पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' वास्तविकता बहुत देर तक छिपाए नहीं नहीं रखी जा सकती l व्यक्तित्व में इतने अधिक छिद्र होते हैं कि उनमे से होकर गंध दूसरों तक पहुँच ही जाती है l अपने को सभ्य कहने वाला मनुष्य आज कितना बनावटी हो चला है , बात -बात पर अभिनय करने वाला , समय - समय पर भिन्न -भिन्न मुखौटे ओढ़ने की विडम्बना में फँसा हुआ है l एक लघु - कथा है ----------------- एक जंगल में एक सियार रहा करता था l एक दिन वह मार्ग भटक कर इनसानों की बस्ती में जा पहुंचा l उसे वहां देखते ही नगर के कुत्ते उसके पीछे पड़ गए l सियार जान बचाकर भागने लगा कि रास्ते में एक रंगरेज का घर पड़ा l घर के पिछवाड़े रंगरेज ने नीला रंग बरतन में रखा था और भागता हुआ सियार उसी में गिर पड़ा l रंगा हुआ सियार जब वापस जंगल पहुंचा तो नीले रंग के सियार को देखकर जंगल में सभी जानवर उससे डरने लगे l अब क्या था , सियार के दिमाग में एक कुटिल तरकीब आई l एक बड़े से पत्थर पर चढ़कर वह जोर से चिल्लाया --- " जंगल के निवासियों ! मैं तुम्हारा नया राजा हूँ l मुझे भगवान ने दर्शन देकर नीला रंग दिया है , ताकि मैं नए राजा के रूप में तुम्हारी रक्षा कर सकूँ l " जानवर भयभीत थे , उसकी बात को सच मानकर उसे अपना राजा मान लिया , अब रंगे सियार के दिन सुख से बीतने लगे l एक दिन जब वह सभा कर रहा था टी, उसी समय दूर से सियारों के एक झुण्ड से ' हुआ -हुआँ ' की आवाज आई l रंगे सियार के मुंह से भी स्वाभाव वश वही आवाज निकली और उसे सुनते ही उसकी असलियत सबके सामने आ गई l अब सब उसे मारने दौड़े , बड़ी मुश्किल से वह अपनी जान बचाकर उस जंगल से ही भाग गया l इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि ----- केवल बाह्य परिवेश बदल लेने से कुछ नहीं होता , यदि चिन्तन और चरित्र में श्रेष्ठता नहीं आती तो एक दिन सच्चाई सबके सामने आकर रहती है l