9 November 2023

WISDOM -----

  पं  . श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  लिखते  हैं ---- " मनुष्य  के  पतन  का   कारण  उसका  अहंकार  है  l  संयम  से  स्वर्ग   जीते  जाते  हैं   लेकिन   संयमी  और  पराक्रमी  होने  के  साथ    उसे   निरहंकारी  भी  होना  चाहिए  l '     आचार्य श्री  लिखते  हैं ---- ' ज्ञानी  जब  अहंकारी  हो  जाता  है  , तब  उसके  अंत: करण  से  करुणा  नष्ट  हो   जाती  है  l  उस  स्थिति  में  वह   औरों  का  मार्गदर्शन  नहीं  कर  सकता  , केवल  मात्र  दंभ  प्रदर्शन  कर  सकता  है  l  जिससे  लोग  प्रकाश  लेने  की  अपेक्षा   पतित  होने  लगते  हैं   l  "  पुराण  की  एक  कथा  है  -----  देवता  और  असुरों  में  घोर  संग्राम  हो  रहा  था  l  असुरों  की  शक्ति  के  आगे  देवता  टिक  नहीं  पा  रहे  थे  l  तब  प्रजापति  ब्रह्मा  ने   मृत्यु  लोक   यानि  इस  पृथ्वी  के  एक  मनुष्य   महाराज   मुचुकुन्द  को  सेनापति  बनाया  , उन्हें  देव  सेना  के  संचालन   का  कार्यभार  सौंपा  l  प्रजापति  ब्रह्मा   का  कहना  था  --- ' संयमी  और  सदाचारी  व्यक्ति   मनुष्य  तो  क्या  , देव , दानव  सभी  को  परस्त  कर  सकता  है  l  देवता   भोग -विलास  और  असंयम  में  डूबकर  अपनी  सामर्थ्य   नष्ट  कर  रहे  हैं   जबकि  महाराज  मुचुकुन्द  ने  मनुष्य  होते  हुए  भी   संयम  और  पराक्रम  में  देवताओं  को  पीछे  छोड़  दिया  है  l '  अत"  प्रजापति  ब्रह्मा  के  आदेशानुसार  महाराज  मुचुकुन्द  सेनापति  थे   l  एक  महीने  तक  देवता  और  असुरों  के  बीच  घनघोर  युद्ध  हुआ  l  मुचुकुन्द  के  पराक्रम  के  आगे  असुरों  की  एक  न  चली  l  सारे  संसार  में  महाराज  मुचुकुन्द  के   शौर्य , संयम , पराक्रम  और  इन्द्रिय  विजय   की  प्रशंसा  के  स्वर  गूंज  रहे  थे   l  अपनी  प्रशंसा  सुनते -सुनते  मुचुकुन्द  के   मन  में  अहंकार  बढ़ने  लगा   , अब  उनके  पराक्रम  में  वो  चमक  नहीं  दिखाई  दे  रही  थी  ,  अब  अहंकारवश   सुरा    और  सुंदरियों  में  उनकी   शक्ति  नष्ट  हो  रही  थी   l   असुरों  का  पलड़ा  फिर  से  भारी  हो  रहा  था  l   प्रजापति  ब्रह्मा  ने  मुचुकुन्द  के  ह्रदय  में  पनपने  वाले  इस  अहंकार  के  विष -बीज  को  देख  लिया  l  उन्होंने  देवराज  इंद्र  को  बुलाकर   सब  समझाया  और  कहा  --- तुम  अतिशीघ्र  स्वामी  कार्तिकेय  को    सैन्य -संचालन  के  लिए  ससम्मान   राजी  कर  लो  l  असुरों  ने   मुचुकुन्द  को  बंदी  बनाकर  पृथ्वी  पर  जा  पटका  , तब  उन्हें  अपनी   भूल  का  पता  चला  l  प्रजापति  ब्रह्मा  उनके  पास  पहुंचे  और  कहा ---- '  तुम्हारी  साधना  अधूरी  रह  गई  , यह  उसी  का  फल  है  l  अब  तुम  फिर  से   शक्ति  की  साधना  करो  लेकिन  ध्यान   रखना   इस  बार  अहंकार  बिलकुल  भी  न  रहे  l '