16 July 2019

WISDOM -----

 समर्थ  गुरु  रामदास  ने  संसार  से  पूर्ण  विरक्त  होते  हुए  भी   राष्ट्र  हित  के बड़े - बड़े  कामों  को  सिद्ध   कराया  l  वे  अपने  एक  कोपीन , खडाऊं  और  माला  के  अतिरिक्त   अपने  लिए  कोई  सामग्री  नहीं  रखते  थे  ,  पर  हिन्दू  जाति   की  रक्षा  के  लिए   उन्होंने  महाराज  शिवाजी  के  राज्य - संस्थापन  कार्य  में  हर  तरह  से  सहयोग  दिया  l 
 यद्दपि  समर्थ  गुरु   स्वयं  हठपूर्वक  गृहस्थ  को  त्याग  कर  वैरागी  बन  गए  थे  ,  पर  उनके  मतानुसार  इस  मार्ग  का  अनुसरण  करने  का  अधिकार  उन्ही  को  है   जो  अपना  जीवन  धर्म  और  समाज  की  सेवा  के  लिए   उत्सर्ग  करने  की  भावना  रखते  हों   l   जो  लोग  सनक  या  मूर्खता  के  आवेश  में  आकर  साधु  बनते  हैं  उनके   लिए  अपने  ग्रन्थ  ' दासबोध '  में  वह  कहते  हैं ---- " पागल  लोग  घर - गृहस्थी  को  त्यागकर  केवल  दुःख  भोगते  हुए  मर  जाते  हैं   और  इहलोक  व  परलोक  दोनों  को  नष्ट  कर  लेते  हैं  l  ऐसे  लोग  आवेश  में  आकर  घर  से  तो  निकल  जाते   हैं  पर  लड़ने  और  झगड़ने  में  ही  उनके  जीवन  का  अंत  हो  जाता  है  l  उनके  पीछे  बहुत  से  लोग  लग  भी  जाते  हैं  ,  उनके  चेले  बन  जाते  हैं  ,  पर  गुरु  और  शिष्य  समान  रूप  से  अज्ञानी  बने  रहते  हैं  l  इसी  प्रकार  जो  किसी  आशा  अथवा  स्वार्थ   की  लालसा  से  घर  छोड़कर  चल  देते  हैं   वे  स्वयं  अनाचारी  बन  जाते  हैं  और   दूसरे   लोगों  में  अनाचार  फैलाते  हैं   l   लेकिन  जो   समाज  की   दशा  को  समझता  है  ,  देश  - काल  और  परिस्थिति  को  समझता  है  ,  उसे  भूमण्डल  में   कहीं  किसी  भी  बात  की  कमी  नहीं   हो  सकती  l