7 January 2022

WISDOM ------

   विश्व  के  सर्वोच्च  वैज्ञानिक  आइंस्टीन  को  प्रयोगशाला  से  संन्यास  लेकर  एक   छोटे  से  विद्यालय  में  देखकर   जापानी  वैज्ञानिकों   के  प्रतिनिधि  मंडल  ने जानना  चाहा  कि   यह  उनकी  प्रतिभा  का  दुरूपयोग   तो  नहीं   ?  तब  आइन्स्टीन   ने  प्रतिभा  की  यथार्थता  को  समझाते  हुए  कहा ----- "  प्रतिभावान  वह  नहीं  जिसने  कोई  बड़ा  पद  हथिया  लिया  हो  ,  जिसकी  शारीरिक  और  बौद्धिक  क्षमताएं  बढ़ी - चढ़ी  हों  l   इसके  साथ  एक  शर्त   यह  भी   जुड़ी   है   कि   उसकी  दिशा  क्या  है   l   दिशा  विहीनता  की  स्थिति  में  व्यक्ति  क्षमतावान  तो  हो  सकता  है  ,  किन्तु  प्रतिभावान  नहीं   l   अंतर  उतना  ही  है  जितना  वेग  और  गति  में  ,  एक  दिशाहीन  है   दूसरा  दिशायुक्त  है   l   उन्होंने  भौतिक  विज्ञान   की  भाषा  में  समझाया   l   सामर्थ्य  दोनों  में  है  ,  क्रियाशील  भी  दोनों  हैं   पर  एक  को  अपने  गंतव्य  का   कोई  पता  - ठिकाना  नहीं  ,  और  दूसरा  प्रतिपल  गंतव्य  की  और  बढ़  रहा  है   l   प्रतिभा  वह  क्षमता  है  जिसकी  दिशा  सृजन  की  ओर   हो  l  जिसके  हर  बढ़ते  कदम  का स्वागत  मानवीय  मुस्कान  करे   l   सुख - सुविधा  के  साधन  हमारी  प्रथम  आवश्यकता  नहीं  हैं  ,  हमारी  प्राथमिकता  है  इस  बात  की  जानकारी  कि   जीवन  कैसे  जिया  जाये   ,  समूची  जिंदगी   अनेकों  सद्गुणों  की   सुरभि  बिखेरने  वाला   गुलदस्ता  बनें  l  "

WISDOM ------

   प्रकृति  हमें  अपने  तरीके  से  जीवन  जीने  की  कला  सिखाती  है  l   एक  व्यक्ति  ने  सुन  रखा  था  कि   आम  के  फल  में  बहुत  मिठास  होती  है  ,  उसने  सोचा  क्यों  न  घर  में  ही  आम  का  पेड़  लगाया  जाये  l   कहीं  से  एक  पौधा  ले  आया  ,  उसकी  बहुत  हिफाजत  की , खाद - पानी  दिया  ,  अपने  जीवन  का  बहुमूल्य  समय  उसकी  देख- रेख  में   ही  गुजार  दिया  ,  पेड़  बड़ा  हो  गया   लेकिन  उसमे  फल  नहीं  आये ,  उसमें  तो  कांटे  ही  कांटे  थे  ,  विशेषज्ञ  को  दिखाया  तो  पता  चला  कि   वह  तो  बबूल   का   पेड़  है  l   यही  स्थिति  संसार  में  है   l   आज  जो  संसार  में  षड्यंत्र  करते , अपराध , अत्याचार  और  अन्याय  करते   हैं  उनके  जीवन  को  गहराई  से  समझने  की  जरुरत   है ,  जो  बीज  , जिससे  यह  वृक्ष  बना  वह  वास्तव  में  क्या  था  ?   अधिकांश लोग  अपने  चेहरे  पर  एक  मुखौटा  लगाए  हैं  ,  जैसे  वे  दीखते  हैं  ,  वास्तव  में  वे  वैसे  हैं  नहीं  l   और  जैसे  वो  वास्तव  में  हैं  ,  वे  लक्षण   संस्कार  रूप  में  आगे  आने  वाली  पीढ़ियों  में  आ  जाते  हैं  l   पढ़ाई - लिखाई   से  व्यक्ति  सभ्य  तो  बन  जाता  है   लेकिन  जिस  पल  संस्कार  प्रबल  हो  जाते  हैं  तब  असली  रूप  सामने  आ  जाता  है  l यह  सत्य  महाभारत  में  भी  उजागर  हुआ  है  l  ऋषि  का  श्राप  मिलने  की  वजह  से  महाराज  पाण्डु   पितामह  भीष्म  के  संरक्षण  में  धृतराष्ट्र   को  सिंहासन  सौंपकर  वन  चले  गए  l  धृतराष्ट्र  की  आँखें  नहीं  थीं  तो  क्या  हुआ  ,  उनका  लालच , उनकी  कामनाएं  समाप्त     नहीं  हुईं  थीं  , उन्हें  सिंहासन  की  आदत  बन  गई  थी ,  यही  लालच  दुर्योधन  में  था  ,  वह  अपने  पिता  के  साथ  मिलकर    सुई  की  नोक  बराबर  भूमि  भी  पांडवों  को  देना  नहीं  चाहता  था  l    कौरव , पांडवों  को  गुरु  द्रोणाचार्य  ने  एक  जैसी  शिक्षा  दी  , पांडव  सत्य ,नीति   और  धर्म  के  पथ  पर  चले  लेकिन  दुर्योधन   पितामह  भीष्म , कृपाचार्य , महात्मा  विदुर ,  गांधारी  जैसी  पतिव्रता  माँ  के  संरक्षण  में  रहकर  भी  कौरव  वंश  के  समूल  नाश  का  कारण  बना  l