एक घटना है --- मीरजाफर के प्रेत की l इतिहास में है कि मीरजाफर बंगाल के नवाब सिराजुद्दोला से विश्वासघात कर वहां की गद्दी पर आसीन हुआ , उन्ही दिनों उसने एक शानदार हवेली का निर्माण कराया l वह हवेली बहुत भव्य थी l लेकिन मीरजाफर की गद्दारी के कारण यह भव्य संरचना ' नमक हराम की हवेली ' के नाम से विख्यात हो गई l कथा इसी हवेली से संबंधित है ----- घटना उन दिनों की है जब उस हवेली में सरकारी दफ्तर लगता था l रात की चौकीदारी के लिए एक व्यक्ति रखा गया जिसका नाम था -अलीबख्श l
दो महीने बीत गए l एक रात जब वह चौकीदारी कर रहा था तो नवाबी वेश में एक तीस - पैंतीस वर्ष का व्यक्ति उसके सामने खड़ा था l उसने चौकीदार से कहा --- मैं मीरजाफर यहाँ का मालिक हूँ , मेरी इच्छा के विरुद्ध कोई यहाँ नहीं आ सकता l --- ' तुम कौन हो , यहाँ क्या कर रहे हो l ' चौकीदार की घिग्घी बँध गई , बोला --- ' मैं बहुत गरीब हूँ , किसी तरह यहाँ काम कर के अपना परिवार चलाता हूँ l '
वह मीरजाफर उसको अपने साथ बगीचे के कोने में ले गया और एक गोल घेरा बनाकर कहा --
" यहाँ चार सोने की ईंट हैं , इनसे तुम अपनी गरीबी मिटाओ और जीवन में एक बात सदा याद रखना --- किसी व्यक्ति , समाज और राष्ट्र के प्रति कभी विश्वासघात न करना l यह इतना बड़ा पाप है , जो कि दूसरी दुनिया में भी व्यक्ति को बेचैन किये रहता है l ' उसने कहा --- " मैं इसका प्रत्यक्ष सबूत हूँ l मेरे उस एक विश्वासघात ने , जिसने देश को दो सौ वर्षों की गुलामी में जकड़ दिया , मुझे अशांत बनाये रखा है l प्रेत की योनि में रहने से बड़ी सजा शायद इस पाप की न हो l ऐसी स्थिति में मैं तुम्हारे जैसे अभावग्रस्त की बराबर सहायता करता हूँ , यही मेरे पाप का प्रायश्चित है , इससे मुझे चैन मिलता है l इस दुनिया में ईश्वर का न्याय चलता है l तुम कभी किसी के साथ अनीति , विश्वासघात न करना , अन्यथा तुम्हे भी मेरी जैसी स्थिति में वर्षों रहकर दंड भोगना पड़ेगा और तब पछताने के अलावा कुछ शेष नहीं रहता l '
दो महीने बीत गए l एक रात जब वह चौकीदारी कर रहा था तो नवाबी वेश में एक तीस - पैंतीस वर्ष का व्यक्ति उसके सामने खड़ा था l उसने चौकीदार से कहा --- मैं मीरजाफर यहाँ का मालिक हूँ , मेरी इच्छा के विरुद्ध कोई यहाँ नहीं आ सकता l --- ' तुम कौन हो , यहाँ क्या कर रहे हो l ' चौकीदार की घिग्घी बँध गई , बोला --- ' मैं बहुत गरीब हूँ , किसी तरह यहाँ काम कर के अपना परिवार चलाता हूँ l '
वह मीरजाफर उसको अपने साथ बगीचे के कोने में ले गया और एक गोल घेरा बनाकर कहा --
" यहाँ चार सोने की ईंट हैं , इनसे तुम अपनी गरीबी मिटाओ और जीवन में एक बात सदा याद रखना --- किसी व्यक्ति , समाज और राष्ट्र के प्रति कभी विश्वासघात न करना l यह इतना बड़ा पाप है , जो कि दूसरी दुनिया में भी व्यक्ति को बेचैन किये रहता है l ' उसने कहा --- " मैं इसका प्रत्यक्ष सबूत हूँ l मेरे उस एक विश्वासघात ने , जिसने देश को दो सौ वर्षों की गुलामी में जकड़ दिया , मुझे अशांत बनाये रखा है l प्रेत की योनि में रहने से बड़ी सजा शायद इस पाप की न हो l ऐसी स्थिति में मैं तुम्हारे जैसे अभावग्रस्त की बराबर सहायता करता हूँ , यही मेरे पाप का प्रायश्चित है , इससे मुझे चैन मिलता है l इस दुनिया में ईश्वर का न्याय चलता है l तुम कभी किसी के साथ अनीति , विश्वासघात न करना , अन्यथा तुम्हे भी मेरी जैसी स्थिति में वर्षों रहकर दंड भोगना पड़ेगा और तब पछताने के अलावा कुछ शेष नहीं रहता l '