आज का समाज चाहे वह किसी भी धर्म , जाति का हो , यहाँ तक कि सम्पूर्ण धरती पर ही पुरुष प्रधानता है l इसका एक नकारात्मक पक्ष यह है कि प्राचीन काल से आज तक जितने भी युद्ध हुए , दंगे - फसाद , आगजनी , गोलाबारी , हत्या , अपराध , नारी उत्पीड़न , छोटे - छोटे बच्चों को सताया जाना , अनेक ऐसे अपराध जिनका लिखना और बोलना भी अक्षम्य है ---- इन सब में भी ' पुरुष प्रधानता ' है l इस वर्ग ने अपनी प्रधानता से संसार को सुख - शांति नहीं दी , सुख - चैन छीना है l हम सब एक माला के मोती है l एक भी अनैतिक , अमर्यादित कार्य समूची मानवता और पर्यावरण के लिए घातक है l ऐसे में माला का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाता है l कहते हैं हर अति का अंत होता है l जब अत्याचार और अन्याय से प्रकृति भी कराह उठे , निर्दोष बच्चों के आंसुओं से ब्रह्माण्ड में भी कम्पन्न हो जाये , मानव जाति दया , करुणा , संवेदना , आत्मीयता जैसे गुणों को भुला दे , तब भगवान को आना ही पड़ता है , परिवर्तन के लिए l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते है --- ' इक्कीसवीं सदी नारी उत्कर्ष की सदी है l विधाता ने उसे समूची मानवता को विकसित - परिष्कृत करने और मुक्तिदूत बनने का गरिमापूर्ण दायित्व सौंपा है l यह अपने युग का सुनिश्चित निर्धारण है l "