19 May 2021

WISDOM ------

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- ' कुटिल  की  मित्रता  और  अपना  अति  अभिमान   स्वयं  पर  और   अपने  परिवार  तथा  राज्य  पर  संकट  आने  का  कारण   है  l '  इतिहास  से  हमें  शिक्षा  मिलती  है   कि   मित्रता  भी  सोच - समझ   करनी  चाहिए  l ------  औरंगजेब  अपने   भाइयों  को  मारकर   और  पिता  को  कैद  कर   दिल्ली  के  रक्त  सने   सिंहासन  पर  बैठा  l   ऐसे  अन्यायी  औरंगजेब  ने  जब  जोधपुर  के  राजा  जसवंतसिंह   से  मित्रता  का  हाथ  बढ़ाया    तो  उन्होंने  इसे  स्वीकार  कर  लिया   l   जसवंतसिंह  ने  यह  सोचने  का  प्रयास  ही  नहीं  किया   कि   यह  क्रूर , निर्दयी , अन्यायी  औरंगजेब   जब  अपने  पिता  को  कैद  कर  सकता  है  ,  भाइयों   को  क़त्ल  करवा  सकता  है   तो  समय  आने  पर  उन्हें  भी  दगा   दे  सकता  है  l   उनके  परिवार  पर  संकट  ला  सकता  है  , उनका  राज्य  हथिया  सकता  है   l   उन्होंने  औरंगजेब  के  दरबार  में  रहना  स्वीकार  कर  लिया  l    जसवंतसिंह   की  वीरता  और  पराक्रम   से   औरंगजेब    ने   जी  भर  के  लाभ  उठाया   l   जसवंतसिंह  ने  उसके  लिए  कठिन  से  कठिन  संग्राम  जीते  l   औरंगजेब  शंकालु  प्रवृति  का  था  ,  वह  भीतर  ही  भीतर  उनसे  भयभीत  रहता  था   और  मन  में  बहुत  ईर्ष्या  करता  था  l   उसने  जसवंतसिंह   को  और  उसके  पुत्रों  को  धोखे  से  मरवा  दिया  ,  जोधपुर  का  राज्य  भी  हथिया  लिया  l   उनकी  रानी    और  नवजात  शिशु  को   दुर्गादास  राठौर  नामक  स्वामिभक्त  वीर  ने   बड़ी  कठिनाई  से  बचा  लिया  अन्यथा  उनका  वंश  ही  समाप्त  हो  जाता   l   आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- '   राजा  जसवंतसिंह  के  पास  जो  बल  विक्रम  था    वह सही  दिशा  में  न  होकर  गलत  दिशा  में  प्रयुक्त  हुआ  l   वह  स्वयं  उनके  लिए ,  उनके  परिवार  के  लिए  तथा  हिन्दू  जाति   के  लिए    निरुपयोगी  सिद्ध  हुआ    और  उसका  लाभ  औरंगजेब  ने  उठाकर  अपना  स्वार्थ  सिद्ध  किया   l   ये  ऐतिहासिक  घटनाएं  हमें  शिक्षा  देती  हैं  कि   हम  जागरूक  हों   ,  हमारी  योग्यता  का  लाभ   गलत  व्यक्ति  तो  नहीं  उठा  रहे  l  नहीं  तो  ये  अच्छाइयाँ   भी   राजा  जसवंतसिंह  के  पराक्रम  की  तरह   निरर्थक  चली  जाएँगी   l  "