1 July 2019

WISDOM ----- सज्जन और दुर्जन सभी समाजों में होते हैं l जाति या धर्म के कारण किसी को बुरा या भला नही समझा जा सकता

 भारत  के  प्रथम  राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद   जब  6-7  वर्ष  के  थे  तब  उन्हें  पढ़ने  के  लिए  गाँव  के
  ' मकतब ' में  भेजा  गया  , जिसमे  एक  बुड्डे  मौलवी  साहब  पढ़ाया  करते  थे  l  उस  समय  वहां  उनके  सिवाय  शिक्षा  प्राप्त  करने  का  कोई  साधन  न  था  l  उसमे  दो - तीन  वर्ष  रहकर  उन्होंने  उर्दू , फारसी का  सामान्य  ज्ञान  प्राप्त  कर  लिया  l  राजेन्द्र बाबू  ने  अपनी  आत्मकथा  में  लिखा  है  कि  " मौलवी  साहब  बहुत  अच्छे  आदमी  थे  l   इसी  प्रकार  वकालत  की  परीक्षा  में  प्रथम  वर्ष  में  उत्तीर्ण  हो  जाने  पर   उसकी  व्यवहारिक  शिक्षा के  लिए  ,  वे  सैयद  शमसुल  हुदा  के  शागिर्द  बने  l   उनकी  भी  प्रशंसा  करते  हुए  राजेन्द्र  बाबू  ने  लिखा  है ---- " एक  बार  बकरीद  के  अवसर  पर  मैं  यह  समझकर   कि  उनके  यहाँ  इस  अवसर  पर  गाय  की  क़ुरबानी  होती  हो  ,  अपने  गाँव  को  चला  गया   l  और  दो - तीन  दिन  बाद  वापिस  आया  l   वकील  साहब  ने  मेरे  जाने  का  कारण  पूछा    और जब   उनको  मेरे  उत्तर से  संतोष  नहीं  हुआ  तो  स्वयं  ही  समझ  गए  और  कहने  लगे ---- "  मैं  समझ  गया  कि  तुम  बकरीद  के  कारण  चले  गए  l  तुमने  सोचा  होगा  कि  यहाँ  गाय  की  कुर्बानी  होगी  l  लेकिन  ऐसा  ख्याल  कर  के  क्या  तुमने  मेरे  साथ  बेइंसाफी  नहीं  की  ?   तुमने  कैसे  समझ  लिया  कि  मैं  तुम्हारी  भावना  का  कुछ  भी  आदर   नहीं  करूँगा  l  तुम  तो  खास  आदमी  हो  l मेरे  घर  में  कई  हिन्दू  नौकर  भी  तो  हैं  l  बगीचे  का  माली  हिन्दू है ,  गायों  की  देखभाल  करने  वाला  भी  हिन्दू  है  l  क्या  उनका  दिल  नहीं  दुखेगा  ?  मुझे  उनकी  भावनाओं  का  ख्याल  है  l  मेरे  घर  में  अपने  हिन्दू  नौकरों  के  ख्याल  से  कभी  गाय  की  कुर्बानी  नहीं  होती  l  "
  राजेन्द्र  बाबू  ने  लिखा  है  कि  "  मुझे  अपनी  गलती  पर  बहुत  दुःख  हुआ   और  यह  शिक्षा  मिली  कि  बिना  अच्छी  तरह  जाने  किसी  के  सम्बन्ध  में  कोई  धारणा  बना  लेना   बहुत  बड़ा  अन्याय  है   l  "
 इसी  तरह  बिहार  में  आन्दोलन  करते  समय  उन्हें  सबसे  अधिक  सहायता  मौ. मजरुल  हक  से  मिली  l   राजेन्द्र  बाबू  और  मजरुल  हक   दोनों  उन  महापुरुषों  में  से  थे  ,  जो  जातीय  द्वेष  की  क्षुद्र  भावना  से  बहुत  ऊपर  रहते  हैं  l