ईश्वरीय विधान सृष्टि की स्वसंचालित प्रक्रिया है l सृष्टि नियमों से बंधी है , नियमों के खिलाफ चलने का तात्पर्य है दंड का भागीदार होना l ईश्वर क्षमा नहीं करते l यदि क्षमा का प्रावधान होता तो रावण परम शिव भक्त था , ब्राह्मण था , वेद - शास्त्रों का ज्ञाता था , तो ऋषिगणों का अपमान करने वाले , हिंसा और हत्या करने वाले रावण और उसकी आसुरी सेना को क्षमा कर दिया होता l भगवान राम स्वयं करुणाकर थे , उनकी करुणा संवेदना जगजाहिर है , फिर भी उन्होंने असुरों को क्षमा नहीं किया , सभी असुरों और आततायियों का अंत दिया l यदि वर्तमान युग की तरह अपराधियों को महिमामंडित करने और क्षमा करने की व्यवस्था तब होती तो कुम्भकरण , जयद्रथ, शिशुपाल , जरासंध , कंस आदि आततायियों के अत्याचार से धरती लहूलुहान हो गई होती l स्वयं भगवान ने इन अत्याचारियों का अंत करने के लिए धरती पर जन्म लिया l महाभारत का युद्ध ऐसे ही अत्याचारियों और अन्याय करने वालों को दण्डित करने के लिए लड़ा गया था l कृष्ण जी स्वयं भगवान थे , यदि क्षमा की व्यवस्था होती तो वे द्रोपदी का चीर हरण करने वाले दुर्योधन और दुःशासन समेत पूरे कौरवों को माफ करने के लिए अर्जुन से कह सकते थे परन्तु उन्होंने गीता का उपदेश देकर अर्जुन को युद्ध के लिए प्रेरित किया और अनीति का साथ देने वाले भीष्म पितामह , द्रोणाचार्य , कर्ण , कृपाचार्य आदि का भी अंत करवा दिया l अनीति का साथ देना भी अनीति करने जैसा है , इसलिए उसे भी बख्शा नहीं जाता l सृष्टि में ईश्वरीय विधान सर्वोपरि है l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी ने भी कहा है --- अपराधियों को कभी क्षमा नहीं करना चाहिए , दंड का भय न होने से अपराध की प्रवृति बढ़ती है l
16 October 2020
WISDOM -----
योगी वरदाचरण का नाम बंगाल में बड़ा विख्यात है l वे किसी को अपना शिष्य नहीं बनाते थे l योग की प्रक्रिया स्तर के अनुरूप बता देते थे l काजी नजरुल इसलाम जैसे प्रतिभाशाली को उनकी विशेष कृपा प्राप्त थी l वे प्रारम्भ में प्रेमगीत लिखते थे , पर योगिराज से मिलने के बाद उनकी दिशाधारा बदल गई l काजी नजरुल इसलाम को अपने प्रथम पुत्र का शोक था , वे उसकी आत्मा से मिलना चाहते थे , अपने मृत पुत्र के दर्शन करना चाहते थे l योगिराज ने समझाया , फिर भी वे न माने l मुसलिम धर्म में पुनर्जन्म या मरणोत्तर जीवन की मान्यताएं भिन्न है , उनका बालक आया , जब वे गुरु का नाम जप रहे थे l उनके चारों ओर खेलकर लौट गया l गुरु की आज्ञानुसार उन्होंने उसे स्पर्श नहीं किया l नजरुल जीवन भर योगिराज के शिष्य बने रहे और उनसे पाई शिक्षा को अपने काव्य में उतारते रहे l