15 January 2020

WISDOM ----- मृत्यु के साथ शत्रुता का अंत हो जाता है

    रामचरित  मानस  का   यह  प्रसंग  हमारी  संस्कृति  की  महानता  को  दिखता  है   ----  ब्रह्मर्षि  विश्वामित्र    राक्षसों  के  आतंक  से  यज्ञ  की  रक्षा  करने  के  लिए  राम  व  लक्ष्मण  को  अपने  साथ  ले  गए   l   विश्वामित्र  ने  उनसे   कहा --- 'मनुष्य  के  जीवन  को  बिना  किसी  कारण ध्वस्त  व  विनष्ट  करने  वाले  और  आतंक  फ़ैलाने  वाले , शिशुओं , युवाओं , कन्याओं  को  अपना  आहार  बनाने  वाले  राक्षस  वध  के  योग्य  हैं   ,  वे  दया  के  पात्र  नहीं  हैं  l  ',
   मारीच , सुबाहु  और  ताड़का  प्रमुख  थे   l   ताड़का  मायाविनी  थी , उसने  विश्वामित्र  पर  महाशूल   का  संघातक   प्रहार  किया  l  भगवान   राम  ने  अपने  अमोघ  बाण  से   महाशूल   को  छिन्न - भिन्न  कर  दिया  ,  अब  वह  मायावी  राम  की  और  दौड़ी    तब  भगवन  राम  ने  अपने  बाण  से  ताड़का  का  वध  कर  दिया  l
                         ताड़का  का  वध  होते  ही  मारीच  और  सुबाहु  तो  भाग  खड़े  हुए  ,  उन्हें  ताड़का  के   अंतिम  संस्कार  की  कोई  चिंता  नहीं  थी  ,  यह  चिंता  राम  को  थी  ,  उन्होंने  विश्वामित्र  से  कहा ---- " गुरुदेव  ! ताड़का  के  जीवन  के  साथ  ही  उसके  दुष्कर्मों  और  शत्रुता  का  अंत  हो  गया  l   अब  हमें  विधिपूर्वक  उसका  अंतिम  संस्कार  संपन्न  करना  चाहिए   l 
 अपने  अग्रज   का  संकेत  समझकर  लक्ष्मण जी  ने  वन  से  काष्ठ  लेकर  अंतिम  संस्कार  की   तैयारी   की  l   चिता  की  व्यवस्था  हो  जाने  पर  दोनों  भाइयों  ने   ताड़का  की  मृत  देह  को  चिता    पर  रखा   l   अंतिम  संस्कार  के  प्रत्येक  कृत्य  में  राम  का  उसके  प्रति  स्नेह  व  अपनत्व  झलक  रहा  था  ,  ऐसा  लग  रहा  था   जैसे  कि   वह  कोई  उनकी  सगी - सम्बन्धी  हो   l  उन्होंने  बड़े  धैर्य  और  शांति  से   अंतिम  संस्कार  की  सभी  विधियां  संपन्न  कीं ,  कहीं  कोई  त्रुटि  नहीं  रहने  दी  l  फिर  पास  के  जल - स्रोत  से स्नान  कर  विश्वामित्र  के  साथ  आगे  बढे