हमारे महाकाव्य संसार के लिए मार्गदर्शक हैं , उनसे शिक्षा लेने की जरुरत है l कहते हैं जो महाभारत में है , वही इस धरती पर है l अत्याचार और अन्याय के अंत के लिए ही महाभारत हुआ लेकिन इसमें भीष्म पितामह जैसे धर्मपरायण , द्रोणाचार्य और महादानी कर्ण भी पराजित हुए , उनका अंत हुआ l इसका एक ही कारण था कि उन्होंने दुर्योधन द्वारा किए जाने वाले अत्याचार और अन्याय का मौन रहकर समर्थन किया l दुर्योधन के साथ उनका स्वार्थ जुड़ा था , उसके राज्य में रहकर उन्हें राज- वैभव के सारे सुख प्राप्त थे l यह तथ्य आज भी सर्वत्र देखने को मिलता है l अत्याचारी और अन्यायी सब जगह हैं , वे फल - फूल रहे हैं और डंके की चोट पर अन्याय उन पर करते हैं जो उनके अहंकार और स्वार्थ पूर्ति में बाधक है l शेष सब भीष्म , द्रोण और कर्ण की तरह मूक दर्शक बने रहते हैं क्योंकि उनका उससे कोई न कोई स्वार्थ जुड़ा है l ईश्वर के न्याय से कोई नहीं बच सकता l दुर्योधन से पहले ही उनका अंत हो गया l अत्याचारी केवल खुद नहीं डूबता , वो अपना समर्थन करने वाले , साथ देने वाले सबको ले डूबता है l जब अर्जुन युद्ध के मैदान में अपने ही परिवार के प्रियजनों को देखकर शस्त्र नीचे रख देता है तब भगवान कृष्ण उसे गीता का उपदेश देते ,हैं कहते हैं ----- यदि अत्याचार और अन्याय को हम नहीं मिटायेंगे तो वे हमें मिटा डालेंगे l ' अहंकारी और उन्मादी किसी का सगा नहीं होता l