24 March 2024

WISDOM -----

    पं . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " आज  के  युग  की  समस्या  ही  यह  है  कि  आज  जो  अधर्म  करते  हैं  ,  वे  भी  धर्म  का  नाम  लेकर  ही  करते  हैं  l  आज  जो  अनीति  करते  हैं  ,  वे  भी  नीति  की  ही  दुहाई  देते  हैं  l  इसलिए  धार्मिक  स्थलों  पर   अधर्म    घटता  है  , विद्या के  मंदिरों  में  उपद्रव   होता  है   और  नीति  नियंताओं  द्वारा   अनैतिक  कृत्य  होता  दिखाई  पड़ता  है  l  चोरी  करने  जाता  व्यक्ति   स्वयं  को  समझाता   है  कि   मैं  चोरी  नहीं  कर  रहा  हूँ  ,  मैं  तो   अमीरों  को  मिला  धन  लेकर  गरीबों  में   बाँट  दूंगा  l  इस  तरह  वह  स्वयं  को  यह  प्रमाणित  करने  की  कोशिश  करता  है  कि  वह  जो  कर  रहा  है  , वो  बड़ा  धार्मिक   कृत्य  है  l "  श्रीमद् भगवद्गीता  में  भगवान  कहते  हैं  ---- आसुरी  प्रवृत्ति  वाला  व्यक्ति  करता  सब  गलत  है  ,  पर  मन  में  यह  मानकर  बैठता  है  कि  वो  बिलकुल  सही  है   क्योंकि  उसका  चित्त  अज्ञान  और  अहंकार  से   ढका  हुआ  है  l  धीरे -धीरे  उसको  सच  का  पता  चलना  ही  बंद  हो  जाता  है  l  श्री  भगवान  कहते  हैं  --- आसुरी  प्रवृत्ति  वाले  मनुष्यों  को  अपने  सभी  प्रतिस्पर्धी  अपने  दुश्मन   नजर  आते  हैं  ,  उनमें  दूसरों  को  नष्ट  करने  की   बड़ी  तीव्र  लालसा  होती  है  l   आसुरी  प्रवृत्ति  वाले  स्वयं  को  सर्वसमर्थ , बलवान  और  सुखी  मानते  हैं  l                                  समस्या  यह  है  कि    आसुरी  प्रवृत्ति  का   देवत्व  में  रूपांतरण  बहुत  कठिन  है  , व्यक्ति  अपने  अहंकार  को  नहीं  छोड़ता   l  कभी  किसी  के  जीवन  में  कोई  ऐसी  दिल  को  छू  लेने  वाली  घटना  घट    जाए  ,  कुछ  ऐसा  हो  जाये  जो  उसने  कभी  सोचा  भी  न  था   तब  वह  व्यक्ति  रूपांतरित  हो   जाता  है  l  ऐसा  लाखों  में  कोई  एक  के  साथ  होता  है  l  इतने  प्रवचन , सत्संग   सब  ऊपर  से  निकल  जाते  हैं  , कुछ  असर  नहीं  होता  l    एक  प्रसंग  है  ---- निरजानंद  नामक  एक  स्वामी  थे  l  एटा  के  पास  गंगा  किनारे  रहते  थे  l  उनके  गाँव  में  एक  डकैत  बीमार  हो  गया  l  कोई  उसकी  सेवा  करने  नहीं   गया  l  स्वामी जी  सब  में  ईश्वर  का  वास  है  ,  इस  सत्य  को  मानते  थे   इसलिए  उसकी  सेवा  करने  गए  l  उन्होंने  उस  डकैत  की  दिन -रात  सेवा  की  जिससे  वह  स्वस्थ  हो  गया   और  अब  उसका  जीवन  बदल  गया  l  वह  बोला ---" महाराज  ! हमारे  जितने  भी  साथी  थे  , सब  बीमारी  के  समय  भाग  गए  , किसी   ने  भी  नहीं  पूछा  l  केवल  आपने  ही  हमारी  सेवा  की  l  अब  हम  आपकी  सेवा  करेंगे  l "  अब  वह  स्वामी जी  की  पूजा  की  व्यवस्था  कर  देता , नित्य  ही  उनके  लिए  फलाहार  आदि  बना  देता  ,  उनके  पैर  दबाता , हर  तरह  से  सेवा  करता  l   स्वामी जी  के  महाप्रयाण  के  बाद  वह   उन्हें  अपना  गुरु  मानकर  उनकी  फोटो  की  पूजा  करने  लगा  , मन्त्र  जपता ,  और  गाँव  में  कोई  बीमार  हो  , उनकी  भी  सेवा  करता  l  अंतिम  समय  में  भी  वह  अपने  गुरु  के  ही  ध्यान  में   डूबा  था  l   उसने  अपने  कर्मों  को   सुधारा   और  अंतिम  समय  में  अपने  गुरु  का  ,ईश्वर  का  स्मरण  करते  हुए  मृत्यु  का  आलिंगन  किया  l  आचार्य श्री  कहते  हैं --- यह  मनुष्य  जीवन  अनमोल  है , हमारे  पास  अपने  कर्मों  को  सुधारने  का  समुचित  अवसर  है  l