . एक राजकुमार बहुत दुष्ट स्वभाव का था l एक दिन वह बाढ़ के पानी में बहने लगा , किसी ने उसे बचाया नहीं l नदी में एक लट्ठ बहता जा रहा था l बाढ़ में पड़े हुए एक चूहे और एक सांप ने उस लट्ठ पर सवारी गाँठ ली l वह लट्ठ राजकुमार के पास से बहता हुआ निकला तो राजकुमार ने भी उसे पकड़कर अपनी जान बचाई l एक साधू ने जब यह द्रश्य देखा तो वह नदी में कूद पड़ा और लट्ठ को खींचकर किनारे ले आय , इस तरह उन तीनों की जान बच गई l रात्रि में ठण्ड बहुत थी तो साधू ने लकड़ी जलाकर उन तीनों की मदद की , उन्हें भोजन कराया और स्वस्थ होने पर विदा किया l चूहे और साँप ने साधू का बहुत अहसान माना और आवश्यकता पड़ने पर मदद करने की बात कही लेकिन राजकुमार बहुत दुष्ट और अहंकारी था , उसे बुरा लगा कि वह राजकुमार है , उसके अनुरूप उसका सत्कार नहीं हुआ तो उसने क्रोध में आकर साधु की झोंपड़ी उखाड़कर फिंकवा दी l अहंकारी को किसी भी तरह संतोष नहीं होता l