संत तिरुवल्लुवर के पास एक व्यक्ति पहुंचा , बहुत परेशान था वह l उसने संत से कहा ---- "भगवन ! मुझे मन की शांति दें l भारत का कोई ऐसा मठ , आश्रम , मंदिर नहीं , जहाँ मैं न गया होऊं l ऐसे कोई संत नहीं , जिनके चरणों में मैंने माथा न टेका हो , पर मुझे शांति न मिल सकी l " संत तिरुवल्लुवर ने उत्तर में पास में पड़ा हुआ एक सिक्का उठाया और उसे अपनी मुट्ठी में रख लिया और फिर उस व्यक्ति से कहा ---- " क्या तुम इस सिक्के को बाहर बाग़ से ढूंढ कर ला सकते हो l ' वह व्यक्ति आश्चर्य से बोला --- " भगवन ! जो आपके हाथ के भीतर है , वह मुझे बाहर कैसे मिलेगा ? " संत तिरुवल्लुवर बोले ---- " ! पुत्र ! तुम शांति भी बाहर क्यों ढूंढ रहे हो , अपने मन को स्थिर करो l जब मन स्थिर हो जायेगा तो यही शांति तुम्हारे भीतर मिल जाएगी l " आज संसार की सबसे बड़ी समस्या यही है लोगों के मन में शांति नहीं है l जिसके पास जितना सुख , वैभव , और शक्ति है , वह उतना ही अशांत है l जब व्यक्ति स्वयं अशांत होता है तब वह अपने आसपास के वातावरण को भी अशांत कर देता है l