30 June 2018

WISDOM -------- सकारात्मक कार्यों में व्यस्तता से ही समाज में सुख - शांति संभव है

कहते  हैं --- ' खाली  मन  शैतान  का  घर  l '   फिर  यदि  इस  शैतान  को  6 - 8  घंटे  परिश्रम  किये  बिना   पर्याप्त  धन  मिल  जाये  तो  वह  शैतानियत  पर  उतर  आता  है   l   बिना   मेहनत  का  धन   यदि  व्यक्ति  को  मिल  जाये  ,  जिसमे  विवेक  नहीं  है   तो  ऐसा  पैसा   उसमे  नशा , शराब , व्यभिचार   आदि  बुरी  आदतों  को   बढ़ाता    है   ,  इसमें  बाधा  आने  पर  व्यक्ति  अपराध  की  और  बढ़ने  लगता  है  l 
  जब  कभी   कोई  भी   व्यवस्था   अपनी  जनता  को  खुश  करने  के  लिए   विभिन्न  योजनाओं  के  अंतर्गत  बिना   परिश्रम  के  बड़ी - बड़ी  धनराशि  देती  है   तो  इससे  लोगों  में  आलस  की  प्रवृति  बढ़ती  है    और  यह  आलस  ही  तमाम  दुष्प्रवृतियों  की  जड़  है   l  
   जब  अमेरिका  में  महामंदी  का  दौर  था   उस  समय   अमेरिका  के  तत्कालीन  राष्ट्रपति  ने  इस  महामंदी  से  निपटने  के  लिए   महान  अर्थशास्त्री  प्रो,  कीन्स  से  परामर्श  किया  l  तब  प्रो. कीन्स   ने  कहा  था  कि  मंदी  के  इस  भयानक  दौर  में  जब  भीषण  बेरोजगारी  है ,  बाजार  में  निराशा  का   वातावरण  है   ऐसे  समय  में  सरकार  को  विभिन्न  सार्वजनिक  निर्माण  कार्यों  में  धन  खर्च  ( विनियोग ) करना  चाहिए   जिससे  लोगों  को  रोजगार  मिले ,  आय  प्राप्त  हो  ,  इससे  उपभोग  और  बचत  दोनों  बढ़ेंगे  और  मंदी  दूर  होगी  l
   प्रो, कीन्स  ने  एक  महत्वपूर्ण  सलाह  जो  दी  वो  यह  कि  यदि  सरकार  के  पास  कोई  उत्पादक  कार्य  न  हों    तो    दिन  भर  गड्ढे  खुदवाए  और  शाम  को  उन्हें  भरवा  दे   l   इसका  अर्थ  यही  है  कि   बिना  परिश्रम  के  कोई  पैसा  नहीं  दिया जाये   l  जब  दिन  भर   एक  निश्चित  समय   तक   परिश्रम  करें  तभी  उन्हें   वेतन , मजदूरी  मिले  तभी  उसका  सकारात्मक  दिशा  में  सदुपयोग  संभव  है   l  

29 June 2018

WISDOM ------ मानसिकता का परिष्कार अनिवार्य है l

समाज  की , संसार  की   जो भी समस्या  हों ,   जब  तक  लोगों  की  मानसिकता  परिष्कृत  नहीं  होगी   ,  उनका  उचित  व   स्थायी  हल  संभव  नहीं  है   l  जब  तक  लोगों  के  मन  में  ईर्ष्या - द्वेष ,  छल - कपट  ,  लोभ - लालच  आदि   बुराइयाँ  हैं   ,  समस्याओं  का  हल  संभव  नहीं  है   l 
       एक  सधा  हुआ    ऊंट   था   l  नक्कारखाने  का  कोई  उत्सव  होता  तो   उसकी  पीठ  पर  नगाड़ा  लादकर  चोबदार  उसे  बजाता  हुआ  चलता  l  ऊँट  बहुत  बूढ़ा  हो  गया  तो   काम  का  न  रहा   इसलिए  उसे  खुला  छोड़  दिया  गया   l   राजा  का  होने  से  उसे  कोई  मारता  नहीं  था   l  ऊंट  एक  दिन  बुढ़िया  के  सूखते  हुए  अनाज  को  खाने  लगा   l         बुढ़िया  ने  सूप  बजाकर  भगाना  चाहा  l   ऊंट  ने  कहा --- " जन्म  भर  नगाड़ों  की  आवाज  सुनता  रहा  हूँ  ,  तुम्हारे  सूप  से  क्या  डरने  वाला  हूँ   l  " 
  जिस   पर  समाज  को  दिशा  देने  की  जिम्मेदारी  है ,  अपने  आचरण  से   समाज  को  शिक्षित  करना  है  ,  वे  भी   अपने  जीवन  भर  के  संस्कारों  से  ग्रसित  हैं   l 

28 June 2018

संत कबीर --- मजहब और जाति के नाम पर विभाजित समाज को प्रेम का पाठ पढ़ाया l

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26 June 2018

WISDOM ----- विलासिता और वैभव व्यक्ति को आंतरिक रूप से कमजोर बना देते हैं

  नादिरशाह  करनाल  के  मैदान  में   मुहम्मद शाह  की  सेना  को  परास्त  कर  दिल्ली  पहुंचा  l  वहां  दोनों  ही  बादशाह  एक  ही  सिंहासन  पर  आसीन  हुए   l  नादिरशाह  ने  मुहम्मद शाह  से  पीने  के  लिए  पानी  माँगा  ---- और  वहां  बजने  लगा  नगाड़ा  ,  जैसे  किसी  उत्सव  की  शुरुआत  होने  जा  रही  हो  l
  दस - बारह  सेवक  उपस्थित  हो  गए  l  किसी  के  हाथ  में  रुमाल  था  तो  किसी  के  हाथ  में  खासदान  l  दो  तीन  सेवक  चांदी  के  बड़े  थाल  को  लेकर  आगे  बढ़े,  उसमें  माणिक  का  कटोरा  जल  से  भरा  रखा  था  l  और  दो  सेवक  कपड़े  से  उस  परात  को  ढके  हुए  बराबर  चल  रहे  थे   l
                  नादिरशाह  की  समझ  में  यह  नाटक  न  आया  ,  वह  घबरा  गया  कि  पानी  माँगा  था  और  यह  क्या  तमाशा  होने  जा  रहा  है  l   उसने  पूछा ---- " यह  सब  क्या  हो  रहा  है  ? " 
मुहम्मद शाह  ने  उत्तर  दिया ---- " आपके  लिए  पानी  लाया  जा  रहा  है  l  "  नादिरशाह  ने  ऐसा पानी  पीने  से  साफ  इनकार  कर  दिया  l  उसने  तुरंत  अपने  भिश्ती  को  आवाज  लगाई  l  भिश्ती  हाजिर  हुआ  ,  नादिर  ने  अपना  लोहे  का  टोप  उतार कर  भिश्ती  से  पानी  भरवाकर  प्यास  बुझाई  l  
  पानी  पीने  के  बाद   बड़े  गंभीर  स्वर  में  उसने  कहा  ----- " यदि  हम  भी  तुम्हारी  तरह  पानी  पीते  तो  ईरान  से  भारत   न  आ  पाते  l  "   
  आलसी  और  विलासी  जीवन   व्यक्ति ,  समाज  और  राष्ट्र  सभी  के  लिए  खतरा  है  l  

25 June 2018

WISDOM ----- गुरु कृपा से अहंकार नष्ट हुआ

     सूखे  से  संकट ग्रस्त  जनता  की  सहायता  के  लिए  शिवाजी  एक  बाँध  बना  रहे  थे  l   मजदूरी  कर  के  सहस्त्रों  व्यक्तियों   का  जीवन- यापन    हो  रहा  था  l   शिवाजी  ने  एक   दिन  यह  देखा  तो  गर्व  से  फूले  न  समाये   कि    वे  ही  इतने  लोगों  को  आजीविका  दे  रहे  हैं  l   यदि  वे  ये  प्रयास  न  करते  तो  उतने  लोगों  को  भूखे  मरना  पड़ता  l 
  समर्थ  गुरु  रामदास  उधर  से  निकले   l  शिवाजी  ने  उनका  सम्मान - सत्कार  किया  और  अपने  उदार   अनुदान  की  गाथा  कह  सुनाई  l  समर्थ  उस  दिन  तो  चुप  हो  गए  ,  पर  जब  दूसरे  दिन  चलने  लगे  तो  शांत  भाव  से   एक  पत्थर  की  ओर  संकेत  कर  के   शिवाजी  से  कहा  ---- "  इस  पत्थर  को  तुड़वा  दो  l " 
 पत्थर  को  तोड़ा  गया  तो  उसके  बीच  एक  गड्ढा  निकला  l  उसमे  पानी  भरा  था   और  एक  मेंढकी  कल्लोल  कर  रही  थी  l
  समर्थ  ने  शिवाजी  से  पूछा ---- " इस  मेंढ़की  के  लिए  संभवतः  तुमने  ही  पत्थर  के  भीतर   यह  जीवन  रक्षा   की  व्यवस्था  की  होगी   ? "
  शिवाजी  का  अहंकार  चूर - चूर  हो  गया   और  वे  समर्थ  गुरु  के  चरणों  में  गिर  पड़े  l  समर्थ  गुरु  रामदास  ने  उन्हें  अपनी  भूमिका  का  बोध  कराया  और  आततायियों  से  संघर्ष  हेतु  नीति  बनाने  के  लिए  बाध्य  किया  l  समर्थ   गुरु  का  मार्गदर्शन   और  कृपा  ही  थी  जिसने  शिवाजी  को   समय - समय  पर   सही  सूत्र  देकर   आपति  से  बचाया  व  श्रेय  पथ  पर   अग्रसर  किया   l  

24 June 2018

WISDOM -----

 हर  व्यक्ति  के  अन्दर  अनंत  सामर्थ्य  भरी  पड़ी  है  ,  वह  चाहे  तो   उसके  माध्यम  से  ,  जो  भी  असंभव  दीख  पड़ता  है  वह  कर  के   दिखा  दे  l  
  श्रीमद्भगवद्गीता  में  कहा  गया  है  कि  मनुष्य  स्वयं  अपना  मित्र  है   और  स्वयं  ही  अपना  शत्रु  है  l 
 मनुष्य  स्वयं  का  मित्र  बनकर   सकारात्मक   व   आशावादी     सोच  से   और  अपने  आत्मबल  को  बढाकर  ,  जीवन  की  हर  प्रतिकूलताओं  से  जूझकर  सफल  हो  सकता  है  l 
  लेकिन  आज  मनुष्य  परावलम्बी  हो  गया  है   l  अपने  जीवन  की  नाव  ढोने  के  लिए  दूसरों  से  आशाएं ,  अपेक्षा  रखने  वाला   l   अपने  स्वार्थ  के  लिए   व्यक्ति  ने  अध्यात्म  की  व्याख्या  भी  इसी  प्रकार  कर  ली  कि --- पात्रता  के  विकास  पर  ध्यान  न  देकर  केवल   बाह्य    आडम्बर  और  कर्मकांड  कर  के  ही  ईश्वरीय  अनुदान  मिल  जाएँ  l
   शबरी  के  घर  भगवान  गए   और  उससे मांग - मांग कर  झूठे  बेर   खाए  l   वह  अशिक्षित  थी  और  साधना - विधान  से  अपरिचित  थी  फिर  भी  उसे  इतना  श्रेय   मिला  l   भक्तों  ने  मातंग  ऋषि  से  पूछा  --- " हम  लोग  उस  श्रेय  और  सम्मान  से  क्यों  वंचित  रहे  ? "
ऋषि  ने  कहा ---- "  हम  लोग  पूजन  मात्र  में  अपनी  सद्गति  के  लिए  किए  प्रयासों  को  भक्ति  मानते  रहे   जबकि  भगवान  की  द्रष्टि  में  सेवा - साधना  श्रेष्ठ  है  l  जिसमे  छल - कपट  नहीं  है ,  अहंकार  नहीं  है  वही  भगवन  को  प्रिय  है  l  शबरी  ही  है  ,  रात - रात  भर  जागकर  आश्रम  से  लेकर  सरोवर  तक  कंटीला  रास्ता  साफ  करती  रही  और  सज्जनों  का  पथ  प्रशस्त  करने  के  लिए    अपना  अविज्ञात ,  निरहंकारी  ,  भाव भरा  योगदान  प्रस्तुत  करती  रही   l  "

23 June 2018

WISDOM ----- पाप और पुण्य

    कहते  हैं   विधाता  के  पास  प्रत्येक  मनुष्य  के  दो  घड़े  होते  हैं ---- एक  पाप  का  घड़ा  और  एक  पुण्य  का  घड़ा  l 
  कोई  व्यक्ति   पिछले  जन्मों  में  और  इस  जन्म  में   श्रेष्ठ  कर्म  करता  है  ,  इससे  उसका  पुण्य  का  घड़ा  भर  जाता  है    फिर  इस  पुण्य  का  भोग  करने  के  लिए  उसे  मान - सम्मान ,  पद - प्रतिष्ठा ,  धन - दौलत  सब  कुछ  मिलता  है   l  यह  सब  पा  कर  व्यक्ति  अहंकारी  हो  जाता  है ,  और  अधिक  सुख - सम्मान  पाने  की  लालसा  बढ़ती  जाती  है  l  इस  लालसा - लोभ  व  अहंकार  में  वह  ऐसा  कुछ  कर  गुजरता  है   जो  पाप  कर्म  हो  जाता  है  l  एक   ओर  पुण्य  के  फलस्वरूप  मिलने  वाला  सुख  भोगने  से  पुण्य  का  घड़ा  खाली  होता  जाता  है   तो  दूसरी  ओर  लालच  और  अहंकार  के  कारण  दूसरों  को  पीड़ित  करने ,  अत्याचार  व  अनीति  करने  से  पाप  का  घड़ा  भरने  लगता  है   l  जब  पाप  का  घड़ा  भर  जाता  है   तो  उसका  भोग   भोगने  के  लिए  पीड़ा ,  कष्ट - कठिनाइयों  का  समय  शुरू  हो  जाता  है  l   इस  तरह  उत्थान - पतन ,  सुख - दुःख  का  यह  चक्र  चलता  रहता  है  l 
  जो    जागरूक  होते  हैं ,  पाप  और  पुण्य  की  गहराई  को   समझते  हैं ,  वे  कभी  अहंकार  नहीं  करते   अपनी  शक्ति ,  अपनी  धन - संपदा  का  सदुपयोग  करते  हैं  ,  दुःखी   और  पीड़ित  व्यक्ति  की  पीड़ा  निवारण  के  कार्य  करते  हैं   l  ऐसा  करने  वाले  व्यक्तियों  का  उत्थान  के  बाद  पतन  नहीं  होता    क्योंकि     पुण्यों  के  फलस्वरूप  जो  सुख वैभव  मिला  ,  उसका  उपयोग  करने  से  जो   पुण्य   खर्च  हो  जाते  हैं  अथवा  पुण्य का  घड़ा  खाली  होता  है ,    वह  शक्ति  और  संपदा  के  सदुपयोग  से  पुन:  भरता  जाता  है  l 
      अब  ये  मनुष्य  का  विवेक  है ,  ईश्वर  ने  उसे  चयन  की  स्वतंत्रता  दी  है  ---- सफलता  की  ऊँचाइयों  पर   बने  रहना  पसंद  है  या  धड़ाम   से  नीचे  गिरना    पसंद  है   l       प्रकृति  में  क्षमा  का  प्रावधान  नहीं  होता   l 

22 June 2018

WISDOM ------ हरियाली को मनुष्य जीवन में सहचरी का स्थान मिलना चाहिए

  '  सहारा  कान्क्वेस्ट '   नामक  ग्रन्थ  के  लेखक  सेंटवार्व  बेकर  ने   सहारा  रेगिस्तान  की   20  लाख वर्गमील  भूमि  के  सम्बन्ध  में  लम्बा  और  गहरा  सर्वेक्षण  कर  के  लिखा  है  कि  यह  क्षेत्र  किसी  समय  बहुत  ही  हरा - भरा  था  ,  पर  लोगों  ने  नासमझी  से   उसे  उजाड़  दिया  l   प्रतिवर्ष  लगभग  30  वर्ग  किलोमीटर  हरी - भरी  जमीन  उस  रेगिस्तान  की  चपेट  में  आकर  सदा - सर्वदा  के  लिए  मृतक  बन  जाती  है  l 
  जिस  देश  के  लोग  जागरूक  हो  गए   वे   अपने    क्षेत्र  के  रेगिस्तानी  भाग  को  हरा - भरा  बनाते  हैं  जैसे  इजराइल   के  लोगों  ने   अपने  क्षेत्र  के  दो -तिहाई  रेगिस्तानी  भाग  को  हरा - भरा  बनाने  का  संकल्प  लिया  और   10  करोड़  से  भी  ज्यादा  नए  पौधे  लगाये  l
  द्वितीय  महायुद्ध  के  बाद  एक  बार  अमेरिका  के  राष्ट्रपति  रूजवेल्ट   हवाई  जहाज  से  मिस्र  की  भूमि  से  गुजरे   l  उन्होंने  लेबनान  के  इतिहास प्रसिद्ध  ' सिडार '  के  वन्य  प्रदेश  की  बड़ी  प्रशंसा  सुनी  थी  ,  जब  नीचे  झांक  कर  देखा  तो   नंगे  पहाड़  खड़े  हैं  ,  मुश्किल  से  दस - बीस  वृक्ष  दीख  रहे  थे  l  इसकी  विस्तृत  जानकारी  प्राप्त  करने  पर  उन्हें  बहुत  दुःख  हुआ   l  उनके  आदेश  पर   राष्ट्र संघ  पर   अमेरिकी  प्रतिनिधियों  ने  दबाव  डाला    कि  विश्व  खाद्य  और  कृषि  संगठन  में    वन - संपदा   के  संरक्षण  को  भी    महत्वपूर्ण  स्थान  मिलना  चाहिए   l   यह  प्रयास  सफल  रहा  और  राष्ट्र संघ    द्वारा  किये  जाने  वाले  प्रयत्नों   के  अंतर्गत   एक  बड़ी   आर्थिक   सहायता   देकर   लेबनान  में  नए  सिरे  से  ' सिडार  वन  ' लगाये  गए  और  हजारों  एकड़  भूमि  फिर  से  हरी - भरी  बनाई  गई   l  
  विशेषज्ञों  का  कहना  है ----- यदि  हम  वन - संपदा  को  गँवा  देंगे    तो  फिर  शुद्ध  सांस  का  अभाव  इतना  जटिल  हो  जायेगा  कि  उसका  समाधान   अन्य  किसी  उपाय  से   संभव  न  हो  सकेगा  l '

21 June 2018

WISDOM ------

  अंगुलिमाल  कुख्यात  डाकू  था   l  उसने  भगवान  बुद्ध  के  सामीप्य  को  पा  कर  भिक्षु  धर्म  ग्रहण  कर  लिया  l  बुद्ध  ने  उसे  प्रव्रज्या  पर  भेजा  l  जब  वो  भिक्षा  मांगने  पहुंचा   तो  गाँव  के  लोगों  ने  उसे  पहचान  कर   उस  पर  पत्थरों  की  बरसात  शुरू  कर  दी   l   अंगुलिमाल  बुरी  तरह  घायल  होकर   आश्रम  लौटा   l  बुद्ध  उसकी  स्थिति  देखकर  बोले  --- " वत्स  !  ये  ठीक  है  कि  अब  तुम  अहिंसा  के  पथ  को   स्वीकार  कर  चुके  हो  ,   पर  हिंसा  को  उद्दत      अन्य    व्यक्तियों  से    रक्षार्थ  तुम   अपना  कठोर  स्वरुप   तो  कर  सकते  थे   l  यदि  तुम  केवल    क्रुद्ध    आँखों   से  उन्हें  देख  लेते  तो  तुम्हारी  ये  दशा  नहीं  होती  l " 
  अंगुलिमाल   बोला  ----- " प्रभु  मैं  ये  सोच  कर  कुछ  नहीं  बोला   कि  कल   मैं  बेहोश  था ,  आज  ये  बेहोश  हैं  l  कौन  किससे  किसकी  रक्षा  करे   ?  "

20 June 2018

WISDOM ------ पुत्र या पुत्री नहीं , मनुष्य के कर्म ही उसके सहायक होते हैं l

    हमारा  समाज  पुरुष  प्रधान  है  l  नारी  की  अपेक्षा  पुरुष  का  महत्व  अधिक  है  l  अधिकांश  परिवारों  में  आज  भी  पुत्र  होने  पर  खुशियाँ  मनाई  जाती  हैं   और  पुत्री  होने  पर  मायूसी  छा  जाती  है  l   हमारे  देश  की  अवरुद्ध  प्रगति  का  एक  कारण  यह  भी  है   कि  महिलाओं  के  कल्याण  की  अनेक  योजनाएँ  बनने  के  बावजूद  पुरुषों  की  मानसिकता ,  उनकी  संकीर्ण  सोच   नारी  की  प्रगति  में  अनेक  बाधाएं  उपस्थित  करती  है  l    आज  की  सबसे  बड़ी  जरुरत  है  कि  लड़के  और  लड़की  में  भेद  न  कर  के  उन्हें  अच्छे  संस्कार  दें   l  यदि  दोनों  में  से  कोई  भी  संस्कारवान  नहीं  है   तो  वह  अपने  परिवार  व  समाज  के  लिए  अभिशाप  की  तरह  है   l  
  इस  संदर्भ  में   एक  पौराणिक  कथा  है ------  मंकनक  नामक  एक  साधक   शिव  भक्त  था  l   लेकिन  उसकी  अनेक  सांसारिक  इच्छाएं  थीं  l अत:  उसने  शुभ  दिन   और  शुभ  मुहूर्त  पर  भगवान  शिव  की  आराधना  शुरू  की  l  आखिर  भगवान  भोलेनाथ  प्रसन्न  हुए , उसके  सामने  प्रकट  हुए  और  कहा --- " वर  मांगो  वत्स ! "   मंकनक   ने  उनके  सामने  पुत्र  की  कामना  प्रकट  की  l
 इस  पर  भगवान  शिव  ने  कहा  --- "  तुमने  तपस्या  पूर्ण  की  है  ,  इसलिए  वर  माँगना   तुम्हारा  नैसर्गिक  अधिकार  है ,  लेकिन  पुत्र  किसलिए ,  पुत्री  क्यों  नहीं  ?
इस  पर  मंकनक   ने  कहा  ---- " पुत्र  आगे  चलकर  सहायक  बनता  है  , जबकि  पुत्री  तो  विदा  होकर  ससुराल  चली  जाती  है  l  "
 यह  उत्तर  सुनकर  भगवान  शिव  बोले ---- " वत्स  मंकनक  !  तुम  तपस्वी   हो ,  तुम्हे  यह  बोध  होना  चाहिए  कि  सहायक  तो  मनुष्य  के  कर्म  होते  हैं  ,  कोई  व्यक्ति  विशेष  किसी  की  सहायता  नहीं  करता  l  घर  में  पुत्र  हो  या  पुत्री ,  उसे  संस्कार  देकर  , शिक्षा  प्रदान  कर  के  ,  उसके  व्यक्तित्व  को  समुन्नत  बनाकर  समाज  को  अर्पित  करना   माता - पिता  का  दायित्व  है  l  अपने  बच्चों  से  प्रतिदान  की  आशा  तो   पशु - पक्षी  भी  नहीं  करते ,  फिर  तुम  तो  मनुष्य  हो   l  "  
     भगवान   भोलेनाथ  की  बातों  से  मंकनक    को    जीवन    की    दिशा  मिली   l    यह  कथा  मनुष्य  समाज  को  यह  प्रेरणा  देती  है  कि  व्यक्ति  को  किसी  के  सहारे  न  चलकर   अपने  कर्मों  के  सहारे  चलना  चाहिए   l    पुत्र  व  पुत्री  में  भेदभाव  न  कर के    उन्हें  अच्छे  संस्कार  देना  चाहिए   l  

19 June 2018

WISDOM ----- जीवनशैली और विचारों में परिवर्तन से ही पिछड़े , दलित और ऐसे किसी समाज का उत्थान संभव है l

    किसी  भी   पिछड़े  समाज   या  ऐसा  कोई  भी  समाज  जिसमे   असंतोष  है  , उपेक्षित  रहा  है ,  उसे  मुख्य  धारा  में  लाने  के  लिए  केवल  सरकारी  सहायता  ही  पर्याप्त  नहीं  हैं  l  उस  समाज  के  लोगों  की  जीवनशैली  में   परिवर्तन  करना  आवश्यक  है   l   जीवनशैली  में  परिवर्तन  करना  आसान  कार्य  नहीं  है  l  यह  अत्यंत  धैर्य पूर्वक  और  दीर्घ काल  तक  की  जाने  वाली  प्रक्रिया  है  ----  समाज  में  महिलाओं   एवं पुरुषों  को    केवल   पैसा  या  सहायता  देना  ही   पर्याप्त  नहीं  है    बल्कि  उस  पैसे  व  सहायता  से   उनके  अन्दर  की  क्षमता   एवं  रचनात्मकता   के  आधार  पर  स्वावलंबन  का  कार्य  आरम्भ  करना  चाहिए  ,  उन्हें  शुभ  कर्मों  से  जोड़ना  चाहिए   और  सेवा  कार्यों  में  भी  संलग्न  करना  चाहिए   l    इससे  उनकी  जीवनशैली  में  परिवर्तन  आएगा  ,  उनके  जड़  जमाये  नकारात्मक  विचार  बदलेंगे   l    शिक्षा   एवं  विभिन्न  प्रकार  की   सेवा  एवं  स्वावलंबन   कार्य  के  करने  से  उनके  अन्दर  आत्मविश्वास  जागेगा   एवं  वे  स्वयं  इन  कार्यों  में  प्रवृत  होंगे    l   

WISDOM ----- सकारात्मक सोच से ही जीवन सुखी हो सकता है l

 जो  परिस्थितियों  को  सकारात्मक  अवसर  के  रूप  में  देखते  हैं  ,  वे  प्रसन्नतापूर्वक    उनका  सामना  कर  पाते  हैं  , जबकि  इन्हें  प्रतिकूलताओं  के  रूप  में  देखने  वाले  ,  व्यर्थ  की  चिंता  में   अपने  समय  व  शक्ति  को  नष्ट  कर   दुःखी  ही  रहते  हैं   l  एक  प्रसंग  है ---- एक  दिन  एक  शिष्य  ने  अपने  गुरु  से  कहा ----- " गुरुदेव ! एक  व्यक्ति  ने  आश्रम  के  लिए  गाय  भेंट  की  है   l  "
  गुरु  ने  कहा --- " अच्छा  हुआ  ,  दूध  पीने  को  मिलेगा  l "
 एक  सप्ताह  बाद  फिर  शिष्य  ने  गुरु  से  आकर  कहा ---- "  गुरूजी  ! जिस  व्यक्ति  ने  गाय  दी  थी , वह  अपनी  गाय  वापस   ले  गया  l " 
  गुरु  ने  कहा --- " अच्छा  हुआ  !  गोबर  उठाने  के  झंझट  से  मुक्ति  मिली  l "
 बदलती  परिस्थितियों  के  साथ  सकारात्मकता  बनाये   रखना   ही  जीवन  में  सफलता   का  एकमात्र  सूत्र  है  l 

17 June 2018

WISDOM -----

 रामकृष्ण परमहंस  कहा  करते  थे ---चील  कितनी  ही  ऊपर  ऊँचाइयों  पर  उड़ती  रहे   फिर  भी  उसकी  द्रष्टि   धरती  पर  पड़े  मृत  जानवर  पर  ही  लगी  रहती  है   l  इससे  कोई  अंतर  नहीं  पड़ता  कि  उसका  शरीर  उतंग  ऊँचाइयों  पर   उड़  रहा  है  ,  पर  मन  फिर  भी  जमीन  पर  अटका  रहता  है  , मांस  के  लोथड़े  तलाशता  रहता  है   l  यह  मन  का  स्वभाव  है  ,  उसे  अधोगामी   बनने  में  रस  आता  है  l  मन  का  परिष्कार  जरुरी  है   l  

16 June 2018

WISDOM---- सभी समस्याओं का एक मात्र हल है ---- संवेदना

   जब  संवेदना  होती  है   तब  दूसरों  के  कष्ट  तकलीफ  अपनी  पीड़ा  के  समान  लगते  हैं  ,  मन  में  बेचैनी  होती  है  ,   और  जब  तक  उसकी  पीड़ा  के     निवारण  के  लिए  कुछ  कर  न  दिया  जाये   तब  तक  मन  को  शांति  नहीं  मिलती  है   l 
  देश  के  लिए  जीवन  समर्पित  करने  से  पूर्व  एक  बार  महात्मा  गाँधी  ने  देश  का  भ्रमण  किया   और  देश  की  स्थिति  से  परिचित  होने  पर    वे  अपने  शरीर  पर  आजीवन  पूरी   धोती  भी  नहीं  पहन  सके  l  क्योंकि  देश  की  पीड़ा  को  देखकर    ,  महसूस  कर  के    पूरे  कपड़े  पहनने  के  सुख  का  उन्होंने  त्याग  कर  दिया  ,  और  धीरे - धीरे   अपने  जीवन  में  किये  जाने  वाले   छोटे - छोटे  त्याग  के  फलस्वरूप   वे  ' महात्मा  '  के  पद  से  विभूषित  हुए   l  

15 June 2018

WISDOM ---- अच्छे कर्मों पर भरोसा रखना चाहिए , मुफ्त के चमत्कारों पर नहीं

   मनुष्य  का  यह  स्वभाव  है   कि  वह  सरलता  से  बहुत  कुछ  पाना  चाहता  है   l  ईश्वर  सर्वशक्तिमान  है    उसकी  कृपा  माला  घुमाकर ,  फूल - प्रसाद  चढ़ाकर  और  सबसे  बढ़कर  संतों  और  धर्म  के  ठेकेदारों  को  खुश  कर  के  मिल  जाये  तो  क्या  बुराई  है ,  ऐसी  सोच  के  कारण   ही   धर्म  का  सच्चा  स्वरुप  खो  गया  और  आज  धर्म  ने  भी  एक  व्यवसाय  का  रूप ले  लिया  ,  जिसमे  लाखों  लोगों  को  रोजगार  मिल  जाता  है   l  जिसको  कहीं  कोई  रोजगार  नहीं  है  उसके  लिए  यह  क्षेत्र  खुला  है   l 
  पूजा - पाठ ,  भजन - पूजन ,  कर्मकांड  आदि  सब  कुछ  बहुत  अच्छा  ,  पवित्र  भावना  से  यह  सब  कुछ  होने  से  वातावरण  शुद्ध  होता  है    लेकिन    आज  की  सबसे  बड़ी  समस्या  यही  है  कि  आज  पवित्र  भावना  का  अभाव  है   l  स्वार्थ ,  लालच , अनीति , अत्याचार , शोषण , कर्तव्य  की  चोरी  जैसी   दुष्प्रवृतियों  , अनैतिक  इच्छाओं  की  पूर्ति  व्यक्ति  धर्म  की  आड़  में  ही  करता  है   l
    संसार  में  केवल  पर्यावरण  प्रदूषण नहीं  है  ,  विचारों  और  भावनाओं  का  प्रदूषण  बहुत  गहरा   है    l   यदि  कोई  व्यक्ति   बहुत  दुष्ट ,  पापी  है  ,  कपटी  है  तो  उसकी  नकारात्मकता  के  कारण  उसकी  उपस्थिति  ही  कष्टकारक  होती   है  ,  जब  ऐसे  लोगों  की  अधिकता  हो  जाती  है   तो  पूरा  वातावरण  ही  कितना   कष्टकारी  हो  जाता    है  इसका  अनुमान  लगाया  जा  सकता है  l  l  समाज  में बढ़ते  अपराध      भी  इसी  का  परिणाम  है  l                                                                                                                                                                                                                 

14 June 2018

WISDOM ----- अनीति और अत्याचार के विरुद्ध जनमानस का जागना जरुरी है

  गुरु  गोविन्दसिंह  ने   अपने  समय  की  दुर्दशा  का  कारण  जन - समाज  की  आंतरिक  भीरुता  को  माना  l  उनका  निष्कर्ष  था  कि  जब  तक  जन आक्रोश  नहीं  जागेगा   तब  तक  पददलित   स्थिति  से  उबरने  का   अवसर  न  मिलेगा  l   उन्होंने  संघर्ष  के  लिए  जनमानस  को  ललकारा  l 
  जब  अर्जुन  महाभारत  के  महासमर  से   भागना  व  बचना  चाहते  थे   तब  भगवान  श्री कृष्ण  ने  उन्हें  समझाया  ----  ऐसा  कर  के  तुम  कहीं  भी  चैन  से  न  बैठ  सकोगे  l  पाप  को  हम  न  मारें  ,  अधर्म,  अनीति  का  संहार   हम  न  करें  ,  तो   निर्विरोध  स्थिति  पाकर   ये  पाप , अधर्म   व  अनीति   हमें  व  हमारी  सामाजिक  व्यवस्था   को   मार  डालेंगे   l   इसलिए  जीवित  रहने  पर   सुख  और  मरने  पर  स्वर्ग  का   उभयपक्षीय  लाभ  समझाते  हुए   उठ  खड़े  होने  का  उद्बोधन  भगवान  श्री कृष्ण  उन्हें   देते  हैं   l  
  समझाने   और  सज्जनता  की   नीति  हमेशा  सफल  नहीं  होती   l  दुष्टता  को  भय  की    भाषा  ही  समझ  में  आती  है  l  नीति  शास्त्र  में    साम  की  तरह  दंड  को  भी    औचित्य  की  संज्ञा  दी गई है   l 

13 June 2018

WISDOM

  ज्ञान  और  धन  ,  दोनों  में   एक  दिन  अपनी  श्रेष्ठता  के  प्रतिपादन  के  लिए   झगड़ा  उठ  खड़ा  हुआ  l   दोनों  अपनी - अपनी  महत्ता  बताते   और  एक - दूसरे  को  छोटा  सिद्ध  करते  l  अंत  में  निर्णय  के  लिए  दोनों  आत्मा   के  पास  पहुंचे  l
  आत्मा  ने  कहा ---- " तुम  दोनों  कारण  मात्र  हो  ,  इसलिए  श्रेष्ठ   बात  तुम में  क्या  है   ? सदुपयोग  किये  जाने  पर  ही   तुम्हारी  श्रेष्ठता  है  ,  अन्यथा  दुरूपयोग  होने  पर    तो  तुम  दोनों  ही  घ्रणित  बन  कर  रह  जाते  हो    l   "  

12 June 2018

WISDOM ----- अच्छे या बुरे कर्मों का फल अवश्य मिलता है , लेकिन कब मिलेगा यह काल ( समय ) निश्चित करता है l

   यह  मनुष्य  की  अदूरदर्शिता   और  अज्ञान  है   कि  वह  क्षणिक  लाभ  के  लिए  वर्तमान  में   बुरे  कर्म  करने ,  अत्याचारी , अन्यायी  का  साथ  देने  के  लिए  तैयार  हो  जाता  है   और  अच्छे  कर्मों  के  माध्यम  से   लाभ  कमाने  के  लिए  तैयार  नहीं  होता  l   इसे  प्रकृति  अपने  ढंग  से  समझाती  है  --- यदि  खेत  में  आम  बोया  है   तो  एक  निश्चित  समय  के  बाद  आम  ही  मिलेगा  लेकिन  यदि  हमने  बबूल  बोया  है   तो  कांटे  ही   मिलेंगे ,  उसमे  किसी  तकनीक  से  परिवर्तन  संभव  नहीं  है   l 
  औरंगजेब  दिल्ली  का  शासक  था  ,  उसके  पास  किसी  तरह  की  कोई  कमी  नहीं  थी   लेकिन  सत्ता  हथियाने  के  लिए  उसने   अपने  भाइयों  की  हत्या  करवाई ,  पिता  को  मरवाया   l  ऐसा  कर  के  उसने  राज्य  तो  पा  लिया  लेकिन  उसका  अंतिम  जीवन  बहुत  कष्टपूर्ण  था  ,  विक्षिप्त  होकर  मरा  l 
  इसके    विपरीत    सम्राट  अशोक  ने  ह्रदय  परिवर्तन  के  बाद  जनता  के  कल्याण  के  अनेकों  कार्य  किये  ,  प्रजा जनों  को   सुशासन  देने  के  हर  संभव  कार्य  किये  इसलिए  आज  भी   सम्राट  अशोक  का  नाम  आदर  के  साथ  लिया  जाता  है  l  

11 June 2018

WISDOM ------ कर्तव्य ही धर्म है

  महाभारत  समाप्त  हुआ  l  पुत्रों  के  वियोग  में  दुःखी  धृतराष्ट्र   ने  महात्मा  विदुर  को  बुलाया  l  चर्चा  के  बीच  उनसे  पूछा --- " विदुर जी  ! हमारे  पक्ष  का  एक - एक  योद्धा  इतना  सक्षम  था  कि  सेनापति  बनने  पर  उसने  पांडवों  के  छक्के  छुड़ा  दिए  l  यह  जीवन - मरण  का  युद्ध  है  , यह  सबको  पता  है  l  यह  सोचकर   सेनापति   बनने   पर   एक - एक  कर के  अपना  पराक्रम  प्रकट   करने  की  अपेक्षा  कर्तव्य बुद्धि  से  एक  साथ  पराक्रम  प्रकट  करते  तो  क्या  युद्ध  जीत  न  पाते  l "
   विदुर  जी  बोले ---- " राजन  ! आप  ठीक  कहते  हैं   l  वे  जीत  सकते   थे  यदि  अपने  कर्तव्य  को   ठीक  प्रकार  समझते  और  अपना  पाते,    परन्तु  अधिक  यश   अकेले  बटोर  लेने   की  तृष्णा  तथा  अपने  को  सर्वश्रेष्ठ   प्रदर्शित  करने  की   अहंता  ने   वह  कर्तव्य   सोचने  ,  उसे  निभाने  की  उमंग  पैदा  करने  का  अवसर  ही  नहीं  दिया   l  " 
   थोड़ा  रूककर   विदुर  जी  बोले  -----  राजन  !  उनके  इतना  न  सोच  पाने   और  न  जीत  पाने  का  दुःख  न  करें  l   उन्हें  तो  हारना  ही  था  l   कर्तव्य  समझे  बिना  जीत   का  लक्ष्य   नहीं  मिल  सकता   l   यदि  वे   कर्तव्य  को  महत्व  दे  पाते  तो  युद्ध  का  प्रश्न  ही   न  उठता  l   कर्तव्य  के  नाते    भाइयों   का    हक   देने  से उन्हें  किसने  रोका  था   l  स्वयं  युगपुरुष  श्री  कृष्ण  समझाने  आये  थे  ,  पर  तृष्णा  ऐसी  कि   पांच  गाँव  भी  न  छोड़े   l   अहंता  ने   न  पितामह  की  सुनी  ,  न  युगपुरुष  की   l  जिन  वृतियों  ने  युद्ध     पैदा  किया  ,  उन्होंने   हरा  भी  दिया   l  

10 June 2018

WISDOM ---- कर्मकांड सरल है , लेकिन सच्चे ह्रदय से ईश्वर का स्मरण बहुत कठिन है l

  जब  तक  व्यक्ति  का  चित शुद्ध  न  हो  ,  ईश्वर  का नाम  स्मरण  करना  बहुत  कठिन  है   l  मन  चंचल  है , संस्कार  शुद्धि  के  बिना  सुमिरन  आसान  नहीं  है   l
        जयदयाल   गोयन्दका   जी  कलकत्ता  के  एक  बड़े  उद्दोगपति  और  धर्मपरायण  व्यक्ति  थे  l   उन्होंने  श्री  हनुमान प्रसाद  पोद्दार  जी  के  साथ  मिलकर   धार्मिक  प्रकाशनों  द्वारा  ऐसी  क्रांति  की   जिससे    लोगों  में  सच्चे  धर्म   के  प्रति  रूचि  पैदा  हुई  l   एक  बार  का  प्रसंग  है  -----  उनने  देखा  एक  भिखारी  भगवान  के  नाम  पर  भिक्षा  मांग  रहा  है  l  उनने  उससे  कहा --- "  तुम्हारी  यह  स्थिति  बदल  जाएगी  ,  यदि  हमारे  कहे  पर  चलोगे  l "  उससे  पूछा ---- " तुम  एक  दिन  में  कितना  कमा  लेते  हो  ? "
 भिखारी  ने  कहा ---- " कभी  चार  आने  कभी  आठ  आने  l  "  (  उस  समय  इसकी  कीमत  बहुत  थी  )
  उनने  कहा --- " हम  दो  रूपये  रोज  देंगे  l  हमारी  दुकान  के  बाहर  बैठकर  राम - राम  जपो  l "
 वह  बैठ  गया  , पर  तीन - चार  दिन  बाद  गायब  हो  गया   l  फिर  मिला  तो  ,  भीख  मांग  रहा  था  l
 गोयन्दका  जी  बोले  --- " हमसे  पांच  रूपये  रोज  ले  लो ,  पर  राम - नाम  का  जप  वहीं   दुकान  के  सामने  करो   l  "     वह  प्रलोभन  में  आया  तो  ,  पर  अधिक   बैठ  नहीं  पाया  l   फिर  जयदयाल  जी  ने  उसे  ढूंढ  निकाला  l  कारण  पूछा  तो  वह  बोला ---- " "  आप  पूरी  दुकान  भी  लिख  दो   तब  भी  वह  राम - नाम  जपने  का  काम  हम  नहीं  कर  पाएंगे  l  हमें  भीख  मांगने  में  जो  आनंद  आता  है  ,  वह  आपके  दिए  पैसों  में  नहीं  ,  और  फिर  हमारा  मन  भी  नहीं  लगता   l "
 सुमिरन  आसान  नहीं  है  l 

9 June 2018

WISDOM ----- व्यक्ति जन्म से नहीं , कर्म से महान होता है

   चीनी  दार्शनिक  कन्फ्यूशियस  की  महानता  से  चीन  के  सम्राट  परिचित  थे   l  एक  दिन  वे  कन्फ्यूशियस  से  बोले --- " तुम  मुझे  उस  व्यक्ति  के  पास  ले  चलो  जो  महान  हो  l "
 सम्राट  के  इस  प्रश्न  को  पूछने  के  पीछे  यह  भाव  था  कि  कन्फ्यूशियस  स्वयं  को  या  सम्राट  को  महान  की  श्रेणी  में  रखेंगे  l    परन्तु  कन्फ्यूशियस  उन्हें  लेकर  एक  वृद्ध  व्यक्ति  के  पास  पहुंचे  l    देखने में  साधारण  और  कमजोर  वह  व्यक्ति   एक  कुआं  खोद  रहा  था  l    सम्राट  को  उस  वृद्ध  व्यक्ति  से  परिचय  कराते  हुए   कन्फ्यूशियस बोले --- " सम्राट  !  मुझसे  भी  अधिक  महान  यह  वृद्ध  है   l  इसकी  काफी  आयु  बीत  चुकी  है ,  शरीर  से  भी  दुर्बल  है  ,  तब  भी  यह  परोपकार  के  भाव  से  कुआं  खोद  रहा  है  l  परोपकार  में  ही  इसको  आनंद  की  अनुभूति  होती  है   l  जिसका  तन  और  मन  दोनों  ही  परोपकार  में  निमग्न  हों  उससे  अधिक  महान  अन्य  कौन  हो  सकता  है   ? "
  महान  व्यक्ति  समस्त  मानवता  के  लिए  संवेदनशील  होते  हैं  ,  दूसरों  के  दुःख - दर्द  को  दूर करने  का  यथासंभव  प्रयास  करते  हैं   l 

8 June 2018

WISDOM ----- तृष्णा का अंत नहीं होता

 '  दिवस - रात्रि , शाम - सुबह ,  शिशिर - वसंत   जीवन  में  कितनी  बार  आये  और  गए  l  काल  ने  आयु  को  भी  समाप्त  कर  दिया  किन्तु  तृष्णा  समाप्त  न  हुई  l "
  घटना  उन  दिनों  की  है  जब  आचार्य  शंकर    ऋषि  व्यास  के  सूत्रों   की  चर्चा  हेतु  काशी  के  पास  एक  गाँव  में  शिव  मंदिर  में  ठहरे  हुए  थे  l  एक  शिष्य  ने  आकर   सूचना    दी  कि  एक   वृद्ध  सज्जन  आपसे  मिलना  चाहते  हैं   l  आचार्य  ने  कहा --- " उन्हें  आदर पूर्वक  ले  आओ  l  "   शिष्य  उन्हें  लेकर  आचार्य  के  समीप  उपस्थित  हुए  l  आचार्य  ने  देखा ,  वे  अति वृद्ध  थे ,  झुकी  हुई  कमर , दन्त विहीन  मुख ,  कमजोर  शरीर  और  वे  हाथ  में  एक  पुस्तक  पकड़े  हुए  थे  l 
वृद्ध  ने  आचार्य  से  कहा --- " आचार्य  ! यह  व्याकरण  की  पुस्तक  है  l  आप परम  विद्वान्  हैं  l  मुझे  व्याकरण  का  ज्ञान  दें  l "   इस  पर  आचार्य  ने  उनसे  कहा --- "  इस  आयु  में  आपके  सीखने  की  इच्छा  प्रशंसनीय  है   l  यदि  आप  केवल  व्याकरण  सीखना  चाहते  हैं    तो  इस  पुस्तक  को   अवश्य  पढ़ें , परन्तु   ज्ञान  का  यथार्थ  चितशुद्धि  में  है  l "
 वृद्ध  अपनी  ही  धुन  में  था , बोला --- "  मैं  व्याकरण  सीखूंगा , फिर  शास्त्रों  का  अध्ययन  करूँगा  l  शास्त्रों  को  समझकर  मैं   पंडित , फिर  महापंडित  बनूँगा  l  तब  मुझे   विद्वानों  से  शास्त्रार्थ  करने  का  मौका  मिलेगा  l  शास्त्रार्थ  में  विजयी  होने  पर   जन - जन  में  मेरा  सम्मान  होगा  l  लोग  मुझे  शास्त्रार्थ  महारथी , तर्क शिरोमणि , महामहोपाध्याय  कहेंगे   l  ऐसी  स्थिति  में  मुझे  ज्ञानी वृद्ध  कहा  और  समझा  जायेगा l "
         इस  क्षीणकाय,  कांपते  हुए  वृद्ध  की  मनोदशा  पर  आचार्य  को  करुणा  हो  आई ,  वे  इस  वृद्ध  को  जीवन  की  सही  राह  दिखाना  चाहते  थे  l  उन्होंने  कहा ---- " इतनी  आयु  होने  पर   इतनी  आशाएं  !  इतनी  अधिक  महत्वाकांक्षाएं ,  कैसी  है  ये  तृष्णा  ?  अरे  !  ज्ञान  शब्दों  में  नहीं ,  ज्ञान  आकांक्षाओं  और  अहंकार  के  पोषण  में  नहीं  ,  बल्कि  इनके  विनाश  में  है   l  "  उन्होंने  ईश्वर  से  प्रार्थना  की  -- हे  प्रभु  !  इस  प्राणी  का  उद्धार  कर  l   फिर  वे  उससे  कहने  लगे  --- "  काल  ने  तुम्हारी  आयु  को  समाप्त  कर  दिया ,  किन्तु  तुम्हारी  तृष्णा  समाप्त  नहीं  हुई  l  अरे ! मूढ़ !  मरण  समीप   आने  पर   यह  व्याकरण  काम  नहीं  आएगा  ,  अब  तुम  गोविन्द  का  भजन  करो ,  भक्ति  करो  l "
   आचार्य  शंकर  के   मुख  से  भक्ति   की  महिमा  सुन  के  उस  वृद्ध  को  चेत  हुआ    l   शिष्यों  ने  भी  भक्ति  की  महिमा  को  जाना  l 

7 June 2018

WISDOM ----- अपनी निंदा को स्वीकार कर पाना मुश्किल है l

  निंदा  सच्ची  हो  तो  भी  स्वीकार  नहीं  होती  l   निंदा  जितनी  सच  होती  है  उतनी  ही  खलती  है  l 
  किन्तु  यदि  निंदा - आलोचना  को  सहज  और  सकारात्मक  भाव  से  स्वीकार  किया  जाये   तो  व्यक्ति  को  अपने   आपका  सुधार  करने   के  लिए  भारी  मदद  मिलती  है  l   अपने  में  कौन  सी  कमियाँ  हैं ,  क्या  दोष  हैं  ?   इसका  स्वयं  इतना  पता  नहीं  चलता  l  अपने  व्यवहार  या  आचरण  की  परख  दूसरों  के  द्वारा  की  गई   आलोचना  और  निंदा  के  प्रकाश  में   भली  भांति  की  जा  सकती  है  l 
               निंदा  अपने  प्रकट  और  अप्रकट  दोषों    की   ओर    इंगित  करती  है   तथा  उन्हें  सुधारने  की  प्रेरणा  देती  है   l   इसके  लिए  चाहिए  वह  द्रष्टि    जो  निंदा  के  प्रकाश  में   अपने  दोष - दुर्गुणों  को  ढूंढ  सके    और  चाहिए  वह  सहिष्णुता   जो  निंदा - आलोचना  को  सह  सके   l  

6 June 2018

पुरुषार्थ के प्रतीक ----- श्री गंगाराम -- साहस , परिश्रम और योग्यता से असंभव काम भी संभव है

 1917-18  में   जब  अमेरिका  में  लाखों  व्यक्ति  सेना  में  काम  करने  और  गोला - बारूद  कारखानों  में  नौकरी  करने  चले  गए   और  वहां  अन्न  की  कमी  पड़ने  लग  गई   तो  कैम्पबेल  ने   खाली  पड़ी  दो  लाख  एकड़  भूमि  में   खेती  की  योजना  बना  कर  सरकार  के  सामने  रखी  l  अमरीका  के  राष्ट्रपति  ने  भी  उन  पर   विश्वास  कर   उस  योजना  को  मंजूर  किया ,  बैंकों  ने  कर्ज  दिया  और  कैम्पबेल   ने  अपनी  योग्यता  से   मशीनों  की  सहायता  से   कुछ  ही  समय  में   एक  लाख  दस  हजार  एकड़  बंजर  जमीन  में  लहलहाती  फसल  पैदा  कर  के  दिखा  दी  , जिससे  करोड़ों  व्यक्तियों  को  रोटी  मिल  सकने  की  व्यवस्था  हो  गई  l 
      जो  काम  कैम्पबेल  ने  अमेरिका  में  किया  वही  श्री  गंगाराम  ने  भारत  में  कर  दिखाया  l  उनके  पास  अमेरिका  जैसे  साधन  नहीं  थे  और  न  ही  उस  समय  की  विदेशी  सरकार  पूरा  सहयोग  दे  रही  थी   तो  भी  उन्होंने  अपने  साहस  और  योग्यता  से  असंभव  कार्य  संभव  किया -----------   
        जब  1903  में  गंगाराम जी  ने  सरकारी  नौकरी  छोड़ी  , तब  सरकार  ने  पुरस्कार  स्वरुप   चिनाव  की  नहर  पर   20  एकड़  बंजर  भूमि  दी  l  उन्होंने    वैज्ञानिक   रीतियों  से  उस  भूमि  को  इतना  उपजाऊ  बना  दिया  कि  लोग  आश्चर्य चकित  रह  गए  l  सरकार  ने  फिर  उन्हें  उसके  जैसी  50  वर्ग  एकड़  भूमि  और  दी  ,  यह  पानी  के  धरातल  से  बहुत  ऊँची  थी  , पर  गंगाराम जी  ने   मशीन  से  जल  को  ऊपर  चढ़ा कर  इस   बंजर  भूमि  को  जल  से  तर  कर  दिया , यहाँ  भी  हरे - भरे  पौधे  लहलहा  उठे  l  उन्होंने    हजारों  एकड़   ऊसर  भूमि  को   सिंचाई   की  व्यवस्था  द्वारा    उपजाऊ  बनाकर  बड़े - बड़े  फार्म  स्थापित   किये थे
             सबसे  बड़ी  चुनौती  उनके  सामने  तब  आई    जब  प्रथम  महायुद्ध  के  समय  सरकार  ने   पंजाब  में  हजारों  सिपाही  कृषि  योग्य  जमीन  दिए  जाने  का  प्रलोभन  देकर  भर्ती  किये  थे  l  किन्तु  जाँच  से  पता  चला  कि   उपजाऊ  भूमि  बहुत  कम  है  और  जब  तक  बंजर  भूमि  को  उपजाऊ  न  बनाया  जाये    तब  तक  काम  नहीं  चलेगा   l   जब  इस  काम  के  लिए  गंगाराम  जी  को  कहा  गया  तो   अन्न  उत्पादन  में  वृद्धि  राष्ट्र  हित  में  है ,  उन्होंने इस   चुनौती   को  स्वीकार  किया  l   इसके  लिए  सरकार  की  शर्त  भी  कड़ी  थी  कि  इस  भूमि  को  उपजाऊ  बनाकर  तीन  वर्ष  बाद  मय  मशीनों  के   सरकार  को  सिपाहियों  को  बसाने  के  लिए  लौटा  देंगे  l   गंगाराम  जी  ने   बड़े  परिश्रम  और  मितव्ययता  से  कार्य  किया  जिससे  एक  पैसा  भी  व्यर्थ  खर्च  न  हो   l  अनेक  बाधाओं  का  सामना  कर  के  इस  चुनौती  पर  उन्होंने  विजय  पाई   l  कृषि  की  उपज  पर  उन्हें  काफी  लाभ  मिला  जिसे  उन्होंने  परोपकार  में  लगाया  l 
                        इस  सफलता  से  सरकार  को  उनपर  विश्वास  हो  गया   और  अब  40  हजार  एकड़  भूमि   उन्हें  ठीक  करने  को  दी  गई  l   इसकी  शर्तें  पहले  से  भी  कड़ी  थीं  कि  सरकार  बिना  एक  पैसा  लगाये  सात  वर्ष  बाद  समस्त  जमीन  वापस   लेगी  l    लोगों  को  यह  कार्य  असंभव   जान  पड़ा  , पर  गंगाराम जी  ने    कृषि  योग्य  भूमि  की  वृद्धि  देश  के  लिए  कल्याणकारी  है  , इस  विचार  से  वृद्धावस्था  में  भी  बहुत  कुशलता  व  परिश्रम  से  कार्य    को  पूर्ण  किया    कि  सब  लोग  वाह-वाह  करने  लगे  l   
 पंजाब  के   गवर्नर  ने   एक  विशाल  जन समूह  के  सम्मुख  कहा ---- " श्री  गंगाराम  ने  अपने  प्रान्त  के  लिए  जो  महान  काम  किया  वह  अत्यंत  प्रशंसनीय  है   l    वे  एक  वीर   की  भांति  जीतना  ही  नहीं  जानते  बल्कि  साधु  की  भांति  दे  डालना  भी  जानते  हैं  l  ---- हमेशा  उनका  नाम  बड़े  स्नेह  के  साथ  लिया  जायेगा   l  "  

5 June 2018

WISDOM ----- प्रकृति - पर्यावरण के साथ भावनात्मक साहचर्य ही इनसान को नई जिन्दगी दे सकता है l

 " प्रकृति   सीधी - सौम्य  गाय है   और  क्रुद्ध  सिंहनी  भी   l  यदि  उसके  साथ  अनर्गल   और  अनौचित्य पूर्ण  व्यवहार    न    किया  जाये  तो   अनन्त  काल  तक  अपने   दूध  रूपी  अनेक  तरह  की  संपदाओं  से   हमारा  पालन - पोषण  करती  रह  सकती  है  ,  पर  यदि  प्रदूषण - संदोहन  की   नोच - खसोट   और  छीना - झपटी  का   दुर्व्यवहार  किया  गया  तो   क्रुद्ध  सिंहनी  की  तरह    अंग - भंग  करने   में ,  चीरने - फाड़ने  में   कोई  कोर - कसर  नहीं  छोड़ेगी  l  अच्छा  यही  है  कि  हम  उसकी  गोद  में  फलें - फूलें  l  इसके  लिए  ध्यान  रखना  होगा  कि  हम  अपने  आस - पास  के   वातावरण  को   हरा - भरा  बनायें , प्रदूषण  मुक्त  रखें  l  "
                                                                        परम पूज्य  गुरुदेव  पं. श्रीराम  शर्मा  आचार्य  

4 June 2018

WISDOM ------ धन तथा शस्त्र की शक्तियां अध्यात्म के नियंत्रण में रहें तभी वे दुनिया के लिए हितकारी हो सकती हैं l

  धन    और  शस्त्र  की  शक्ति  तो  प्रत्यक्ष  ही  दिखाई  पड़ती  है   पर  अध्यात्म  की   शक्ति  अप्रत्यक्ष   होते  हुए  भी  उन  दोनों  से   बढ़कर  है   l  यह   -- विनोबा  भावे  और  महात्मा  गाँधी  जैसी  दैवी  विभूतियों  की  कार्य   प्रणाली  से   सत्य  सिद्ध  हो  जाता  है  l  l 
  विनोबा   भावे  ने   भूदान  के  लिए  पूरे  देश  का  भ्रमण  किया   l  वे  पीरपंजाल  को  पार  कर  के    कश्मीर  पहुंचे   तो  वहां  के  मुसलमान  निवासियों   ने  एक  गुरु  (पीर )  की  तरह  उनका  स्वागत  किया   l  वहां  से  चलते  समय  उनको  आगरा  के   प्रसिद्ध    डाकू   मानसिंह  के  पुत्र  का  पत्र  मिला  ,  जिसमे  लिखा  था --- " बाबा  !  मुझे  फांसी  की  सजा  मिली  है  l  मरने  से  पहले   मैं  आपके  दर्शन  कर  लेना  चाहता  हूँ   l "  लोगों  ने  उनसे  कहा  कि  हिंसा  से  डाकुओं  की  समस्या  नहीं  सुधरी,  पुलिस जितने  डाकुओं  को  पकड़ती  या मारती  है  ,  उतने  ही  फिर  नए  पैदा  हो  जाते  हैं   l  आप इस  समस्या  को  प्रेम  से  सुलझाने  का  प्रयत्न  करें   l   इन  सब  बातों  को  सुनकर  विनोबा   ने    इन  डाकुओं  को  अपना  जीवन  मार्ग  बदलने  का  सन्देश  देने  का  निश्चय  किया  l   8  मई  को  वे   आगरा    के  निकट  चम्ब्लों  के  बीहड़ों  में   पहुँच  गए   और  एक   महीने    तक  अपना  सन्देश  डाकुओं  तक  पहुंचाते  रहे  कि वे  ऐसा  गलत  काम  छोड़  दें  और  अपनी  जिन्दगी  सुधार  लें   l    इसका  नतीजा  यह  हुआ  कि  20  प्रसिद्ध  डाकुओं  से  विनोबा  के  सामने  अपने  हथियार  डाल  दिए  और  प्रतिज्ञा  की  कि  अब  वे  ऐसा  काम  नहीं  करेंगे 
 एक  डाकू  ने   बम्बई  में  अखबारमें  पढ़ा  कि  बाबा   विनोबा  चम्बल  के  बीहड़ों  में   घूम - घूम  कर  भूल  में  पड़े  भाइयों  को  समझा  रहें  हैं  ,  उसकी  भी  अंतरात्मा  जागी   और  उसने  भी  समर्पण  किया  l  विनोबा  ने  अपने  प्रवचन  में  कहा  --- "  आज  जो  भाई  आये  हैं  वे  परमेश्वर  के  भेजे  हुए  हैं  ,  हमारा  कोई  सा  थी  उनके   पास  नहीं  पहुंचा  था   l  ढाई  हजार  वर्षों  से  हम  भगवान  बुद्ध  और  अंगुलिमाल   की  कहानी     सुनते  आ  रहे  हैं  ,  आज  कलियुग  में  ऐसी कहानियां  बन  रहीं  हैं  l 
 जो  डाकू   पुलिस  और  फौज  वालों    की  मशीनगनों   और  रायफलों   से  नहीं  डरते  थे  ,  वे  एक   निहत्थे  और  बूढ़े  आदमी  के  सामने  नत मस्तक  हो  गये  ,  यह  अध्यात्म  की  शक्ति  का  ही  चमत्कार  है   l 

3 June 2018

जब तक मानसिकता नहीं बदलती , सामाजिक बुराइयाँ समाप्त नहीं होतीं , ऐसे जातिगत भेदभाव करने वाले चेहरे बदल जाते हैं

    अंग्रेजों  के  जमाने  में   जातीय  पक्षपात   के  शिकार  होने  वाले  सर्व  प्रथम   भारतीय   उच्च  पदाधिकारी  श्री  सुरेन्द्रनाथ  बनर्जी  थे  ,  जिसकी  चर्चा   आज  से  लगभग  सवा  सौ  वर्ष  पूर्व   बहुत  दिनों  तक  देश - विदेश  में  सुनाई  पड़ती  रही   l 
  यद्दपि  सुरेन्द्रनाथ  बनर्जी  का  जन्म    बंगाल  के  एक  प्रसिद्ध  ब्राह्मण  परिवार  में  हुआ  था  ,  लेकिन  अंग्रेजों  की  निगाह  में  वे  एक  भारतीय  थे   और  भारतीयों  को  नीचा  समझकर  वे   आगे  बढ़ने  देना  नहीं  चाहते  थे   l   उस  समय  में  वे  आई. सी. एस.  की  परीक्षा  पास  कर  के    सिलहट ( आसाम )  में   असिस्टेंट  डिस्ट्रिक्ट  मजिस्ट्रेट     नियुक्त  हुए  l  भारतीयों  के  लिए  यह  गर्व  की  बात    थी    लेकिन   अंग्रेज  भारतीयों  को  हीनता   की  द्रष्टि  से  देखते  थे  , इस  कारण   सुरेन्द्रनाथ  बनर्जी  के  साथ  रुखा   व्यवहार  करने  लगे   l  श्री  बनर्जी  बहुत  योग्य  थे   लेकिन  उच्च  अधिकारी  बात - बात  में  उनकी  गलती  निकालने  लगे   l  उच्च  अधिकारी  से   वैमनस्य  रहने  के  कारण  दो  वर्ष  के  भीतर  ही  वे  सरकारी  नौकरी  से  हटा  दिए  गए   l 
  इस  अन्याय  की  शिकायत  करने  के  लिए  श्री  बनर्जी  इंगलैंड  गए    लेकिन  जातीयता  के  आधार  पर  वहां  भी   गोरे  लोगों  का  ही  पक्ष  लिया  गया  l    अब  उन्होंने  अपना  लक्ष्य  देश  में  शिक्षा  का  प्रसार  और  शासन  में  सुधार  का  बना  लिया  l  एक  कार्यक्रम  में  उन्होंने  कहा ----- "  जो  अन्याय  मेरे  साथ  किया  गया   वह  हमारे  समाज  और  देशवासियों  की   नितान्त  शक्तिहीनता    का  द्दोतक   है  l  यह  अन्याय  मुझे  केवल  इसलिए  सहना  पड़ा  क्योंकि  मैं  भारतीय  हूँ  ,  एक  ऐसे  समाज  का  सदस्य  जिसमे  कोई  संगठन  नहीं  है ,  जिसका  एक  सार्वजनिक  मत  नहीं  है   l 
  उनकी  मान्यता  थी  कि  अच्छी  शिक्षा  देशोन्नति  की  पहली  सीढ़ी  है   l 

2 June 2018

भारतीय किसान

   अंग्रेजी  के  सुप्रसिद्ध  साहित्यकार  सामरसेट  माम   1938  में  प्रथम  बार  भारत  आये   l  यहाँ  से  विदा  होने  पर  जब  उनसे  पूछा  गया   कई  भारत  की  कौन  सी  वस्तु  ने  आपको  सबसे  ज्यादा  प्रभावित  किया   तो  उन्होंने  कहा  ---- "  मुझे  आगरा  के  ताजमहल ,  बनारस  के  घाट,  मथुरा  के  मंदिर   और  त्रावनकोर  के  पर्वतों  ने  बिलकुल  भी  प्रभावित  नहीं  किया   l  मैंने  भारत  के  गरीब  किसानों  को  , लंगोटी  लगाये , भूखे  पेट  काम  करते  देखा   l  वह  सूर्योदय  से  पूर्व  की   कड़कड़ाती  ठण्ड  में  काम  करता  है  ,  दोपहरी  की  तपती  धूप  उसे  पसीने  से  लथपथ  कर  देती  है   और  सूर्यास्त  तक  अपना  खेत  जोतता   है , मेहनत  करता  है  l   वह  गत  300  वर्षों  से  इसी  प्रकार   धरती  माता  के  लिए  अपना  पसीना  बहाता  आ  रहा  है   और  इसके  बदले  में  उसे   अल्प  मात्र  में   निर्वाह  सामग्री  प्राप्त  हो  जाती  है   l  भारतीय  कृषकों  की  स्थिति  देखकर मेरे  ह्रदय  में  हलचल  उत्पन्न  हो  गई  l  " 
  भारत  यात्रा  के   ऐसे  तीखे  संस्मरण   उन्होंने  अपने  देश  लौटकर  '  एक  लेखक  की  नोटबुक '  में  लिखे  l  

1 June 2018

WISDOM ----- मनुष्य यदि सुख - शान्ति से रहना चाहता है तो मानव - मानव के बीच धर्म , जाति और सम्प्रदाय की भेद की रेखाओं को मिटाना होगा ----- बंट्रेन्ड रसेल

 ब्रिटेन  की  धरती  पर  जन्म  लेकर  भी    वे    किसी  एक  देश  के  होकर  न  रहे   l  समग्र  मानवता  की  पीड़ा  को   हरना  उनका  उद्देश्य  था  l   जब  प्रथम  महायुद्ध  छिड़ा  तो  उन्हें  बहुत  दुःख  हुआ , सोचने  लगे  कि  कितने  ही  नवयुवक  जो  देश  की  रचनात्मक  गतिविधियों  में  सक्रिय  सहयोग  दे  सकते  हैं  ,  युद्ध  की  भेंट  चढ़  जायेंगे  l    1915  में  उन्होंने  एक  पुस्तक  प्रकाशित  कराई -- ' व्हाई  मैन  फाइट '  l  इसका  समाज  पर  प्रभाव  पड़ा ,  प्रत्येक  युवक  के  हाथ  में  यह  पुस्तक  दिखाई  पड़ने  लगी  l  जो  शान्ति  में  विश्वास  करते  थे   उन्होंने  सेना  में  भर्ती  होने  से  इनकार  कर  दिया  l   अनिवार्य  भर्ती  कानून  का  विरोध  होने   लगा  और  लार्ड  रसेल  को  भी  बंदी  बना  लिया  गया  l  E
  1945  में  हिरोशिमा  और  नागासाकी  पर  परमाणु  हमले  ने  उनकी  आत्मा  को  झकझोर   दिया  ,  वे  एक  बार  फिर  रो   पड़े  l   लार्ड  रसेल  परमाणु  युद्ध  के  विरुद्ध  जनमत  जाग्रत  करना  चाहते  थे  ,  वे  हर  मानव  को  युद्ध  की  पीड़ा  से  परिचित  कराना  चाहते  थे   l    वे  अंत  तक  मानव  को    प्रेम   का    सन्देश  देते  रहे  l 
 भेदभाव  की  जो  रेखाएं  जमीन  पर  कहीं  भी  अंकित  दिखाई  नहीं  देती  हैं   उन्हें  वह  व्यक्ति  के  मन  से  भी    मिटाना   चाहते  थे