13 February 2019

WISDOM ---- स्वास्थ्य का सद्विचारों और प्राकृतिक जीवन शैली से गहरा संबंध है

  श्रीमद् भगवद्गीता  का श्लोक  है ----- युक्ताहारविहारस्य   युक्तचेष्टस्य   कर्मसु    l   युक्त स्वप्नावबोधस्य  योगो  भवति  दुःखहा  ll      इस  श्लोक   का  सरल  भावार्थ  इतना  ही  है   कि  अपने  खान - पान  ,   रहन - सहन ,  शयन - जागरण   एवं  श्रम  करने  में   औचित्य  का  ध्यान  रखना  चाहिए  l  इन  दोनों  सूत्र  का  सार  यही  है  कि    यदि  व्यवहार  में  प्रकृति  का  साहचर्य    एवं  चिंतन  में   परमात्मा  का  साहचर्य  बना  रहे    तो  फिर  स्वास्थ्य - संकट  नहीं  खड़े  होते   l    ये  दोनों  सूत्र  ऐसे  हैं  --- जिनमे  कहीं  भी  ,  किसी  भी  देश  में    स्वास्थ्य  - क्रांति  लाई  जा  सकती  है   l  
  पं.  श्रीराम  शर्मा  आचार्य जी  का मत  है ----   ' जिस  दिन  हम  प्रचलित  असंयम  को  सभ्यता  समझने  की  मान्यता  बदल  देंगे  ,  अपने  सोचने  का  ढंग  सुधार  लेंगे  ,  उसी  दिन  मानव  जीवन  पर  लगा  अस्वस्थता  का  ग्रहण  उतर  जायेगा   l  '
  वे  कहते  हैं  --- " यदि  रोगों  से  छुटकारा  पाना  है   तो  आज  और  आज  से  हजारों  साल  बाद   इसी मान्यता  को  अपनाना  पड़ेगा  कि  प्राकृतिक  आहार - विहार  अपनाने  के  अतिरिक्त   स्वस्थ  होने ,  नीरोग  रहने   और  दीर्घजीवन  जीने  का  अन्य  कोई  मार्ग  नहीं  है   l  "