एक घटना है ---- ' पिता की हत्या कर के खुद राज्य सिंहासन पर बैठा हुआ टर्की का खलीफा मौतासर उन दिनों बड़ा प्रसन्न था l राजसिंहासन मिलने के उपरांत प्राप्त होने वाले सभी सुख उसे उपलब्ध होने लगे थे l एक दिन खलीफा मौतासर घोड़े पर सवार अपने साथियों सहित कहीं जा रहा था l जन शून्य स्थान में उसे बहुत बड़ी कब्र दिखाई दी l खलीफा की इच्छा उसे देखने की हुई और घोड़ा बढ़ाता हुआ वह उसके निकट पहुंचा l कब्र पर एक पत्थर लगा हुआ था l खलीफा ने उसे ध्यानपूर्वक पढ़ा तो उस पर लिखा हुआ था ----- ' मैं सरीज खुशरो का पुत्र गढ़ा हुआ हूँ इस कब्र के नीचे l लोभ के वश मैंने राज्य सिंहासन पाया और इसके लिए मरवाया अपने बेगुनाह पिता को l मेरी मौत बनकर आया मेरा कुकर्म और मैं ताज सिर पर न रख सका छह महीने भी l अपने पिता की तरह मैं भी बैठ रहा हूँ इस पत्थर के नीचे l
मौतासर को स्मरण आया कि पाप का क्या परिणाम होता है l और उसी के जैसा कुकृत्य करने वाला एक दूसरा व्यक्ति किस प्रकार अकाल मृत्यु का शिकार हो चुका है l खलीफा के ह्रदय में हजार बिच्छुओं के काटने जैसी पीड़ा होने लगी , वह अपने पाप का स्मरण कर के सिर धुनने लगा l कहते हैं इस कब्र को देखने के बाद खलीफा सिर्फ तीन दिन ही जिन्दा रहा और रोते - रोते मर गया l
पाप करने वाले को उसकी आत्मा ही दंड देने की पर्याप्त क्षमता रखती है l विपुल साधन - संपन्न होते हुए भी व्यक्ति इसी कारण सुख - शांतिपूर्वक नहीं रह पाते कि उन उपलब्धियों के मूल में छुपी अनैतिकता व्यक्ति की चेतना को विक्षुब्ध किये रहती है l
मौतासर को स्मरण आया कि पाप का क्या परिणाम होता है l और उसी के जैसा कुकृत्य करने वाला एक दूसरा व्यक्ति किस प्रकार अकाल मृत्यु का शिकार हो चुका है l खलीफा के ह्रदय में हजार बिच्छुओं के काटने जैसी पीड़ा होने लगी , वह अपने पाप का स्मरण कर के सिर धुनने लगा l कहते हैं इस कब्र को देखने के बाद खलीफा सिर्फ तीन दिन ही जिन्दा रहा और रोते - रोते मर गया l
पाप करने वाले को उसकी आत्मा ही दंड देने की पर्याप्त क्षमता रखती है l विपुल साधन - संपन्न होते हुए भी व्यक्ति इसी कारण सुख - शांतिपूर्वक नहीं रह पाते कि उन उपलब्धियों के मूल में छुपी अनैतिकता व्यक्ति की चेतना को विक्षुब्ध किये रहती है l