18 October 2018

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:

  माँ  आदिशक्ति  की  कठोरता  का  कोई  भी  रूप  क्यों  न  हो ,  श्रद्धाभाव  से   ' माँ '  कहकर  पुकारने  से  उनकी  ममता  छलक  उठती  है   और  उनके  कोप  की  रौद्रता  करुणा  में  परिवर्तित  हो  जाती  है   l  इस  सत्य  को  बताने  वाली   एक  पुराण कथा  है -----  असुरराज  विकटदंत  का   बेटा   सुबल   भगवती  का  अनन्य  भक्त  था ,  उसके  पिता  को  यह  बात  सुहाती  न  थी  l  उसने  अपने  ही  पुत्र  को  मारने  के  कई  षडयंत्र  किये  परन्तु माँ  की  कृपा  से  वे  सब  विफल  हो  गए  l  तब  वह  असुरराज  स्वयं  महाखड्ग  से  सुबल  को  मारने  को  उठ  खड़ा  हुआ  l  अपने  भक्त  पर  ऐसा  अत्याचार  माँ  सहन  न  कर  सकीं  और  और  परम कोपवती  महाकाली  के  रूप  में  वहां  प्रकट  हो  गईं  l  देखते - ही - देखते  उन्होंने  असुरराज  को  समाप्त  कर  दिया  l  किन्तु  उनका  कोप  शान्त  न  हुआ  l  उनके  क्रोध  से  त्रिलोकी  कम्पित  होने  लगी  l
      सब  देवी - देवता  और  महादेव  स्वयं  आ  गए  किन्तु  किसी  विधि  से  उनका  कोप  शांत  न  हुआ  l  तब  महादेव  ने  कहा  कि   सुबल  पर  अत्याचार  के  कारण  वे  कुपित  हुईं  हैं  ,  अत:  सुबल  ही  उन्हें  शांत  कर  सकता  है  l  देवों  की  बात  सुनकर  सुबल  प्रसन्न  भाव  से  महाकाली  की  और  बढ़ा  और   ' माँ ' कहकर  उनके  चरणों  से  लिपट  गया  l  उसे अपने  पास  आया  देख  महाकाली  ने  उसे  गोद  में  उठा  लिया  और  उसे  प्यार  करते  हुए  कहा --- पुत्र  !  मुझे  आने  में  देर  लग  गई  l  ' माता  की  ममता  पाकर  सुबल  निहाल  हो  गया  l  उसने  कहा  --- हे  माँ  !  यदि  आप  मुझ  पर  प्रसन्न  हैं  तो  शान्त  हो  जाएँ  और  सम्पूर्ण  जगत  पर  कृपा  करें  l '    सुबल  के  प्रेमपूर्ण  वचनों  को  सुनकर  महाकाली  का  कोप  शान्त  हुआ  और  वे  वापस  अपने  सौम्य  स्वरुप  में   लौट आईं  l