पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' कुटिल की मित्रता और अपना अति अभिमान स्वयं पर और अपने परिवार तथा राज्य पर संकट आने का कारण है l ' इतिहास से हमें शिक्षा मिलती है कि मित्रता भी सोच - समझ करनी चाहिए l ------ औरंगजेब अपने भाइयों को मारकर और पिता को कैद कर दिल्ली के रक्त सने सिंहासन पर बैठा l ऐसे अन्यायी औरंगजेब ने जब जोधपुर के राजा जसवंतसिंह से मित्रता का हाथ बढ़ाया तो उन्होंने इसे स्वीकार कर लिया l जसवंतसिंह ने यह सोचने का प्रयास ही नहीं किया कि यह क्रूर , निर्दयी , अन्यायी औरंगजेब जब अपने पिता को कैद कर सकता है , भाइयों को क़त्ल करवा सकता है तो समय आने पर उन्हें भी दगा दे सकता है l उनके परिवार पर संकट ला सकता है , उनका राज्य हथिया सकता है l उन्होंने औरंगजेब के दरबार में रहना स्वीकार कर लिया l जसवंतसिंह की वीरता और पराक्रम से औरंगजेब ने जी भर के लाभ उठाया l जसवंतसिंह ने उसके लिए कठिन से कठिन संग्राम जीते l औरंगजेब शंकालु प्रवृति का था , वह भीतर ही भीतर उनसे भयभीत रहता था और मन में बहुत ईर्ष्या करता था l उसने जसवंतसिंह को और उसके पुत्रों को धोखे से मरवा दिया , जोधपुर का राज्य भी हथिया लिया l उनकी रानी और नवजात शिशु को दुर्गादास राठौर नामक स्वामिभक्त वीर ने बड़ी कठिनाई से बचा लिया अन्यथा उनका वंश ही समाप्त हो जाता l आचार्य श्री लिखते हैं ---- ' राजा जसवंतसिंह के पास जो बल विक्रम था वह सही दिशा में न होकर गलत दिशा में प्रयुक्त हुआ l वह स्वयं उनके लिए , उनके परिवार के लिए तथा हिन्दू जाति के लिए निरुपयोगी सिद्ध हुआ और उसका लाभ औरंगजेब ने उठाकर अपना स्वार्थ सिद्ध किया l ये ऐतिहासिक घटनाएं हमें शिक्षा देती हैं कि हम जागरूक हों , हमारी योग्यता का लाभ गलत व्यक्ति तो नहीं उठा रहे l नहीं तो ये अच्छाइयाँ भी राजा जसवंतसिंह के पराक्रम की तरह निरर्थक चली जाएँगी l "