कहते हैं -- किसी भी बात की अति अच्छी नहीं होती और अति का अंत होता है l विज्ञान की अनगिनत देन हैं लेकिन यदि हम इस भौतिक प्रगति का परिणाम देखें तो आतंक है , युद्ध का खतरा है , मनुष्य के जीवन का कोई मूल्य नहीं है , भोजन , खान - पान , रहन - सहन सब में वैज्ञानिक शोधों के आ जाने से मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई है , तनाव , आत्महत्या बढ़ गईं और अब तो पूरा संसार ही बीमार हो गया l विज्ञान कहता है --हम तुम्हे स्वस्थ कर देंगे , लेकिन ईश्वर की दी हुई श्वास को घटाना - बढ़ाना क्या किसी सांसारिक शक्ति के वश में है ? जितने प्रयोग हम विज्ञान में करते हैं , उसकी बजाय दो कदम अध्यात्म के पथ पर चलकर देखें , इतनी मानसिक शांति मिलेगी और मन के स्वस्थ रहने से बीमारियाँ दूर भागेंगी l जब सबका मन शांत होगा तो युद्ध , कलह , प्रभुत्व जमाना , हिंसा जैसी विकृतियाँ समाप्त हो जाएँगी l वो दिन दूर नहीं जब मनुष्य जागेगा , प्रकृति की ओर लौटेगा l मुफ्त में भी कोई वैज्ञानिक सुविधाएँ देगा तो उन्हें नकार कर प्रकृति की शरण में रहेगा l यदि एक सर्वेक्षण किया जाये तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि वर्तमान की परिस्थितियों में भी जो लोग स्वस्थ हैं , ऊर्जावान हैं वे अपने खान- पान के प्रति जागरूक हैं , रासायनिक पदार्थों से स्वयं को बचाते हैं , योग - ध्यान करने के साथ सत्कर्म करते हैं l प्रकृति की शरण में जाओ तो प्रकृति स्वयं कृपा करती है l