' जो ईश्वर से भय खाता है उसे दूसरा भय नहीं सताता है | '
अध्यात्मवेताओं के अनुसार संकीर्ण स्वार्थ, वासना एवं क्षुद्र अहं से युक्त अनैतिक जीवन भय का प्रमुख कारण है | इन्ही के कारण व्यक्ति पापकर्म में लिप्त होता है और अंतरात्मा को कलुषित करता रहता है | इसी कारण चोर, डाकू, व्याभिचारी, अत्याचारी, आतंकवादी, भ्रष्टाचारी, अपराधी एवं राजद्रोही कभी चैन से निश्चिंत नहीं बैठ पाते । उन्हें हमेशा भय रहता है कि उनकी करतूत की पोल न खुल जाये । वे हमेशा समाजदंड, राजदंड और ईश्वरदंड से भयभीत रहते हैं और बाहर से बच भी जायें तो अंतरात्मा अंदर से सदा कचोटती रहती है ।
भय से मुक्ति का एकमात्र मार्ग ईश्वरीय अनुशासन को अपने जीवन में धारण करने में निहित है | हम ईश्वर की न्याय-व्यवस्था का सम्मान करें, उसके न्याय विधान से डरें और दुष्कृत्य को त्याग कर सत्कर्मों की राह पकड़ें ।
वस्तुत: ईश्वर की शरण, उनका ध्यान एवं सत्कर्मों की राह समस्त भय के समूल नाश का राजमार्ग है ।
एक बार एक भला आदमी बेकारी से दुखी था । उसकी यह दशा देखकर एक चोर ने उससे कहा--" मेरे साथ चला करो, चोरी में बहुत धन मिला करेगा । " वह बेकार आदमी तैयार हो गया, पर उसे चोरी आती नहीं थी । उसने साथी से कहा-- " मुझे चोरी तो आती नहीं है, करूँगा कैसे ? "
चोर ने कहा-- " इसकी चिंता न करो, मैं सब सिखा दूंगा । " दोनों एक किसान का खेत काटने गये । खेत गाँव से दूर जंगल में था । चोर ने नये साथी को खेत के किनारे खड़ा कर दिया कि वह निगरानी करता रहे कि कोई देख तो नहीं रहा है और खुद खेत काटने लगा ।
नये चोर ने थोड़ी ही देर में आवाज लगाई---- " भाई जल्दी उठो, यहाँ से भाग चलो, खेत का मालिक पास ही खड़ा देख रहा है, मैं तो भागता हूँ । "
चोर खेत काटना छोड़कर उठ खड़ा हुआ और भागने लगा । कुछ दूर जाकर दोनों खड़े हुए तो चोर ने साथी से पूछा-- " मालिक कहाँ था, कैसे देख रहा था । " उसने कहा-- " ईश्वर सबका मालिक है । इस संसार में जो कुछ है, उसी का है । वह हर जगह मौजूद है और सब कुछ देखता है । मेरी आत्मा ने कहा--" ईश्वर यहाँ भी मौजूद है और हमारी चोरी को देख रहा है । ऐसी दशा में हमारा भागना ही उचित था । "पहले चोर पर इसका कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि उसने हमेशा के लिये चोरी छोड़ दी ।
अध्यात्मवेताओं के अनुसार संकीर्ण स्वार्थ, वासना एवं क्षुद्र अहं से युक्त अनैतिक जीवन भय का प्रमुख कारण है | इन्ही के कारण व्यक्ति पापकर्म में लिप्त होता है और अंतरात्मा को कलुषित करता रहता है | इसी कारण चोर, डाकू, व्याभिचारी, अत्याचारी, आतंकवादी, भ्रष्टाचारी, अपराधी एवं राजद्रोही कभी चैन से निश्चिंत नहीं बैठ पाते । उन्हें हमेशा भय रहता है कि उनकी करतूत की पोल न खुल जाये । वे हमेशा समाजदंड, राजदंड और ईश्वरदंड से भयभीत रहते हैं और बाहर से बच भी जायें तो अंतरात्मा अंदर से सदा कचोटती रहती है ।
भय से मुक्ति का एकमात्र मार्ग ईश्वरीय अनुशासन को अपने जीवन में धारण करने में निहित है | हम ईश्वर की न्याय-व्यवस्था का सम्मान करें, उसके न्याय विधान से डरें और दुष्कृत्य को त्याग कर सत्कर्मों की राह पकड़ें ।
वस्तुत: ईश्वर की शरण, उनका ध्यान एवं सत्कर्मों की राह समस्त भय के समूल नाश का राजमार्ग है ।
एक बार एक भला आदमी बेकारी से दुखी था । उसकी यह दशा देखकर एक चोर ने उससे कहा--" मेरे साथ चला करो, चोरी में बहुत धन मिला करेगा । " वह बेकार आदमी तैयार हो गया, पर उसे चोरी आती नहीं थी । उसने साथी से कहा-- " मुझे चोरी तो आती नहीं है, करूँगा कैसे ? "
चोर ने कहा-- " इसकी चिंता न करो, मैं सब सिखा दूंगा । " दोनों एक किसान का खेत काटने गये । खेत गाँव से दूर जंगल में था । चोर ने नये साथी को खेत के किनारे खड़ा कर दिया कि वह निगरानी करता रहे कि कोई देख तो नहीं रहा है और खुद खेत काटने लगा ।
नये चोर ने थोड़ी ही देर में आवाज लगाई---- " भाई जल्दी उठो, यहाँ से भाग चलो, खेत का मालिक पास ही खड़ा देख रहा है, मैं तो भागता हूँ । "
चोर खेत काटना छोड़कर उठ खड़ा हुआ और भागने लगा । कुछ दूर जाकर दोनों खड़े हुए तो चोर ने साथी से पूछा-- " मालिक कहाँ था, कैसे देख रहा था । " उसने कहा-- " ईश्वर सबका मालिक है । इस संसार में जो कुछ है, उसी का है । वह हर जगह मौजूद है और सब कुछ देखता है । मेरी आत्मा ने कहा--" ईश्वर यहाँ भी मौजूद है और हमारी चोरी को देख रहा है । ऐसी दशा में हमारा भागना ही उचित था । "पहले चोर पर इसका कुछ ऐसा प्रभाव पड़ा कि उसने हमेशा के लिये चोरी छोड़ दी ।