27 October 2020

WISDOM -----

   जगद्गुरु  शंकराचार्य   चाहते  थे  कि   देश  में  चारों  दिशाओं  में  ज्ञानक्रांति   के  केंद्र  बने  l   इसके  लिए  समस्या  धन  की  थी  l   इसलिए  वे  भिक्षाटन  के  लिए  निकले  थे  l  देश  के  श्रेष्ठि  वर्ग  ने  उनसे  अनेकों  बार  कहा   कि ---' आप  हमें  आदेश  दें ,  हम  धन  की  कोई  कमी  नहीं  पड़ने  देंगे  l   लेकिन  आचार्य  ने  उनके   इस  प्रस्ताव  को  विनम्रतापूर्वक  अस्वीकार  कर  दिया   और  कहा ---- " यदि  ज्ञान , जन  के  लिए  हो   तो  धन  भी  जन  का  होना  चाहिए  l   जनभागीदारी  से  जो  कार्य  किए   जाते  हैं  ,  जन  उन  कार्यों  को  महत्व   भी  देता  है  l   फिर  सबके  द्वार  पहुँचने  से   ज्ञान  का  सहज  वितरण    होगा  और  जनसहयोग   भी  प्राप्त  होगा  l "   अपने  इसी  प्रयास  में  वे  पदयात्रा  करते  हुए   एक  गांव  में  पहुंचे  l   अभी  जिस  द्वार  पर  उन्होंने  भिक्षा  के  लिए  पुकारा   वह  झोंपड़ी   एक  निर्धन   वृद्ध  विधवा  ब्राह्मणी  की  थी   l   उसके  पति  व  पुत्र  का  आकस्मिक  निधन  हो   गया  था  l   आचार्य  द्वारा  भिक्षा  की  याचना  सुनकर  वह  व्याकुल  हो  उठी   l   उसने  अपनी  पूरी  झोंपड़ी  खंगाल  ली  पर  कुछ  न  मिला  l   बाहर  देखा  तो  आचार्य  अभी  तक  खड़े  थे  l   व्याकुल  होकर  उसने  कहा --- ' हे  ईश्वर  !   तूने  मुझे  इतना  गरीब  क्यों  बनाया   ?   ' ईश्वर  को  यह  उलाहना  देते  हुए  उसने    फिर  से  अपनी  झोंपड़ी    में  सब  तरफ  ढूंढा   l   इस  बार  उसे  कोने  में  पड़ा  हुआ  सूखा  आंवला  मिला   l   उसने  बड़े  जतन   से  आंवला  उठा  लिया  और  दौड़ते  हुए  बाहर  आई   और  आचार्य  के  हाथ  पर  वह  सूखा  आंवला  रख  दिया   l  इस  आंवले  के  साथ  ही  आचार्य  की  हथेली  पर  आँसू   की  चार  बूँद   गिरी  l   दो  आँसू   वृद्धा  के  थे  और  दो  आचार्य  के   l   आचार्य  भावाकुल  हो  गए  ,  आंवले  के  रूप  में  वृद्धा  अपनी  सम्पूर्ण  सम्पति   दान  दे  रही  थी  l   ऐसी  उदारता  और   ऐसी  दरिद्रता  के   विरल   संयोग  को  देखकर  आचार्य  विकल   हो  उठे  l   उन्होंने  माता  महालक्ष्मी  को  पुकारा  --- " हे  माता  !  इस  उदारता  को  संपन्नता   का  वरदान  दो  "    उनके  मुख  से  स्वत:  स्तवन   स्फुरित  होने  लगा  ----- सारे  वातावरण  में  प्रकाश   छा  गया  l   स्तवन  के  पूर्ण  होते  ही    वृद्धा  की  झोंपड़ी  में    आकाश  से  स्वर्ण  आंवलों  की    कनकधाराएँ   बरसने  लगीं   l   महालक्ष्मी  की  कृपा  और   आचार्य   की भक्ति  के  सभी  साक्षी  बने  l   और  आचार्य   द्वारा  कहा  गया  स्रोत   --- कनकधारा  स्रोत    के  नाम  से   सिद्ध  स्रोत  के  रूप  में   वंदित   हुआ  l