पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी लिखते हैं ---- ' श्रम एक बहुत महत्वपूर्ण विभूति है l यह एक ऐसी कुदाल है , जिसके माध्यम से हम अपने व्यक्तित्व की विभूतियों को खोद सकते हैं l हमारा जीवन हमारे समक्ष जो भी परिस्थितियां , चुनौतियां प्रस्तुत करे , उनमे हमें घबराकर श्रम करने से पीछे नहीं हटना चाहिए l ऐसा करने पर ही हमारा जीवन , हमारी उन्नति का द्वार बनता है l जहाँ पर हम खड़े हैं , वही दरवाजा हमारे लिए प्रगति का द्वार बन जाता है l " आचार्य श्री लिखते हैं श्रम के साथ भावना और मनोयोग तथा बुद्धि और विवेक के जुड़ने पर ही श्रम का महत्वपूर्ण परिणाम मिलता है l जब श्रम सेवा में तब्दील हो जाता है तब यह और भी व्यापक और आध्यात्मिक बन जाता है और व्यक्तित्व की प्रगति के द्वार खोलता है l जब हम सेवा के माध्यम से श्रम करते हैं तो हम निजी जीवन को समृद्ध बनाते हैं और अपने व्यक्तित्व को व्यापक बनाते हैं l
28 June 2021
WISDOM -------
स्वर्गीय राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद एक बार कई राज्यों का दौरा करने के बाद रांची पहुंचे l वहां उनके पैर में दर्द होने लगा l पता चला कि उनके जूतों के तल्ले घिस गए हैं तथा कीलें ऊपर उभर आईं हैं l राजेंद्र बाबू अहिंसक जूतों का ही प्रयोग करते थे l उनके शिविर से दस मील दूर ही अहिंसक चर्मालय का केंद्र था l वहां सचिव को भेजकर नया जोड़ा मंगवाया l जूते में पाँव डालकर उन्होंने कीमत पूछी तो उत्तर मिला ---- ' उन्नीस रूपये l ' डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने पूछा --- " क्या इनसे सस्ते जूते नहीं हैं ? " उनके सचिव ने उत्तर दिया ---- " ग्यारह रूपये वाले जूते हैं , पर इनसे कमजोर तथा कठोर हैं l राजेंद्र बाबू को संतोष नहीं हुआ l उन्होंने कहा ----- " जब ग्यारह रूपये के जूते से काम चल सकता है , तब उन्नीस रूपये क्यों खर्च किये जाएँ ? इन्हे लौटाकर ग्यारह रूपये वाला जोड़ा मंगवाओ l " राष्ट्रपति जी वहां तीन दिन ठहरे l उन्होंने किसी आने - जाने वाले से जूते बदलवाए l सचिव को मोटर द्वारा जूते बदलने नहीं भेजा l उन्होंने कहा --- " जितने रूपये जूतों में बचाएंगे , उतने पैट्रोल में लग जायेंगे l " यद्द्पि बात छोटी - सी थी , परन्तु राष्ट्र की संपत्ति की एक - एक पाई का ध्यान रखने वाले राजेंद्र बाबू के लिए ये बहुत गंभीर बात थी l ये छोटी - छोटी बातें ही व्यक्ति को महान बनाती हैं l