7 January 2021

WISDOM ----

  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं  ---- ' दंभ   और  अहंकार  से  किसी  का  भला  नहीं  हुआ  है  l   ये  तो  पतन  की  राह  दिखाते   हैं   l  इनसे  विकास  नहीं ,  विनाश  होता  है  l   अहंकार नकारात्मक  भाव  की  चरम  सीमा  है   l   ' मैं    ही   मैं    हूँ  '    में  इसकी  अभिव्यक्ति  होती  है   l   यह  अपने  अलावा   किसी  और  को  बरदाश्त   नहीं  कर  सकता   l  अहंकार  विवेक  का  प्रतीक   नहीं  है  ,  यह  मूढ़ता  का  पर्याय  है   l   वह  दूसरों  जैसा  श्रेष्ठ   बनना  नहीं  चाहता  ,  उससे  कई   गुना  श्रेष्ठ  दिखना  चाहता  है   l '

WISDOM ----

     पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ----  ' धर्म  सदा  विजयी  होता  है   l   शक्ति   की  केवल  तभी  विजय  होती  है   जब  उसके  साथ  नीति   व  धर्म  हो   l   धर्मविहीन  शक्ति  अंतत:  पराजित  होती  है  l   '  भगवान  राम   इतने  शक्ति  संपन्न  नहीं  थे    जितना  रावण  और  उसकी  सेना   l   मेघनाद  अविजित  और  अपराजित  था  l   उसको  मारने  के  लिए  असंभव  के  समान   कठिन  शर्तें  थीं   l   ठीक  इसी  प्रकार   कौरव  सेना  में  भीष्म  पितामह ,  द्रोणाचार्य , कृपाचार्य ,  कर्ण ,  अश्वत्थामा   आदि  ऐसे  प्रबल  योद्धा  विद्यमान  थे  ,  जो  अकेले  दम   पर  पांडव  सेना  को  परास्त  कर  सकते  थे  l    लेकिन  इन  सभी  शक्तिशाली  योद्धाओं  की  पराजय  हुई    क्योंकि  वे  शक्ति  के  पुजारी  थे  ,  धर्म  के  नहीं   l   दूसरी  ओर   कमजोर  समझी  जाने  वाली    भगवान  राम  और  पांडवों  की  सेना  को  जीत  का  श्रेय  मिला   क्योंकि  उनके  साथ  धर्म  था  ,  वे  नीतिपूर्वक  और  मर्यादापूर्वक   युद्ध  कर  रहे  थे   l   नैतिकता  और  मर्यादापूर्ण  आचरण  करना  ,  सदाचार  और  सन्मार्ग  पर  चलना  ही  धर्म  है  l   जो  ऐसा  करता  है  धर्म  ढाल  बन  कर  उसकी  रक्षा    करता  है ,  सुरक्षा   व  संरक्षण  प्रदान  करता  है  l   आचार्य  श्री  कहते  हैं --- शक्ति  से  अहंकार  उत्पन्न  होता  है  , जो  विनाश  की  ओर   ले  जाता  है   l