समर्थ गुरु रामदास ने संसार से पूर्ण विरक्त होते हुए भी राष्ट्र हित के बड़े - बड़े कामों को सिद्ध कराया l वे अपने एक कोपीन , खडाऊं और माला के अतिरिक्त अपने लिए कोई सामग्री नहीं रखते थे , पर हिन्दू जाति की रक्षा के लिए उन्होंने महाराज शिवाजी के राज्य - संस्थापन कार्य में हर तरह से सहयोग दिया l
यद्दपि समर्थ गुरु स्वयं हठपूर्वक गृहस्थ को त्याग कर वैरागी बन गए थे , पर उनके मतानुसार इस मार्ग का अनुसरण करने का अधिकार उन्ही को है जो अपना जीवन धर्म और समाज की सेवा के लिए उत्सर्ग करने की भावना रखते हों l जो लोग सनक या मूर्खता के आवेश में आकर साधु बनते हैं उनके लिए अपने ग्रन्थ ' दासबोध ' में वह कहते हैं ---- " पागल लोग घर - गृहस्थी को त्यागकर केवल दुःख भोगते हुए मर जाते हैं और इहलोक व परलोक दोनों को नष्ट कर लेते हैं l ऐसे लोग आवेश में आकर घर से तो निकल जाते हैं पर लड़ने और झगड़ने में ही उनके जीवन का अंत हो जाता है l उनके पीछे बहुत से लोग लग भी जाते हैं , उनके चेले बन जाते हैं , पर गुरु और शिष्य समान रूप से अज्ञानी बने रहते हैं l इसी प्रकार जो किसी आशा अथवा स्वार्थ की लालसा से घर छोड़कर चल देते हैं वे स्वयं अनाचारी बन जाते हैं और दूसरे लोगों में अनाचार फैलाते हैं l लेकिन जो समाज की दशा को समझता है , देश - काल और परिस्थिति को समझता है , उसे भूमण्डल में कहीं किसी भी बात की कमी नहीं हो सकती l
यद्दपि समर्थ गुरु स्वयं हठपूर्वक गृहस्थ को त्याग कर वैरागी बन गए थे , पर उनके मतानुसार इस मार्ग का अनुसरण करने का अधिकार उन्ही को है जो अपना जीवन धर्म और समाज की सेवा के लिए उत्सर्ग करने की भावना रखते हों l जो लोग सनक या मूर्खता के आवेश में आकर साधु बनते हैं उनके लिए अपने ग्रन्थ ' दासबोध ' में वह कहते हैं ---- " पागल लोग घर - गृहस्थी को त्यागकर केवल दुःख भोगते हुए मर जाते हैं और इहलोक व परलोक दोनों को नष्ट कर लेते हैं l ऐसे लोग आवेश में आकर घर से तो निकल जाते हैं पर लड़ने और झगड़ने में ही उनके जीवन का अंत हो जाता है l उनके पीछे बहुत से लोग लग भी जाते हैं , उनके चेले बन जाते हैं , पर गुरु और शिष्य समान रूप से अज्ञानी बने रहते हैं l इसी प्रकार जो किसी आशा अथवा स्वार्थ की लालसा से घर छोड़कर चल देते हैं वे स्वयं अनाचारी बन जाते हैं और दूसरे लोगों में अनाचार फैलाते हैं l लेकिन जो समाज की दशा को समझता है , देश - काल और परिस्थिति को समझता है , उसे भूमण्डल में कहीं किसी भी बात की कमी नहीं हो सकती l