प्रज्ञा पुराण में लिखा है ---- "ध्वंस सरल है l उसे छोटी चिंगारी एवं सदी कील भी कर सकती है l गौरव सृजनात्मक कार्यों में है l मनुष्य का चिंतन और प्रयास सृजनात्मक प्रयोजनों में ही निरत रहना चाहिए l " समय परिवर्तनशील है l संसार में ध्वंस और सृजन होता रहता है , इन कार्यों के लिए ईश्वर इस संसार से ही लोगों का चयन करते हैं l जिनके पास सत्कर्म की पूंजी है , सकारात्मक सोच है , जिनके हृदय में करुणा और संवेदना है , सच्चाई और ईमानदारी से कर्तव्यपालन करते हैं उनका चयन ईश्वर सृजनात्मक कार्यों और कल्याणकारी योजनाओं को संपन्न कराने के लिए करते हैं l लेकिन यदि कोई व्यक्ति ऐसा है जो विद्वान् है , उसमे अनेक गुण भी हैं लेकिन वह बहुत अहंकारी है , करुणा , दया जैसी भावनाओं का अभाव है , छल - कपट है उसमे , तो ऐसे लोगों का चयन ईश्वर ध्वंस के कार्यों के लिए करता है l जैसे रावण , दुर्योधन , हिटलर , तैमूरलंग l ऐसे लोग स्वयं अमानवीय करते हैं , कराते हैं और स्वयं अपने कर्मों से इतिहास में अपना नाम ख़राब करते हैं l