रामचरित मानस का यह प्रसंग हमारी संस्कृति की महानता को दिखता है ---- ब्रह्मर्षि विश्वामित्र राक्षसों के आतंक से यज्ञ की रक्षा करने के लिए राम व लक्ष्मण को अपने साथ ले गए l विश्वामित्र ने उनसे कहा --- 'मनुष्य के जीवन को बिना किसी कारण ध्वस्त व विनष्ट करने वाले और आतंक फ़ैलाने वाले , शिशुओं , युवाओं , कन्याओं को अपना आहार बनाने वाले राक्षस वध के योग्य हैं , वे दया के पात्र नहीं हैं l ',
मारीच , सुबाहु और ताड़का प्रमुख थे l ताड़का मायाविनी थी , उसने विश्वामित्र पर महाशूल का संघातक प्रहार किया l भगवान राम ने अपने अमोघ बाण से महाशूल को छिन्न - भिन्न कर दिया , अब वह मायावी राम की और दौड़ी तब भगवन राम ने अपने बाण से ताड़का का वध कर दिया l
ताड़का का वध होते ही मारीच और सुबाहु तो भाग खड़े हुए , उन्हें ताड़का के अंतिम संस्कार की कोई चिंता नहीं थी , यह चिंता राम को थी , उन्होंने विश्वामित्र से कहा ---- " गुरुदेव ! ताड़का के जीवन के साथ ही उसके दुष्कर्मों और शत्रुता का अंत हो गया l अब हमें विधिपूर्वक उसका अंतिम संस्कार संपन्न करना चाहिए l
अपने अग्रज का संकेत समझकर लक्ष्मण जी ने वन से काष्ठ लेकर अंतिम संस्कार की तैयारी की l चिता की व्यवस्था हो जाने पर दोनों भाइयों ने ताड़का की मृत देह को चिता पर रखा l अंतिम संस्कार के प्रत्येक कृत्य में राम का उसके प्रति स्नेह व अपनत्व झलक रहा था , ऐसा लग रहा था जैसे कि वह कोई उनकी सगी - सम्बन्धी हो l उन्होंने बड़े धैर्य और शांति से अंतिम संस्कार की सभी विधियां संपन्न कीं , कहीं कोई त्रुटि नहीं रहने दी l फिर पास के जल - स्रोत से स्नान कर विश्वामित्र के साथ आगे बढे
मारीच , सुबाहु और ताड़का प्रमुख थे l ताड़का मायाविनी थी , उसने विश्वामित्र पर महाशूल का संघातक प्रहार किया l भगवान राम ने अपने अमोघ बाण से महाशूल को छिन्न - भिन्न कर दिया , अब वह मायावी राम की और दौड़ी तब भगवन राम ने अपने बाण से ताड़का का वध कर दिया l
ताड़का का वध होते ही मारीच और सुबाहु तो भाग खड़े हुए , उन्हें ताड़का के अंतिम संस्कार की कोई चिंता नहीं थी , यह चिंता राम को थी , उन्होंने विश्वामित्र से कहा ---- " गुरुदेव ! ताड़का के जीवन के साथ ही उसके दुष्कर्मों और शत्रुता का अंत हो गया l अब हमें विधिपूर्वक उसका अंतिम संस्कार संपन्न करना चाहिए l
अपने अग्रज का संकेत समझकर लक्ष्मण जी ने वन से काष्ठ लेकर अंतिम संस्कार की तैयारी की l चिता की व्यवस्था हो जाने पर दोनों भाइयों ने ताड़का की मृत देह को चिता पर रखा l अंतिम संस्कार के प्रत्येक कृत्य में राम का उसके प्रति स्नेह व अपनत्व झलक रहा था , ऐसा लग रहा था जैसे कि वह कोई उनकी सगी - सम्बन्धी हो l उन्होंने बड़े धैर्य और शांति से अंतिम संस्कार की सभी विधियां संपन्न कीं , कहीं कोई त्रुटि नहीं रहने दी l फिर पास के जल - स्रोत से स्नान कर विश्वामित्र के साथ आगे बढे