31 July 2020

WISDOM ------

  इस  संसार  में  शुरू  से  ही   अच्छाई  और  बुराई  में  संघर्ष  रहा  है   l   अपनी  ही  दुष्प्रवृतियों  से  विवश  होकर  मनुष्य  दूसरों  को  सताता  रहा  है  l   स्वार्थ , लालच , अहंकार   और  ईर्ष्या  ऐसे  दुर्गुण  हैं  जो   व्यक्ति  को  संवेदनहीन  और  निर्दयी  बना  देते  हैं   l   ऐसे  दुर्गुणों  से  ग्रस्त  व्यक्ति  दूसरों  का  सुख  छीनते   हैं ,  उनसे  किसी  का  सुख , किसी  की  तरक्की  बर्दाश्त  नहीं  होती  l   कहते  हैं  जिनमे  यह  दुर्गुण  अधिक  होता  है  , उन  पर  कोई  बुरी  शक्ति  हावी  हो  जाती  है   और  उसके  माध्यम  से  संसार  में  अनीति , अत्याचार ,  हिंसा , अपराध  और  आतंक  की  घटनाओं  को  अंजाम  देती  है  l   इतिहास  में  इस  सत्य  के  कई  उदाहरण  मिलते  हैं  l   दुर्बुद्धि  ऐसी  हावी  होती  है  कि   धन संपन्न  व्यक्ति   निर्धनों  की  गरीबी  मिटाने   के  कार्य  न  कर  के  ,  उन  गरीबों  को  ही  मिटाने   का  कार्य  करते  हैं  l
जिसके  पास  शक्ति  है  , वह  सत्कर्मों  से  लोगों  के  हृदय  को  जीतने   का  प्रयास  नहीं  करते   ,  वे  अपनी  ताकत  से  जीवित  लाशों  पर  राज  करना  चाहते  हैं  l
जिन  पर  नई  पीढ़ी  को  बनाने  की  जिम्मेदारी  है  वही  उनका  शोषण  करते  हैं   l
 जब  सत्प्रवृत्तियाँ  संगठित  होंगी ,  जागरूक  होंगी   तभी  आसुरी  प्रवृतियों  पर  नियंत्रण  संभव  होगा  l 

30 July 2020

WISDOM -----

  कहते  हैं  सत्ता  का  नशा  संसार  की  सौ   मदिराओं  से  भी  बढ़कर  है  l  कोई  भी  व्यक्ति  जो  चाहे  किसी  छोटी  सी  संस्था  में  अपनी  हुकूमत  चलाता   हो  ,  या  बड़ी  से  बड़ी  व्यवस्था  की  हुकूमत  करता  हो  ,  वह  अपनी  उस  प्राप्त  शक्ति  को  खोना  नहीं  चाहता  l   इसका  सबसे  बड़ा  कारण  है  भय  l   सत्ता  के  नशे  में  किए   गए  गलत  कार्यों  के  परिणाम   से  व्यक्ति  भयभीत   रहता  है  l   इसलिए   वह  सत्ता  में  बने  रहने  का  हर  संभव  प्रयास  करता  है   l   इसी  सत्य  को  बताती  हुई  एक  कथा  है  ------    युगों  पहले  की  बात  है  ,  गणतंत्र  था ,  अनेक  स्वतंत्र  राज्य  थे  ,  अच्छी  शासन  व्यवस्था  थी  l   जनता  के  चुने  हुए  प्रतिनिधि  थे  l   सत्ता में  रहते - रहते  उन्हें  उसकी  आदत  हो  गई  ,  अहंकार  आ  गया ,  अत्याचार , अन्याय  बढ़ा    और  प्रजा  भी  नाखुश  रहने  लगी  l   विभिन्न  स्वतंत्र  राज्यों  के  मुखिया  आपस  में  मिलते  थे   और  बड़े  चिंतित  थे  ,  चाहते  थे  कि   जब  तक  उनका  जीवन  है  वे  अपने  पद  पर  बने  रहें  l   वैसे  सब  स्वतंत्र  राज्यों  की  अपनी  नीति   थी  लेकिन   अपने  स्वार्थ , लोभ - लालच  के  वशीभूत  होकर   सबने  मंत्रणा    कर   अपने- अपने    राज्य  में  लोगों   के  मिलने - जुलने , संगठित   होने  पर    प्रतिबन्ध   लगा  दिए  ,  विभिन्न  तरीकों  से  प्रजा  को  भयभीत  कर  दिया  ,  जिससे  विरोध  करने  की  उनकी  शक्ति  ही  न  रहे  l   सत्ताधारियों   ने  अपनी  ताकत  से,  चालाकी  से    युवाओं  को  अपने  नियंत्रण  में  कर  लिया  ,  अब  वे  बच्चों  से  भयभीत  होने  लगे  कि   कहीं  ये  बड़े  होकर  उनके   लिए  खतरा  न  बन  जाएँ  l   इसके  लिए  उन्होंने  विभिन्न  उचित - अनुचित  तरीके  अपनाये  कि   बच्चे  मानसिक  रूप  से  कमजोर  हों , बीमारियों  से  ग्रसित  हों  l  बच्चों  का  शोषण  करने  लगे  l
कहते  हैं   संसार  में  एक  शक्ति  है    जो  अति  को  बर्दाश्त   नहीं  करती  l    बच्चों  पर  अत्याचार  प्रकृति  से  सहन  नहीं  हुआ  ,  धरती  कांपने  लगी  और  तीव्र  भूकंप  से   वे  सब  राज्य  धरती  में  समां  गए  l   उनका  नामोनिशान  मिट  गया  ```````

29 July 2020

WISDOM ----- 'परहित सरिस धर्म नहीं भाई l '

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  --- ' जीवित  रहते  स्वयं  को  श्रेष्ठतम  कर्मों  में  लगाए  रखो   l  व्यक्ति  के  श्रेष्ठ  कर्म  ढाल  के  समान   उसकी  रक्षा  करते  हैं   और  दुष्कर्म  असमय  ही   उसे    मौत  के  मुँह   में   ढकेल   देते  हैं   l   श्रेष्ठ  कर्मों  से  भगवान   भी  प्रसन्न  होते  हैं   और  उनकी  कृपा दृष्टि  बनी   रहती  है  ,  जिससे  मौत  भी  कुछ  नहीं  कर  पाती  l '
 ज्योर्तिमठ  के  शंकराचार्य  के  शिष्य    कृष्ण  बोधाश्रम   120  वर्ष  जीवित  रहे   l   एक  बार  वे  प्रवास  पर  थे , उस  इलाके  में   चार  वर्ष  से  पानी  नहीं  गिरा  था   l   कुएं - तालाबों  का  पानी  सूख   गया  था   l   सभी  आये  , कहा --- महाराज  जी  !  उपाय  बताएं  l  "  वे  बोले --- पुण्य  होंगे  तो  प्रसन्न  होगा  भगवान  l '
 लोगों  ने  पूछा --- " क्या  पुण्य  करें  ? "  तो  वे  बोले ---- " सामने  तालाब  है  , उसमे  थोड़ा  ही  पानी  है , मछलियाँ   मर  रही  हैं ,  उसमे  पानी  डालो  l "  लोग  बोले  --- "  हमारे  लिए  ही  पानी  नहीं  है  ,  मछलियों  को  पानी  कहाँ  से  दें  ? "
  उन्होंने  कहा --- " कहीं  से  भी  लाओ  ,  कुओं  से  भर  - भरकर   लाओ  और  तालाब  में  डालो   "  सभी  ने  पानी  तालाब  में  डालना  शुरू   किया  l   तीसरे  दिन  बादल   आये  ,  घटायें  भरकर  महीने  भर  बरसीं  l   सारा  दुर्भिक्ष - पानी  का  अभाव   दूर  हो  गया  l 

WISDOM ------

    महाराष्ट्र  में  पुणे  में  जन्मे   बाबा  राघवदास   ने  गांधीजी  के  साथ  काफी  दिन  काम  किया   और  फिर  उत्तर  भारत  में  गोरखपुर  के  होकर  ही  रह  गए   l   वर्ष  1950   में   एक  कार  दुर्घटना  में  वे  घायल  हो  गए  l  चिकित्सकों  ने  कहा   कि   दवा  तो  आपको  लेनी  ही  होगी  ,  पर  उन्होंने  जीवन  में  कभी  दवा  नहीं  ली  थी  ,  प्राकृतिक  चिकित्सा  में  विश्वास  करते  थे  l   उन्हें  जलोदर  हो  गया  ,  तब  वे  डॉ. अप्पाजी  के  साथ  पुणे  चले  गए   और  पूर्णत:  स्वस्थ  होकर  लौटे  l  इसके  बाद  उन्होंने  अपने  सेवा  कार्य  में   प्राकृतिक  चिकित्सा  का  प्रचार  भी  जोड़  लिया  l   गोरखपुर  एवं   आश्रम  बरहज  में   उन्होंने  कई  प्राकृतिक  चिकित्सालय  खुलवाए  l   उनके  प्रयास  से  ' अखिल  भारत  प्राकृतिक  चिकित्सा  परिषद् ' की  स्थापना  हो  गई  ,  इससे   पूरे   देश  में  प्राकृतिक  चिकित्सा  को  पोषण  मिला  l 

WISDOM ----- कायरता समाज का सबसे बड़ा कलंक है

    जो  साहसी  हैं , वीर  हैं  वे   कभी  किसी  पर  छुपकर  , पीछे  से  वार  नहीं  करते   l  संसार  के  विभिन्न  देशों  का  इतिहास  ऐसे  वीर - बहादुरों  की  गाथाओं  से  भरा  पड़ा  है  l   लेकिन  जब  से  भौतिक  प्रगति  हुई  ,  वैज्ञानिक  तरक्की  हुई   तब  से    वीरता  को  जैसे  ग्रहण  लग  गया   l   अब  कोई  व्यक्ति  हो  या  देश  अपनी  हुकूमत  जताने         के  लिए   षड्यंत्र  रचते  हैं   और  इस  तरह  चाल  चलते  हैं  कि   असली  अपराधी  कौन  है  यह  मालूम  करना  असंभव  हो  जाये  l   कायरता  के  साथ  जब  मानसिकता  भी  विकृत  हो   तो   संसार  का  हर  क्षेत्र  प्रदूषित  हो  जाता  है  l  वर्षों  पहले  जब  सरल  तरीके  से  कृषि  होती  थी  ,  रासायनिक  खाद , नए  ढंग  के  बीज , , रासायनिक  उर्वरक  आदि  नहीं  थे  ,  तब  भोजन  में  स्वाद  था ,  लोग  स्वस्थ  थे  ,  आज  जैसी  नई - नई  बीमारियां  नहीं  थीं   l   लेकिन  अब   ऐसे  रसायनों  के  कारण   भूमि  बंजर  होने  लगी ,  लोग  विभिन्न  बीमारियों  से  जूझने  लगे  , वनस्पतियों , पक्षियों  आदि  की  प्रजातियां  लुप्त  होने  लगीं   लेकिन  लोग  जागरूक  नहीं  हुए   l   परिणाम  यह  हुआ  कि  कुछ  लोग  बहुत  अमीर  हो  गए   और  अधिकांश  गरीबी  और  बीमारी   से  जूझने  लगे  l
 चिकित्सा  के  क्षेत्र  में  विज्ञानं  ने  प्रवेश  किया   ,  इससे  लाभ  तो  बहुत  हुए   लेकिन  रिएक्शन  भी  बहुत  हुए    l   भगवन  कृष्ण  तो  मिटटी  में  खेलकर   बड़े  हुए   लेकिन  आज  के  बच्चे   दवाई  और   इंजेक्शन  के  बीच   पलकर   अनेक  बीमारियों   से  ग्रसित  होने  लगे  ,  ऐसे  लोगों  की  संख्या  बढ़  गई  जिनमे  आत्मविश्वास   कम   हो ,  जिन्हे  अपनी  इच्छानुसार  चलाया  जा  सके  l   इस  स्थिति  का  भी  वही  परिणाम  सामने  है   कि    समाज  का  एक  पक्ष  बहुत  अमीर  हो  गया   और  दूसरा  पक्ष   गरीब  और  बीमार  हो  गया    l   सामान्य  जन  जागरूक  नहीं  है  ,  बुद्धिजीवी  अपने  स्वार्थ  में  चुप  है    तो    जो  चालाक   हैं  वे  अपनी   मनमानी  कर  लेते  हैं   l 
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                       

28 July 2020

WISDOM ---- संवेदना

  जिसके  हृदय  में  संवेदना  है  ,  वह  सब  के  दुःख , कष्ट  को  महसूस  करता  है   फिर  चाहे  वह  कोई  मनुष्य  हो , पेड़ - पौधे  हों  या  पशु - पक्षी  हों  l    --- एक  व्यक्ति  समुद्र  के  किनारे  लहरों  के  साथ  बहकर  आती   सीपों , मछलियों  को  उठा - उठाकर  पानी  में  फेंक  रहा  था  l   उसे  ऐसा  करते  हुए  एक  व्यक्ति  ने  देखा   तो  टोक  कर  कहा --- ' तुम्हारे  ऐसा  करने  से  क्या  फरक  पड़ेगा  ?  कल  दूसरे  हजारों  प्राणी  यहाँ  आकर  बह   लगेंगे  l '
  वह  व्यक्ति  बोला ---- " और  किसी   पर    फरक  न  भी  पड़े  ,  पर  जिस  एक  प्राणी  का  जीवन   ऐसा  करने  से  बचेगा  ,  उसके  जीवन  पर  तो  निश्चित  रूप  से  फरक  पड़ेगा   l  मैं  यह  कार्य  उस  छोटे  से  फरक  के  लिए  कर  रहा  हूँ  l "
  मनुष्य  में  सन्मार्ग  पर  चलने  की, सत्कर्म   करने  की    स्वाभाविक   प्रवृति  होती  है   लेकिन  लोभ - लालच  आदि  मानसिक  कमजोरियों  की  वजह  से    यह  प्रवृति  दब   जाती  है  , इस  पर  धूल  छा  जाती  है   और  वह   भ्रष्टाचार , बेईमानी   और    लोगों  का , प्रकृति  का   उत्पीड़न , शोषण    करने  लगता  है   l
  लेकिन  यह  सत्य  है  कि   छोटे - छोटे   शुभ  कार्य   ही  बड़े  प्रभावों  को  जन्म  देते  हैं  l   जब  व्यक्ति  किसी  को   सत्कर्म   करते  हुए  ,   जरूरतमंदों  की  मदद  करते  हुए  देखता  है    और  उसके  बदले    उसे   मिलने   वाले  प्यार  और  दुआओं    को  समझता है   तो  कहीं  न  कहीं  उसके  दिल  में  भी   परोपकार  करने  की  प्रवृति  जगती  है  l     बुराई  की  राह   पर  व्यक्ति  जल्दी   आगे  बढ़  जाता  है   क्योंकि  उसमे   तुरंत   लाभ  है   लेकिन  अच्छाई  की  राह  पर  आगे  बढ़ने  में  समय  लगता  है  l
 आज  संसार  को  संवेदना  के  वायरस  की  जरुरत  है  , जिस  दिन  यह  फ़ैल  गया  , उस  दिन  से  संसार  में  सुख - शांति  होगी   और  पशुता  की  ओर   बढ़  रहा  मनुष्य  सच्चा  इंसान  बनेगा  l

27 July 2020

WISDOM ----

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  था --- " मनुष्य   के  लिए  दो  बातें  ध्यान  रखने  योग्य  हैं ----  एक  मृत्यु  और  दूसरा  कर्तव्य  l  हम  इस  संसार  में  आये  हैं   तो  हमें  अपने  सांसारिक  कर्तव्य  को  निभाना  पड़ेगा  ,  हम  इस  दायित्व  से  भाग  नहीं  सकते  l   जिन्हे  मृत्यु  याद  रहती  है  ,  वे  व्यक्ति  अपना  पूरा  ध्यान   कर्तव्यों  के  पालन  में  लगाते  हैं   और  परमार्थी  जीवन  जीते  हैं  l  क्योंकि  कर्तव्यपालन  कभी  भी  हमें   स्वार्थी  और  आसक्त  नहीं   बनाता ,  बल्कि  नित्य - निरंतर  हमारे  जीवन  को   उर्ध्वमुखी  बनाता   है l'
      आचार्य श्री   लिखते  हैं --- ' मृत्यु   अटल  सत्य  है  ,  इसलिए  हमें  ईश्वर  का  स्मरण  करते  हुए   ईमानदारी  और  सहृदयता  के  साथ  जीवन  जीना  चाहिए  l  जरूरतमंदों  की  सहायता  से  कभी  पीछे  नहीं  हटना  चाहिए   l
श्रीमद्भगवद्गीता  के  ग्यारहवें  अध्याय  का  माहात्म्य  बताते  हुए   भगवन  शिव  ने  कहा  है  ---- ' जो  व्यक्ति  जरुरत  के  समय   व्यक्ति  से  अपनी   नजरें    फेर  लेता  है  ,  वह  नीच  योनियों  में  जन्म  लेता  है   और  जरुरत  के  समय  दूसरों  की  सहायता  करने  वाला   व्यक्ति  कई  पापों  से  मुक्त  हो  जाता  है  l   इसलिए  व्यक्ति  को  परमार्थी  होना  चाहिए  l  मनुष्य  का  जन्म  ही  इस  उद्देश्य  के  लिए  हुआ  है    कि   वह  अपने  जीवन  को  सार्थक  कर  सके  ,  और  सार्थकता  तभी  हासिल  की  जा  सकती  है  ,  जब  मनुष्य  अपने  जीवन  के  परम  अर्थ  को  समझ  सके   l   जो  व्यक्ति  समय  रहते   इस  अर्थ  को  नहीं  समझता  ,  उसे  अरथी   पर  जाकर  ही  जीवन  का  अर्थ  ज्ञात  होता  है  ,  लेकिन  तब  तक  बहुत  देर  हो  चुकी  होती  है  l 

26 July 2020

WISDOM -----

  शिष्यों  ने  गुरु  से  पूछा ---  बड़े  आदमी  में  और  महान  आदमी  में  क्या  अंतर  है   ? '
 गुरु  बोले ---- " लोग  पैसे  वाले  को  बड़ा  आदमी  समझते  हैं  ,  जबकि  व्यक्ति  महान   पैसों  से  नहीं  ,  अपितु  शिष्ट , शालीन   और  विनम्र  होने  से  कहलाता  है  l   जैसे  फलों  के  आने  पर  वृक्ष  झुक  जाते  हैं ,  पानी  से  भर  जाने  पर  बादल   नीचे  आ  जाते  हैं  ,  वैसे  ही  महापुरुष   समस्त  ज्ञान   का  भंडार  होते  हुए  भी   विनम्र  होते  हैं  l  "

25 July 2020

WISDOM ------- मनुष्य अपने कार्य और विचारों से प्रकृति को अपनी पसंद बताता है

  प्रकृति  मनुष्य  को  वही  देती  है  ,  जो  उसे  पसंद  है  l  यह  मनुष्य  की   अयोग्यता  ही  कही  जाएगी  कि   वह  अपनी  पसंद  भी  ठीक  तरह  से  बता  नहीं  पाता  l   व्यक्तिगत  पसंद  के  साथ  सामूहिक  पसंद  भी  होती  है   l   यदि  समाज  में , संसार  में  अधिकांश  लोग   किसी  तरह  का  एक  जैसा  व्यवहार  कर  रहे  हैं  ,  तो  प्रकृति  में  यह  सन्देश  जाता  है  कि   लोगों  को  यही  पसंद  है  , फिर  प्रकृति  किसी  न  किसी  माध्यम  से   वैसा  ही  वातावरण   संसार  को  देती  है  l ----  जैसे --- संसार  में  किसी  देश  में  जातिगत   छुआछूत  है ,  जो   लोग  अपने  को  श्रेष्ठ  समझते  हैं    वे  अपने  से  निम्न  जातियों  के  लोगों  के  साथ  उपेक्षा  का , अपमान  का  व्यवहार  करते  हैं  l   जिन  देशों  में  रंग भेद  है  ,  वहां  गोरे   लोग  ,  काले   लोगों  के  साथ  उपेक्षित  व्यवहार  करते  हैं  l   शिक्षित  होने  के  बावजूद  भी   अब  तक  पुरुष   स्वयं  को  नारी  से  श्रेष्ठ  समझता  है  l ---- मनुष्य  ऐसा  व्यवहार  युगों  से  करता  आ  रहा  है  l   इस  कारण  प्रकृति  को  यह  बात  स्पष्ट  हो  गई    कि   मनुष्य  को  ऐसा  उपेक्षा  ,  अपमान  का  व्यवहार  अच्छा  लगता  है  l
  वर्तमान  में  इस  महामारी  ने   संसार  से  संवेदना  समाप्त  कर  दी     और   इस  महामारी  का  लक्षण  होने  पर    उपेक्षा , अपमान ,  ' दूर  रहो ' की  स्थिति   पैदा  कर  दी  l   दुःख - दर्द  और  गरीबी    के  मारे   लोगों  के  प्रति  सहयोग   की  भावना  को  ही  ग्रहण  लग  गया  l
  इस  महामारी  का  कारण   कोई  वायरस  हो  या  ' कुछ  और  हो '  l   जो  छूतछात ,  भेदभाव  मनुष्य  करता  आ  रहा  है  ,  वैसी  ही  स्थिति  संसार  में   पैदा  हो  गई  l
  इस  स्थिति  से  मनुष्य  को  सबक  लेना  चाहिए  l   जब  जागो  तब  सवेरा  l   हम  संवेदनशील  बने  l   प्रेम ,  आत्मीयता  ,  अपनत्व , सहृदयता  , भाईचारा , सहयोग , सहानुभूति     के  व्यवहार  को   संसार  में  फैलाएं  l   ईश्वर  में  विश्वास  रखें  ,  ईश्वर  ने  हमें  जितनी   श्वास    दी  हैं  ,  उन्हें  कोई  नहीं  छीन  सकता  l 

24 July 2020

WISDOM ----

  श्रीमद्भगवद्गीता   में  भगवान   कहते  है --- सामान्य जन  के  जीवन  में  जब  कोई  दुःख  आता  है  ,  कोई  बीमारी  आती  है , कोई  असफलता  घटित  होती   है   तो  सामान्य - जन  यही  सोचते  हैं  कि   किन्ही  दूसरे  लोगों  की  शरारत ,  षड्यंत्र  के  कारण  हम  कष्ट  पा  रहे  हैं  l   अज्ञानी  हमेशा  दूसरों  को  दोषी  ठहराता   है  l   लेकिन  जो  ज्ञानी  है   वह  जीवन  के  प्रत्येक  दुःख  में   दूसरों  के  नहीं  अपने  दोष  ढूंढ़ता   है  l
  यदि  दुःख , पीड़ा   और रोग  आदि  में   हमें  अपनी  कमियां ,  अपने  दोष   समझ  में  आने  लगें  ,  हम  इन्हे  खोज  सकें   तो  फिर  हम   आगे  ऐसी  गलतियाँ   नहीं  करेंगे  l   जिन  दोषों  की  वजह  से  हमारा  जीवन  दुःखों   से  भर  गया  ,  हम  पुन:  वे  गलतियां  नहीं  करेंगे   और  हमारा  मन  संस्कारित  होने  लगेगा  l
   लेकिन  अज्ञानी  जो  अपने   दुःखों   के  प्रत्येक  कारण  को   दूसरों  में  ढूंढ़   रहा  है  ,  उसके  लिए  दुःखों   के  कारणों  को  हटाना  असंभव  होगा  l 

WISDOM ---- संसार की समस्त समस्याओं का एकमात्र हल है ---- संवेदना

   संवेदना  का  अर्थ  यही  है  कि   हम  दूसरे  का  दुःख ,  उसकी  पीड़ा  को  समझें  और  निःस्वार्थ   भाव  से   उसकी  पीड़ा  को  दूर  करने  का  प्रयत्न  करें  l -----  एक  किसान  अत्यंत  गरीब  था  l   एक  रात  वह  अपने  बच्चों  को  भूख  से  पीड़ित  न  देख  सका   तो  वह  पड़ोस  के  किसान  के  बाड़े   से  एक  गाय  खोलकर  ले  आया  l   सवेरा  होने  से  पहले  उसने   गाय  का  दूध  दुहकर  बच्चों  को   पिला   दिया   l
 सवेरे  पड़ोसी   किसान  ने  देखा  कि   एक  गाय  कम  है   तो   उसने  जांच - पड़ताल  की  l   ढूंढ़ने   पर  गाय   गरीब  किसान  के  आंगन  में  बंधी  मिली  l  वह  किसान  द्वारपाल   को  बुला  लाया  l   द्वारपाल  ने  पूछताछ  आरम्भ  की   तो  गरीब  किसान  ने  कहा   कि   गाय  उसी  की  है  ,  पर  ऐसा  कहते  हुए   उसकी  आँखें  नीची  हो  गईं  l   पड़ोसी   किसान  ने  देखा  कि   गरीब  किसान  के  घर  खाने  को  कुछ  भी  नहीं  है    तो  वह  बोला ---- गाय  उसकी  नहीं  है  ,  शायद  गरीब  किसान  की  ही  होगी  l   '  उसके  साथ  आए   लोगों  ने   उससे  झूठ  बोलने  का  कारण  पूछा   तो  वह  बोला  --- " मैं  सच  बोलता  तो  मेरी  गाय   मुझ  तक  लौट  आती  ,  पर  वह  किसान  और  उसके  बच्चे   भूखे  रह  जाते   l "
  किसी  की  भलाई  के  लिए  कहा  गया  झूठ  सच  से   बढ़कर  होता  है   l 

23 July 2020

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है --- ' जिन्हे  हम  बुरी  वस्तुएं  समझते  हैं  ,  जिन  बातों  को  हम  अप्रिय  समझते  हैं ,  उनमे  हमारी  जागरूकता ,  चेतना  और  विवेक - बुद्धि  को  जाग्रत  करने  की  शक्ति  होती  है   l   उससे  अनुभव  बढ़ता  है , समझदारी  आती  है  l  यदि  बुरी  बातें  दुनिया  में  न  हों   तो  अच्छी  को  , श्रेष्ठता  को  अनुभव  करने  का  अवसर  लोगों  को  न  मिले   और  निष्क्रियता  अवं  जड़ता  बढ़ने  लगे  l   इस  प्रकार  जब  हम  गंभीरता पूर्वक  विचार  करते  हैं   तो  हमें  बुराई  के  गर्भ  में  भी    श्रेष्ठता  प्रतीत  होती  है  l   उसके  कारण  हमारी  अच्छाइयों  को   विकसित  होने  का  अवसर  मिलता  है   l   इस  प्रकार  वह  बुराई  भी    हमारी  श्रेष्ठता  को  बढ़ाने  का  हेतु  बनती  है  l "

WISDOM -----

  " सत्य  अकेला  नहीं ,  प्रेम  और  न्याय  को  भी  साथ  लेकर  चलता  है  l  इसी  प्रकार  असत्य  के  साथ   पतन  और  संकट  के  सहचरों  की  जोड़ी  चलती  है   l  "
      "  निर्भय  और  सबल  व्यक्ति  हिंसा  नहीं  करता  l   वह  अहिंसा  पर  विश्वास  करता  है  ,  क्योंकि  इसके  मूल  में  प्रेम  की  भावना  कार्य  करती  है  l   प्रेम  में  हिंसा  का  स्थान  कहाँ  ?  "
      हजरत  उमर   ने  एक  व्यक्ति  को  किसी  प्रदेश  का  शासक  नियुक्त  किया  l  इसके  बाद  खलीफा  एक  पड़ोसी   के  बच्चे  को  खिलाने   लगे  l   उसे   हँसाने   के  लिए  मुँह   बिचकाने   और  तरह - तरह  की  जानवरों  की  बोलियाँ   बोलने  लगे  l
  नव - नियुक्त  शासक  आश्चर्य  में  पड़   गया   l   उसने  कहा ---- " मेरे  पांच  बच्चे  हैं  l   उनमें   से  मैंने  किसी  को  भी   इतने  प्यार  से  नहीं  खिलाया  ,  जितना  कि   आप  पड़ोसी   के  बच्चे  से  लिपट  रहे  हैं  l "
  खलीफा  ने  नियुक्ति  पत्र  वापस  ले  लिया    और  कहा ---- "  जब  तुम  अपने  बच्चों  को  प्यार  नहीं  कर  सकते   तो  मेरी  प्रजा  को   प्रसन्न  रखने  की  बात  कैसे   सोच  सकोगे  ?  "

22 July 2020

WISDOM ----- जिसके भीतर जो भाव है , वही उसकी क्रिया में प्रकट होता है l

  आज  के  समय  में  जब   मनुष्य  का  दोहरा  व्यक्तित्व  है  ,  सामने  कुछ  और  दिखाई  देता  है  लेकिन  उसकी  वास्तविकता  कुछ  और  है  l   ऐसे  में   उसके  द्वारा ,  या  उसके  संरक्षण  या   आदेश  द्वारा     किए   जाने  वाले  कार्यों   और  उनके  परिणामों  का  गहराई  से   अवलोकन   करें    तो  हम   उस  व्यक्ति  की  वास्तविकता  को  समझ  सकते  हैं  l
यह  संसार  ईश्वर  का  बगीचा  है   इसमें  गंदगी  से  लेकर  मनोहर  पुष्प  तक  सभी  पदार्थ  होते  हैं  l   कोयल  इस  बाग़  में  पहुंचकर   उस  पर  मुग्ध  हो  जाती  है  ,  अपनी  सुरीली  आवाज  में  कूकती  है  ,  उस  बाग   की  मनोहरता  को  और  बढ़ा  देती  है    l   लेकिन  दूसरी  ओर   चमगादड़   उस  बाग   में  घुसता  है   तो  उसके  उत्तम  फल - फूलों  को  कुतर - कुतर  कर   जमीन   पर  ढेर  लगाता   है    और  उस  बगीचे  को  कुरूप  बनाता   है  l   हम  बगीचे  में  ऐसी  कुरूपता  देखते  ही  समझ  जायेंगें   कि   यह  चमगादड़  का  काम  है  l
 कोयल  और  चमगादड़   अपने - अपने  भाव  के  अनुसार  क्रिया  प्रकट  करते  हैं  l   जिनके  भीतर  जो  है  ,  वही   उसकी  क्रिया  में  प्रकट  होता  है  l
पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  विचार  क्रांति   की  बात  कही  है  ,  जब  हमारा  चिंतन ,  हमारे  विचार  श्रेष्ठ  होंगे  ,  परिष्कृत  होंगे  ,    तभी  हमारे  द्वारा  किए   जाने  वाले  कार्य  श्रेष्ठ  होंगे  और  श्रेष्ठ  परिणाम  देंगे   l 

21 July 2020

WISDOM -----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है ---- '  अपने  युग  की  सबसे  बड़ी  विडम्बना  एक  ही  है  कि   साधन  तो  बढ़ते  गए  ,  किन्तु  उनका  उपयोग  करने  वाली   अंत:चेतना  का  स्तर  ऊँचा  उठने  के  स्थान  पर   उलटा   गिरता  चला  गया  l   फलत:  बढ़ी  हुई  समृद्धि   उत्थान  के  लिए  प्रयुक्त  न  हो  सकी  l   आंतरिक  भ्रष्टता  ने   दुष्टता  की  प्रवृतियां  उत्पन्न  कीं  और  उनके  फलस्वरूप   विपत्तियों  की  सर्वनाशी  घटाएं   घिर  आईं  l  '
आचार्य श्री  आगे  लिखते  हैं ---  शक्ति , साधन , धन  आदि  सुविधाओं  का   उपयोग  करने  वालों  की  चेतना  का  परिष्कृत   होना  आवश्यक  है  ,  अन्यथा  बढ़े   हुए  साधन - सुविधा    दुष्ट  बुद्धि  के  हाथ  में  पड़कर   नई  समस्या  और   नई  विपत्तियाँ   उत्पन्न  करेंगे   l  
 दुष्ट  जब  शारीरिक  दृष्टि  से  बलिष्ठ  होता  है   तो  क्रूर  कर्मों  पर  उतारू  होता  है   और  आततायी  जैसा  भयंकर  बनता  है  l
  चतुर  और  बुद्धिमान  होने  पर   ठगने  और  सताने  के  कुचक्र  रचता  है  l 
  धनी   होने  पर  व्यसन  और  अहंकार   के  सरंजाम  जुटाता  है   और  अपने  तथा  दूसरों  के  लिए   क्लेश - विद्वेष  के  सरंजाम  खड़े  करता  है  l 
सुरक्षा  सामग्री  का  उपयोग  दुर्बलों  के  उत्पीड़न   और  कला - कौशल  गिराने  के  लिए  होता  है  l 
 विज्ञानं  जैसे  महत्वपूर्ण  आधार  को   विषाक्तता   और  विनाश  के  रोमांचकारी   प्रयोजन  में  प्रयुक्त  होते  देखा  जाता  है  l 
 न्याय  और  विकास  के  लिए    नियुक्त  किए   गए   अधिकारी   ' मेड़   ने  खेत  खाया  '  की  भूमिका  निभाते  देखे  जाते  हैं  l 
  इस  युग  की  सबसे  बड़ी  आवश्यकता   चेतना  को  परिष्कृत  करने , व्यक्तित्व  को  सुसंस्कृत  और  समुन्नत  बनाने  की  है  l 

20 July 2020

WISDOM ----- समय का एक नाम ' काल ' है , इसी से ' महाकाल ' शब्द बना है l

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है  --- भौतिक  जगत  में  जिसने  काल  को  पहचान  लिया  और  काल  अर्थात  समय  का  सही - सही    सदुपयोग  करना  सीख  गया ,  तो  समय  की  यह  आराधना  ही    महाकाल  की  उपासना  है   l '
' अखण्ड   ज्योति '  में  प्रकाशित  एक  घटना  है   जो   एक  ऐसे  सूक्ष्म  संसार  की  है   जहाँ  का  टाइम - स्केल  स्थूल  जगत  से  भिन्न  है  ------   '  घटना  हाबड़ा  प. बंगाल  के  प्रसिद्ध   संत   शिव  रामकिंकर  योगत्रयानन्द   के  जीवन  से  संबद्ध   है  ,  उन्हें  पाणिनि  व्याकरण  पर  पतंजलि कृत   महाभाष्य  पढ़ने  की  तीव्र  इच्छा  थी  l  बंगाल  में  उन  दिनों  इसे  पढ़ाने  के  लिए  कोई  विद्वान  नहीं  मिल  सका  l  अत:  महाभाष्य  पढ़ने  के  लिए  वे  बनारस  गए  l  तब  वहां   व्याकरण  आचार्यों  में  पंडित  गोविन्द  शास्त्री  का  बड़ा  नाम  था  l   शिव रामकिंकर   ने  एक  दिन  उनसे   इस  आशय  का  निवेदन  किया  ,  तो  उन्होंने  समय  न  होने  का  बहाना  कहकर  लौटा  दिया   l   दूसरे  दिन  उन्होंने  फिर  निवेदन  किया  , तब  भी   उन्होंने  अवकाश  न  होने  का  बहाना  किया   l
तीसरे  दिन  शिव  रामकिंकर  फिर  उनके  पास  गए    और  उनके   पैर   पकड़  कर  बड़े  दीन    भाव  से   उनसे  समय  निकाल   कर  उन्हें  पढ़ाने  का  निवेदन  किया  ,  किन्तु  आचार्य  क्रुद्ध  हो  गए   और  पैर   झटकते  हुए  उन्हें  वहां  से  चले  जाने  को  कहा  l
  शिव  रामकिंकर जी  इस  अपमान  व  उपेक्षा  से  बहुत  दुःखी   हुए  ,  बिना   खाना  खाये  सो  गए ,  लेकिन  नींद  कहाँ  थी  ,  सोच  रहे  थे  कि  ' मैं   कितना  अभागा  हूँ  l  जिज्ञासा  होने  पर  भी  कोई  ज्ञान - दान  करने  वाला  नहीं  है  l  '  मध्य  रात्रि  को  उनकी  आँख  लग  गई  l   फिर  एक  घंटे  बाद  अचानक  आँख  खुली   तो  देखा  कमरे  में  दिव्य  आलोक  था ,  एक  तेजस्वी   काया   अति  सौम्य  किन्तु  बहुत  वृद्ध  उनके  सामने  थी  ,  उसने  कहा ---- " दुःख  मत  कर  l   किसी  ने  तुम्हे  महाभाष्य  नहीं  पढ़ाया  तो  क्या  हुआ  ?  मैं  पढ़ाऊंगा  l  जा  ग्रन्थ  ले  आ  l  "  शिव  रामकिंकर  जी  ने   उन  महापुरुष  को   साष्टांग  प्रणाम  किया  और   महाभाष्य  ले  आये  l  इसके  बाद  उन  दिव्य  पुरुष  ने  आरम्भ  से  अंत  तक  प्रत्येक  सूत्र  की  विशद   व्याख्या  की   और  ग्रन्थ  जब  समाप्त  हुआ  तब  आशीर्वाद  देकर  चले  गए  l   चेतना  लौटने  पर  शिव  रामकिंकर जी  बहुत  खुश  हुए  और  अपने  भाग्य  को  सराहने  लगे  l   तभी  उन्होंने  दीवार  पर  लगी  घड़ी   में  देखा    तो  आश्चर्य   !   केवल  पंद्रह  मिनट  बीते  थे   l    वह   महाभाष्य   इतना  मोटा  था   कि   पंद्रह  घंटे  में  भी   उसको  पढ़ना  और  समझना  संभव  नहीं  था  l   उन्हें  घोर  आश्चर्य  हुआ   कि   प्रत्येक  सूत्र  की  व्याख्या  उनके  मस्तिष्क  में  है  ,  देव  पुरुष  ने  उन्हें   पूरा  ग्रन्थ  पढ़ाया  लेकिन  इतने  कम  समय  में   यह  अध्यापन  कैसे  संभव  हुआ    ?  इस  उलझन  को   वे  किसी  भी  प्रकार  नहीं  सुलझा  पाए  l
  प्रभु  ईसा ,  महावीर ,   मुहम्मद  साहब    सबने   इस  एक  तथ्य  को  स्वीकार  किया  है   कि   ईश्वर  के  राज्य  में  समय  का  अस्तित्व  नहीं  रहता  l  

19 July 2020

WISDOM ------ मानसिक पराधीनता सबसे बुरी है

 कहते  हैं  कम  से  कम   21  दिन  या  एक - दो  महीने  किसी  भी  कार्य  को  लगातार  किया  जाये ,  या  कोई  स्थिति    लगातार  बनी   रहे     तो  उसकी  आदत  बन  जाती  है   l   फिर  यदि  कोई  बात  युगों  तक  बनी  रहे     तो  वह  लोगों  के  मन - मस्तिष्क  में  गहरी  जड़  जमा  लेती  है l    लोग  यह  समझने  लगते  हैं  कि   उनका  जन्म  ही  इस  स्थिति  के  लिए  हुआ  है  l   यह  बात   सब  पर    लागू    होती  है   जैसे -- पुरुष - प्रधानता --पुरुष  द्वारा  नारी  पर  अत्याचार ,  उच्च  जाति   का  समझने  के  कारण  अपने  से  निम्न  का  शोषण ,  अमीर  द्वारा  गरीब  का  शोषण ,  शक्तिशाली  देश  द्वारा  कमजोर  राष्ट्र  को  गुलाम  बनाना  l  संक्षेप  में  कहें  तो   जिसे  दूसरों  को  गुलाम  बनाने  की  आदत  है  ,  वह  अपनी  इस  आदत  को  कार्य  रूप  देने  के  लिए  नए - नए  तरीके  खोज  लेता  है    और  जिसे  गुलामी  में  रहने  की  आदत  है  ,  वह  इस  सुप्त  अवस्था  में   रहने  को    अपना  भाग्य  मानकर  स्वीकार  कर  लेता  है  ,   जागता    नहीं  है  l   कोई  इक्का - दुक्का   जागरूक  हो  भी  जाये    तो  उसे  ऊँचा  उठने  में  कोई  सहयोग  नहीं  करता ,  लेकिन  गिराने  के  लिए  सब  संगठित  हो  जाते  हैं  l   ' जियो  और  जीने  दो '  को  नहीं  मानता   l   अपने  अहंकार  के  लिए  दूसरे  के  अस्तित्व  को  मिटाने   को  आतुर  है  l
  यह  मानव  जाति   का  सबसे  बड़ा  दुर्भाग्य  है    कि   जो  प्रकृति  उसे  बिना  मांगे  जीवन  देती  है  ,  भूमि , जल , वायु  , प्राण शक्ति  सभी  कुछ  स्नेह  से  देती  है  ,  अब  उसी   पर  अपना  नियंत्रण  कर के  मनुष्य   पता  नहीं   और  क्या  चाहता  है  l   अपनी  इस   महत्वाकांक्षा  से  वह  प्रकृति  को  क्रुद्ध  कर  देता  है  l प्रकृति  कितना  भी  प्रकोप  दिखाए ,  मनुष्य  सुधरता  नहीं  है  l

WISDOM -----

          पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है ---- " जब - जब  मनुष्य  पर    बेअकली   सवार  होती  है    तो  वह  जाति ,  सम्प्रदाय ,  रंग - रूप  ,  भाषा    और  देश  के  आधार  पर   विभाजित   होता  चला  जाता   है   और  अपनी   शांति  व  खुशहाली  नष्ट  करता  रहता  है    l   "   
   अहंकार  एक  प्रकार   का  पागलपन  है    l   कुछ  लोगों  के  अहंकार    का  परिणाम   मानव  समाज  भुगतता  है   l ------------- एक  देश  का  बँटवारा   हुआ  l   विभाजन  रेखा  एक  पागलखाने   के  बीच   में  से  गुजरी   l   तो  अधिकारियों   को  बड़ी  चिंता  हुई  कि   अब  क्या  किया  जाये  l  दोनों  देश    के  अधिकारियों   में  से  कोई  भी  पागलों  को  अपने  देश  में   लेने  को  तैयार  न  था  l   अधिकारी  इस  बात  पर  सहमत  हुए  कि   पागलों  से  ही  पूछा  जाये   कि   वे  किस  देश  में  रहना  चाहते  हैं  l
 अधिकारियों   ने  पागलों  से  कहा  --- देश  का  बँटवारा   हो  गया  है  ,  आप  उस  देश  में  जाना  चाहते  हैं   या  इस  देश  में   l '     पागलों  ने  कहा  --- " हम  गरीबों  का  पागलखाना  क्यों  बांटा  जा  रहा  है  ? हम  में  आपस  में  कोई  मतभेद  नहीं ,  हम  सब  मिलकर  रहते   हैं   , इसमें  आपको  क्या  आपत्ति  ? '
 अधिकारियों   ने  कहा ---- ' आपको  जाना  कहीं  भी  नहीं  है  ,  आप  तो  यह  बताएं  कि   इस  देश  में  रहना  चाहते  हैं  या  उस  देश  में  l '
 पागल  बोले ---- ' यह  भी  क्या  अजीब  पागलपन  है  ,  जब  हमें  जाना  कहीं  नहीं  है   तो  उस  देश  या  इस  देश  से  क्या  मतलब   l  '
अधिकारी  बड़ी  उलझन  में  पड़   गए  ,  उन्होंने  सोचा  व्यर्थ  की  माथापच्ची  से  क्या  लाभ   ?  उन्होंने  विभाजन  रेखा  पर     पागलखाने  के   बीचोंबीच   एक  दीवार  खड़ी  कर  दी  l
  कभी  कभी  पागल  उस  दीवार  पर  चढ़  जाते  ,  और  एक  दूसरे  से  कहते  --- देखा  !  समझदारों  ने  देश  का   विभाजन  कर  दिया   l   न  तुम  कहीं  गए  न  हम  l   व्यर्थ  में  हमारा - तुम्हारा    मिलना - जुलना ,  हँसना - बोलना  बंद  कर  के    इन्हे  क्या  मिला  ? '
  यह  एक  चिंतन  का  विषय  है   कि   पागलपन  किस  पर  हावी  है  ?

18 July 2020

WISDOM ----

  कहते  हैं  जब  संसार  में  अनीति  और  अत्याचार  बहुत  बढ़  जाता  है  ,  तब  प्रकृति  क्रुद्ध  हो  जाती  है  l   आज  संसार  में  आतंकवाद , भ्रष्टाचार , व्यभिचार , हिंसा , हत्या  जैसे  अपराध  अपनी  चरम  सीमा  पर  हैं   l   ये  सब  समस्या  मनुष्य  के  ही  नकारात्मक  विचारों  की  देन   है   l   आज  ईमानदारी  और  श्रम  को  हिकारत   की  नजर  से  देखा  जाता  है   l   समाज  में  जो  जितना  भ्रष्ट  है   और   जिसने   बेईमानी  की  पूंजी  एकत्र   की  है  ,  उसी  की  प्रतिष्ठा  व  मान  है   l   ऐसे  में  रातों  रात  अमीर  होने  और  प्रतिष्ठा  पाने  के  लिए  व्यक्ति  हर  संभव  प्रयत्न  करता  है  ,  यही  भ्रष्टाचार  का  मूल  है  l   अपनी  इस  कुचेष्टा  में   जो  जितना  सफल  है  ,  वही  प्रतिभावान  माना   जा  रहा  है  l
  धन  प्रमुख  है , मुख्य  धुरी  है  इसी  के  चारों  और   विभिन्न  अपराध  चक्कर  काटते  हैं   l   यह  सब  एक  सीमा  में  हो  तब  भी  ठीक  है  ,  लेकिन  जब  धरती  अंधकार  से  घिर  जाए ,   इनसान   संवेदनहीन  हो 
जाये   ,    अँधेरे  की  शक्तियां  और  अंधकार  फैलाने   में  लग  जाएँ   तब  इस  अनीति  और  अत्याचार  से  निपटने  के  लिए  भगवन  शिव  अपना  तृतीय  नेत्र  खोल  देते  हैं ,  हाथ  में  त्रिशूल  धारण  कर    रौद्र  रूप  धारण  करते  हैं  l   कहते  हैं  परमात्मा  को  अपनी  इस  सृष्टि  से  बहुत  प्यार  है  l   यदि  हमें  ईश्वर  के , प्रकृति  के  प्रकोप  से  बचना  है   तो  हमें  इस  सृष्टि  को  सुन्दर  बनाने  के  लिए  योगदान  देना  होगा   l  

WISDOM ------ वहम का कोई इलाज नहीं है

   प्रत्येक  समस्या  का  कोई  समाधान  होता  है  ,  लेकिन  वहम   एक  ऐसी  बीमारी  है  जिसका  कोई  इलाज  नहीं  है  l    इस  बीमारी  का  कारण  मनुष्य  की  दुर्बुद्धि  है  l  भौतिक  प्रगति  के  साथ  संसार  में  अनेक   नवीन   बीमारियों  का  उदय  हुआ  है  ,   जिसकी   कोई  दवा    अभी  तक  किसी  के  पास  नहीं  है   l   कहते  हैं  हम  जिन  बातों  की  ज्यादा  चर्चा  करते  हैं ,  अधिक  रूचि  लेते  हैं  ,  ब्रह्माण्ड  से  वैसी  ही  तरंगे  व्यक्ति  के  पास  आ  जाती  हैं  l   हमेशा  बीमारी  की  बात  करने   से , बीमारी  के  प्रति  अत्यधिक  संवेदनशील  होने  से  ,    वैसी  ही  तरंगे  हमारे  पास  आती  हैं   और  हम  स्वयं  को  बीमार  अनुभव  करने  लगते  हैं  l   ऐसी  बीमारी   से   स्वयं  को  त्रस्त   समझते  हैं  , जिसकी  कोई  दवा  भी  नहीं  है  l    फिर  भी   स्वस्थ  होने  के  लिए  हजारों , लाखों  रुपया  फूँक   देते  हैं  l     फिर  स्वस्थ  भी  हो  जाते  हैं  l
जब  व्यक्ति  मानसिक  रूप  से  कमजोर  होता  है    तो  स्वयं  को  बीमार  अनुभव  करता  है  , वैसी  ही  बीमारियाँ   उसे  घेर  लेती  हैं  ,  लेकिन  जब  उसका  आत्मविश्वास  जाग्रत  होता  है   तो  उसे  सकारात्मक  ऊर्जा  मिलती  है  और  वह  स्वस्थ  होता  है  l   स्वस्थ  रहने  के  लिए  जरुरी  है    कि    हम  योग , प्राणायाम  करें , नियम , संयम  से  रहें   और  इससे  भी  ज्यादा  जरुरी  है   कि   हम  बीमारी  की  बातें  न  करें  l   सकारात्मक  विषयों  पर  चर्चा  करें  l 

17 July 2020

WISDOM ----- अहंकारी को चैन नहीं होता

   दुर्योधन  को  अहंकार  दिखाए  बिना  चैन  नहीं  पड़ता  था  l   पांडव  वनवास  में  थे  l   दुर्योधन  को  महलों  में  भी  संतोष  नहीं  हुआ  ,  अपने  वैभव  का  प्रदर्शन  करने   जंगल  के  उसी  क्षेत्र  में  गया  ,  जहाँ  पांडव  रह  रहे  थे  l   वहां  अपने  को  सर्वसमर्थ  सिद्ध  करने  के  लिए   मनमाने  ढंग  से  जश्न  मनाने   लगा  l   अहंकारी  में  शालीनता  और  सौजन्य  नहीं  होता   l   वह  अपने  आगे  किसी  को  कुछ  नहीं  समझता  l  उसी  क्रम  में  कौरव  गंधर्वों  के  सरोवर  को  गन्दा  करने  लगे  l   क्रुद्ध  होकर  गंधर्व राज  ने  उन्हें  बंदी  बना  लिया  l   जब  युधिष्ठिर  को  इस  बात  का  पता  चला    तो  उन्होंने  अर्जुन  को  भेजकर    अपने  मित्र  गंधर्व राज  से  उन्हें  मुक्त  कराया  l   दुर्योधन  को  शर्म  से  सिर   झुकाना   पड़ा  l 

WISDOM -----

  इनसान   और  जानवरों  में  एक  बड़ा  अंतर  यह  है   कि   इनसानों   में  महत्वपूर्ण  बनने  की  आकांक्षा  होती  है  l   सहानुभूति  और  ध्यान  आकर्षित  करने  तथा  महत्वपूर्ण  होने  का   अनुभव  करने  के  लिए   कई  बार  लोग  बीमार  होने  का  बहाना  भी  करते  हैं   l
महत्वपूर्ण  होने  का  एक  तरीका  यह  भी  है   कि   अपने  आस - पास  के  लोगों  को  सच्ची  प्रशंसा  देकर   बड़ा  चमत्कार  किया  जा  सकता  है  l   चार्ल्स  श्वाब   एक  ऐसे  व्यक्ति  का  नाम  है  ,  जिसने  सहानुभूति  और  सच्ची  प्रशंसा  द्वारा   लोगों  के  दिलों  पर  राज  किया  l   एंड्र्यू  कारनेगी   ने   चार्ल्स  श्वाब   को   एक  साल  में  दस  लाख  डॉलर   से  भी  अधिक  की  तनख्वाह  दी  l   इसका  कारण  श्वाब   ने  बताया  कि   वे  लोगों  के  साथ  व्यवहार  करने  की  कला  में  निपुण  थे  l   श्वाब   का  कहना  था  कि   मैं   मानता  हूँ  कि   मेरी  सबसे  बड़ी  पूंजी    अपने  कर्मचारियों  की   उत्साह  बढ़ाने   की  कला  है    और  मैं  सराहना  और  प्रोत्साहन   के  द्वारा  लोगों  से  श्रेष्ठ   प्रदर्शन  करवा  लेता  हूँ   l "  

16 July 2020

WISDOM ------

 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' मनुष्य  मूलत:  संवेदनशील  प्राणी  है   किन्तु    हीन   परिस्थितियों  और  संगति   में   पड़कर  वह   आक्रामक  और  पशुभावों   को  अपनाकर  पशु तुल्य  प्रतीत  होने  लगता  है  l  '
मनुष्य   स्वभावत:  कठोर  नहीं  है    परन्तु  आज  समाज  में  विषमता  इस  कदर  बड़ी  है   कि   विवशता  में  पड़कर   व्यक्ति   असुरता  और  आक्रामकता  की   ओर   फिसल  पड़ता  है  l   किसी  के  पास  कुबेर  जैसी  संपति   है   तो  कहीं  भूखों  मरने  की  नौबत  है  l   पेट  की  ज्वाला    व्यक्ति  को  बुरे  कामों  की  ओर   ले  जाती  है   और  उसे  इनसान   से  शैतान  बना  देती  है  l
सबसे  बड़ी  समस्या  यह  है  कि  जिनके  पास  शक्ति  है ,  अपार  धन - संपदा   है  ,  उनकी  तृष्णा , लोभ - लालच  किसी  तरह  कम   नहीं  होता   l   वे  अपनी  संपदा ,  अपनी  शक्ति  को  और  ---- और  अधिक  बढ़ाना  चाहते  हैं  ,  इसके    लिए  भ्रष्टाचार , बेईमानी  ,  कमजोर  का  शोषण  आदि  अनैतिक  तरीके  अपनाते  हैं  l   गरीब  और  कमजोर  तो  अपनी  रोटी - रोजी  की   चिंता   में  ही  घुल  रहा  है  ,  वह  किसी  को  क्या  परेशान    करेगा   l   आज  संसार  में  जो  समस्याएं  हैं  वे  अमीरों  और  शक्तिसम्पन्न  लोगों  की  देन   हैं   l   उनकी  विकृत  और  असीमित  महत्वाकांक्षाओं   का  परिणाम  सामान्य - जन  भुगतता  है  l
  हर  क्रिया  की  प्रतिक्रिया  होती  है  l  दमन , शोषण  , उत्पीड़न  और  अत्याचार    की  प्रतिक्रिया   समाज  में  क्रोध ,  आक्रामकता  आदि  विभिन्न  रूपों  में  दिखाई  पड़ती  है  l 

15 July 2020

WISDOM -------

पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का  कहना  है  कि ----' संसार  की  समस्याओं  का  एकमात्र  हल --- संवेदना  है  l   औरों  का  दुःख  जिसे  अपना  लगता  हो  ,  वही  अपनी  संवेदना  के  प्रवाह  से  औरों  को  संवेदनशील  बनाने  की  क्षमता  रखता  है  l '
  स्वयं  को   विकसित  और   सभ्य   कहलाने  वाला  मनुष्य  संवेदनहीन  है   ,   इसी कारण  वह  अपनी  शक्ति , साधन  और  ज्ञान  का  उपयोग  अपने  स्वार्थ  और  अपनी  महत्वाकांक्षा    पूर्ति  के   लिए  करने  लगा  है  l  शक्ति  के  दुरूपयोग  ने  किस  प्रकार  मानवता  को  हानि  पहुंचाई  है ,  यह  संसार  कई  बार  देख  चुका   है  l
   महान  वैज्ञानिक  आइन्स्टीन   ने  विज्ञानं  की  साधना  एक  तपस्वी  के  रूप  में  की  थी  ,  लेकिन  जब  उसे  ही  मानव  जाति   के  विनाश  में  प्रयुक्त  होते  देखा   तो  उनकी  आत्मा  बिलख  उठी  थी  l   वे  इस  दुःख  को  भुलाने  के  लिए   कभी - कभी  संगीत  का  सहारा  लिया  करते  थे  l  वे  एक  अच्छे  वायलिन वादक  थे  l   वायलिन  बजाते  तो  ऐसी  दर्दीली   धुनें  निकालते   कि   उनका  अपना  दर्द  उस  प्रवाह  में  खो  जाता  l   उन्होंने  विज्ञान   को   मानव - सेवा  का  एक  साधन  मानकर  ही  अपनाया  था  , साथ  ही  विश्व बंधुत्व  और  विश्व शांति  के  लिए   एकनिष्ठ  होकर  कार्य  किया  था  l 

13 July 2020

 डॉ. सत्येन बसु   भारत  के  उन  गिने - चुने   वैज्ञानिकों  में  माने  जाते   हैं  जिन्होंने  अपना  जीवन   विज्ञान   के  साथ   समाज - सेवा  और  पीड़ित  मानवता  के  उत्कर्ष  में  लगाया   l  1958  में  वे  लन्दन  की  रॉयल -सोसायटी  के  फैलो  भी  रहे  l   उनकी  प्रतिभा  से  प्रभावित  होकर   मैडम  क्यूरी  ने  भी  उन्हें   अपनी  प्रयोगशाला  में  काम  करने  को  आमंत्रित  किया   l   इस  आमंत्रण  पर  वे  एक  वर्ष  के  लिए  पेरिस  गए  l  उन्हें  कई  विश्वविद्दालयों  ने  मानद - उपाधियाँ  दीं ,  लेकिन  वे  कभी  भी   डिग्रियों  या  प्रशस्ति पत्र  को  लेकर   कहीं  आर्थिक  संरक्षण  मांगने  नहीं  गए   l  अपने  प्राध्यापक  जीवन  में  ही  खुश  रहकर   उन्होंने  विज्ञान   की  यथा शक्ति  सेवा  की  l
   डॉ. बसु   का  कहना  था --- 'वैज्ञानिक  होने  से  पहले  मैं  मनुष्य  हूँ   और  अपना  देश  , जिसमे  मैं  जन्मा , पला  और  बड़ा  हुआ   उसका  सेवक  रहने  में  गौरव  अनुभव  करता  हूँ  l धर्म  और  विज्ञान   के  समन्वय  से  ही  इस  देश  का   उद्धार  हो  सकेगा  l '
वैज्ञानिक  प्रतिभा  के  साथ  वे  समाज  सेवा  में  भी  सक्रिय   थे  l  1936   में  वे  जब  ढाका  विश्वविद्दालय  में  प्रोफेसर   थे , उस  वर्ष  जब  ढाका  में   साम्प्रदायिक   दंगे  हुए   तो  प्रयोगशाला  से  निकल  कर  उन्होंने  सैकड़ों  स्त्री - बच्चों  को  बचाया  l    1946   में  जब  कलकत्ता में   दंगे  हुए  तो  वे  अपनी  कार  लेकर  लोगों  को  बचाते  रहे  l   जब  नेताजी  सुभाषचन्द्र  बोस  ने   बर्लिन  से  भारत  की  जनता   के  नाम  अपना  प्रथम  रेडियो  भाषण  दिया    तो  उसे  गुप्त  रूप  से   भारत  में  प्रसारित  करने  की  व्यवस्था  डॉ. बसु   ने  ही  की  थी  l   उस  समय  डॉ. बसु   ने  ढाका  विश्वविद्दालय  की  प्रयोगशाला  में   उच्च  शक्ति  संपन्न   रिसीवर  पर  वह  भाषण  सुना   और  टेप  किया  तथा   इसके  बाद  ही   वह  भाषण  सारे  भारत   में  प्रचारित  किया  गया  l 

12 July 2020

WISDOM ------ पुरानी आदतें जाती नहीं

व्यक्ति  कोई  भी  काम  चाहे  अच्छा  हो  या  बुरा  एक  लम्बे  समय  तक  करता  है  तो  वह  उसकी  आदत  बन  जाती  है   और  यह  आदत  ही  उसकी  पहचान  बन  जाती  है   l   एक  कथा  है  ---- एक  सेठ  था  , उसका  व्यापार       दूर - दूर  तक  फैला  था   l    गाँव  के  लोग  उससे  बहुत  धन  उधार  लेते  थे  , इस  वजह  से  वह  उन  पर  दबाव  बनाकर  रखता  था   और  सीधे - सादे  ग्रामीणों  पर  अत्याचार  भी  बहुत  करता  था  l   गाँव  के  लोग  बहुत  दुःखी   थे  l  जब  आपस  में  बात  करते  तो  उसके  लिए ' कसाई ' शब्द  का  इस्तेमाल  करते  l   उनका  वार्तालाप  सुनकर  बच्चे  भी  उसे ' कसाई ' कहने  लगे   l  सब  उससे  डरते  भी  थे  l   एक  दिन   जब  वह   गांव  में  भ्रमण  के  लिए  निकला   तो   छोटे - छोटे   बच्चे  उसे  देखकर  चिल्लाकर  भागे  कि  'कसाई ' आ  गया  l   सेठ  ने  बच्चों  से  तो  कुछ  कहा  नहीं  , लेकिन  उसे  बहुत  बुरा  लगा  l
  वह  अपने  आपको  अच्छा  सिद्ध  करना  चाहता  था  l   उसने  अन्य  गांवों  के  अमीरों  के  साथ  मिलकर  एक  संस्था  बना  ली   और  सब  गांवों  में  यह  बात  लोगों  को  समझा  दी  कि   अब  वह  संस्था   सब  गांवों  की  समस्या  हल  करेगी  ,  जरुरत  पड़ने  पर  धन  भी  उधार   देगी  l
अब  उस  सेठ  ने  अपने  गांव  में  स्कूल , अस्पताल  खुलवा  दिए  ,  पानी   आदि  की  व्यवस्था  करा  दी  l   अब  गांव  में  उसकी  तारीफ  होने  लगी  , सब  उसे  सम्मान  देने  लगे  l   पुरानी   बातें  भूल  गए  l   लेकिन  गांव  में  अत्याचार , अपराध  बहुत  बढ़  गए  , जनता    त्रस्त   थी  l   उस  गांव  का  एक  युवक    शहर  से  अध्ययन  समाप्त  कर  लौटा    तो  उसने  देखा  कि   गांव  में  बहुत  सन्नाटा  है , लोग  भयभीत  हैं  l  उसने  अन्य  युवकों  के  साथ  मिलकर  सब  पता  किया  तो  समझ  में  आया  कि   संस्था   का  तो  केवल  नाम  है  ,     उसी  सेठ  की  मनमानी  चलती  है   और  संस्था  की  आड़  में  वह  और  अत्याचार  करता  है  l   अब  गांव  वालों  को  समझ  में  आया  कि    अच्छे  होने  का  दिखावा  करने  से  कोई  अच्छा  नहीं  होता  ,  बुरी  आदत  छूटती   नहीं  ,  मौका  मिलने  पर  और  बढ़  जाती  है  l   अब  सब  गांवों  के  लोग  उसके  विरुद्ध  संगठित  हो  गए  ,  तब  उन्हें  उसके  जाल  से  मुक्ति  मिली  l 

WISDOM -----

  मनुष्य  स्वयं   जाने - अनजाने  में   अपने  को  मारने  का  प्रयास  कर  रहा  है  l   कुछ  समय  पूर्व  बीमारियाँ   गंदगी  और  कुपोषण  की  वजह  से  होती  थीं  l   हैजा  आदि  से  कई  गाँव , शहर  समाप्त  हो  जाते  थे  l   आज  संसार  में  जो  भी  समस्या  है   उसके  मूल  में  कारण  विज्ञान   है  l कहते  हैं  ज्योतिषी  किसी  का  भाग्य  देखते  हैं  ,   यदि  कुछ  अशुभ  होता  है  , तो  वे  उसे  बताते  नहीं ,  अपने  मन  में  रखते  हैं  l
 यही  बात  वैज्ञानिक  आविष्कारों  पर  लागू  हो  तो   मनुष्य  सुख - शांति  से  जी  सकता  है  l
  वैज्ञानिक  अच्छी  तरह  जानते  हैं  कि  कौन  सी  तकनीक    वायुमंडल  को  प्रदूषित  कर  देगी  ,  उससे  निकलने  वाली  अदृश्य  रेडिएशन   मनुष्यों  के  अस्तित्व  के  लिए  खतरनाक  हैं  l   कौनसे  खाद , बीज , कीटनाशक  जमीन   को  बंजर  कर  देंगे ,   परमाणु - शक्ति   पशु - पक्षी , वनस्पति , मानव  सभी  के  लिए  हानिकारक  हैं  ,  तो  ज्योतिषियों  की  भांति  यह  ज्ञान  उन्हें  अपने  हृदय  में  ही  रखना  चाहिए  l   इस  संसार  में  भांति - भांति  के  लोग  हैं  l   कुछ  लोग  बहुत  महत्वकांक्षी  होते  हैं  ,  वे  वैज्ञानिकों  के  इस  ज्ञान  को  खरीद कर  , उसका  उपयोग  अपनी  महत्वाकांक्षा  की  पूर्ति  के  लिए  करते  हैं   l
 पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है  ---- ' महत्वाकांक्षा  विकृत  होकर  घृणित   रूप  ले  लेती  है  l '
     इस  संसार  में  प्रत्येक  व्यक्ति  चाहे  अमीर   हो  या  गरीब , बीमार  हो  या  स्वस्थ , वृद्ध  हो  या  युवा  ,  किसी  भी  जाति , किसी  भी  धर्म  का  हो  सब  जीना  चाहते  हैं   और  सभी   अपने  हिसाब  से  अपने  जीवन  की  रक्षा  करते  हैं  l   पशु - पक्षी  भी  अपनी  रक्षा  करना  जानते  हैं  ,  उन्हें  किसी  के  आदेश  की  ,  किसी  से  कुछ  सीखने  की  आवश्यकता  नहीं  होती   l
 अध्यात्म  में  कोई  रूचि  और  विश्वास  न  होने  के  कारण   ऐसे    महत्वाकांक्षी     व्यक्ति  अपनी  शक्ति , धन  और  बुद्धि  का  उपयोग    लोगों  पर  अपनी  हुकूमत  कायम  करने  के  लिए  करते  हैं  l   ईश्वरीय  सत्ता  को  नकार  कर  प्रकृति  को  भी  अपने  ढंग  से  चलाना   चाहते  हैं  l   इसी  का  दुष्परिणाम  हम  संसार  में  विभिन्न  आपदाओं  के  रूप  में  देखते  हैं   l   जब    तक  बुद्धिजीवी   , विचारशील  वर्ग    आधुनिक  तकनीकी   के  दुष्परिणामों  के  प्रति  जागरूक  नहीं  होगा   , संसार  इसी  तरह  अपनी  मृत्यु ,  आत्महत्या ,  पागलपन ,  तनाव  और  घातक  बीमारियों  के  साधन   जुटाता  रहेगा  l 

11 July 2020

WISDOM ------

  प्रसंग  है -- मार्डन  रिव्यू '  और  ' प्रवासी ' नामक  पत्रों  के  संपादक  रामानन्द   चट्टोपाध्याय  के  जीवन  का  -----  एक  बार  वे  गंगा  में  नहाते  हुए  भँवर  में  फँस   गए  ,  डूबने  वाले  थे  कि   एक  नवयुवक  ने  अपनी  जान  पर  खेलकर  उन्हें  बचा  लिया   l   उस  बात  को  लगभग  दो  माह  बीत  गए  l   एक  दिन  वह  नवयुवक   अपनी  एक  रचना   लेकर   उनके  पास  पहुंचा  l  रामानंद जी  ने  उसका  स्वागत - सत्कार  किया , उनकी  आँखों  में  कृतज्ञता  का  भाव   था  l   उन्होंने  आने  का  कारण  पूछा   l
  युवक  ने  कहा  कि   यह  रचना  वह  उनके  पत्र  में  छपवाना  चाहता  है  l   उन्होंने  बहुत  ध्यान  से  उस  लेख  को  पढ़ा ,  और  पढ़कर  उसे  थमाते   हुए  बहुत  दुःख  से  कहा -- यह  मेरे  पत्र  में  नहीं  छप   सकेगा  l
  युवक  ने  कहा --- ' क्यों  नहीं  छपेगा  ,  क्या  आप  भूल  गए  कि   मैं  वही  हूँ   ,  वह  अपनी  बात  पूरी  करता  इसके  पहले  रामानंदजी  बोले  --- ' जिसने  मेरी  जान  बचाई   l    मैं   आपके  प्रति  कृतज्ञ  हूँ  लेकिन  यह  लेख  नहीं  छाप  सकता  l   तुमने  मेरे  प्राण  बचाये  ,  तो  अब  मैं  तुम्हारे  साथ  चलता  हूँ  ,  तुम  मुझे  गंगा  में  डुबो  दो  l '  कहने  के  साथ  ही  वे  चलने  को  तैयार  हो  गए  l   युवक  को  बहुत  आश्चर्य  हुआ   उसने  कारण  पूछा  l
  रामानंदजी  ने  कहा ---- '  संपादक  का  कर्तव्य  है ,  जिसके  तहत  मेरी  जिम्मेदारी  है  कि  समाज  का  पथ - प्रदर्शन  करूँ  ,  मनुष्य  को  जीवन  जीना  सिखाऊं  l   इसकी  जगह  मैं  उसमे  पशुता , कुत्सा   कैसे  भड़का  सकता  हूँ   l   यह  मुझसे  न  हो  सकेगा  l   जीवन  तो  एक  न  एक  दिन  समाप्त  होना  है  l   मैं  तुम्हारा  ऋणी  हूँ  लेकिन  कृतज्ञता  के  मोल  के  लिए  कर्तव्य  की  बलि  नहीं  दे  सकता  l  '
उनके  विचारों  से  युवक  के  जीवन  में  परिवर्तन  आया  , उसने  लेखन  सीखने   का  निश्चय  किया  l 

WISDOM ------

  जार्ज  बर्नार्ड शा   को  जीवन  में  नव  - पथ  पर  चलने  की  आदत  थी   ,  व्यापारी  के  साधारण   पुत्र   थे   और  साहित्यिक  जगत  में  उच्च  सम्मान  पाया  l  उनकी  महान  साहित्यिक  सेवाओं   के  उपलक्ष्य  में   उनको  ' लार्ड '  की  पदवी    देने  का  प्रस्ताव  किया   तो   उन्होंने  उसे     सधन्यवाद   वापस  कर  दिया  l
      बर्नार्ड  शा  स्वयं  अपनी    आलोचना  करने  में  पीछे  नहीं  हटते   थे  l  उन्होंने  आरंभिक  अवस्था  में  तीन  उपन्यास  लिखे  l   आगे  चलकर  स्वयं  ही  उनकी  बड़ी  खिल्ली  उड़ाई  l   उन्होंने  लिखा  कि   मेरी  पहली  कहानी  तो  इतनी  घटिया  थी  कि   उसे  चूहों  ने  भी  कुतरने  से  इन्कार   कर  दिया  l
  बर्नार्ड  शा  ने  नाटक  लिखे ,  उनका  एक  नाटक  था  ' मिसेज  वारेन्स   प्रोफेशन ' ( श्रीमती वारिन का पेशा )   इसमें  समाज  में  फैली  दुष्प्रवृतियों  पर  आक्रमण  किया  गया  l  इसमें  दिखलाया  गया  कि   जो  लोग  समाज  में   ऊपर  से  ' सज्जन '  और  ' सभ्य '  बने  रहते  हैं  ,  उनमे  से  कितनों  का  ही   भीतरी  जीवन  कैसा  पतित  होता  है   l   यह  रचना  प्रकाशित  होते  ही  अश्लील  बताकर  जब्त  कर  ली  गई   थी  l   पर  1924  में  इस  पर  से  निषेधता  हटा  ली  गई   और  अब  इसे  अश्लील  के  बजाय   सच्चरित्रता  की   शिक्षा  देने  वाला  माना  जाता  है  l
 इसकी  मुख्य  शिक्षा   यही  है   कि ---- मनुष्य  जैसा  विश्वास   रखता  हो   वैसा  ही  जीवन   उसे व्यतीत  करना   चाहिए  l   दुरंगा  व्यक्तित्व  रखना  नीचता  का  लक्षण  है  l  

10 July 2020

WISDOM -----

 योग  विज्ञान   के  अनुसार   व्यक्ति  व  व्यक्तित्व  का  शक्तिसंपन्न   व  समर्थ - बलशाली   होने  से  भी  ज्यादा  महत्वपूर्ण  है   उसका  सद्गुण संपन्न  होना , गुणवान  होना , मानवीय  मूल्यों  के  प्रति  सचेष्ट  व  समर्पित  होना   क्योंकि  सद्गुणों  के  अभाव   में   शक्ति  के  दुरूपयोग  की  संभावना   हमेशा  बनी   रहती  है   l   गुणहीन  व्यक्तियों  के  पास  जो  भी  शक्ति  आती  है  ,  वो  हमेशा   दुरूपयोग  करते  हैं  ,  फिर  यह  शक्ति  चाहे  सामाजिक  हो , राजनीतिक   हो  या  फिर  वैज्ञानिक  l
  संसार  में  अनेक  ऐसी  जातियाँ   हैं  जो  परिश्रमी  हैं , जागरूक  हैं , समय  की  पाबंद  हैं  , कर्तव्य पालन ,  स्वास्थ्य , सफाई , नियमितता  आदि  अनेक  बातों  का  ध्यान  रखती  है  ,  संगठित  हैं , साहसी  हैं , अपने  राष्ट्र  के  प्रति  समर्पित  हैं    लेकिन   इसका    अर्थ  यह  नहीं  कि   वे  सद्गुणसंपन्न   भी  हैं   l   सद्गुणी  होने  का  अर्थ  है  ---- मानवीय  मूल्यों  का  ज्ञान , नैतिकता ,  सत्य बोलना , ईमानदारी , किसी  को  कष्ट   न  देना ,  किसी  का  हक  न  छीनना ,  दया , करुणा , ममता , भाईचारा ,  प्रेम , शांति - सहयोग  ,  सेवा भाव ,   अहंकार  न  करना ,  लोगों  को  चैन  से  जीने  देना ,  स्वार्थ  व   लालच  न  होना  ,  श्रेष्ठ  चरित्र  आदि  सद्गुण  यदि   शक्तिसम्पन्न   लोगों  में  होते  तो  संसार  में  इतने  युद्ध , अन्याय , अत्याचार  , उत्पीड़न  न  होता   l
        सद्गुणों  में  एक  आकर्षण  होता  है    इसलिए  स्वार्थ , लालच , कामना , वासना  और  तृष्णा  में  डूबा  हुआ  बुरे  से  बुरा  व्यक्ति  भी   अपने  ऊपर  शराफत  का  नकाब  डालकर   रहता  है  , अपनी  असलियत  को  दुनिया  से  छिपा  कर  रखने   का   हर  संभव  प्रयास  करता  है  l
पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  ने   वाङ्मय  में  लिखा  है ---- ' सचमुच  में  अपने  को  सभ्य  कहने  वाला  मनुष्य  आज  कितना  बनावटी  हो  चला  है  l  बात - बात  पर  अभिनय  करने  वाला ,  समय - समय  पर   भिन्न - भिन्न  मुखौटे   ओढ़ने  की  विडम्बना  में   फँसा   हुआ   आज  का    मनुष्य   बोता   तो  बहुत  है  किन्तु  काटता  कुछ  नहीं  l '

9 July 2020

WISDOM ------ परिष्कृत दृष्टिकोण ही स्वर्ग है

 मन: स्थिति  पर  ही  जीवन  के  उत्थान - पतन  का  , सुख - दुःख  का  ढांचा  खड़ा  हुआ  है  l   यदि  सोचने  का  तरीका  सकारात्मक  हो  तो   हर  परिस्थिति  में  अनुकूलता  सोची  जा  सकती  है  l
गुबरैला  कीड़ा  और  भौंरा   एक  ही  बगीचे  में  प्रवेश  करते  हैं   और  दो  तरह  के  निष्कर्ष  निकालते   हैं  --- भौंरा  फूलों  पर  मंडराता  है  ,  सुगंध  का  लाभ  लेता  है  और  गुंजन  गीत  गाता   है  l
  गुबरैला  कीड़ा   अपनी  प्रकृति  के  अनुरूप   गोबर  की  खाद  के  ढेर  को   तालाश   लेता  है   और  अपने  दुर्भाग्य  पर   रोते    हुए  कहता  है  --- संसार  में  बदबू  ही  बदबू  भरी  पड़ी  है   l  

WISDOM -----

  इस  संसार  में  धन - सम्पदा  का  बहुत  मूल्य  है  l  धन - सम्पदा  से  सब  कुछ  ख़रीदा  जा  सकता  है   l   किसी  की  बुद्धि ,  ज्ञान   , वैज्ञानिक  प्रतिभा  आदि   सभी  कुछ  धन  से  खरीद  कर  विकृत  मानसिकता  के  लोग  अपनी  महत्वाकांक्षा  पूरी  करते  हैं   l   जिसे  विकृत  कहा   जाता  है ,  वह  अति  के  धनी   लोगों  का  शौक  होता  है  l   इसी  शौक  का  परिणाम  हमें  संसार  में  देखने  को  मिलता  है  l   ईश्वर  ने  इस  संसार  में  सब  कुछ  शुद्ध , पवित्र  बनाया , कहीं  कोई  मिलावट  नहीं   l   जब  तक  इनसान   को  प्रकृति  पर , ईश्वर  की  सत्ता   पर   विश्वास  था  ,  सब  स्वस्थ  थे  ,  लोगों  के  हृदय  में  संवेदना  थी  l   लेकिन   लोगों  के  शौक  ने  बीज , वनस्पति , पशु -पक्षी  सब  में  मिलावट  कर  नई   किस्म  तैयार  कर  दी  l    इतने  इंजेक्शन , इतनी  दवाइयाँ  हो  गई  हैं  कि  नर - नारी  का  अस्तित्व  भी  खतरे  में   है  l
 ईश्वर  ने  जो  नहीं  बनाया , वह  भी  समाज  में  है  , यह  सब   विकृति  ही  है  l 
पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  ने  लिखा  है  --- ' धन  के  प्रति  अत्यधिक  आसक्ति  मनुष्य  को  लाचार  बना  देती  है  और  मन  को  संकीर्णता  से  भर  देती  है  , ऐसा  होने  पर  मनुष्य  अशुभ  कर्म  करने  से  भी  नहीं  चूकता  l  जब  से  स्वार्थी  सोच  ने  राजनीति ,  धर्म , पत्रकारिता  के  क्षेत्र  में  प्रवेश  किया   तब  से  उन  क्षेत्रों  में   अनैतिकता , अराजकता  व  झूठ  का  प्रवेश  हो  गया  l   इन  क्षेत्रों  में  अब  ईमानदारी   दिखाई  नहीं  देती  l   पैसे  के  लिए  ही  लोग  कार्य  करते  हैं  और  पैसे  के  लिए  ही  पद  चाहते  हैं  l '
     धन  के  साथ  एक  बड़ी  बात  यह  भी  है   कि  धन  जिस  प्रकार  से  अर्जित  किया  जाता  है  ,  उसका  व्यय  भी  उसी  रूप  में  होता  है  l   यदि  किसी  ने  छल - कपट  से  ,  संसार  में   बुराइयां , अनैतिकता ,  अपराध  और  बीमारी  फैलाने   वाले  कार्य  कर  के  बहुत  धन  कमाया  है  ,  अब  यदि  वह   बहुत  दान  देता  है  , समाज कल्याण  के  नाम  पर    बहुत  दान , सहायता , चंदा  आदि  देता  है   तो  उसकी  यह  पाप  की  कमाई  जहाँ  भी  जाएगी  वहां  अनाचार , अनैतिकता ,  अपराध , जीवन  में  तनाव  आदि  नकारात्मकता  बढ़ेगी  l   ईमानदारी  और  परिश्रम  से  अर्जित  धन   लोगों  को  संस्कारवान   बनाता   है  ,  संसार  में  सुख - शांति   देता  है  l


8 July 2020

WISDOM ------

   महर्षि  चाणक्य  ने   अपनी  बुद्धि  और  संकल्पशीलता  के  बल  पर   तात्कालिक  नन्द वंश  का  विनाश  कर   उसके  स्थान  एक  साधारण  बालक  चन्द्रगुप्त   को  स्वयं  शिक्षित  कर   राज्य  सिंहासन  पर  बैठाया  l
 चन्द्रगुप्त  को  इस  बात   की  पूर्ण  आशंका  बनी   हुई  थी  कि  उसकी  सीमित   शक्ति  नन्द  वंश  का  मुकाबला   न     कर  सकेगी  l   सीधे    आक्रमण    साहस  नहीं  हो  रहा  था  ,  अंत  में  उसने  अपनी  आशंका  गुरु   चाणक्य   से  व्यक्त  कर  दी  l
महापंडित  चाणक्य  को    पद्मानंद   की  आंतरिक  कमजोरियों  का  पता  था  ,  उन्होंने  कहा --- " किसी  के  पास  विशाल  चतुरंगिणी   सेना  हो  ,  किन्तु  चरित्र  न  हो   तो  अपनी  इस  दुर्बलता  के  कारण  वह  अवश्य  नष्ट  हो  जाता  है  l  " चन्द्रगुप्त  का  अपने  हाथ  से  राज्याभिषेक  करते  हुए  चाणक्य  ने  कहा   था --- 
' केवल  एकनिष्ठ  कर्तव्यशीलता , आत्मविश्वास ,  अविरत  प्रयत्न   तथा  सत्य  के  पक्ष  में  रहने  के  बल  पर    कोई  साधन  न  होने  पर  भी  मेरी  प्रतिज्ञा  पूरी  हुई  l  l  '  

7 July 2020

WISDOM ----- चरित्र मनुष्य की सबसे बड़ी सम्पदा है

 सिकन्दर   का  सपना  विश्वविजय  का  था  , इस  अभियान  में  उसने  अनेक  राजाओं  को  परास्त  किया   l   फारस  का  राजा  दारा  बहुत  वीर  था  और  अपने  को   सारे  संसार  का  स्वामी   समझता  था  l  सिकंदर  ने  उसे  भी  पराजित  कर  दिया  l   दारा   मैदान  छोड़कर  भाग  निकला , उसकी  माँ , पत्नी  व  बच्चे  पकड़े   गए  l    दारा   की  पत्नी  बहुत  रूपवती  थी  l   सिकन्दर   , अरस्तु  का  शिष्य  था   और  जानता   था  कि   चरित्र  मनुष्य  की  सबसे  बड़ी  सम्पदा   है  l   वह  उनके  साथ  बड़ी  सभ्यता  से  पेश  आया  और  उनकी  सुरक्षा  का  प्रबंध  किया   l   सिकन्दर   में  चारित्रिक  बल  था  , पराजितों  के  साथ  सम्मानजनक  व्यवहार  करना  उसकी  नीति   थी   l
 दारा   ने  पराजित  होकर  भी  आत्म समर्पण  नहीं  किया   और  अपने  बचे  हुए  सैनिकों  के  साथ  इधर - उधर  भागता  फिरा  l  एक  दिन  उसके  ही  एक  सैनिक  ने  उसे   छुरों  से  घायल  कर  दिया   और  मरा   समझकर  छोड़  दिया  l  सिकन्दर   को  वह  मृतप्राय  दशा  में  मिला   l  अपने  मरणासन्न  शत्रु  को  उसने  अपना  दुशाला   ओढ़ाकर  सम्मान  प्रकट  किया  l   दारा   ने  उसे   अपनी  पत्नी  व  बच्चों   के  प्रति  किये  सभ्य  व्यवहार  के  लिए  धन्यवाद  दिया   l   सिकन्दर   की  इस  उदारता  के  कारण  उसकी  सेना  के  कुछ  उच्च  अधिकारी  उससे  अप्रसन्न  हो  जाते  थे   किन्तु  वह  उनकी  इस  अप्रसन्नता  की  चिंता  किए  बिना   अपनी  इस  नीति   पर  दृढ़   रहता  था  l                                                                                                                                                                                                                                                                                                       

WISDOM ------

 अमेरिका  के  प्रसिद्ध   धनपति  हेनरी  फोर्ड  अंतर्राष्ट्रीय  शांति  के  पक्षपाती  थे  l  वे  नहीं  चाहते  थे  कि   कोई  राष्ट्र  अपने  पास  शस्त्रों  का  विशाल  भंडार  रखे  l  उनमे  एक  सच्चे  मानव  के   गुण   थे  , वे  कहते  थे  कि  शस्त्रों   की  होड़  मानव  के  लिए  हितकर  नहीं  है  l  उन्होंने  अपार  धन  अर्जित  किया   लेकिन  कभी  उस  पर  गर्व  नहीं  किया  और  उसका  उपयोग  जन  - कल्याण  के  लिए  किया   l
 हेनरी  फोर्ड  के  कारखाने  में   18000  आदमी  काम  करते  थे  , उनमे  नवयुवक , ह्रष्ट - पुष्ट  कर्मचारी   बहुत  कम  थे , अधिकांश  अंधे , काने , लंगड़े , लूले , अपंग   कर्मचारियों   को  उन्होंने  अपने  कारखाने  में  काम  दिया  l   वह  ये  नहीं  देखते  कि  यह  व्यक्ति  मेरे  यहाँ  काम  कर  सकेगा  या  नहीं   वरन  यह  देखते  कि   कौन  सा  काम  देकर  उसे   रोजगार  दिया  जाये  l  समाज  में  जो  कैदी  स्थान  नहीं  पा  सकते  , उनको  भी  वे  अपने   यहाँ  काम  देते  थे  l  ईश्वर  ने  उन्हें  धन  दिया  ,  उस  धन  को  उन्होंने   अधिक  से  अधिक  लोगों  को  रोजगार  देने  में  लगाया  l   ऐसे  लोग  जिन्हे  कहीं  काम  नहीं  मिलता  ,  वे  इनके  यहाँ  काम  पाते l   एक  घाटे  में  चलने  वाली  जहाज  कंपनी  इन्होने  खरीद  ली  l  मजदूर   हड़ताल  कर  रहे  थे  l  खरीदने  के  दूसरे  ही  दिन  इन्होने  घोषणा  कर  दी   कि   मजदूरों  को  उनकी  मांग  के  बराबर  वेतन  दिया  जाये  l   मजदूर   काम  पर  लौट  आये   और  थोड़े  ही  समय  में  घाटा  भी  पूरा  हो  गया  l   हेनरी  फोर्ड  ने  इस  प्रयोग  से  दिखा  दिया  कि   उदारता  का  परिणाम  शुभ  होता  है  l
  हेनरी  फोर्ड  का  जीवन  प्रेरणा  स्रोत  है  l   आज  के  समय  में   अच्छे  लोग  भी  हैं   लेकिन  अनेक  ऐसे  भी  हैं  जो  अपने  धन - सम्पदा  के  बल  पर   अपनी  हुकूमत  चलाना   चाहते  हैं  l  अति  हर  चीज  की  बुरी  होती  है  l   धन  बहुत  है  , लेकिन  यदि  उसका  सदुपयोग  नहीं  किया , नि:स्वार्थ  भाव  से  लोक - कल्याण  के  कार्यों  में  उसका  उपयोग  नहीं  किया   तो  यह  सम्पदा  अनेक  मानसिक  विकृतियों  को  जन्म  देती  है   जिसका  परिणाम  संसार  भुगतता  है  l